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बंधन--भाग (४)

कालिंदी के माथे से बहुत खून बह चुका था, शहर से बड़े डाक्टर के आने तक, कालिंदी इंतजार ना कर सकी और हंसते-खेलते परिवार को छोड़कर चली गई___
ठाकुर साहब तड़प कर रह गये,उधर गिरिधर भी टूट गया, नन्ही सी बच्ची का मुंह देखकर अपने आंसू रोक लेता और अंदर ही अंदर घुटकर रह जाता, गांव के जिस भी महिला-पुरूष को बात पता चली दौड़ा चला आया कालिंदी का मुंह आखिरी बार देखने,
ठाकुर साहब को जो भी ढांढस बंधाता,वो खुद ही रोने लगता,
कहता कालिंदी जैसी बेटी भगवान सबको दे,दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार,घर के काम-काज में दक्ष,स्वाभाव की तो इतनी अच्छी कि जो एक बार मिल लें तो कालिंदी बिटिया की सादगी से अछूता ना रह पाए।
ये सुनकर ठाकुर साहब और भी ज्यादा रोने लगते !!
चुप हो जाइए ठाकुर साहब,अच्छे लोगों की तो भगवान को भी जरूरत रहती है, सभी ऐसा कहकर ठाकुर साहब को सांत्वना देते।।
मैं तो अपने मन को कैसे भी मना लूं,अब मेरी जिंदगी भला कितनी रह गई है लेकिन वो!! उसे देखो, उसकी तो सारी उम्र पड़ी है कैसे जिएगा, कैसे पालेगा दुधमुंही बच्ची को!! ठाकुर साहब ने गिरिधर की ओर इशारा करते हुए कहा।।
वो तो निष्ठुर थी, निर्मोही थी जो हम सब को छोड़कर चली गई, ठाकुर साहब बोले।।
पूरे साज-श्रृगांर के साथ कालिंदी का अंतिम संस्कार कर दिया गया, पंद्रह दिन हो गए थे कालिंदी को गये हुए और गिरिधर ने कालिंदी के जाने के बाद एक भी दिन ठीक से खाना नहीं खाया था,दिनभर महुआ को लिए बैठा रहता।।
महुआ पूछती कि बाबूजी मां कहां गई है,कब आएगी तो गिरिधर उसे सीने से लगा कर रोने लगता।।
ठाकुर साहब, दोनों बाप-बेटी को इस तरह देखते तो रो पड़ते, ठाकुर साहब खुद रसोई बनाते, जैसी भी बनती कच्ची-पक्की।।
फिर एक दिन उनके दोस्त अमृत राय आए उनसे मिलने,बोले काम के सिलसिले में दूसरे शहर गया था कल ही लौटा हूं, बहुत दुःख हुआ कालिंदी बिटिया के बारे में जानकार और खबर मिलते ही आज ही तेरे पास चला आया, मीरा भी कह रही थी आने के लिए लेकिन मैंने ही रोक दिया,कहा कि वहां जाकर तुझे कष्ट ही होगा।।
ठाकुर साहब बोले,समझ मे नहीं आता,भाई कि अब दोनों बाप-बेटी क्या होगा,घर में कोई खाना बनाने वाला भी नहीं।।
अमृत राय बोले, अच्छा एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानेगा।।
हां बोल, तेरी बातों का क्या बुरा मानना, ठाकुर साहब बोले।।
तू गिरिधर का दूसरा ब्याह क्यो नही करवा देता, उसे बेटा बना ले और बहु ले आ,इस तरह से महुआ को मां भी मिल जाएगी और तेरा घर भी नहीं बिखरेगा,अमृत राय जी बोले।
ठाकुर साहब बोले,बात तो तूने पते की कही है लेकिन इस बात का क्या भरोसा कि जो दूसरी मां आएगी वो महुआ को प्यार करेंगी और गिरिधर को भी अपना लेंगी।
अब ये तो तेरा काम है, मेरे मन में विचार आया तो तुझसे बोल दिया और ये काम जल्द से जल्द हो जाए तो ठीक है,अमृत राय जी बोले।।
ठाकुर साहब को अमृत राय जी की बात भा गई और उन्होंने मुंशीजी से इस विषय पर बात करने की सोची।
मुंशी जी बोले,मालिक विचार तो अच्छा है लेकिन ऐसा होगा कैसे, गिरिधर भइया मानेंगे भला और अगर मान भी गये तो ऐसी लड़की कहां मिलेगी जो गिरिधर भइया और महुआ बिटिया को अपना लें।।
ठाकुर साहब बोले, पहले गिरिधर को मनाते हैं और गिरिधर मान जाता है तो फिर लड़की ढूंढते हैं।
