Anu aur Manu Part-8 books and stories free download online pdf in Hindi

अणु और मनु - भाग-8

अक्षित पुलिस हेडक्वाटर पहुँच कर कमिश्नर ऑफिस के बाहर बैठे स्टाफ को अपना परिचय देता है | महिला पुलिसकर्मी उठ कर अक्षित का अभिवादन करती है और बड़े विनम्र भाव से आग्रह करती है कि वह स्वागतकक्ष में रखे सोफे पर बैठें | कुछ ही देर में वह महिला पुलिसकर्मी अक्षित के पास आकर बहुत ही अदब से बोली कि आइए सर, सर आपका ही इन्तजार कर रहे हैं, कह कर वह अक्षित का सोफे से उठने का इन्तजार करती है | अक्षित जैसे ही सोफे से उठता है वह पुलिसकर्मी अक्षित को लेकर कमिश्नर साहिब के कमरे का बहुत अदब से दरवाजा खोल कर अंदर जाने का इशारा करती है | अक्षित जैसे ही कमरे में दाखिल होता है | वह पुलिसकर्मी मुस्कुराते हुए उसी अदब से दरवाजा बंद कर चली जाती है|

कमिश्नर साहिब का कमरा काफी बड़ा था | दरवाजे के साथ ही दो जोड़ी सोफासेट रखे हुए थे और उनके सामने दो बड़ी अंडाकार मेज रखी थीं जिनका उपरी भाग नक्काशीदार शीशे का था | उन मेजों पर बहुत ही सुंदर गुलदस्तों में कई तरह के फूल सजे हुए थे | शीशे की बड़ी-बड़ी चार खिड़कियों पर बहुत ही सुंदर परदे टंगे थे | जो उस कमरे की भव्यता को और भी बड़ा रहे थे |

अक्षित को अंदर आते देख कमिश्नर साहिब उठ कर बहुत गर्मजोशी के साथ अक्षित से हाथ मिलाते हैं | वह अक्षित को बैठने का इशारा करते हुए बोले “मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था” | अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “सर ये तो आपकी महानता है कि आप जैसा व्यस्त व्यक्ति मेरा इन्तजार कर रहा था” | यह सुन कर कमिश्नर साहिब हँसते हुए बोले “आप मजाक अच्छा कर लेते हैं” |

वह अभी बात कर ही रहे थे कि धीरे से कमरे का दरवाज़ा खुलता है और एक पुलिसकर्मी चाय और नाश्ते की ट्रे लेकर अंदर आता है | उसे देखते ही कमिश्नर साहिब इशारा करते हैं कि सोफे के सामने वाली टेबल पर रख दो | वह पुलिसकर्मी जैसे ही चाय और नाश्ता टेबल पर रख कर जाता है | कमिश्नर साहिब अपनी कुर्सी से उठते हुए बोले “आइए वहीं बैठ कर बातचीत करते हुए गर्मागर्म चाय पीते हैं” |

चाय पीते हुए कमिश्नर साहिब अक्षित से पिछले दिनों हुई सारी घटनाक्रम के बारे में जानकारी लेते हैं | वह सब कुछ सुनने के बाद बोले “कमाल है | यकीन नहीं होता लेकिन अब तो हकीकत है | चलिए आपको उन ऑफिसर्स से मिलवाते हैं जिन्होंने आपके सपने को हकीकत में तब्दील किया”, कहते हुए वह उठकर खड़े हो जाते हैं | अक्षित भी उठ कर उनके साथ कमरे से बाहर आ जाता है | बाहर आ कर वह अक्षित के कंधे पर हाथ रख कर चलते हुए बोले “आइये अक्षित जी” |

कुछ दूर कोरिडोर में चलने के बाद कमिश्नर साहिब एक कमरे का दरवाजा खोल अक्षित को बोले “आइये”| वह एक बड़ा सा कमरा था जिसके बीचो-बीच एक बड़ी सी गोल मेज लगी हुयी थी जिसके चारों ओर कुर्सियां लगी हुई थीं | उन्हीं पर पांच ऑफिसर्स बैठे थे जोकि कमिश्नर साहिब को देख उठ कर खड़े हो जाते हैं व पुलसिया अंदाज में सेलयूट करते हैं | कमिश्नर साहिब एक अलग पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए अक्षित को अपने पास बैठने का इशारा कर बैठ जाते हैं | उनके आस पास पड़ी कुर्सियों पर वह सब ऑफिसर्स कमिश्नर साहिब व अक्षित के बैठने के बाद बैठ जाते हैं |

