Karm Path par - 31 books and stories free download online pdf in Hindi

कर्म पथ पर - 31




कर्म पथ पर
Chapter 31


जब स्टीफन ने कमरे में प्रवेश किया माधुरी बैठी बाइबल पढ़ रही थी। माधुरी ने बाइबल को बंद कर आल्टर पर प्रभु यीशू की प्रतिमा के पास रख दिया। उसने रोज़ी को आवाज़ देकर पानी लाने को कहा। स्टीफन के पानी पी लेने पर वह उसके लिए चाय का इंतज़ाम करने चली गई।
स्टीफन कई दिनों से देख रहा था कि माधुरी ने बाइबल पढ़ना शुरू कर दिया है। वह अपने आचार व्यवहार में और भी कई बदलाव ला रही थी। हाँ मांसाहार के प्रति अभी भी उसकी कोई रुचि नहीं थी।
स्टीफन ने माधुरी पर किसी तरह के परिवर्तन के लिए ज़ोर नहीं डाला था। पर वह अपने ही मन से कई मामलों में खुद को उसके परिवेश के अनुसार ढालने का प्रयास कर रही थी।
कुछ देर बाद रोज़ी ने आकर कहा,
"मेमसाहब आपको गार्डन में बुला रही हैं।"
स्टीफन उठ कर गार्डन में चला गया। माधुरी ने मुस्कुरा कर उससे कहा,
"आज मौसम अच्छा लग रहा है। इसलिए सोंचा कि गार्डन में ही चाय पी जाए।"
स्टीफन बैठ गया। माधुरी ने चाय का प्याला उसकी तरफ बढ़ा दिया। चाय की चुस्की लेते हुए स्टीफन ने कहा,
"माधुरी तुमने बाइबल पढ़ना शुरू कर दिया है। अच्छी बात है। पर अगर तुम इस दबाव में यह कर रही हो कि मेरी पत्नी होने के नाते यह करना लाज़मी है, तो फिर तुम्हें यह करने की ज़रूरत नहीं है। मैं कभी नहीं चाहता हूँ कि तुम अपनी आस्था के विपरीत काम करो।"
"आप ऐसा क्यों सोंचते हैं स्टीफन। बाइबल पढ़ना मेरी आस्था के विपरीत नहीं है। मेरे बाबूजी आर्यसमाजी हैं। वेदों के ज्ञान को सर्वोपरि मानते हैं। उन्होंने हम बहनों को भी यही ज्ञान दिया था। ऋगवेद के अनुसार ईश्वर एक ही है, पर उस तक पहुँचने के मार्ग विभिन्न हैं। तो मैं बाइबल पढ़ कर उस तक पहुँचने की कोशिश कर रही हूँ।"
स्टीफन माधुरी को ध्यान से देख रहा था। उसने जितनी सरलता से इतनी गहरी बात की थी उसके कारण वह गर्व का अनुभव कर रहा था। माधुरी ने उसे इस तरह ताकते हुए देखकर कहा,
"आप इस तरह मुझे क्यों देख रहे हैं ?"
"अच्छा लग रहा है देखकर कि दस महीने पहले जिस दबी सहमी सी लड़की के साथ मेरी शादी एक दबाव बनाकर की गई थी वह कितनी बुद्धिमान है।"
"स्टीफन...उस दिन मैंने और मेरे घरवालों ने दबाव में एक दांव खेला था। मेरी किस्मत अच्छी थी कि पासा मेरे पक्ष में गिरा। मुझे आप पति के रूप में मिले। नहीं तो वह दबी सहमी लड़की कितने दिनों तक उस वहशी के ज़ुल्म सह पाती। ना जाने कब की खत्म हो चुकी होती।"

