Anu aur Manu Part-9 books and stories free download online pdf in Hindi

अणु और मनु - भाग-9

“आइये सर, राकेश सर आगे वाले कमरे में बैठे हैं”, पुलिसकर्मी अक्षित को रास्ता दिखाते हुए बोला | कमरे में अंदर आते ही राकेश कौल को देख कर अक्षित बोला “हेलो, कैसे हैं सर” |

राकेश कौल अक्षित को देखते ही अपनी सीट से उठ कर हाथ मिलाते हुए बोला “सर आपने तो सर काफी समय लगा दिया”, कह कर वह अपने साथ बैठे ऑफिसर से बोला “ठीक है, जैसा मैंने समझाया है आप लोग वैसा ही करिए” | राकेश कौल के सामने बैठे सब ऑफिसर उठ कर सलूट करते हैं और कमरे से बाहर निकल जाते हैं | राकेश कौल उनके जाने का इन्तजार करता है | उन सब के जाते ही वह अक्षित को बैठने का इशारा कर खुद भी बैठते हुए बोला “कहिए सर, आपको कुछ कामयाबी मिली” |

अक्षित हँसते हुए बोला “कुछ मिली और कुछ नहीं मिली” |

“हम सब आपका ही इन्तजार कर रहे थे | सर लगभग दो हफ्ते हो गये हैं और आप चार बार उन लोगों से मिल लिए और फिर भी कुछ ही कामयाबी मिली | आप तो जानते ही हैं कि हम इस दौरान चार जगह बदल चुके हैं | साहिब भी पूछ रहे थे”|

“जी मुझे भी कमिशनर साहिब का फ़ोन आ चुका है | वह भी परेशान हैं” |

“जी” |

“सर बात ही कुछ ऐसी है | जिनका भी हाथ इस वारदात के पीछे है वह हम से बहुत ही तेज और शातिर दिमाग हैं”, गंभीर भाव से अक्षित बोला |

“सर आम आदमी सोचता है कि पुलिस कुछ कर नहीं रही है | जबकि हम अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश करते हैं लेकिन...” |

अक्षित हँसते हुए बोला बीच में ही बोला “सर यहीं तो कमी है | आप लोग पुलिस की सोच रखते हैं जबकि वह पुलिस और चोर दोनों की सोच रखते हैं” |

“आप यह क्या कह रहे हैं”, रमेश कौल हैरान होते हुए बोला |

“जी मैं बिलकुल ठीक कह रहा हूँ | आप लोगों को तो हर तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है लेकिन आपके मातहत काम करने वाले कर्मियों को सिर्फ पुलिस का प्रशिक्षण ही दिया जाता है | उनकी सोच आप लोगों से बिलकुल अलग होती है और बुरा मत मानिएगा कि असल में वह लोग ही अपराधियों के बीच काम करते हैं” |

“आप बिलकुल सही कह रहे हैं लेकिन सरकारी तन्त्र ही कुछ इस प्रकार का है” |

“जी, लेकिन अब कुछ बदलाव की आवश्यकता है | खैर मैं अपने कुछ सुझाव कल अपने भाषण में जरूर रखूँगा” |

“सर क्या आप कल आ रहे हैं” |

“जी, कमिश्नर साहिब चाहते हैं कि मैं आप लोगों को कुछ व्यवहारिक अध्यात्म पर दिशा निर्देश दूँ | जबकि मैं ठहरा एक आम नागरिक मैं आप लोगों को क्या दिशा निर्देश दे सकता हूँ लेकिन फिर भी साहिब का आदेश सिर आँखों पर” |

रमेश कौल खुश होते हुए बोला “आप का तहेदिल से स्वागत है” |

“जी धन्यवाद | खैर मैंने चार दिन तक कोशिश की लेकिन कोई ख़ास सफलता हासिल नहीं हो पाई | उनके बारे में तो सब कुछ पता लग गया है लेकिन किसने उन्हें इस कार्य के लिए प्रेरित किया उन्हें कुछ भी याद नहीं है | असल में तो उन्हें पिछले एक-दो महीने का बहुत ही कम याद है | जो भी उन्हें याद है आप उसी के सहारे अपनी जांच-पड़ताल आगे बढ़ा सकते हैं | मेरा विश्वास है कि आप जब बार-बार उन्हें उन जगहों पर ले कर जाएंगे तो धीरे-धीरे उन्हें याद आने लगेगा” |

