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जिंदगी की...-3-सही गलत

घर के दरवाजे की घण्टी बजी।दरवाजा खोला तो देखा कि रंजना खड़ी थी, सूजी हुई आँखे बता रही थीं कि घण्टों रो चुकी थी।चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं।रंजना को अंदर लाकर सोफे पर बिठाया एवं पानी का गिलास लाकर दिया।पानी पीने के कुछ देर उपरांत मैंने पूछा,"क्या बात है?काफी परेशान हो"।मैं उसके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी।
कुछ देर बाद उसने बताया कि दो दिन पूर्व बेटी अनु का विवाह रितेश के साथ 8-9 लोगों की उपस्थित में कर दिया हमनेें। पांच लोग वेे आए थे, रितेश,उसके भाई भाभी एवं दो मित्र और हम चार लोग।
मैं उसका दुुख समझ रही थी, इकलौती बेटी का ऐसा विवाह ,जिसमें बेटी के सुखद भविष्य की कोई गाारण्टी नहीं।हालांकि यह भी कटु सत्य है कि हर किसी का अपना भाग्य उसके सुख दुःख का निर्धारण करता है।परंतु मां तो मां होती है, सन्तानों से कितना भी नाराज क्यो न हो पर उनके सुुुखद भविष्य के लिए सदैव चििंतित रहती है। कहानी पूूूछने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था क्योंकि मुझे तो शुरू से ही सब ज्ञात था।
मैं उनके यहां लगभग 15-16वर्ष से किराएदार थी।हमारे घनिष्ठ पारिवारिक सम्बन्द्ध स्थापित हो चुके थे।रंजना मुझसे उम्र में 5-6 साल छोटी थी किन्तु 17 वर्ष की आयु में विवाह हो जाने के कारण बच्चे बड़े हो चुुके थे,दो एवं एक बेटी।बेटी बीच की थी ।इंटर पास करते ही विवाह हो जाने के कारण स्वयं तो ज्यादा नहीं पढ़ सकी परन्तु बेटी को उच्च शिक्षित करने को कृतसंकल्प थीं।अपनी शादी शुदा जिन्दगी में उन्होंने अत्यधिक संघर्ष किया था।कई बार तो जीवन त्यागने तक का सोच लिया था लेकिन बच्चों के मोह ने गलत कदम उठाने से रोक दिया था।वो बच्चों के लिए ही जी सकीं थीं।
दोनों बेटे इंजीनियरिंग करने के बाद परिश्रम करके अच्छे सरकारी नोकरियों में लग गए।बेटी ने भी एमएससी पूर्ण कर लिया।वो भी सरकारी जॉब के लिए प्रयत्नशील थी।पति भी सीधी राह पर आ चुके थे।रंजना के संघर्ष के दिन पूरे हो चुके थे।
लेकिन भाग्य किसी को भी पूरा सुख नहीं देता है।जब लगने लगता है कि अब सब ठीक हो चुका है तभी जिंदगी में अवरोध उत्पन्न कर देता है।
रंजना ने अपनी बेटी को बेटों से अधिक प्यार दिया था, उसकी हर छोटी-बड़ी इच्छा-शौक को पूरा करती।हर कदम पर बेटी का साथ देती।खैर, कुछ प्रतियोगिताओं में असफल रहने पर अनुश्री जिसे प्यार से अनु बुलाते थे, ने कहा कि अब वह प्राइवेट में ही जॉब करना चाहती है।पति-भाइयों ने भी कहा कि चलो विवाह होने तक यह शौक भी पूरा कर लो।एक प्राइवेट कम्पनी में कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर अपने ही शहर में अनु जॉब करने लगी क्योंकि उसने IT से एमएससी किया था।
अनु को गृह कार्य तो सब आता था, थोड़ी बहुत मां की मदद अपनी मर्जी से कर देती थी परन्तु घर के सारे काम रंजना स्वयं ही करती क्योंकि उसे लगता कि जब तक बेटियां मायके में हैं तभी तक सुख है, विवाह के बाद पता नहीं कैसा परिवार मिले।वैसे यह कटु सत्य है कि ज्यादातर ससुराल में बहू को बेटी जैसा स्नेह एवं अधिकार प्राप्त होता भी नहीं है।।
कॉलेज के समय सुबह अनु के तैयार होने तक नाश्ता तैयार कर देतीं एवं लंच पैक कर देतीं।कभी कभी देर होने पर अपने हाथ से ही नाश्ता करा देतीं।अब जॉब पर जाने के समय भी यही दिनचर्या रहती।ऑफिस से आने पर तुरंत चाय-नाश्ता देतीं कि मेरी बेटी थक कर आई है।अनु भी जब तक अपनी पूरी दिनचर्या मां को बता नहीं देती तब तक दोनों मां-बेटी को चैन नहीं पड़ता।डेढ़ साल जॉब करते बीत गए।अनु 25 की होने वाली थी इसलिए वे उसके विवाह के बारे में सोचने लगे।अनु की जन्मपत्री दिखाने पर पण्डित जी ने छब्बीसवें वर्ष के पश्चात विवाह का सलाह दिया।
