saddgati - 3 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

सदगति - 3 (अंतिम किश्त)

"दुख औरत मर्द के बीच भेदभाव नही करता।दुखो से घबराकर भागना कायरता है।,"वह बोला,"हिम्मत से काम लो सब ठीक हो जायेगा।"
"उपदेश देना बहुत आसान है।।,"वह रोने लगी।वह उसे समझाने लगा।जब उसका रोना थम गया,तब उसने पूछा था,"तुम्हे क्या दुख है?तुम आत्महत्या क्यो करना चाहती हो?"
कई बार पूछने पर गीतिका ने अपनी आप बीती सुरेश को सुना दी।उसकी व्यथा सुनकर वह उसे अपने साथ लखनऊ ले गया।
सुरेश लेखक था।गीतिका उसके साथ रहने लगी।सुरेश ने गीतिका की आपबीती को आधार बनाकर एक उपन्यास की रचना की।ये उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि सुरेश की गिनती देश के नामी लेखकों में होने लगी।
गीतिका,सुरेश की प्रेरणा बन गई।वह उसे नए नए विचार देने लगी।लेखन में सहायता करने लगी।गीतिका के आने के बाद वह मशहूर हो गया।
गीतिका,सुरेश के साथ रहते हुए,उसके करीब आने लगी।एक दिन उनके बीच की दूरी मिट गई।इसका नतीजा सामने आ गया।गीतिका के दिन चढ़ गए।एक दिन उसने सुरेश को अपने गर्भवती होने का समाचार सुनाया था।
"यह तो खुशी की बात है।"सुरेश खुश होकर बोला।
"तुम खुश हो रहे हो?"
"हॉ।तुम्हें खुशी नही हुई।"
"खुश होने से पहले सोचो लोग क्या कहेंगे।"
"तो ये बात है।"
गीतिका की बात का आशय समझ मे आने पर वह बोला,"आज ही तुमसे शादी कर लेता हूँ।"
"लेकिन तुम जानते हो,मैं विवाहित हूँ।"
"तुम अपना अतीत पीछे छोड़ आयी हो।फिर उसे क्यो याद करना चाहती हो?"
"याद करना नही चाहती।उसकी शक्ल भी देखना नही चाहती।लेकिन अभी तो पति है।उससे तलाक नही हुआ है।"
"तुम अतीत को भूल जाओ।अब वह नही आएगा और आएगा तब देखा जाएगा।"
और सुरेश ने गीतिका से कोर्ट मैरिज कर ली थी।
गीतिका को पहले पति ने दुख और पीड़ा ही दी थी।लेकिन सुरेश ने प्यार और सम्मान-----
सुरेश जब भी बाहर जाता।गीतिका को अपने साथ ले जाता।एक दिन वे कार से मेरठ जा रहे थे।सुरेश कार चला रहा था।गीतिका भी आगे ही बैठी थी।अचानक सुरेश ने जोर से ब्रेक लगाए थे।
"क्या हुआ गीतिका ने चोंकते हुए पूछा था।।"
सुरेश बोला कुछ नही।कार रोककर नीचे उतरा था।पति को नीचे उतरता देखकर,गीतिका उसके पास चली आयी।सड़क के बीच मे एक आदमी पड़ा था।सुरेश ने उसके हाथ की नब्ज देखी।नब्ज देखकर सुरेश के चेहरे का रंग बदल गया।
"क्या हुआ?"गीतिका ने पूछा था।
"मर गया।"सुरेश अफसोस प्रकट करते हुए बोला।
"मर गया?"गीतिका बोली,"तो हाथ मत लगाओ।"
"क्यों?"
"न जाने कौन हैं?कैसे मरा?बिना बात पुलिस का झंझट मत मोल लो।"
"मतलब पुलिस के डर से मानव धर्म को भूल जाये?"
"हमारे देश के कानून ही ऐसे है कि बेवजह पुलिस के चक्कर मे पड़ना नही चाहता।"
"लोगो की बात को छोड़ो।मेरा मन इजाज़त नही देता की मैं इसे छोड़ कर चला जाऊ।"
पति की बात सुनकर गीतिका चुप हो गई।सुरेश ने जमीन पर पड़ी लाश को सीधा किया।गीतिका की नज़र ज्यो उसके चेहरे पर पड़ी वे चौक ते हुए बोली,"यह तो देवेन हैं।"
कौन देवेन?"
"मेरा पति।"
"तुम्हारा पति"?सुरेद ने पत्नी की बात को दोहराया
"हॉ। कसाई पति,"गीतिका नफरत से बोली,"पड़ा रहने दो नीच को।इसकी लाश को चील कौवो को शिकार करने दो।"
"अब गुस्सा करना बेकार है।उसकी मौत के साथ उसके पाप भी चले गए।अब मृत देह रह गई है।उस पर कैसा गुस्सा?"
"तुम्हे क्या मालूम उसने मेरे साथ कितने जुल्म किये थे।मेरी मानो तो इसे यंही पड़ा रहने दो।"
"तुम्हारा पति था।"
"मेरे पति तुम हो।"
"माना आज तुमहरा उससे कोई रिश्ता नही।लेकिन पहले रह चुका है"सुरेश उसे समझाते हुए बोला,"जिनसे रिश्ता नही होता।उनकी दुर्गति भी लोग नही चाहते।फिर वो तो पति रह चुका है।"
"कहना क्या चाहते हो"?
"चाहे वो कैसा भी था।आज उससे कोई संबंध न हो।लेकिन हमारा कर्त्तव्य है।उसके शरीर की दुर्गति न होने दे।हम उसका अंतिम संस्कार करे।"
सुरेश ने ऐसा ही किया।
"आओकि चले।"सुरेश की आवाज सुनकर अतीत से वर्तमान में लौट आयी थी।देवेन शून्य में विलीन हो चुका था।लोग जाने लगे।गीतिका पति के साथ लौटते हुए सोच रही थी।
सुरेश सचमुच देवता है।वह न होता तो देवेन की मृत देह की न जाने क्या दुर्गति होती।सुरेश की वजह से ही उसकी सदगति हुई थी।सुरेश की सज्जनता और देवेन की दुर्जनता के बीच उलझी मानव मन कि अपरिमेय मनोसिथति के बारे में सोचे जा रही थी