रमेश कौल मेज पर हाथ रखते हुए आगे झुक कर बोला “सर आप तो कुछ भी कर सकते हैं फिर भी आप पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए” |

“दोस्त आप यदि किसी प्रोफेशनल से यह काम करवाते तो वो शायद कामयाब हो जाता लेकिन मैं वह काम नहीं कर सकता” |

“प्रोफेशनल और आप में क्या फर्क है” |

“दोस्त मेरे लिए वह एक इंसान हैं और उनकी एहमियत उनसे प्राप्त जानकारी से ज्यादा महत्व रखती है | अध्यात्म में हम अपने से ज्यादा दूसरे को महत्व देते हैं | यदि मैं उनकी यादशात पर ज्यादा जोर डालूँगा तो कामयाब हो सकता हूँ लेकिन यह भी खतरा है कि वह सदा के लिए अपनी यादशात ही खो बैठें | मैंने उनकी यादशात को ऐसी जगह पहुंचा दिया है कि उन्हें कुछ-कुछ याद आने लगा है | अब आप को उनसे प्यार से बर्ताव करना है ताकि वह अपनी यादशात पर बिना जोर डाले धीरे-धीरे सब कुछ बता दें” |

“सर आप भी कमाल करते हैं | हम उनसे प्यार से बर्ताव करें | आप ही सोचिए ऐसे लोग यदि उस दिन कामयाब हो जाते तो शायद आप समेत चार सौ या पांच सौ लोग आज हमारे बीच न होते” |

“दोस्त वह भी तो जिन्दा न होते | कामयाब वह नहीं उन्हें भेजने वाले होते | लेकिन ऐसा हुआ तो नहीं | वह निर्दोष हैं क्योंकि उन्हें सिर्फ मोहरा बनाया गया है | मैं मानता हूँ कि वह गलत थे उनकी आदतें और सोच गलत थी और सिर्फ इसीलिए वह मोहरा बने | इसकी सजा उन्हें भुगतनी पड़ेगी लेकिन हमारा मकसद उन्हें पकड़ना हैं जो इंसानियत के दुश्मन हैं और ऐसे मासूमों के सहारे दहशत फैला रहे हैं”|

रमेश कौल गुस्से में बोला “आप उन्हें मासूम कैसे कह सकते हैं” |

अक्षित मुस्कुराते हुए शांत भाव से बोला “मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने उनसे इस बारे में सारी जानकारी निकाल ली है |

यह सुन कर रमेश कौल आश्स्वस्त होते हुए बोला “उनके बारे में क्या पता लगा” |

“वह अलग-अलग समय में जो भी बता पाए या जो नहीं भी बता पाए उसे जब मैंने सिलसिलेवार जोड़ा तो यही समझ पाया कि वह अपनी गलत सोच और आदतों की वजह से ही आज यहाँ हैं” |

“ठीक है सर मैं इंतजाम करता हूँ कि आपके द्वारा दी गई जानकारी को रिकॉर्ड कर लिया जाए | ताकि हम उस पर भविष्य में कार्यवाही कर सकें”, कह कर राकेश कौल कमरे से बाहर चला जाता है |

*

राकेश कौल अक्षित को एक कमरे में ले जाता है जहाँ पहले से ही दो पुलिसकर्मी मौजूद थे | वह दोनों राकेश कौल व अक्षित को कमरे में अंदर आते देख खड़े हो जाते हैं | राकेश कौल अक्षित को बैठने का इशारा कर बैठ जाता है | राकेश कौल दोनों पुलिसकर्मियों को देख कर बोला “सब इंतजाम हो गया | शुरू करें” | वह दोनों ‘हाँ’ में सिर हिला देते हैं | उनका इशारा पा कर राकेश कौल बोला “जी सर शुरू करें” |

अक्षित अपनी डायरी खोलते हुए बोला “कौल साहिब मैं पहले आपको संक्षेप में उन दोनों के बारे में जानकारी दे देता हूँ और फिर अधिकारिक रूप से रिकॉर्ड करवा देता हूँ”|