ठाकुर साहब ने इस विषय पर जैसे ही गिरिधर से बात करनी चाही, गिरिधर बहुत नाराज़ हुआ और महुआ को लेकर फिर से खलिहान वाली कोठरी में चला गया और जाते हुए बोला, जिसके लिए इस हवेली में आया था अब वो तो रही नहीं तो क्या करूंगा यहां रहकर,लोग अपनी मनमानी चलाते हैं, मेरी इच्छा के विरुद्ध काम करना चाहते हैं और मैं ये कभी भी होने नहीं दूंगा और मुंशीजी जी के हाथ में सारी चाबियां देकर चला गया।।
ठाकुर साहब सब देखते रह गए उस समय तो कुछ नहीं बोले लेकिन मुंशी जी से कहा कि मुंशी जी अब उंगली टेढ़ी करनी पड़ेंगी,सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा।।
एक दो रोज हो गये, मुंशीजी खबर लेकर गिरिधर के पास पहुंचे बोले, ठाकुर साहब की बहुत तबियत खराब है ,वे ना दवा ले रहे हैं और ना खाना खा रहे हैं,मैं अपने घर से खाना बनवाकर लाया तो उन्होंने नहीं खाया बोले जब अपने ही परवाह नहीं करते, किसी को मेरी चिंता नहीं है तो मुंशीजी आपके खाना खिलाने से मैं कितने दिन और जी लूंगा,जिसे बेटा माना था जिसे मेरा बुढ़ापे में ध्यान रखना चाहिए था वो तो छोड़कर चला गया अब पराये लोगों से क्या उम्मीद करूं,हाय री मेरी फूटी किस्मत ना बेटी मरती और ना अपने पराये हो जाते ।।
गिरिधर ने इतना सुना और मुंशी जी के साथ महुआ को लेकर दनदनाते हुए हवेली पहुंचकर ठाकुर साहब से बोला,आप क्या चाहते हैं, मुझे बता दीजिए जो आप कहेंगे मैं कर लूंगा लेकिन ये रोज रोज का नाटक मुझसे नहीं देखा जाता।।
ठाकुर साहब बोले, मुंशीजी कह दीजिए किसी से कि मुझे किसी से बात नहीं करनी, मेरी परवाह होती तो छोड़कर ही क्यो जाता।
गिरीधर गुस्से से बोला,चलो हटो जी, बड़े आए, बहुत देखे हैं मैंने भी ऐसी बड़ी बड़ी बातें करने वाले,सब नौटंकी है, मुंशीजी जी कह दीजिए इनसे की दवा खा ले, मैं अभी दूध लेकर आता हूं, इतना कहकर गिरिधर रसोई में दूध लेने चला गया।।
इतने में ठाकुर साहब हंसते हुए धीरे से बोले, मैंने कहा था कि मुंशी जी सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा।।
गिरिधर दूध लेकर आया और बोला दवा खा लीजिए बाबूजी,मत परेशान कीजिए,आपके सिवा मेरा है ही कौन आप जैसा चाहते हैं मैं वैसा ही करूंगा लेकिन जो भी इस घर में आएगी उसे पहले मेरी महुआ की मां बनना होगा,वो मेरी पत्नी बाद में बनेगी और अगर ऐसा ना हुआ तो उसकी जिम्मेदारी आपके सर पर होगी।
ठाकुर साहब बोले, ठीक है।।
अब ठाकुर साहब ने लड़कियां देखनी शुरू कर दी लेकिन ढंग की एक भी लड़की नहीं मिली।।
मुंशीजी से ठाकुर साहब बोले,अब क्या किया जाए,
मुंशी जी बोले,एक बात कहूं मालिक, मेरे मन में कुछ विचार आया है अगर आज्ञा हो तो बोलूं।।
ठाकुर साहब बोले, कहिए मुंशीजी क्या बात है?
अगर आप बुरा ना माने तो आपके दोस्त अमृत राय की बेटी,मीरा बिटिया इस घर के लिए कैसी रहेगी?
ठाकुर साहब बोले,वाह! मुंशी जी,क्या विचार आया है आपके मन में और क्या बात सुझाई है आपने, मैं क्यो नही अभी तक ये बात सोच पाया।
फिर मुंशी जी बोले लेकिन एक अड़चन है, कहां मीरा बिटिया इतनी पढ़ी-लिखी और हमारे गिरिधर भइया तो कभी स्कूल भी नहीं गये,वो ब्याह के लिए मानेगी भला!!
ठाकुर साहब बोले, मैं मनाऊंगा मीरा बिटिया को...
इस घर की भलाई के लिए, महुआ की मां बनने के लिए उसे मानना ही होगा।।
अब ठाकुर साहब ने इन सब पर रात भर सोच-विचार किया और सुबह-सुबह निकल पड़े शहर की ओर अमृत राय जी से मिलने।
अमृत राय जी ने दरवाजा खोला और बोले,अरे!तू आ अंदर आजा।।
ठाकुर साहब बोले, तुझसे बहुत जरूरी काम है___

क्रमशः___
सरोज वर्मा___