“ऑफिसर्स यह अक्षित साहिब हैं | जिनकी वजह से आज दिल्ली पुलिस को सम्मान मिल रहा है कि हमने अपने खुफ़िया तन्त्र की वजह से एक बड़े हादसे को टाल दिया | इनके मना करने के कारण ही हम किसी को नहीं बता पाए की इस सम्मान के असली हकदार यह हैं न की हम” |

अक्षित हाथ जोड़ कर बोला “असल में तो आप सब सराहना के पात्र हैं कि आपने जान हथेली पर रख कर इस कार्यवाही को अंजाम दिया | मैं आप सब का दिल से धन्यवाद करता हूँ कि आपने मुझ पर विश्वास किया और मेरा और मानवता का साथ दिया | आपने इस कार्यवाही को इतने अच्छे ढंग व योजनाबद्ध तरीके से पूरा किया कि वहाँ बैठे किसी भी व्यक्ति को कोई शक तक नहीं हुआ | हम न सिर्फ अपने मकसद में खरे उतरे बल्कि एक बहुत बड़े हादसे को टालने में भी कामयाब हुए”|

“सर बुरा मत मानियेगा | लेकिन पहले-पहल तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ कि कुछ ऐसा भी हो सकता है | लेकिन आपके बारे में सुना हुआ था इसलिए नजरअंदाज भी नहीं कर सकते थे”, कमिश्नर साहिब अपने सब ऑफिसर्स की तरफ देखते हुए बोले | उनकी बात सुन सब ने सिर ‘हाँ’ में हिलाया |

अक्षित हँसते हुए बोला “सर आप तो क्या मेरी पत्नी को भी शुरू-शुरू में विश्वास नहीं हुआ था | जब हुआ तो फिर उसे यह विश्वास नहीं था कि आप लोग मेरी बात पर विश्वास कर किसी तरह की कोई कार्यवाही करेंगे | लेकिन मुझे आप पर अपने से ज्यादा भरोसा था” | यह सुन कर सब ऑफिसर्स एक साथ बोले “आपको हम पर इतना विश्वास कैसे और क्यों था” | अक्षित हँसते हुए बोला “क्योंकि मैं जानता था कि अगर हादसा या यूँ कहें तो होनि ने होने से पहले हमें चेताया है तो इसका मतलब है कि हम उस हादसे को टाल सकते हैं | इसीलिए मैंने अपनी भरसक कोशिश की यह हादसा टल जाए और देखिये आप लोगों ने मुझ पर पूरी तरह से भरोसा न होने के बावजूद साथ दिया” |

यह सुन कर कमिश्नर साहिब अक्षित का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोले “आप जैसा भरोसा अगर इस देश का हर नागरिक हम में दिखाए तो हम सब इस देश को एक नई ऊँचाई पर ले जाने की क्षमता रखते हैं” |

अक्षित भाषण देने के लहजे में बोला “एक आम नागरिक की तरह मेरी पत्नी की सोच होना कि ‘आप लोग आम नागरिक की सहायता नहीं करते’ ठीक था | लेकिन एक बुद्धिजीवी होने के नाते मैं जानता था कि आप अपनी तरफ से हमेशा भरसक प्रयत्न करते हैं | मैं जानता हूँ कि आप इस पुलिस की नौकरी में ऐसे-ऐसे कर्म और कुकर्म से सामना करते हैं कि किसी का भी पत्थर दिल होना लाजमी है | मैं जानता हूँ कि आप को प्यार और रिश्तों का एक ऐसा घिनोना रूप देखने को मिलता है कि किसी का भी रिश्ते-नातों और इस जिन्दगी पर से विश्वास उठ जाना स्वाभाविक है | आप लोग मानवता, समाज और धर्म के लिए अपनी जिन्दगी न्यौछावर उसी प्रकार करते हैं जैसे देश का जवान हमारे देश की सुरक्षा के लिए | लेकिन फिर भी आपको बदले में सिर्फ बुराई ही मिलती है | क्योंकि हम सबको कभी भी संतुष्ट नहीं कर सकते | ऐसे में जिसकी भी उम्मीद पर आप खरे नहीं उतरते वही आपकी बुराई करने लगता है | एक हमारा ही देश है जिसमें सबसे कम पुलिस कर्मीयों को लगभग एक लाख से ज्यादा नागरिकों का ध्यान रखना व शिकायतें सुननी पड़ती हैं | और ड्यूटी का समय कम से कम दस से बारह घंटे और सुविधाएँ व तनख्वाह सबसे कम | मेरी राय में तो आपको भी फ़ौज की तरह से सुविधायें मिलनी चाहिए | इन सब के बावजूद आपका इस समाज, परिवार और नाते-रिश्तो में विश्वास होना आपको हम सब से ऊँचा करता है | मैं तहेदिल आप सबको सेल्यूट करता हूँ” |

