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माँ और मिट्टी

मातृ दिवस पर.....

माँ और मिट्टी

एक बरगद का पेड़ पिछले दस सालों से मेरी छत में एक गमले में फल फूल रहा है । पहले वह एक छोटे गमले में था, पर जड़ें फैलने लगीं तो मैंने उसे थोड़ी बड़ी जगह दे दी । वो बढ़ रहा है ... इन दस सालों में मिट्टी उतनी ही है और वह बरगद का पेड़ मोटे तने वाला हो गया है । उस गमले की मिट्टी से वो एक बड़े पेड़ का आकार ले रहा है । उसके जैसे लाखों,करोडों पौधे मिट्टी से अपनी खुराक लेकर मोटे तने वाले विशाल पेड़ बनकर हवा के साथ झूमते हैं । लेकिन मिट्टी कम नही होती, मिट्टी खत्म नही होती,मिट्टी उतनी ही रहती है । मिट्टी उस पेड़ को फलने फूलने में अपना साथ देती है वो उस पौधे की जड़ो को अपने सीने से चिपका कर रखती है, उसे हवा के थपेड़ों से गिरने से बचाती है ।

पेड़ और मिट्टी का अद्भुद प्रेम है,,,कभी आपने देखा है कि पेड़ मिट्टी खा जाते हैं ।
हम खाना खाते हैं अपनी जिंदगी की सांस बचाये रखने के लिए और एक समय के बाद खाना खत्म हो जाता है, हम फिर खाने का इंतज़ाम करते हैं ,पेड़ मिट्टी के साथ रह कर भी मिट्टी नही खाते,, मिट्टी से पूरी ऊर्जा लेते हैं इसके बावजूद मिट्टी कम नही होती, मिट्टी खत्म नही होती ।
पेड़ और मिट्टी में किसकी बड़ाई है ?
मिट्टी की या पेड़ की ....?
बड़ाई मिट्टी की है ....

क्योकि मिट्टी के बिना पेड़ का अस्तित्व नही रह सकता किंतु पेड़ के बिना मिट्टी खत्म नही होती ...और पेड़ ये जानता है इसलिए वो उस मिट्टी को कभी नही खाता है ,उससे कभी अलग नहीं होता,,,उसे कभी नुकसान नही पहुँचाता,,,
मिट्टी अपनी जगह पर रहती है हमेशा अपनी ममता,स्नेह और ऊर्जा के साथ , पेड़ उसके सम्पर्क में आकर एक पेड़ बनता है ,पेड़ मिट्टी का आश्रय लेकर आसमान की ओर बढ़ता है,,वो अपनी ऊंचाई और चौड़ाई से अपनी पहचान बताता है ।
माँ मिट्टी की तरह अपने आँचल में ममता लिए अपनी संतान को बढ़ाती है मिट्टी अपनी बड़ाई के लिए पेड़ को नही खाती ....

माँ उस पावन माटी की तरह है ,,,संतान कहीं भी कैसी भी हो माँ के सीने में वही प्यार और अपनापन ...
माँ के बिना संतान का कोई अस्तित्व नहीं,,,
माँ और माँ भारती की मिट्टी दोनो सदैव माथे पर चंदन की तरह लगाने के लिए हैं,,,
ये धरती किसी और के लिए एक जमीन हो सकती है । हमारे लिए धरती माता है,,,,

जब इसे मां की तरह देखेंगे तो इसका नुकसान नही करेंगे इसके आँचल में फल फूल रहे नदी, तालाब,पेड़ पौधे सब अपने जान पड़ेंगे,,एक डाली से फूल तोड़ने पर भी लगेगा कि नही मुझे ऐसा नही करना चाहिए ये तो माँ के आंचल में लिपटा बच्चा है.

आज कितनी माएँ अनाथ आश्रम में तन्हा ओर उदास जिंदगी बिता रही हैं अपनी संतान के होते हुए भी दूसरों की मोहताज हैं ,,,जाओ मेरे दोस्तों अपनी बूढ़ी माँ का हाथ पकड़ कर अपने पास ले आओ,, उनकी गोद मे सर रखकर अपने गुनाहों की माफी मांग लो,,,क्योकि तुम्हारा वजूद ही उससे है,उसकी ममतामयी आँचल की छांव के बिना न तुम थे ,,,न हो,, न हो सकते हो,,