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कर्म पथ पर - 27



कर्म पथ पर
Chapter 27


महेंद्र के जाने के बाद घर में तनाव का माहौल था। शिव प्रसाद नहीं चाहते थे कि हैमिल्टन द्वारा सुझाए गए रिश्ते के बारे में सोंचा जाए। उनका मानना था कि हैमिल्टन नॅ अपने ही किसी स्वार्थ के लिए यह रिश्ता भेजा है। स्टीफन से शादी करवा कर वह अपना ही कोई हित साधेगा।
संतोषी भी इस बात को समझती थी। पर महेंद्र ने जाते समय जो कहा था वह उससे डरती थी। उसे अक्सर ही मालती और मेघना को लेकर चिंतित रहने लगी थी। वह नहीं चाहती थी कि हैमिल्टन उनका भी अहित करे। इसलिए जैसा महेंद्र ने कहा था हैमिल्टन को नाराज़ कर अपनी मुसीबतों को नहीं बढ़ाना चाहती थी।
इसके अलावा उसे माधुरी की भी फिक्र थी। उस हादसे के बाद उसकी हंसती खेलती बेटी एकदम मुर्झा गई थी। भीतर ही भीतर घुलते हुए वह आधी रह गई थी। उसकी यह अवस्था संतोषी के सीने पर आरी चलाती थी। उसे एक उम्मीद थी कि शायद शादी के बाद माधुरी के जीवन में कुछ अच्छा बदलाव आए। उसमें फिर से जीने की इच्छा जाग जाए। इसलिए वह चाहती थी कि उसका विवाह स्टीफन से हो जाए।
रात के करीब ग्यारह बजे थे। शिव प्रसाद आंगन में चारपाई पर लेटे थे। तभी संतोषी उनके पास आई। शिव प्रसाद उठ कर बैठ गए। संतोषी उनके पास बैठकर बोली,
"आपने क्या सोंचा है ?"
शिव प्रसाद ने उसकी तरफ प्रश्न भरी दृष्टि डालते हुए कहा,
"तुम्हें सोंचने जैसा कुछ लगता है। साफ है वह शैतान यह शादी करा कर हमारी गर्दन अपने हाथ में रखना चाहता है। क्या अपनी गर्दन उसके हाथ में देना अक्लमंदी होगी ?"
"पर इस रिश्ते से मना कर क्या हमारी गर्दन उसके पंजे से बच जाएगी। उसके आदमी ने जाते हुए जो कहा था वह सुना था ना।"
शिव प्रसाद फिर चुप हो गए। संतोषी ने कहा,
"फिर ये भी हो सकता है कि शादी के बाद माधुरी के जीवन में खुशियां आएं।"
"हम जानते हैं उस स्टीफन को ? नहीं हमें उसके बारे में कुछ नहीं पता। जाने हैमिल्टन के किस दबाव के कारण वह इस शादी के लिए तैयार हुआ हो ?"
"हम उसे नहीं जानते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि शादी के बाद वह माधुरी को पत्नी का प्यार और सम्मान दे।"
"तुम डर गई हो। इसलिए झुकने को तैयार हो।"
"हाँ डर गई हूँ मैं। नहीं चाहती जो दशा माधुरी की देख रही हूँ‌। वही बाकी दोनों की भी देखनी पड़े।"
ऐसा नहीं था कि यह डर शिव प्रसाद को नहीं था। वह भी रात दिन इसी डर में जीते थे। इसलिए लखनऊ छोड़ मेरठ जाने को तैयार हो गए थे। उन्होंने संतोषी को समझा कर सोने के लिए भेज दिया।

मेरठ जाने का समय पास आ रहा था। संतोषी उससे पहले ही किसी नतीजे पर पहुँचना चाहती थी। वह जानती थी कि उसका भाई रमनलाल शिव प्रसाद को समझा सकता है। संतोषी ने रमनलाल को ज़रूरी काम है फौरन आ जाओ का तार भेज दिया।
तार मिलते ही रमनलाल फौरन आ गए। उस समय शिव प्रसाद रमेशचंद्र से मिलने गए थे। संतोषी ने उन्हें सारी बात बताई।
"भइया ये तो कुछ समझने को तैयार नहीं हैं। पर तुम ही बताओ क्या मैं जो सोंच रही हूँ गलत है। तुमने देखा है ना कि माधुरी कैसी हो गई है।"
"संतोषी तुम कह तो सही रही हो। पर ज़रा शिव के अनुसार भी सोंचो। कुछ बात तो है कि हैमिल्टन माधुरी का ब्याह अपने बताए लड़के से कराना चाहता है। शिव की चिंता नहीं है।"
"मैं भी समझती हूँ उनकी चिंता भइया। पर उस दुष्ट से डरती भी हूँ।"
"चलो अब तुमने मुझे बुलाया है तो परेशान मत हो। कुछ सोंचता हूँ।"
रमनलाल उठते हुए बोले,
"मैं ज़रा माधुरी से मिलता हूँ। पहले जब भी आता था कैसे भाग कर गले लग जाती थी। अब उसे किसी के आने जाने का फर्क ही नहीं पड़ता है।"

