jindagi ki kahaaniya - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

जिंदगी की कहानियां - 2 - उपहार

जिंदगी कभी कभी छोटी छोटी खुशियों के लिए तरसा कर रख देती है और कभी कभी जब उम्मीद बिल्कुल साथ छोड़ देती है, तभी किस्मत अचानक से अभूतपूर्व उपहार प्रदान कर चोंका देती है।
आज अन्या बेहद दुखी थी,रो-रोकर उसकी आँखें सूज गई थीं।सोहम ने फोन करके जब बताया कि उसके छोटे भाई अभय के यहां कल रात्रि में बेटी ने जन्म लिया है, तो वह आश्चर्यचकित रह गई क्योंकि बच्चा एक दिन में तो पैदा होता नहीं है।उसे तो छोड़ो, सोहम तक को इस बात का पता नहीं चल पाया।देवर अभय का विवाह ग्यारह माह पूर्व हुुुआ था, वह विवाह के तुरंत बाद अपनी पत्नी के साथ चला गया था, तबसे एक बार भी नहीं आया था, अब माजरा समझ आ रहा था।
थक कर अन्या हाथ-मुंह धुलकर एक कप कॉफी बना सोफे पर बैठ कर विगत की स्मृतियों में खो गई।
अन्या एक मध्यमवर्गीय परिवार की तीन बहन एक भाई में सबसे बड़ी थी।पिता की छोटी सी नोकरी थी अतः घर चलाने के लिए मां एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका हो गई, साथ ही कुछ छोटे बच्चों को ट्यूूूशन पढ़ाने लगीं घर पर ही।
जब अन्या हाई स्कूल में आ गई तो घर में ट्यूशन पढ़ाने का कार्य उसने सम्भाल लिया,बच्चों की संख्या भी धीरे धीरे बढ़ गई।बीएससी करने के बाद उसने भी एक स्कूल में पढ़ाना प्रारंभ कर दिया,ट्यूशन की संख्या काफी बढ़ा ली क्योंकि छोटे भाई को इंजीनियरिंग में एडमिशन दिलाना था,एवं छोटी बहनों की भी पढ़ाई थी।अब मां के का जॉब छुड़ा दिया था क्योंकि घर में भी कार्य भार काफी बढ़ गया था।
दो वर्ष बाद लोगों की सलाह पर अन्या ने बीएड में एडमिशन ले लिया था क्योंकि अब सभी अच्छे स्कूल में टीचर्स का बीएड होना जरूरी हो गया है।बीएड पूर्ण होने के बाद उसे शहर के एक बहुत अच्छे कॉलेज में जॉब मिल गई।परिश्रमी तो वह थी ही,जल्दी ही प्रधानाध्यापिका एवं बच्चे उसे बेहद पसंद करने लगे। दूसरे नम्बर की बहन इंटर करने के बाद डिप्लोमा करने के पश्चात एक आर्किटेक्ट के यहां कार्य करने लगी। छोटे भाई की भी इंजीनियरिंग समाप्त होते ही एक अच्छी कम्पनी में जॉब लग गयी।अब अन्या के माता पिता ने उसके विवाह पर ध्यान केंद्रित किया।
हमारे समाज की विडंबना है कि लड़की कितनी ही शिक्षित, गुणवान क्यो न हो,परन्तु यदि माता पिता दहेज देेने में समर्थ न हों तो उसके लिए अच्छा घर वर खोजना अत्यंत दुष्कर कार्य हो जाता है।खैर, काफी भटकने के बाद शहर में ही रिश्ता तय हो गया।लड़का आई टी से एमएससी था एवं शहर में ही किसी कॉलेज में अध्यापक था।अन्या के पिता ने पहले ही अपनी सामर्थ्य सीमा बता दिया था। वर सोहम के पिता चाहते थे कि उस रकम का ज्यादा अंश उन्हें कैश में ही प्रदान कर दिया जाय,दावत भी अच्छी चाहिए थी।खैर, काफी जद्दोजहद के उपरांत आधा उन्हें कैश दे दिया गया तथा आधे से विवाह के अन्य खर्चे सम्पन्न होने थे।लेकिन सोहम के पिता नाराज थे इस व्यवस्था पर भी।तय तिथि पर सगाई सम्पन्न हुई एवं विवाह की तिथि भी आ पहुंची।विवाह के रस्म सम्पन्न होते होते तक किसी न किसी बात पर वर पक्ष के लोग कोई न कोई बखेड़ा खड़ा करते ही रहे।जैसे तैसे विवाह पूर्ण हो गया, परन्तु विदाई के समय किसी छोटी सी बात पर विवाद प्रारंभ हो गया, क्रोध में सोहम ने भी खूब खरी खोटी सुनाई।अन्या आँखों में विदाई की बजाय क्षोभ के आँसू भरे विदा होकर ससुराल आ गई।