“जी ठीक है”, बोल कर रमेश कौल अपने कर्मियों को रुकने का इशारा करता है |

अक्षित अपनी डायरी कुछ देर पढ़ने के बाद बोला “मुख्तार अहमद कश्मीर के कुपवाड़ा का जबकि हरमीत जम्मु का रहने वाला है | मुख्तार के पिता की करियाने की दुकान कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में थी | सब कुछ अच्छा चल रहा था | मुख्तार भी अपने पिता के साथ दुकान पर हाथ बटाता था | पिता के काफी चाहने के बाद भी मुख्तार ने दसवीं के बाद आगे पढ़ाई नहीं की | आज से लगभग दो साल पहले अलगाववादी तत्वों और फौज़ की आपसी गोलाबारी में उसके पिता की दुकान के साथ-साथ बाजार की काफी दुकानों को नुक्सान पहुंचा था | उस हादसे के बाद बहुत से अलगाववादी गुटों ने उसके पिता से सम्पर्क किया कि वह दुकान का सारा हर्जाना देने को तैयार हैं लेकिन इसके बदले वे मुख्तार को उन्हें सौंप दें | उनका कहना था कि वह मुख्तार का बाल भी बांका नहीं होने देंगे | उनकी ज़िन्दगी में इससे अच्छा मौका फिर नहीं आएगा | उस बाज़ार में कुछ एक को छोड़ कर बाकी सब ने कुपवाड़ा से पलायन कर लिया था | जब मुख्तार के परिवार को रोटी के भी लाले पड़ने लगे तो वह भी एक रात चुपचाप कुपवाड़ा से जम्मु आ गए |

मुख्तार के पिता परिवार समेत अपने बड़े भाई के पास आ गए | मुख्तार के ताऊ जी का जम्मू के बस अड्डे के पास अच्छा खासा चलता हुआ रेस्टोरेंट था | मुख्तार के परिवार की रहने व खाने की मुश्किल तो हल हो गई थी लेकिन वह दोनों उस रेस्टोरेंट में एक कर्मचारी की तरह ही काम करते थे | यह बात मुख्तार के पिता को तो परेशान नहीं करती थी क्योंकि उनका कहना था कि भाई ने इतना ही कर दिया बहुत है | वह कहते थे कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा लेकिन मुख्तार को यह बिलकुल भी नहीं भाता था | उसे तो बस एक ही धुन सवार थी कि वह कैसे जल्द से जल्द अमीर बन जाए | धीरे-धीरे उसकी दोस्ती रेस्टोरेंट के पास ही पंक्चर की दुकान पर अपने पिता के साथ काम करने वाले हरमीत से हो गई | हरमीत भी दसवीं क्लास से आगे नहीं पढ़ा था और उसके भी सपने मुख़्तार की तरह ही जल्द से जल्द अमीर बनने के थे |

एक दिन हरमीत की दुकान पर उसके बचपन का दोस्त सुरजीत अपनी बड़ी गाड़ी में पंक्चर लगवाने आया तो हरमीत उसके ठाठ-बाठ देख कर दंग रह गया | पंक्चर लगवाने के बाद सुरजीत उसकी ललचाई नजरों को पढ़ते हुए बोला ‘भाई जिस दिन भी तेरा मेरे जैसे बनने का इरादा हो तो बिना शरमाये मेरे पास चले आना’, कह कर उसने अपनी जेब से कार्ड निकाल कर हरमीत को थमा दिया | हरमीत की मुलाकात आठ साल के बाद सुरजीत से हो रही थी | इतने साल बाद भी उसका प्यार देख हरमीत बोला ‘भाई कौन अमीर नहीं बनना चाहता है लेकिन बस...’, कह कर लम्बी साँस लेकर चुप कर जाता है | सुरजीत उसकी भावनाओं को समझते हुए बोला ‘भाई मैं बहुत कीमती दवाइयों का काम करता हूँ इसलिए मुझे हमेशा भरोसे के आदमीयों की आवश्यकता रहती है | जब भी पैसा कमाने और मेरी तरह बड़ा आदमी बनने की इच्छा हो तो बस एक फ़ोन करना और चले आना मेरे पास’, कह कर वह गाड़ी स्टार्ट कर चला जाता है |