कमिश्नर साहिब सहित सब ऑफिसर्स की आँखें नम हो जाती हैं | कुछ देर चुप रहने के बाद कमिश्नर साहिब भरी आवाज में कहते हैं “अक्षित जी आज पहली बार मैंने सही मायनों में पुलिस की नौकरी की परिभाषा सुनी है”, कह कर वह ताली बजाते हैं और उनके साथ सब ऑफिसर्स भी तालियाँ बजा कर कमिश्नर साहिब का समर्थन करते हैं |

“अक्षित साहिब आप हमें यह बताइए कि आपने यह सब किया कैसे ? कैसे आपने एक सपने को डिकोड किया और अपराधियों को ढूंड निकाला | आप कैसे जान पाए कि वह ही अपराधी हैं”, अक्षित को देखते हुए कमिश्नर साहिब बोले |

अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “सर यह विद्या बहुत पुरानी है | इसे हम साधारण भाषा में हिप्नोटीस्म या सम्मोहन कहते हैं | काफी देशों की पुलिस और फ़ौज इसका प्रयोग कर रही है | यहाँ तक की अब तो आतंकवादी भी इसका प्रयोग करने लगे हैं लेकिन फिर भी हमारे देश की पुलिस इसका प्रयोग नहीं करती है | बाकी फ़ौज करती है या नहीं, मुझे मालूम नहीं है” |

“क्या यह सम्भव है कि हम इसके प्रयोग से उस अपराधी के बीते कल में जाकर उससे अन्य अपराधों या अपराधियों की शिनाख्त कर सकते हैं”, हैरान होते हुए कमिश्नर साहिब बोले |

“जी बिलकुल सम्भव है” |

“तो क्या आप हमारी इस मामले में सहायता करेंगे” ?

“मुझे लगता है कि उन्हें सम्मोहित कर के भेजा गया होगा | इस समय उन्हें कुछ भी याद नहीं होगा | अच्छा रहेगा कि आप मेरी मुलाकात उनसे लगभग बीस-पच्चीस दिन के बाद ही करायें” |

“आपको नहीं लगता कि इतने दिनों में कुछ और न हो जाए | और हम इन्तजार ही करते रह जाएँ” |

“देखिये मैं इस बारे में तो कुछ नहीं कह सकता कि कुछ और होगा कि नहीं होगा | लेकिन मेरा तो सिर्फ इतना कहना है कि अभी वह कुछ भी बोलने या बताने की स्थिति में नहीं होंगे | बीस-पचीस दिन में उन्हें काफी कुछ याद आ जाएगा | ऐसी स्थिति में उनसे काफी कुछ उगलवाया जा सकता है बशर्ते की उन्हें कुछ मालूम हो” |

“मतलब”?

“मतलब यह कि यदि उन्हें प्लान के इलावा कुछ मालूम होगा तो ही सम्भव हो पाएगा | आपकी भाषा में वह स्लीपर सेल के ही होंगे | उनका कोई अपराधिक रिकॉर्ड नहीं होगा” |

“जी वो हो हमने पता कर लिया है | उनका कोई अपराधिक रिकॉर्ड नहीं है | आपकी बात सही है तभी तो आप से सहायता चाहते हैं | क्या हम उनसे अभी कुछ भी पता नहीं कर पायेंगे | कोई तो तरीका होगा | हमारे लिए बहुत जरूरी है” |

“देखिए मैं आप से पूरी तरह से सहमत हूँ लेकिन मेरी भी अपनी कुछ सीमायें हैं | मैं उन से बाहर नहीं जा सकता | उन्हें अभी इस परिस्थिति में फिर से सम्मोहित कर उनका पहले का सम्मोहन खत्म तो किया जा सकता है लेकिन इसके बाद हो सकता है कि वह फिर से सामान्य ज़िन्दगी न जी पाएं” |

“ऐसा क्यों” ?