अनु कभी कभी मजाक में मां से कहती कि आप लोग मेरे विवाह की चिंता मत करो।रंजना इसे गम्भीरता से नहीं लेती।जब विवाह की चर्चा पिता ने पुनः प्रारम्भ किया, तब एक दिन अनु ने अपनी माँ से कहा कि उसके बॉस उससे विवाह करना चाहते हैं एवं मैं भी उन्हें पसंद करती हूं अतः आप पापा से उनके बारे में बात कर लें।साथ ही अनु ने आश्वासन दिया कि यदि आप सबको पसंद नहीं आया तो मैं नहीं करूंगी।आजकल लोग अंतरजातीय विवाह को स्वीकार करने लगे हैं।हिम्मत कर रंजना ने पति और बेटों से बात की।थोड़े ना-नुकुर के बाद पति किसी को साथ लेकर लड़के रितेश के माता-पिता से मिलने उसके गांव गए।
रितेश के पिता ने स्पष्ट कह दिया कि वे लोग अंतरजातीय विवाह कदापि नहीं करेंगे।फिर हमने रितेश का विवाह अपने जाति में तय कर दिया है।हमारे यहाँ यदि रिश्ता तोड़ा गया तो खून-खराबे की नोबत आ जाती है।यदि रितेश आपकी बेटी से फिर भी विवाह करता है तो हमसे उसका कोई सम्बंध नहीं रह जाएगा।
एक तो रितेश की सामान्य सी प्राइवेट जॉब,उसपर घर वालों का इनकार,अनु के पिता ने घर आकर अपनी असहमति व्यक्त कर दिया।
यह जानकर अनु ने ढंग से खाना-पीना-हंसना-बोलना सब बन्द कर दिया।रंजना ने काफी समझाया कि रितेश यदि घर वालों से विरोध का साहस नहीं रखता तो कल उनके दबाव में तुम्हें त्याग भी सकता हैऔर बाद में जरा भी समस्या आने पर परिवार से रिश्ता टूटने की झुंझलाहट भी तुम्हारे ऊपर निकलेगा।
धीरे धीरे अनु कुछ सामान्य होने लगी।रंजना ने राहत की सांस ली, परन्तु यह उसकी भूल थी।रितेश-अनु की बातें अभी भी हो रही थीं।रितेश ने अनु को विश्वास दिला दिया था कि यदि वह न मिली तो वह जान दे देगा क्योंकि वह उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करता है।रितेश ने यहाँ तक कह दिया कि हम चुपचाप कोर्ट मैरिज कर लेते हैं।
एक माह पश्चात रंजना के पास रितेश के भाई भाभी का फोन आया।पहले तो इस विवाह के न होने का सारा दोष अनु के माता पिता पर थोपते हुए अनु को भी बुरा भला कहने लगे कि आपकी बेटी ने मेरे परिवार में तनाव पैदा कर दिया और न जाने क्या क्या।जब रंजना को भी क्रोध आने लगा तो बात बदलते हुए कहा कि रितेश की शादी 28 अप्रेल की है, आप इससे पहले ही अनु-रितेश का विवाह कर दें,15-20 दिनों के अंदर।रंजना ने स्पष्ट मना कर दिया है कि इस तरह जल्दबाजी में हम कुछ नहीं करेंगे।
अनु की आंखों पर पट्टी बंध चुकी थी, उसे रितेश जो भी समझा रहा था वही सही लगने लगा था।अब तो अनु को भी अपने परिवार वाले ही गलत लगने लगे थे।अनु ने झुंझलाहट में एलान कर दिया कि वह अविवाहित ही रहेगी।
अनु के लिए वे उच्चपदस्थ, सुदर्शन , स्थापित परिवार के युवक की तलाश दामाद के रूप में कर रहे थे।धूम धाम से बेटी का विवाह करना चाहते थे।किंतु अनु की जिद के आगे थक हारकर ,भाग्य मानकर एक अत्यंत सादे समारोह में मात्र 10 लोगों की उपस्थिति में विवाह कर दिया।
अब मैं क्या कहती सिवा तसल्ली देने के।खैर, रंजना को तो समझा बुझा कर वापस भेज दिया परन्तु उसके जाने के बाद मैं सोचने लगी कि आज की युवा पीढ़ी इतनी विद्रोही क्यों हो गई है कि कभी कभी पढ़े-लिखे समझदार युवा भी जल्दबाजी में ऐसे निर्णय ले लेते हैं कि बाद में सिर्फ पछतावा रह जाता है।
यदि चयन उचित हो तो प्रेम विवाह को मैं सही समझती हूं।सही गलत परिणाम के अनुसार निर्धारित किया जाता है, अच्छा परिणाम प्राप्त हो तो सही,मनोवांछित परिणाम न हो तो गलत।दोनों पक्ष कहीं जिद,कभी विद्रोह के चलते एक दूसरे को समझना ही नहीं चाहते।ऐसे मतभेद परस्पर वार्तालाप कर समझदारी से सुलझाने चाहिए।
खैर, मैं ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि अनु अपने जीवन में सदैव खुश रहे।