अगले कई दिन तक हरमीत के कानों में सुरजीत की आवाज गूंजती रहती है | वह हर रोज उसका दिया कार्ड निकालता पढ़ता और रख लेता | लेकिन सुरजीत को फ़ोन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था | बस इसी दुविधा में उसने एक दिन यह बात जब अख्तर को बताई तो वह खुश होते हुए बोला ‘भाई इन्तजार किसका कर रहा है | ऐसे मौके बार-बार नहीं आते और तेरे घर तो मौका खुद चल कर आया है | और तू अब भी बैठा सोच रहा है | चल मैं भी चलता हूँ तेरे साथ | हो सकता है तेरे बहाने मुझे भी कोई काम मिल जाए’ |

अमीर बनने का सपना लिए हरमीत और मुख्तार एक दिन सुरजीत के पास पहुँच गए | सुरजीत ने बहुत गर्मजोशी से उन दोनों का स्वागत किया और उन्हें बताया कि वह दोनों कुछ समय साथ-साथ काम करें | जब दोनों को सारा काम समझ आ जाएगा तो अलग-अलग भी कर सकते हैं | सुरजीत ने उन्हें एक नई मोटरसाइकिल देने का वादा करते हुए कहा कि वह उन्हें एक पैकट दवा ग्राहक तक पहुँचाने के पांच सौ रूपये देगा | सुरजीत ने यह भी कहा कि वह चाहें तो एक में दिन सात-आठ पैकट दे सकते हैं | हरमीत और अख्तर महीने का हिसाब लगा कर सकते में आ गए और उसी समय बिना सोचे समझे हाँ कर बैठे |

*

वह दोनों एक ही मोटरसाइकिल पर सवार हो सुबह निकल जाते | दिन भर में वह दोनों घूमते-फिरते, मौज-मस्ती करते हुए रात तक दस से बारह पैकेट पहुंचा ही देते थे | एक महीने बाद जब उन्हें डेढ़ लाख रूपए मिले तो उनकी व उनके परिवार वालों की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा |

हँसी-ख़ुशी काम करते-करते कब छः महीने बीत गये पता ही नहीं लगा | इन छः महीनों में दोनों के परिवार के हलात में जमीन-आसमान का फर्क पड़ गया था | वह अपने परिवार की ख़ुशी देख कर फूले न समाते थे | इधर हरमीत के पिता ने पंक्चर की दुकान के साथ-साथ गाड़ियों के नए टायर का काम भी शुरू कर दिया था | वह अब आराम से दुकान पर बैठते थे और दो लड़के पंक्चर व दूसरे काम करते | उधर अख्तर के पिता ने बराबरी का हिस्सा अपने बड़े भाई को देकर रेस्टोरेंट में मालिक की तरह काम शुरू कर दिया था |

सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि एक दिन जब वे एक ग्राहक को दवाई देने गये तो उस समय वह नशे में था | उस से बातचीत करते हुए उन्हें पता लगा कि वह दवाइयों के बहाने ड्रग्स का काला धंधा कर रहे हैं | यह सुन कर उनके हाथ पैर फूल जाते हैं | वह चुपचाप वहाँ से निकल तो आते हैं लेकिन उनके कानों में उस नशेड़ी की बातें गूंजती रहती हैं | पहले-पहल तो उन्हें उस नशेड़ी की बातों पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब उन्होंने कई ग्राहकों से इधर-उधर की बात करते हुए जब इस बारे में बात की तो उन्हें समझ में आया कि वह दोनों सचमुच में इस गौरख धंधे में फंस चुके हैं | काफी सोचने-समझने के बाद भी वह फ़ैसला ही नहीं कर पा रहे थे कि अब करें तो क्या करें ? उन्होंने सुना हुआ था और फिल्मों में देखा भी था कि इस धंधे में आने का रास्ता तो होता है लेकिन निकलने का नहीं होता |

