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चुन्नी (अध्याय-एक)


अध्याय - एक


ॐ भूर् भुवः स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्…

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।

इन श्लोको के साथ गुरु जी ने उपदेश शुरू किया।
सारे शिष्य हाथ जोड़े गुरु के चरणों को स्पर्श किया।

"आज का उपदेश मे हम अर्जुन के उस कथन को लेंगे जिसमे वो पूछते है - हे कृष्ण आप एक तरफ कहते हो हम कुछ नही करते, जो भी होता है वो सब पहले से सुनिश्चित है, हमारा उसमे कोई हाथ नही है, और दूसरी तरफ कहते हो हमारा धर्म लड़ना ही है। ये दो बिपरित बाते क्यों? ये मुझे बिस्तार से समझाये।"गुरू जी बोले।

"इस संदर्भ मे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा - हे पार्थ, मेरे कहने का अर्थ कोई द्वंद पैदा करना नही है,बल्कि ये समझना है कि हम चाहे कुछ भी करे कर्म से अपना नाता नही तोड़ सकते। जैसे नाक का काम स्वास लेना, कान का काम सुनना है, जिव्हा का काम चखना है, इसमे से कोई भी अपना धर्म छोड़ दे तो शरीर ठीक से काम नही होगा, वैसे ही तुम जिस कर्म के लिए आए हो वो करना ही पड़ेगा, वैसे तो सब मै ही करता हूं, फिर भी तुम जब आये हो तो तुम्हे ही करना पड़ेगा।"गुरू जी ने बोल रहे थे।

सारे ध्यान मग्न होकर सुन रहे थे, पर उन सबमे कोई था जो अपने ही दुनिया मे ध्यान मग्न है। गुरुजी ये सब देख कर मंद मंद मुस्करा रहे है, पर उनने उस समय टोकन उचित नही समझा, उन्होनें उसके डुबकी लगा के बाहर किनारे तक आने का इंतजार किया। बीच मे टोकने का मतलब वो डूब सकता है। डुबकी जब लगायेगा तभी मोती भी पा सकेगा।


एक घंटे बाद जब उपदेश खतम हो गया,सब उठकर जाने के लिए गुरु जी से आदेश लेने लगे, चरण स्पर्श कर के एक एक कर के निकलने लगे।
वो अभी भी बैठा हुआ है,सब चले गए पर वो अभी भी ध्यान से निकल नही है।

" बेटा चुन्नी, आज का उपदेश खतम हो गया है, क्या तुम्हे अभी भी कुछ पूछना है आज के उपदेश के संदर्भ मे।" गुरु जी अपना फिर से पलाथी लगाते हुए बोले।

चुन्नी एक दम से जागा।
"क्षमा गुरुवर, आज मेरा ध्यान यहाँ पर बिल्कुल नही था। मेरी हालत भी महाभारत वाले अर्जुन सी हो गई है। आत्मा बोलता सब मोह माया है, मन बोलता तुम्हे यहाँ से भागने नही देंगे।"

"गुरुजी मेरा मार्ग दर्शन करे।"

"मुझे ये संसार बिल्कुल निर्थर्थक लगता, मन बिल्कुल नही लगता, मै संयास ग्रहण करना चाहता हूँ।"चुन्नी सकुचाते हुए बोला।

हँसते हुए। गुरू जी।
"मै तुम्हारी मनोदशा समझ रहा हूँ। मै भी कभी इस दशा से गुजर चुका हूँ। मुझे जो दिख रहा वो तुम्हे नही दिख रहा।वत्स, तुम भयंकर परिणाम से डर रहे हो। तुम्हे क्या लग रहा तुम ये संसार त्याग कर इससे बच जाओगे। नही, हर कदम पर के नया संसार है।संयास संसार छोड़ने से मिल जाता तो भगवान राम और कृष्ण कभी संयासी नही कहलाते।"

"पर गुरू जी।" चुन्नी बोलते बोलते रुक गया।

" ये पर के चक्कर मे नही पड़ो, यही तुम्हे भटका रहा।मार्ग बिल्कुल साफ है,भगवान ने भी गीता मे कहा है कि जो संसार मे रहते हुए अपने परिवार का ख्याल रखते हुए, ये मानकर की ये मेरा धर्म है, बिना लिप्त हुए आगे बढ़ते है, मेरी नजर मे वही सबसे बड़े संयासी है।"गुरू जी ने चुन्नी के अधूरे सवाल का पूरा जवाब दिया।

"गुरुवर कोटि कोटि नमन आपका, मेरे मार्ग को सुगम बना दिया आपने।मेरी मन मे जो बादल छाए थे वो अब छट रहे है।"

"गुरू वर आप मुझे आशीर्वाद दे कि मेरे मन मे कभी दुविधा का बादल नही छाए। मै आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।" चुन्नी गुरु जी के चरण छूते हुए बोला।

"मेरे आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है वत्स। तुम मेरे बेटे जैसे ही हो। तुम मेरे शब्दज पुत्र हो, शब्दज मतलब वो पुत्र जो शब्द से बनते है। तुम मेरे शब्द से बने हुए मेरे ही अंश हो।" गुरू जी भावुक होते हुए बोले।

दोनो भाव बिभोर हो गए।
कुछ पल के लिए समय जैसे थम गया। दोनो एक दूसरे के आँखो मे खो गए है। आँखो से अश्रु की धारा ऐसे फुट पड़ी जैसे नदी और समुद्र एक दूसरे से मिल रहे हो। जिसने भी वो पल देखा वो भी भाव मे बहता गया।

थोड़ी देर बाद दोनो प्रेम के सागर से बाहर निकले।
फिर चुन्नी ने गुरु जी के चरण और जोर से पकड़ लिए।

"पुत्र उठो, तुम प्रेम और भक्ति के चरम हो। तुम अपने सारे काम मे सफल होगे ये मेरा आशीर्वाद है। " गुरु जी चुन्नी को उठाते हुए बोले।


"गुरु वर मै कल सुबह पांच बजे की ट्रेन से निकल जाऊंगा।चार दिन बाद मेरे कॉलेज शुरू हो जायेंगे।
मद्रास मे दाखिल मिला है।"

"मुझे आज्ञा दीजिये और अपना आशीष प्रदान कीजिये जिससे मै अपने धर्म को अच्छे से निभा पाऊँ। " प्रणाम करते हुए चुन्नी उठने लगा।

"सदा खुश रहो।"

गुरू जी अपने पास रखे किताबों के गट्ठर से दो किताबे निकाल कर देते हुए बोला।

"ये मेरा प्रसाद समझकर रखो। जभी भी वक़्त मिले इन्हे आत्मसात करना। " गेरू जी ने किताबे चुन्नी को देते हुए बोला।

चुन्नी किताबों को लेकर आँखो से लगा लिया और प्रणाम कर के अपने थैले मे रख दिया।

"गुरु आज्ञा दे। अगली मुलाकात जब आपका आदेश होगा कभी हो पायेगा। " चुन्नी लाल ने हाथ जोड़कर आज्ञा ली।

"मंगलमय हो। " गुरू जी ने दोनो हाथ उपर उठा लिया।

चुन्नी वहाँ से निकल गया।