रमनलाल माधुरी के कमरे में घुसे तो वह बिस्तर पर अपने दोनों घुटनों में सर छुपाए बैठी थी। उन्होंने उसके सर पर हाथ फेरा। माधुरी ने सर उठा कर उन्हें देखा। फिर फूट फूट कर रोने लगी। रमनलाल की आँखों से भी आंसू बहने लगे। उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा,
"बिटिया तेरे साथ बुरा हुआ है। पर ऐसे तो ज़िंदगी नहीं कटेगी। हिम्मत कर जो हुआ भूलने की कोशिश कर। चल बाहर चल कर बैठ। तेरे लिए गुलाब पट्टी लाया हूँ।"
"अब किसी चीज़ का मन नहीं करता है मामा। मेरी वजह से अम्मा बाबूजी कितने परेशान हैं। दोनों बहनों का जीवन भी खतरे में है। बस अब तो मर जाने को जी चाहता है।"
संतोषी भी अपने भाई के पीछे पीछे कमरे में आ गई थी। वह सब सुन रही थी। माधुरी की बात सुनकर तड़प उठी।
"क्या कह रही है बिटिया। हमारी परेशानी की वजह तुम नहीं हो। वह राक्षस है। तुम अपने मन से ये सब निकाल दो। अपने मामा की बात सुनो। सब भूल कर आगे बढ़ने की कोशिश करो।"
लेकिन माधुरी के दिल में जीने की चाह पूरी तरह मर चुकी थी। रमनलाल और संतोषी बहुत देर तक माधुरी को समझाते रहे। पर वह उसी तरह रोती रही।
माधुरी की यह स्थिति देखकर रमनलाल बहुत अधिक भावुक हो गए थे। वह माधुरी को इस परिस्थिति से ‌निकालने पर विचार करने लगे। उन्हें ‌संतोषी की बात सही लगी। अगर माधुरी का विवाह स्टीफन से हो जाए तो हो सकता है कि यह बदलाव ‌उसके मन में पुनः जीने की इच्छा ‌जाग जाए। पर शिव प्रसाद की बात भी सही थी। स्टीफन के बारे में उन लोगों को कुछ नहीं मालूम था। वह हैमिल्टन के किस दबाव में शादी के लिए हाँ कर रहा था। यह जानना भी आवश्यक था।
बहुत सोंचने पर रमनलाल के मन में एक उपाय सूझा। वह इस बारे में बात करने के लिए शिव प्रसाद के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे।
शिव प्रसाद को रमेशचंद्र के घर कुछ अधिक देर लग गई। वह रात के खाने के समय लौटे। खाना खाते हुए उन्होंने बात छेड़ी।
"संतोषी ने बताया कि उस हैमिल्टन ने माधुरी के लिए कोई रिश्ता बताया है।"
"आपको अचानक यहाँ देखकर मैं समझ गया था कि संतोषी ने आपको बुलाया है। उसने सारी बात बता ही दी होगी।"
"हाँ उसने सब बता दिया। मैंने उस पर विचार भी किया।‌ शिव तुम और संतोषी दोनों ही अपनी अपनी जगह सही हो।"
रमनलाल ने शिव प्रसाद की ओर देखा। वह ध्यान से उनकी बात सुन रहे थे। रमनलाल ने अपनी बात जारी रखी।
"आज मैंने माधुरी से बात की। कलेजा फट गया यह देखकर कि वह तो जीने की इच्छा ही खो बैठी है। उसके मन में जीने की इच्छा पैदा करना ज़रूरी है।"
शिव प्रसाद ने कहा,
"माधुरी को इस हाल में देखकर मेरा भी कलेजा फटता है भाई साहब। पर उस अंजान आदमी के साथ उसका ब्याह करके कहीं हम उसका दुख और ना बढ़ा दें।"
"मैंने भी सोंचा इस बारे में। इसलिए एक उपाय सूझा है।"
"कैसा उपाय ?"
"क्यों ना हम बात आगे बढ़ाने से पहले उस स्टीफन से मिल लें।"
शिव प्रसाद कुछ पलों ‌तक उनकी बात पर विचार करने के बाद बोले,
"पर हमें उसके बारे में कुछ नहीं पता। मिलेंगे कैसे ?"
"उस आदमी के ज़रिए जो हैमिल्टन का पैगाम लाया था।।"
शिव प्रसाद को रमनलाल का सुझाव ठीक लगा। एक बार स्टीफन से बात कर उसे जानने का प्रयास किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि वह कल सुबह ‌ही महेंद्र से ‌इस बारे में बात करेंगे। पर उनके दिल में एक और बात थी।
"भाई साहब आप और संतोषी सोंचते हैं कि स्टीफन से शादी करा देने से माधुरी का जीवन सुखी हो जाएगा। पर क्या उससे इस बारे में बात की है। हम बिना बताए तो उसकी शादी नहीं करा सकते हैं।"
रमनलाल को बात ठीक लगी। उन्हें खाना परोस रही संतोषी को भी अपनी भूल समझ‌ में आई। उन लोगों ने माधुरी से इस विषय में बात करने का निश्चय किया।