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पलक - भाग-२

पलक की बातों से मुझे मालूम हुआ कि वह मेरी कम्पनी के साथ वाली कम्पनी में ही काम करती है और मेरी तरह ही सेक्टर दस द्वारका की एक सोसाइटी में रहती है | उसकी माँ नहीं है और उसके पिता एक कम्पनी में डायरेक्टर हैं और ज्यादात्तर रात ग्यारह-बारह बजे तक ही घर आते हैं | आज ऑफिस में पार्टी की वजह से वह लेट हो गई है |

मैं अभी उसकी बातों को अपने दिमाग में बिठा ही रहा था कि उसकी तेज आवाज मेरे कानो में पड़ी ‘साहिब कहाँ खो गए | आप सो तो नहीं गए हैं और मैं बेवकूफ ऐसे ही बोले चली जा रही हूँ’ | मैं जल्दी से अपनी सोच से बाहर आते हुए बोला ‘नहीं, नहीं मैं आपकी सब बातें ध्यान से सुन रहा हूँ’ |

वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली ‘वो तो ठीक है लेकिन आपका ध्यान मेरी तरफ और मेरा आपको अपने बारे में बताने ही लगा रहा’ | ‘मतलब’, मैं हैरान होते हुए बोला |

वह फिर से हँसते हुए बोली ‘मेरा स्टेशन आने वाला है और मुझे डर लग रहा है कि इतनी रात को घर तक कैसे जाउंगी | आजकल थोड़ी बहुत ठंड तो होने ही लगी है इस वजह से पता नहीं इस समय कोई ऑटो या रिक्शा घर के लिए मिलेगा कि नहीं’ | मैं मुस्कुराते हुए बोला ‘कोई बात नहीं मैं छोड़ दूंगा’ |

वह सिर खुजाते हुए बोली ‘मैं अपनी ही सुनाने में मस्त रही | आपसे तो पूछा ही नहीं आप क्या करते हैं और कहाँ रहते हैं’ | मैं मुस्कुराते हुए बोला ‘जहाँ आप रहती हैं मैं भी उसी जगह रहता हूँ बस सोसाइटी दूसरी है और जहाँ आप काम करती हैं मैं उसके साथ वाली कम्पनी में काम करता हूँ’ |

वह खुश होते हुए बोली ‘अरे वाह ये तो कमाल ही हो गया’ |

‘चलिए स्टेशन आने वाला है’, मैं अपनी सीट से उठते हुए बोला |

उसे घर छोड़ने जाते हुए मैंने जब उसे अपना मोबाइल नंबर दिया तो वह अपना फ़ोन नंबर देते हुए वह बोली कि मैं नंबर तो दे रही हूँ लेकिन सिर्फ इमरजेंसी में ही कीजिएगा | यह सुन जब मैंने हैरान-परेशान होते हुए उसे देखा तो वह हँस कर बोली कि चिंता मत करिए मैं ही आपको फ़ोन कर लिया करुँगी | लेकिन मुझ से बात करने के लिए आपको देर रात तक इन्तजार करना पड़ेगा | मैं हँसते हुए बोला कि कोई बात नहीं आपके लिए इतना तो किया ही जा सकता है |

घर आने के बाद कितनी ही देर मुझे नींद नहीं आई | उसका चेहरा और उसकी हँसी अभी भी मेरे दिलोदिमाग में छाई हुई थी | बार-बार एक ही सोच आ रही थी कि एक ही मुलाकात में वह मुझ से ऐसे घुलमिल कर बात कर रही थी जैसे सदियों से जानती हो | उसके शरीर से आती गंध मुझे अभी भी महसूस हो रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे वो यहीं कहीं आस-पास है | यह सोचते-सोचते मैं कब सो गया मालूम ही नहीं चला |

मैं चाह कर भी अगले दिन उसे फ़ोन नहीं कर पाया | पहली बार उसी का फ़ोन रात बारह बजे आया और उसके बाद फ़ोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया | वह जब भी ऑफिस से लेट हो रही होती थी तो मुझे फ़ोन कर दिया करती थी और फिर हम घूमते-फिरते मौज-मस्ती करते रात ग्यारह बजे तक घर पहुँच जाया करते थे | उसे रात में देर से घर पहुँचने से कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि उसके पिता रात को लेट ही आया करते थे | वह ज्यादात्तर रात के बारह बजे के बाद ही फ़ोन किया करती थी | उसका कहना था कि पिता जी को खाना खिला कर जब वह अपने कमरे में आती है तभी फ़ोन कर पाती है | इसी तरह कब तीन महीने बीत गए पता ही नहीं चला |