“क्योंकि ज्यादा दिमाग पर जोर देने से हो सकता है कि वह अपनी यादाश्त ही खो दें | यदि वह पहले से अध्यात्म या मैडिटेशन के क्षेत्र में होते या फिर दिमागी और मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षित होते तो कोई फर्क नहीं पड़ता | हमें नहीं मालूम वह दिमागी व मानसिक रूप से कितने मजबूत या प्रशिक्षित हैं” |

“वो आतंकवादी हैं | जब वो इंसानीयत के खिलाफ़ हैं तो हम ही उनके बारे में क्यों सोचें”, सामने बैठे एक पुलिस अफ़सर ने बोला |

“आप यह कह सकते हैं लेकिन दोस्त जैसा कि मैंने अभी कहा कि मेरी अपनी कुछ सीमायें हैं मैं उनसे बाहर नहीं निकल सकता” |

कमिश्नर साहिब अक्षित के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले “अक्षित जी आप वैसा ही करें जैसा आप को ठीक लगता है | हमारा बस आपको सिर्फ इतना ही कहना है कि आप कृपया हमारी इस मामले में सहायता करें | आप तो जानते ही हैं कि ज्यादात्तर मामलों में हम इस प्रकार के अपराधियों तक तो पहुँच जाते हैं लेकिन उनके आकाओं तक नहीं पहुँच पाते” |

“जी मैं आपकी हर सम्भव सहायता करूँगा” |

“जी मेरी आपसे एक और गुजारिश है कि हर साल हम लोग एक सेमीनार का आयोजन करते हैं जिसमें पुलिस अधिकारी के इलावा कानून के विशेषज्ञ व राजीनीतिक पार्टीयों के गणमान्य लोग आते हैं | मेरी आप से प्रार्थना है कि आप भी उस सेमीनार में आ कर अपने विचार रखें | मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि हमारे अधिकारीयों को इसका फायदा अवश्य मिलेगा” |

अक्षित कमिश्नर साहिब का हाथ पकड़ते हुए बोला “मैं सेमिनार में जरूर आना चाहूँगा | बाकी आप की इच्छा है तो मैं अवश्य उन दोनों लड़को से मिल लूँगा | देखते हैं मिलने का क्या नतीजा निकलता है”|

यह सुन कर कमिश्नर साहिब एक ऑफिसर की तरफ़ मुड़ कर बोले “अक्षित साहिब से बात कर इन्हें उन लोगों से मिलवाने का इन्तजाम करें” |

कमिश्नर साहिब के साथ उठ कर चलते हुए अक्षित सभी आफिसर से हाथ मिलाता है और वह दोनों बात करते हुए कमरे से बाहर निकल जाते हैं |

*

अक्षित तिहाड़ जेल के बाहर पहुँच कर अपनी गाड़ी सड़क किनारे लगा कर बाहर निकलता ही है कि वहाँ पुलिस की तीन जीप आकर रूकती हैं | पहली जीप से उतर कर दो पुलिसकर्मी जल्दी से दूसरी जीप का दरवाज़ा बहुत अदब से खोलते हैं | अक्षित जैसे ही दूसरी जीप के पास पहुँचता है | एसीपी स्पेशल क्राइम ब्रांच राकेश कौल बाहर निकल कर अक्षित से हाथ मिलाते हुए अपना परिचय देता है कि वह अक्षित से उस दिन कमिश्नर ऑफिस में मिला था और उस घटना की व्यूहरचना उसी की बनाई हुई थी | अक्षित रमेश कौल को पहचानते हुए बोला ‘जी, जी मैं अब पहचाना | आप ही की तो कमिश्नर साहिब तारीफ़ कर रहे थे” |

रमेश कौल मुस्कुराते हुए बोला “सर मैंने जो भी कुछ किया वह तो मेरा फर्ज था” | अक्षित भी मुस्कुराते बोला “आज जैसे लोग बहुत कम मिलते हैं | कृपया अपनी ऐसी सोच सदा बरकरार रखिएगा” |

“जी”, कहते हुए रमेश कौल बोला “सर अपनी गाड़ी की चाबी दीजिए, महतो आपकी गाड़ी अंदर लगा देगा” |