कुछ दिन बीतते बीतते ससुर,देवर की नाराजगी बातों में बाहर निकलने लगी।सास प्रत्यक्ष में तो अन्या से कुछ नहीं कहतीं, किन्तु सोहम को भड़काने का कोई मौका नहीं छोड़ती थीं।पगफेरे के लिए जब भाई बुलाने आया तो किसी ने उससे सीधे मुंह बात तक नहीं किया।रस्म पूरी करने के बाद ससुराल आते ही ससुर जी का आदेश जारी हो गया कि अन्या अपने मायके वालों से कोई भी सम्बन्द्ध नहीं रखेगी क्योंकि उसके मायके वालों ने हमारा अपमान किया है, यहां तक कि अन्या को फोन पर बात करने की भी मनाही हो गई।अभी तो सोहम से भी किसी सहयोग की उम्मीद नहीं थी क्योंकि वह भी अभी उन्हीं के रंग में रँगा हुआ था।
अभय अपने से तीन साल बड़े भाई सोहम का ही सम्मान नहीं करता था तो अन्या को क्या देता।बात बात पर अन्या को अपमानित करता, कुटिल नन्द के समान उसके हर कार्य में मीन मेख निकलता,सास-ससुर भी मौन रूप से देवर को बढ़ावा देते थे।दिनरात काम में जुटी रहती थी मदद करना तो दूर, दो बोल प्यार से भी कोई बोलने वाला नहीं था।
ये तो ग़नीमत थी कि अन्या का अध्यापन कार्य जारी था, कॉलेज उसके मायके के समीप था, अतः मां-बहनें जब कभी आकर उससे मिल लेतीं।
व्यतीत होते समय के साथ सोहम को भी समझ आने लगा था कि उसके परिवार में अभय की ही अहमियत है।पिता जी तो उसके ही सुर में सुर मिलाते हैं, एवं मां भी परोक्ष रूप से उसी की पक्षधर हैं।अन्या-सोहम आपसी समझ एवं प्रेम बढ़ने के साथ एक दूसरे की अच्छाइयों को भी समझने लगे थे।अब अन्या सोहम की सहमति से कभी कभी एक दो घंटे के लिए मायके जाने लगी थी एवं चुपचाप फोन पर बात भी करवा देते थे।
गृहस्थी की गाड़ी कुछ पटरी पर आने लगी थी कि समय फिर रास्ते में पत्थर बिछाने लगा।वे शुरू से कोई फेमिली प्लानिंग नहीं कर रहे थे, परन्तु दो वर्षों तक जब कोई खुशखबरी प्राप्त नहीं हुई तो उन्हें चिंता होने लगी।डॉक्टर को दिखाने की बात करने पर सोहम तो साथ चलने को तैयार नहीं हुए तो अन्या कभी मां, कभी किसी सहेली तो कभी अकेले डॉक्टरों के पास भटकने लगी।अब तो सोहम भी कभी कभी चिड़चिड़ा कर कह बैठता कि इतने सालों में तुम एक बच्चा नहीं दे सकी तो वह रोकर रह जाती।काफी समझाने एवं प्रार्थना करने पर सोहम डॉक्टर के पास चलने को तैयार हुए।स्त्री अपनी किसी कमी को आसानी से स्वीकार कर लेती है परंतु पुरूष का अहंकार उसे सहज मानने नहीं देता।खैर, अब विधिवत चिकित्सा प्रारंभ हुई,सभी आवश्यक टेस्ट हुए।दोनों में जो थोड़ी सी कमी थी वह भी चिकित्सा से दूर हो गई लेकिन उनके आंगन में खुशियों ने पदार्पण नहीं किया।बस इतना अवश्य फायदा हुआ कि अब सोहम उससे अच्छे से पेश आने लगे।