पलक मेरी ज़िन्दगी में कुछ इस तरह घुल-मिल गई थी कि मैं उससे फ़ोन पर एक दिन भी बात किए बिना रह नहीं पाता था | वह भी हर रोज नियत समय पर फ़ोन कर ही लिया करती थी | उसकी हिदायत के कारण ही मैं कभी उसे फ़ोन करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया | एक दिन मैंने सोचा कि क्यों न उसे हिम्मत कर अपने प्यार का इजहार कर ही दूँ | यह सोच मैंने उसे फ़ोन मिलाया लेकिन उसका फ़ोन बंद था | मैं यह सोच कर शांत हो गया कि हो सकता है कि वह ऑफिस टाइम में फ़ोन बंद रखती हो | लेकिन मुझे हैरानी तब हुई जब उस दिन से उसका फ़ोन आना ही बंद हो गया | मैं रात या दिन जब भी फ़ोन करता उसका फ़ोन बंद ही मिलता |

जब यह सिलसिला काफी दिन तक चलता रहा तो एक दिन हिम्मत कर मैं उसके ऑफिस पहुँच गया | मुझे झटका तब लगा जब उसके ऑफिस वालों ने बताया कि उनके यहाँ पलक नाम की कोई लड़की काम नहीं करती है और न कभी करती थी | मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की वह मुझे इस कम्पनी के गेट पर वह कई बार रात को मिली है और कई बार मैंने उसे अंदर से आते हुए देखा लेकिन उनका एक ही जवाब था कि इस नाम की कोई लड़की यहाँ काम नहीं करती |

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है जबकि मैंने उसे अपनी आँखों से अंदर से आते देखा है | लेकिन फिर यह सोच कर कि हो सकता है वह लड़कीयों के बारे में कोई जानकारी न देते हो, मैं अपनी कम्पनी वापिस चला आया | वापिस आकर भी मैंने कई बार फ़ोन मिलाने की कोशिश की लेकिन फ़ोन बंद ही आ रहा था | शाम को घर वापिस आते हुए मैंने सोचा कि क्यों न उसके घर ही होता चलूँ , वह अवश्य ही घर पर मिल जाएगी |

उसकी सोसाइटी के बाहर पहुँच कर मुझे याद आया कि उसके घर का नंबर तो मुझे मालूम ही नहीं है तो फिर उसके घर कैसे जाऊँगा | मुझे गेट के अंदर असमंजस की स्थिति में खड़ा देख चौकीदार मेरे पास आ कर बोला ‘साहिब आपको किसके घर जाना है’ |

मैं पहले तो कुछ बोल ही नहीं पाया फिर हिम्मत कर बोला ‘मुझे पलक मैडम के घर जाना हैं जिनके पिता रोज रात को बारह बजे के लगभग आते हैं’ |

वह हैरान होते हुए बोला ‘साहिब रात के इस समय तो कोई नहीं आता है और इस नाम की तो कोई लड़की यहाँ नहीं रहती है’ |

उसकी बात सुन मैं हँसते हुए बोला ‘भाई यहाँ तीन सौ फ्लैट हैं आप हर किसी का तो नाम नहीं जानते होंगे’ | वह भी मुस्कुराते हुए बोला ‘साहिब फ्लैट तो तीन सौ ही हैं लेकिन लोग यहाँ सिर्फ पचास ही रहते हैं और मैं जब से यह सोसाइटी शुरू हुई है तब से ही हूँ | इसलिए मुझे हर घर के सदस्य का नाम लगभग याद हैं | और जिनके परिवार के नाम नहीं भी याद हैं तो उन फ्लैट के मालिक का नाम तो मुझे मालूम ही है’ |

मैं सकपकाते हुए बोला ‘पलक के पिता जी का तो नाम मुझे नहीं मालूम’ |

वह मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला ‘आपको काम क्या है’ |

मैं उसके इस प्रश्न को सुन झिझकते हुए बोला ‘मैं उनकी कम्पनी में काम करता हूँ और पास की ही सोसाइटी में रहता हूँ | वह पिछले एक हफ्ते से ऑफिस नहीं आ रही हैं और उनका फ़ोन भी बंद आ रहा है | इसीलिए उनका हालचाल जानने आया हूँ’ |

‘साहिब ऐसे तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता | आपको जो नाम मालूम है उसे मैं नहीं जानता और घर के मालिक का नाम आपको मालूम नहीं | क्षमा करें ऐसे में मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता’, कह कर वह गेट के पास ही रखी लोहे की बेंच पर जा बैठा |

उसकी बात सुन मैं चुपचाप धीमें कदमों से बाहर आ गया और अपने घर की तरफ चल दिया | अचानक मुझे याद आया कि मेरे पास पलक की चार-पांच फोटो और एक वीडियो है | यह सोच आते ही मेरा चेहरा ख़ुशी से खिल उठा और मैं तेज क़दमों से वापिस चल देता हूँ | मुझे वापिस आते देख चौकीदार हैरानी से मुझे देखता है |

