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बन्धन--भाग(अंतिम भाग)

अमृत राय जी बोले, ऐसा क्या जरूरी काम है...
ठाकुर साहब बोले,तू वादा कर कि मेरी बात का बुरा नहीं मानेगा!!
अमृत राय जी बोले, ठीक है बोल तो सही!!
मैं ये कहना चाहता था कि अगर तेरी मर्ज़ी हो तो मीरा बिटिया का ब्याह गिरिधर से करवा दें।।
अमृत राय जी बोले,ये बात तो ठीक है लेकिन तू मीरा से पूछ ले तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि जब मैं और मीरा गिरिधर से पहली बार मिले थे तो मीरा की नजरों में मुझे गिरिधर के लिए प्रेम के भाव नजर आए थे फिर अचानक तूने गिरिधर का ब्याह कालिंदी से कर दिया तो मीरा वो सब भूल कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गई और उसने अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया आज वो पहले वाले भाव मीरा,गिरिधर के लिए महसूस करती है कि नहीं, मुझे नहीं पता,तू ही एक बार मीरा के मन की बात पूछ लेगा तो अच्छा रहेगा।
तो तुझे तो कोई आपत्ति नहीं है ना,तू मीरा का बाप है तुझे उसका बुरा या भला सोचने का पूरा पूरा अधिकार है और गिरिधर पहले से ही एक बच्ची का बाप है,एक बार फिर सोच ले अगर आपत्ति है तो मैं कभी भी बुरा नहीं मानूंगा, ठाकुर साहब बोले।।
नहीं,प्रताप भला बुरा क्यो मानूंगा,तुझे मैं बचपन से जानता हूं, जैसे तेरे लिए कालिंदी थी वैसे ही मीरा है और किसी अंजान घर में रिश्ता करने से अच्छा है कि मैं मीरा का ब्याह ऐसे घर में करूं, जहां मुझे पूरा भरोसा हो कि मेरी बिटिया हमेशा खुश रहेगी,बस एक बार मीरा की मर्जी जान लो अगर वो हां कहें तो मेरी भी हां है ,अमृत राय जी बोले।।
ठाकुर साहब बोले, शुक्रिया दोस्त, मुझे तुझसे से ऐसी ही उम्मीद थी।।
इतने में मीरा भी आ गई, उसने ठाकुर साहब को नमस्ते की और बोली, मैं अभी चाय लेकर आती हूं।
ठाकुर साहब बोले, रूको बिटिया, मुझे कुछ जरूरी बात करनी है,इसका फ़ैसला तेरे ऊपर है कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है अगर तेरी हां है तो ये कालिंदी की मां के कंगन है,इन्हे उठा लेना अगर ना है तो मत उठाना।।
मीरा बोली,आप कैसी बातें कर रहे हैं चाचाजी, ऐसा क्या हुआ है।।
ठाकुर साहब बोले,मैं तुझसे सीधे सीधे पूछता हूं,क्या तू गिरिधर से ब्याह करेंगी, मेरे घर को संवारेगी,अगर हां तो कंगन उठा ले।।
मीरा थोड़ी देर सोचती रही,
ठाकुर साहब को लगा कि मीरा की मर्जी हां में नहीं है तो बोले कोई बात नहीं बिटिया।।
इतना कहते ही मीरा कंगन उठा कर,शरमाते हुए झट से अंदर चली गई।।
ठाकुर साहब की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।।
उन्होंने झट से अमृत राय को गले लगाया और बोले बिटिया मान गई,अब मेरे घर में फिर से लक्ष्मी का वास होगा।।
और कुछ दिन में शादी की तिथि तय हो गई।।
उधर गिरिधर बिल्कुल भी खुश नहीं था, उसे दोबारा शादी करना मंजूर नहीं था लेकिन ठाकुर साहब भी अपनी जगह बिल्कुल सही थे कि इस घर में खुशियां तभी आएगी जब इसे सम्भालने वाली आ जाएगी।
गिरिधर चाहता था कि ये ब्याह बिल्कुल साधारण तरीके से हो तो उसी प्रकार हुआ।
घर में मीरा का गृहप्रवेश हुआ,गांव की महिलाएं सारे रीति-रिवाजों को निभाकर मीरा को कमरे में बैठाकर चली गई।।
इतने में महुआ आकर बोली, तुम कौन हो?
मीरा बोली, मैं तुम्हारी मां हूं बेटी!!