स्टीफन खामोश हो गया। माधुरी उसके दिल का हाल समझ गई।
"आप क्यों उस सब के लिए खुद को दोष देते हैं। आपने साथ ना दिया होता, हिम्मत ना की होती तो वह दुष्ट अपने इरादों में कामयाब हो ही गया था। आपने भी तो मेरे लिए कितना सहा है।"
स्टीफन अभी भी गंभीर था। माधुरी ने प्लेट उसके सामने करते हुए कहा,
"ज़रा इसे खाकर देखिए। मैंने बनाया है। अपनी अम्मा से सीखा था।"
स्टीफन ने प्लेट से एक उठा कर चखा।
"डिलीशियस.... वैसे हिंदुस्तानी पकवानों के बारे में मुझे भी काफी कुछ पता है। मठरी कहते हैं इसे।"
"हाँ सही कहा आपने।"
एक खत्म करने के बाद स्टीफन ने दूसरी मठरी उठा ली। उन दोनों के बीच का माहौल कुछ हल्का हो गया था। स्टीफन ने कहा,
"माधुरी तुम्हें अपने घरवालों की याद नहीं आती है।"
"आती है। पर अभी तक सबकुछ इतना तनाव भरा रहा कि मैंने सोचा कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ देती हूँ। उनके लिए भी कहाँ सबकुछ आसान रहा होगा। नई जगह जाकर एक नई शुरुआत करनी पड़ी होगी।"
"पर वो तुम्हारे बारे में फिक्रमंद रहते होंगे।"
"हाँ लेकिन उस वक्त हम जो झेल रहे थे उसे जानकर तो वह और दुखी होते।"
"पर अब तो सब ठीक है। तुम मुझे अपने मामा का पता दो। मैं उनसे संपर्क कर तुम्हारे घरवालों का पता ले लेता हूँ।"
"हाँ ये ठीक रहेगा। मैं आपको उनका पता लिखकर दे दूँगी।"
रोज़ी ने आकर सूचना दी कि कोई जयदेव टंडन मिलने के लिए आए हैं। उन्हें ड्राइंगरुम में बिठा दिया है। स्टीफन और माधुरी दोनों ही इस नाम से अपरिचित थे।
स्टीफन बैठक में पहुँचा तो जय उसे देखकर खड़ा हो गया।
"माई सेल्फ जयदेव टंडन। मैं लखनऊ से आया हूँ।"
स्टीफन ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा,
"मिस्टर टंडन आप लखनऊ से कानपुर मुझसे मिलने आ गए। पर मैं तो आपको नहीं जानता हूँ।"
"आप मुझे नहीं जानते हैं पर मैं आपकी पत्नी माधुरी के घरवालों को जानता हूँ। मैं माधुरी से मिलना चाहता हूँ।"
स्टीफन सोंच में पड़ गया। बीते दिनों उसने जो कुछ सहा था उसके बाद वह किसी अजनबी पर यकीन नहीं कर सकता था।
"तो आप मेरी पत्नी के घरवालों को जानते हैं। पर मेरी पत्नी ने तो आपको नहीं पहचाना।"
जय को अपनी गलती का एहसास हुआ। माधुरी और स्टीफन के लिए वह अपरिचित ही था। उसने कहा,
"मिस्टर ‌स्टीफन माधुरी मुझे नहीं जानती है। मैं उसके उसके घरवालों से मिला था। उन्होंने मुझे माधुरी और आपकी शादी के बारे में बताया था। वो लोग माधुरी को लेकर परेशान हैं। उसका समाचार जानना चाहते हैं।"
स्टीफन के चेहरे से साफ था कि अभी भी वो जय की बात पर यकीन नहीं कर पा रहा है। उसने यकीन दिलाने के लिए कहा,
"आप मुझ पर यकीन कर सकते हैं। मुझे ललित नारायण मिश्र जी ने भेजा है।"
ललित नारायण मिश्र का नाम सुनकर स्टीफन को जय पर पूरा भरोसा हो गया। जय ने पूरी बात बताते हुए कहा,

"ललित नारायण जी मेरे पापा श्यामलाल टंडन के परिचितों में से हैं। कुछ दिनों पहले मैं मेरठ में माधुरी के बाबूजी शिवप्रसाद सिंह से मिला था। उनके घर भी जाना हुआ। तब मुझे माधुरी के बारे में पता चला। उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं उसकी खोज खबर लेकर उन्हें माधुरी का हालचाल बताऊँ।"
माधुरी पर्दे के पीछे खड़ी सब सुन रही थी। अपने घरवालों का ज़िक्र सुनकर ड्राइंगरुम में आ गई। उसने जय से पूँछा,
"आप मेरे अम्मा बाबूजी से मिले थे। कैसे हैं वो लोग ? मेरी दोनों बहनें कैसी हैं।"
"सब लोग ठीक हैं बस तुम्हारी याद करते हैं। तुम्हारी शादी के बाद से उन्हें तुम्हारी कोई खबर नहीं मिली थी। इसलिए फिक्रमंद थे।"
अपने अम्मा बाबूजी के बारे में जानकर माधुरी भावुक होकर रोने लगी। स्टीफन फौरन उठा और माधुरी को गले लगा कर सांत्वना देने लगा। जिस तरह प्यार से वह उसे चुप करा रहा था उससे जय समझ गया कि संतोषी ने जो उम्मीद की थी वह सही साबित हुई। माधुरी को एक जीवनसाथी मिल गया है।
जय ने माधुरी को समझाते हुए कहा,
"तुम रो मत। उन्हें मेरठ में कोई तकलीफ़ नहीं है। बस तुम्हारी चिंता थी। अब जब उन्हें पता चलेगा कि तुम अपने पति के साथ सुखी हो तो वह भी खत्म हो जाएगी।"
माधुरी अब संभल चुकी थी। जय की बात का जवाब देते हुए बोली,
"आप उनसे कहिएगा कि वो सारी चिंता छोड़ दें। उन्होंने मेरे लिए जितनी खुशियां सोंची होंगी। ईश्वर ने स्टीफन जैसा पति देकर उससे कई गुना ज्यादा खुशियां मेरी झोली में डाल दी हैं।"
अपनी बात कहते हुए माधुरी ने गर्व के साथ स्टीफन की तरफ देखा।
जय ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा,
"मैं जानता हूँ। अभी जिस तरह से मिस्टर स्टीफन तुमको प्यार से तसल्ली दे रहे थे। वह यह बात समझाने के लिए काफी है। जब तुम्हारे अम्मा बाबूजी को यह पता चलेगा तो उनके सीने पर रखा बोझ उतर जाएगा।"
स्टीफन ने कहा,
"मिस्टर टंडन आपके आने से पहले मैं और माधुरी इसके घरवालों के बारे में ही बात कर रहे थे। हम भी चाह रहे थे कि उन तक माधुरी की खुशी की खबर पहुँचाई जाए।"
"अब मैं उन्हें आप दोनों के बारे में जाकर बता दूँगा।"
स्टीफन कुछ सोंच कर बोला,
"मिस्टर टंडन आपने बताया कि मिस्टर ललित नारायण को आप जानते हैं। पर उन्होंने आपको हमारे बारे में कैसे बताया।"
"जी मैं सब बताऊँगा। पर क्या मुझे एक गिलास पानी मिल सकता है।"
"ओह माफ कीजिएगा। अभी मंगवाता हूँ।"
स्टीफन रोज़ी को आवाज़ लगाते उससे पहले ही माधुरी खुद पानी लाने भीतर चली गई।