मैं उसके पास ही लोहे की बैंच पर बैठते हुए बोला ‘भाई मेरे साथ पलक की कई फोटो हैं मैं तुम्हें वह दिखाता हूँ | तब तो तुम पहचान लोगे’ |

वह मुस्कुराते हुए बोला ‘हाँ साहिब, फोटो से तो पहचान ही लूँगा’ |

मैंने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और फोटो एल्बम से उसकी फोटो निकाल मैं मोबाइल उसके हाथ में थमाते हुए बोला ‘यह है पलक’ |

वह उन चार-पांच फोटो को देखने के बाद मोबाइल मुझे पकड़ाते हुए बोला ‘साहिब बेवकूफ बनाने के लिए ये गरीब आदमी ही मिला था’ |

मैं गुस्से से बोला ‘क्या मतलब है तुम्हारा’ ? वह धीमी आवाज से बोला ‘इसमें तो सिर्फ आपकी ही फोटो हैं’ |

‘क्या बकवास कर रहे हो’, कह कर मैं मोबाइल देखता हूँ | वह फोटों हम दोनों की थीं लेकिन अब उन सब फोटो में वह दिख ही नहीं रही थी | चौकीदार सही कह रहा था उन सब फोटो में अकेले ही खड़ा या बैठा था | मुझे कुछ भी समझ ही नहीं आ रहा था | ऐसे कैसे हो सकता है सोचते हुए मैं सिर झटकता हूँ | ऐसा करते हुए अचानक मेरे हाथ से मोबाइल गिर जाता है और उसे पकड़ते-पकड़ते मैं भी लोहे के बैंच से फिसल कर ज़मीन पर गिर जाता हूँ |

दूर से हँसी की आवाज सुन मैं अपनी आँखे मलते हुए उठ कर वापिस सीट पर बैठता हूँ तो आस-पास देख कर हैरान हो जाता हूँ कि मैं तो मेट्रो में ही बैठा हुआ था | शायद नींद में यह सपना देख रहा था | दूर बैठे वह लोग मुझे नींद में सीट से फिसल कर गिरते देख अभी भी हँस रहे थे | इसी बीच मेट्रो स्टेशन पर आ कर रुकी तो मुझे मालूम हुआ कि अगला स्टेशन सेक्टर दस का है | मैं उठ कर खड़ा हो जाता हूँ और अपने कपड़े ठीक करते हुए बैग कंधे पर लटका कर दरवाजे के पास आकर खड़ा हो जाता हूँ |

मैं दरवाजे के पास खड़े हो जैसे ही आँख बंद करता हूँ तो उसी लड़की का चेहरा मेरे सामने आ जाता है | मेरे कानों में उसकी हँसी की आवाज और शरीर से आती गंध महसूस होती है | मेट्रो स्टेशन पर रूकती है लेकिन दरवाज़ा खुलता नहीं है फिर जैसे ही दरवाज़ा खुलता है तो मैं आँखें खोल बाहर निकलने ही लगता हूँ तो देखता हूँ कि हू-ब-हू पलक की शक्ल की लड़की उसी ड्रेस में बाहर खड़ी थी | उसे देख मैं डर से काँप जाता हूँ | माथे पर पसीना आ जाता है | मैं घबरा कर तेजी से बाहर निकलते हुए उस लड़की से टकरा जाता हूँ | वह पीछे मुड़ कर मुझे देखते हुए मुस्कुरा कर बोली ‘मेरे जैसी लड़की आपने पहले भी देखी है क्या’ | उसकी बात सुन मैं बार-बार पीछे मुड़ कर देखते हुए लगभग भागने लगता हूँ | नीचे रोड तक पहुँचते-पहुँचते मैं हाँफ रहा था लेकिन फिर भी मैं रुका नहीं और भागते-भागते ही अपनी सोसाइटी के गेट तक पहुँच गया | गेट से अंदर दाखिल होने से पहले एक बार फिर मैंने उस ओर देखा जिस ओर से मैं आया था | सुनसान पड़ी रोड पर किसी को न देख मैं अपनी साँसों पर काबू पाते हुए गेट से अंदर दाखिल हो घर की ओर बढ़ जाता हूँ |

आज भी जब मुझे उस घटना या यूँ कहें कि उस सपने की याद आती है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं | अभी भी उसके शरीर से आती गंध को महसूस करता हूँ और उसकी हँसी कानों में गूंजती है | इतने साल बीतने के बाद भी मैं ये फैसला नहीं कर पाया कि ट्रेन के बाहर खड़ी लड़की असल में कौन थी|

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