नहीं, तुम मेरी मां नहीं हो!!
और इतना कहकर महुआ भाग गई,
ठाकुर साहब ने महुआ को देखा और पूछा,क्या हुआ महुआ?
महुआ बोली,वो अंदर जो मेरी मां के कमरे में बैठी है वो कहती हैं कि वो मेरी मां है लेकिन मैं ने कह दिया कि तुम मेरी मां नहीं हो।।
ये सुनकर ठाकुर साहब को बहुत दुःख हुआ, उन्हें लगा कि उन्होंने कुछ ग़लत कर दिया।।
नाना जी मैं आपके पास सो जाऊं, बाबूजी नहीं मिल रहे हैं, महुआ बोली।।
अपनी नई मां के पास सो जा, बहुत अच्छी है वो, ठाकुर साहब ने महुआ से कहा।।
लेकिन महुआ नहीं मानी।।
उस रात गिरिधर हवेली नहीं लौटा,वो अपने खलिहान वाली कोठरी ही में सोया।
बहुत देर तक इंतज़ार करने के बाद मीरा भी सो गई,करीब आधी रात को महुआ बाबूजी..... बाबूजी..... करके रोने लगी।
मीरा की आंख खुली और वो, महुआ को गोद में उठा कर ले गई, धीरे धीरे महुआ को मीरा के बगल में नींद आ गई।
ये देखकर ठाकुर साहब को बहुत संतोष हुआ।।
मीरा के इतना पढ़ी लिखी होने के बाद भी उसने सारा घर अच्छी तरह से सम्भाल लिया,सारे वृत-त्योहार और रीति-रिवाज ठीक से निभाने लगी।
अब महुआ भी धीरे-धीरे मीरा से घुलने लगी थी लेकिन मां अभी भी नहीं बोलतीं थीं।
ऐ मेरी गुड़िया के कपड़े बना दो....
ऐ मेरे जरा बाल तो बना देना....
ऐसे ही बातें करती थी महुआ मीरा से ,हमेशा मीरा के हाथों से ही खाना खाती।।
जब कभी गिरिधर रात को हवेली में रूकता तो दूसरे कमरे में ही सोता,वो ना मीरा की तरफ देखता और ना बात करता,ये सब देखकर मीरा और ठाकुर साहब दुखी हो जाते।।
एक दिन ठाकुर साहब बोले,मीरा बेटी तू आज गिरिधर की पसंद का खाना बना,मैं बताता हूं उसे क्या पसंद है और कालिंदी की तरह खेतों में देने आना।।
मीरा ने बिल्कुल ऐसा ही किया और पहुंच गई खेतों में खाना देने मीरा ने दोनों थालियां परोसी,एक ठाकुर साहब को और दूसरी गिरिधर को दी...
गिरिधर ने थाली गुस्से से फेंक दी और बोला ये क्या तमाशा लगा रखा है ये सब करके तुम क्या साबित करना चाहती हो....
मीरा रोते हुए, वहां से भाग गई.......
वहां मौजूद किसी को भी गिरिधर का ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं लगा, सबने कहा गिरिधर भइया ऐसा व्यवहार आपको शोभा नहीं देता।।
ठाकुर साहब भी खाना वहीं छोड़कर,मीरा के पीछे पीछे हवेली आ गये, उसे समझाने।
मीरा बहुत रोई, ठाकुर साहब बोले,चुप हो जा बेटी, मुझसे बड़ी भूल हुई जो उसकी दुल्हन बनाकर तुझे इस घर में लाया।।
ऐसा ना कहें बाबूजी,मैं तो मीरा हूं सदा ही अपने गिरिधर की भक्ति करती रहूंगी,वो चाहे मेरी पूजा से प्रसन्न हो या ना हो,मेरा प्रेम तो सदा से ही निस्वार्थ था और रहेगा,हर युग में,एक ना एक दिन तो जरूर मेरी भक्ति को समझेंगे, मैं हार नहीं मानूंगी और आप उदास ना हो,एक ना एक दिन सब ठीक हो जाएगा,मीरा बोली।।
ठाकुर साहब बोले,तू कितनी आशावादी हैं बेटी,धन्य हो गया ये घर जो तू यहां आई।।
और मीरा के सर पर हाथ फेर कर ठाकुर साहब चले गए।।
ऐसे ही दिन गुजर रहे थे,मीरा कुछ भी करती लेकिन गिरिधर ने तो जैसे की मन ही बना लिया था कि वो उसके किसी भी काम से खुश नहीं होगा।
इसी तरह एक साल और बीत गया अब महुआ भी मीरा को मां कहने लगी,अब हमेशा उसके आगे-पीछे लगी रहती।।
एक दिन महुआ गिरिधर के पास जाकर बोली,देखो बाबूजी मां ने मेरी गुड़िया के लिए कितना अच्छा गुड्डा बनाया है,पता है वो क्या कह रही थी कि "महुआ देख तेरी गुड़िया का गुड्डा तेरे बाबूजी की तरह सुंदर है",
पता है बाबूजी मां बहुत अच्छी है लेकिन आप मां से बात क्यो नही करते, पता है जब आप नहीं होते तो आपकी तस्वीर देख देखकर रोती है,एक दिन मैंने पूछा था कि बाबूजी की तस्वीर देख कर क्यो रोती हो मां? तो वो बोली तेरे बाबूजी मुझसे गुस्सा है ना इसलिए।।
तो क्या बाबूजी आप गुस्सा हो मां से?
