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चुन्नी - अध्याय चार


चार

बहुत बड़ी ईमारत थी जिसपे मोटे अक्षरों मे लिखा था केंद्रीय प्रोधीगिकी संस्थान वाराणसी,चुन्नी उसके मुख्य द्वार पर खड़ा था,जहाँ चार दरबान खड़े थे,उनमें जो एक अधेड़ उम्र का था वो कागजी काम करवा रहा था,कौन हो कहाँ से आये आने का उदेश्य क्या है वगैरह वगैरह।चुन्नी भी वहाँ पहुँचा और अपना नाम बताया।दरबान ने ऊपर से नीचे तक देखा।

"नया दाखिला हो। " उसने बोला
"जी आज ही आया हु। " चुन्नी बोला।
"अंदर ही रहोगे या बाहर कही देखा है जगह रहने का। " उसने पूछा।
"जी बाहर ही।हॉस्टल ज्यादा महंगा है मेरे ख़र्चे के बाहर है।" चुन्नी बोला।
"ठीक है।दाखिले का कार्य प्रांगड से उपर जाकर पहले वाले कक्ष मे हो रहा है,सीधे चले जाओ। " उसने बोला।
"जी शुक्रिया"।चुन्नी बोलकर आगे बढ़ गया।

बहुत बड़ा प्रांगड था,बीच मे अशोक स्तंभ लगा हुआ था और उसके उपर बाबा भोले नाथ की मूर्ति,क्यों नही हो बाबा की ही नगरी थी वो।

"सर क्या मै अंदर आ सकता हूँ? " चुन्नी दरवाजे पर से पूछा।
कमरे मे पहले से ही बीस के करीब क्षात्र मौजूद थे, सब दाखिले के कागजी कारवाही मे लगे थे।
वो भी एक खाली पड़े कुर्सी पर बैठे गया। एक महोदय कुछ कागज लेकर आये और चुन्नी को दे गए।चुन्नी कागज को उलट पलट कर देखने लगा, कम से कम दस पन्ने थे, सबको भर कर देना था।
चुन्नी कलम निकाला और भरने लगा।
चुन्नी भरने मे मसगुल था, जभी बगल मे बैठा एक गोरा सा लड़का उसके पास आकर बैठ गया।

"हाय, पहला दिन है तुम्हारा भी। " उसने पूछा
"हाँ, आपका भी पहला दिन है।" चुन्नी पूछा।
"हाँ,"उसने बोला
" नाम क्या है आपका?"चुन्नी पूछा
"रोहित खजूरी,तुम्हारा क्या नाम है? " उसने पूछा।
"चुन्नी।" चुन्नी बोला।
वो हस पड़ा,
"ये कैसा नाम है। बड़ा मजाकिया नाम है। " हँसते हुए बोला वो।
"हाँ भाई मा बाप ने यही नाम रखा है, अब बदल नही सकते बहुत देर हो चुकी है। "चुन्नी बोला।
" माफ करना भाई, वैसे कहा के रहने वाले हो? "उसने पूछा।
" गोरखपुर का हूँ भाई।"चुन्नी बोला।
"आप कहाँ के हो"चुन्नी पूछा
"जम्मू से हूँ मै। " उसने जवाब दिया।
"क्या तुम हॉस्टल मे रहोगे?" उसने पूछा।
"नही बाहर ही देखूंगा। " चुन्नी बोला।
यह सुन कर खजूरी ने नाक सिकोड़ लिया, जैसे कोई अछूत चीज छू लिया हो।
"बाहरी हो?फिर तुम मेरे समुदाय के नही हो,फालतू ही मेरा वक़्त जाया किया। " वो बोला।
अपना कुर्सी दूसरी तरफ खिसका लिया और बगल मे बैठे दूसरे सहपाठी से बात करने लगा जो संभवतः देल्ही से था। वो भी हॉस्टल वाला ही था तो दोनो मे बन गई।

खैर इससे क्या सबके लिए कोई ना कोई सखा होता ही है, बस सब वक़्त पर ही अवतरित होते है।
फिल्हाल चुन्नी फटाफट कागजी कारवाही मे लग गया और भरने लगा।
भरने के करीब दो घंटे बाद उसका क्रम आया जमा कराने का। जब तक भूख प्यास से जान निकलने लगी थी, बस सोच रहा था जल्दी जमा करा के कुछ खाने जायेगा। कागज जमा करा के सीधे नीचे भागा। दिन के तीन बज गए थे। दरबान से पूछा कि कोई जलपान की दुकान है क्या उसने कैंपस के दीवार से सटे दुकान की तरफ इशारा कर दिया।

चुन्नी भागता हुआ उस दुकान पर पहुँचा और एक चाय और दो समोसे की मांग की।
दुकान वाला बैठने का इशारा कर के चाय बनाने लगा। दुकान पर चुन्नी के ही उम्र के दो चार लड़के और बैठे थे, जिनको देख के लग रहा था वही के है।
उसमे से एक चुन्नी को घबराया देख कर उसके पास आ गया।

"नए आये हो? " उसने पूछा।
"हाँ, आज ही आया हूँ। "चुन्नी बोला।
" बच कर रहना यहाँ बहुत रैगिंग होती हैं। "वो बोला।
" आपको कैसे पता? आप पहले से हो क्या यहाँ? "चुन्नी पूछा।
" हाँ मैं तीसरे साल मे हुँ और तुम्हारा सुपर सीनियर हूँ। "उसने बोला
चुन्नी डर के मारे खड़ा हो गया।
" अरे बैठे जाओ। मुझसे मत डरो। मेरा नाम लिख लो कभी दिक्कत हो मेरा नाम ले लेना कोई कुछ नही बोलेगा। मेरा नाम आलम है। "उसने बोला
" जी बहुत अच्छा, बहुत धन्यबाद।"चुन्नी थोड़ा तसल्ली करते हुए बोला।
"चलो मुझे देर हो रही मै निकलता हूँ, अंदर मिलता रहूँगा। " वो बोलकर निकल गया।

चुन्नी ने ठंडी साँस ली।
"बेटा ये तुम्हारा चाय और समोसा। " चाय वाले चाचाजी चाय धरते हुए बोले।
"जी शुक्रिया। " चुन्नी समोसे खाने लगा।

थोड़ी देर बाद
"बेटा एक बात कहूँ, थोड़ा होशियार ही रहना यहाँ चाई ज्यादा मिलेंगे। ज्यादा सीधे रहोगे तो तुम्हे लूट लेंगे। जैसे अभी आलम तुम्हे उल्लू बना कर गया। वैसे बहुत मिलेंगे। " चाय वाले चाचा जी चुन्नी से बोले।
"मै समझा नही चाचा। " चुन्नी बोला।
"आलम भी पहले साल मे ही है,दस दिन पहले आया है तुमसे पर तुम्हे पागल बना गया खड़े खड़े। " चाचा बोले।
"ओह!ऐसा होता क्या? " चुन्नी बोला।
"बिल्कुल यही हो रहा बेटा, बस होशियार रहना। " चाचा बोले।
"बहुत धन्यबाद बताने के लिये, ध्यान रखूँगा। " चुन्नी बोला।

इस बीच उसका चाय भी खतम हो गया।
वो पैसे देकर होटल की तरफ निकल गया।