“अरे कोई बात नहीं, मैं खुद ही लगा लूँगा | आप गेट तो खुलवाइए” |

“सर ये आपको अंदर नहीं जाने देंगे...अ....और सर हमें.....अंदर नहीं जाना है” |

“मतलब”, अक्षित हैरान होते हुए बोला |

राकेश कौल सकपकाते हुए बोला “जी सर, हमें अंदर नहीं जाना है” |

“मुझे तो यहाँ आने को कहा गया था”, हैरान होते हुए अक्षित बोला |

“जी सर, आप सही कह रहे हैं | लेकिन कुछ कारणों से हमें कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ा है | आप चाबी दीजिए और कृपया चल कर मेरी गाड़ी में बैठिए | मैं आपको सब बताता हूँ”, कह कर राकेश कौल गाड़ी की चाबी लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा देता है | अक्षित अनमने भाव से चाबी देकर चुप-चाप राकेश कौल की गाड़ी की तरफ़ बढ़ जाता है | अक्षित को आता देख राकेश कौल का ड्राईवर भाग कर गाड़ी का पिछला दरवाजा खोल कर खड़ा हो जाता है | अक्षित दरवाजे के पास कुछ देर रुक कर देखता है कि राकेश कौल एक पुलिसकर्मी को कुछ समझा कर अक्षित की गाड़ी की चाबी दे देता है | राकेश कौल को आता देख अक्षित गाड़ी में बैठ जाता है | राकेश कौल के आते ही तीनों गाड़ियाँ एक झटके से चल पड़ती हैं |

कुछ देर चुप रहने के बाद राकेश कौल बोले “हमने तीनों आतंकियों को पुलिस हिरासत में लेकर तिहाड़ जेल में भेज दिया था | हमने ऐसा इसलिए भी किया था कि यह जेल ही इस समय उनके लिए सबसे सुरक्षित थी | लेकिन मजबूरी में हमें उन्हें अज्ञात जगह शिफ्ट करना पड़ा” | अक्षित हैरान हो बोला “मतलब”?

“उन दोनों पकड़े गये आतंकियों का नाम मुख्तार और हरमीत है | जब से वह पकड़े गये हैं तब से वह खोये-खोये से रहते थे और पागलों जैसा व्यवहार करते थे | हमने पहले-पहल तो यह सोचा कि यह नाटक कर रहे हैं | लेकिन हमने जब उन पर दबाव बनाना शुरू किया तो कभी वह हँस देते तो कभी वह रोने लगते | हमने परेशान होकर डॉक्टरी जाँच करवाई तो यह पता लगा कि सदमें से इस समय असल में ही उनका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है |

सर उन दो आतंकवादियों के साथ पकड़ा गया व्यक्ति दिल्ली के जमुना-पार इलाके के MP साहिब का ख़ास सहायक निकला जिसका नाम अख्तर था | हमें उम्मीद थी कि वह दोनों लड़के नए हैं और उनका पिछला कोई अपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है इसलिए जल्दी टूट जाएंगे | बस यही सोच कर हमने अख्तर पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बनाया था | लेकिन जब वह उम्मीद टूटी तो हमने अख्तर पर दबाव बनाना शुरू किया ही था कि कल रात उसने जहर खा लिया और उसकी मृत्यु हो गई | अभी हम तफ्तीश कर रहे हैं कि इस सुरक्षित जेल में उसके पास जहर कहाँ से आया और अगर जहर उसके पास पहले से था तो उसने पकड़े जाने पर ही क्यों नहीं खाया | खैर, इस घटना के तुरंत बाद ही हमने उन दोनों को रातो-रात जेल से बाहर एक अनजान जगह पर भेज दिया है” |

“ओह ! यह तो कमाल ही हो गया”, अचानक ही अक्षित बोल उठा |

राकेश कौल ने बताया कि अभी इसके बारे में किसी को कुछ भी मालूम नहीं है | वह बोला कि अभी आप मेरे साथ मेरे ऑफिस में चल रहे हैं | वहाँ उन लड़कों से सम्बन्धित कुछ जानकारियाँ वह अक्षित को उनसे मिलने से पहले देना चाहता है | राकेश कौल ने यह भी बताया कि वह उस डॉक्टर से भी मिलवाना चाहता है जिसने उन लड़को की जाँच की है | इन सब के बाद आप जैसा और जब कहेंगे आपका उनसे मिलने का इंतजाम करवा दिया जाएगा |

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