गिरिधर बोला, नहीं बिटिया।।
तो चलो अभी मां के सामने कहो कि गुस्सा नहीं हो,चलो.....उठो..... बाबूजी!!उठो ना!!
और महुआ गिरिधर का हाथ पकड़कर मीरा के सामने ले गई,
अब कहो बाबूजी मां से कि आप मां से गुस्सा नहीं हो!!
हां, मैं गुस्सा नहीं हूं,गिरिधर बोला।।
ऐसे नहीं, मां के सामने अपना चेहरा करके बोलो__
गिरिधर ने मीरा की ओर देखकर कहा, हां मैं अब गुस्सा नहीं हूं,
मीरा, गिरिधर का ऐसा चेहरा देखकर मुस्करा पड़ी।।
फिर गांव में मकरसंक्रांति का मेला लगा, महुआ ने जिद की कि बाबूजी मेला देखने चलो।।
गिरिधर बोला,चलो चलते हैं।।
महुआ बोली, मां भी साथ चलेगी।
गिरिधर बोला, जैसी तेरी मरजी।।
सब मेला देखने, महुआ ने अपने लिए बहुत सारे मिट्टी के बर्तन खरीदे, जलेबियां खाई और बोली बाबूजी मां के लिए भी हरी हरी चूड़ियां खरीद दो, अपने यहां जो काकी आती है ना घास लेकर उन्होंने भी हरी हरी चूड़ियां पहनी थी, मैंने पूछा तो बोली तेरे काका मेले से लाए हैं मेरे लिए।।
महुआ के कहने पर गिरिधर ने मीरा के लिए हरी हरी चूड़ियां दिलवा दी।
सब खुश थे लेकिन अचानक मेलें में भगदड़ मच गई एक घोड़ा गाड़ी बेकाबू हो गई थी किसी ने धोखे से घोड़े पर जलती हुई बीड़ी डाल दी जिससे घोड़ा बिदक गया और भीड़ में भागने लगा।।
गिरिधर ने घोड़ागाड़ी आते हुए देखी तो मीरा और महुआ को बगल में करते हुए खुद सामने आ गया, बहुत ही चोट आई गिरिधर को, उसके दाये हाथ में बहुत ही गहरी मोच आई, कुछ लोगों ने गिरिधर को उठाकर हवेली पहुंचाया।।
अब मीरा रात दिन गिरिधर की सेवा में लगी रहती,एक तो गिरिधर का दायां हाथ था तो वो कुछ काम भी नहीं कर पाता था तो उसके सारे काम मीरा ही करती,अब गिरिधर, महुआ और मीरा एक ही कमरे में रहने लगे क्योंकि मीरा की अब गिरिधर और महुआ दोनों को जरुरत थी।
अब मीरा ही गिरिधर को स्नान करवाती, उसको अपने हाथों से खाना खिलाती, उसके हाथ में मालिश करती,अब धीरे धीरे गिरिधर ठीक होने लगा, उसके मन में भी मीरा के लिए प्रेम के भाव आने लगे,अब मीरा भी खुश रहने लगी थी उसे लगने लगा था कि वो धीरे धीरे गिरिधर का मन जीत लेंगी।
अब गिरिधर ठीक होने लगा था तो उसने सोचा, बहुत दिन से बाहर नहीं निकला हूं,चलो खेतों का चक्कर लगा कर आता हूं और गिरिधर खेतों की ओर निकल गया।
मीरा बाहर की ओर गायों और बछड़ों को देखने लगी तभी महुआ को रसोई में ना जाने कहां से दियासलाई दिख गई वो उससे खिलवाड़ करने लगी तीली जलती तो उसे मजा आता लेकिन पता नहीं अचानक उसने जली हुई तीली रसोई में रखी हुई,आसानी से जलने वाली घास फूस पर डाल दी जिसने जल्दी से आग पकड़ ली, महुआ जोर से चिल्लाई।‌