इधर अभय की दूसरे शहर में इंजीनियरिंग करने के बाद जॉब लग जाने के कारण वह चला गया, तब अन्या ने राहत की सांस ली।अब अभय के रिश्ते की बात चलने लगी थी ।सर्वगुण सम्पन्न ,जॉब वाली उसपर ढेर सारा दहेज,ऊपर से अन्य मीन -मेख।कोई लड़की पसन्द ही नहीं आ रही थी सास-ससुर,अभय को।अन्या-सोहम के किसी मशविरे का तो कोई मूल्य ही नहीं था।
अब तो हद ही होने लगी थी क्योंकि अभय के विवाह में होने वाले विलम्ब का दोष भी अन्या के भाग्य को दिया जाने लगा था।अन्या-सोहम के विवाह को छह साल हो चुके थे।अंततः राम राम करके अभय के लिए लड़की पसन्द आ गई, हालांकि लड़की घरेलू थी किन्तु पर्याप्त दान-दहेज लेकर आई थी।अन्या ने विवाह में दौड़ भाग कर अपने हर फर्ज को पूर्ण तन्मयता से निभाया।
एक सप्ताह पश्चात ही अभय अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ पहले हनीमून पर ,फिर वहीं से अपने कार्य स्थल पर चला गया।सास-ससुर बीच बीच में अभय के पास जाते रहते थे।अभय बीच में यहां अपनी पत्नी के साथ कभी भी नहीं आया।मेरे लिए बनाए तमाम नियमों में से उनके लिए एक भी नहीं था।अन्या-सोहम तो यही सोचते थे कि अभय को तो उनसे कोई लगाव था ही नहीं इसलिए नहीं आता है।
अब बेटी होने की खबर ससुर ने फोन करके सोहम को बताया तब समझ में आया कि सभी ने प्रेग्नेंसी की खबर इसलिए छिपाई थी क्योंकि वे सभी अन्या को बाँझ समझते थे।
दस दिनों बाद अभय की बेटी का द्रष्टोन संस्कार हुआ था, लेकिन उनके शामिल होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था, वैसे भी किसी ने निमन्त्रण तो दिया नहीं था उन्हें।अब अन्या सोहम की पीड़ा और घनीभूत हो चुकी थी। दो वर्षों से तो थक हार कर उन्होंने चिकित्सा भी बंद कर दिया था।अतः अब सब कुछ ईश्वराधीन मानकर ऊपर वाले के हाथ में छोड़ दिया था।देखते ही देखते पांच माह और व्यतीत हो गए।इधर कुछ दिनों से अन्या की तबीयत खराब सी रहने लगी थी।वे यही सोच रहे थे कि शायद अत्यधिक तनाव के कारण ऐसा हो रहा है।सोहम को दस दिनों के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा ।जब लौटा तो अन्या की खराब तबियत देखकर परेशान हो गया, अविलंब डॉक्टर के पास ले गए।उल्टी-पेटदर्द के कारण अल्ट्रासाउंड कराया गया।रिपोर्ट देखकर उनकी खुशी का पारावार न रहा।फिलहाल उन्होंने निश्चय किया कि अभी किसी को भी न बताया जाय।सास-ससुर अभय की बेटी के साथ समय बिता रहे थे अतः उनके पास कम ही आते थे।जब अन्या की प्रेग्नेंसी पांच माह की हो गई तब उसने इस खुशखबरी की सूचना अपने मायके में दे दी, सभी अत्यंत प्रसन्न हो गए एवं तमाम हिदायतें दे डालीं।सोहम की इच्छा थी कि वह बाकी का समय अपने मायके में बिताए जिससे उसकी अच्छे से देखभाल हो सके।नियमित चेकअप चलता रहा। आखिर वह शुभदिन आ गया जिसका इंतजार वे वर्षों से करते आ रहे थे।नवें महीने के बीतते ही सिजेरियन ऑपरेशन से अन्या ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया।अन्या-सोहम को ईश्वर ने अनुपम उपहार प्रदान कर दिया।सोहम ने यह खुशखबरी अपने माता-पिता को फोन पर देकर सरप्राइज कर दिया।वे लोग सूचना मिलते ही अविलंब आ गए।सबके चेहरे खुशी से चमक रहे थे।
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