मीरा ने जैसे ही सुना वो भागकर आई और महुआ को आग से निकाल कर लें गई , हवेली में मौजूद ठाकुर साहब और अन्य लोगों ने कुएं से पानी निकाल कर आग बुझाई।
गिरिधर को आग लगने की बात पता चली तो गुस्से में हवेली आया और मीरा को जोर का थप्पड़ मारकर बोला,तुम किसी भी बच्चे की मां नहीं बन सकती आखिर तुमने दिखा दिया अपना सौतेला रूप, कोई जरूरत नहीं है मेरी बच्ची को तुम्हारी और मुझे भी जरूरत नहीं है ऐसी पत्नी की जो मेरी बच्ची की मां ना बन सके।।
इतना सुनकर,मीरा सन्न रह गई और रोते हुए अपने कमरे में चली गई।
ठाकुर साहब ने गिरिधर से कहा, गिरिधर आज तक मैं कुछ ना बोला लेकिन आज तुमने सारी सीमाएं पार कर दी तुम उस देवी पर घटिया इल्जाम लगा रहे हो जिसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए तुम्हारी बच्ची की जान बचाई और अब मैं ये कहता हूं कि नहीं रहेगी मीरा इस घर में,मैं सुबह ही उसे उसके घर छोड़ कर आता हूं और उन्होंने मीरा को आवाज देकर कहा!!
मीरा बिटिया...... चल अपना सामान बांध लें,ये कलयुग है बिटिया यहां तुझे अपने गिरिधर नहीं मिलेंगे।
और मीरा ने रोते हुए अपना सामान बांधा,उस रात किसी ने भी खाना नही खाया, मीरा महुआ के पास जाकर सो गई, और गिरिधर दूसरे कमरे में।
सुबह सुबह मीरा और ठाकुर साहब जाने के लिए तैयार हो गये,मीरा ने कहा बाबूजी आखिरी बार उनके चरण स्पर्श करके आती हूं।।
ठाकुर साहब बोले, जैसे तेरी मरजी।।
और मीरा, गिरिधर के कमरे में गई, गिरिधर सोया हुआ था मीरा उसके पैरों के पास खड़ी हो गई और उसकी आंख से आंसू टपक कर गिरिधर के पैरों पर गिरा और गिरिधर की आंख खुल गई।।
मीरा बोली, मैं जा रही हूं।।
गिरिधर बोला,अगर मैं कहूं कि मत जाओ तो नहीं जाओगी।।
मीरा बोली,एक बार कह कर तो देखो।।
गिरिधर बोला,अगर मैं कहूं कि महुआ को तुम्हारी जरूरत है तो रूक जाओगी।।
मीरा बोली,एक बार कह कर तो देखो।।
गिरिधर बोला, अगर मैं कहूं कि मुझे तुम्हारी जरूरत है तो तब भी तुम नहीं जाओगी।।
मीरा बोली,एक बार कह कर तो देखो।।
गिरिधर बोला, अगर मैं कहूं कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं तो तब क्या तुम मेरे सीने से लग जाओगी।।
मीरा बोली,एक बार कहकर तो देखो।।
गिरिधर रोते हुए बोला,सब तो कह दिया,अब भी मुझसे ऐसे ही दूर खड़ी रहोगी।।
और मीरा भी रोते हुए गिरिधर के सीने से लग गई।।
सारे गिले-शिकवे दूर हो गये।।
तभी महुआ दोनों को ढूंढते हुए आ कर बोली, मां.......बाबूजी तो आज हंस रहे हैं और सभी खिलखिला कर हंस पड़े।
ठाकुर साहब ने सबके हंसने की आवाज सुनी तो वो भी मुस्करा दिए।

समाप्त____
सरोज वर्मा___