काफी दिनों की जद्दोजहद के बाद आखिर अच्छाई की जीत हुई और वह इस फैसले पर पहुँचे कि चाहे जो भी हो वह अब सुरजीत से बात कर यह धंधा छोड़ देंगे | एक दिन मौका पा कर जब उन्होंने इस बारे में सुरजीत से बात की तो वह उनकी बात सुन कर हँसते हुए बोला ‘अरे बेवकूफों ये सोचो की कौन तुम्हें एक पेकेट दवाई पहुँचाने का पांच सौ रुपये देगा | तुम अपनी बेवकूफी और पैसे की चमक के कारण इसमें फंसे हो’ | सुरजीत की बात सुन वह दोनों आग-बबूला हो गये और दोनों ने उसे काफ़ी भला-बुरा कहा और यह भी कहा कि उसने उनकी नादानी का फायदा उठाया है | लेकिन फिर भी सुरजीत एक अच्छे दोस्त की तरह हँसता ही रहा | आखिर में दोनों ने अपना फ़ैसला सुना दिया कि वह दोनों आज से यह गैरकानूनी काम नहीं करेंगे | यह सुन कर सुरजीत कुछ देर तो चुप रहा लेकिन फिर वह गंभीर भाव से बोला कि अगर तुम अच्छा आदमी बनना चाहते हो तो मैं तुम्हें एक मौका जरूर दूंगा | तुम जानते ही होगे कि इस धंधे के क्या नियम कानून होते हैं लेकिन फिर भी मेरी तरफ से तुम दोनों आजाद हो | ज़िन्दगी में कभी इस ओर आने का दिल करे तो जरूर आना लेकिन ये सोच कर आना कि दुबारा बाहर निकलने मौका नहीं मिलेगा |

हरमीत और मुख्तार अपने घरवालों को परेशान और दुखी नहीं देखना चाहते थे इसलिए रोज की तरह ही सुबह घर से निकल जाते और सारा दिन नौकरी की तलाश में घूमते | वह ज्यादा पढ़े-लिखे तो थे नहीं इसलिए कौन उन्हें इतने पैसे देता | दर-दर की ठोकर खा-खा कर कुछ ही दिन में उनकी हिम्मत जवाब दे गयी | काफी सोचने-समझने के बाद उन्होंने जब अपने घरवालों को यह बोला कि अब तो घर और बिज़नस दोनों के हालात ठीक हो गये हैं तो फिर वह किसी के पास क्यों नौकरी करें | यह सुन कर दोनों के ही परिवार वालों ने उनकी बात को सिरे से नकार दिया | उनके परिवार वालों का कहना था कि यहाँ एक आदमी की ही जरूरत है दूसरे के आने से कमाई बढ़ने की बजाय बंट जाएगी इसलिए फिलहाल तुम नौकरी ही करो | जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तो वह खुद ही बोल देंगे |

परिवार का रुख और पैसे की चमक आखिर उन्हें सुरजीत के पास वापिस ले ही आई | सुरजीत ने भी एक अच्छे दोस्त की तरह उनका स्वागत किया और उन्हें फिर से धंधे पर लगा लिया | बस यहीं से वह इस दलदल में फंसते ही चले गए | जैसे-जैसे वह आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे-वैसे उनकी कमाई बढ़ती जा रही थी | एक दो बार वह पुलिस की गिरफ्त में भी आए लेकिन सुरजीत ने उन्हें बिना किसी हील-हुज्जत के छुड़वा लिया | यह देख कर उनका भी जिगरा खुल गया कि सुरजीत उनके लिए कुछ भी कर सकता है|

धीरे-धीरे उनका विश्वास सुरजीत पर बढ़ने लगा | इसी का फायदा उठा कर एक दिन सुरजीत ने उन्हें दिल्ली के एक जानकार का पता देते हुए कहा कि अगर उन्होंने उसे खुश कर दिया वह उन्हें किसी न किसी जगह का बॉस बना देगा | बस एक बार फिर से वह दोनों और बड़ा सपना संजो कर दिल्ली आ गये | यहाँ काम करते हुए उन्हें लगा कि अब जल्द ही वह बॉस बन जाएंगे | क्योंकि अब उन्हें ग्राहकों को माल देने नहीं जाना होता था | यहाँ पर उन्हें उन लड़कों को माल देना होता था जोकि बड़े-बड़े कॉलेजिस में पढ़ते थे या होटल्स में काम करते थे | वह लड़के ही आगे बड़े-बड़े होटलों व रेव पार्टियों में ड्रग्स सप्लाई करते थे | उनकी यहाँ पर कई लड़कों से अच्छी खासी दोस्ती भी हो गई थी”, कह कर कुछ देर के लिए अक्षित चुप कर जाता है | जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोलता है तो रमेश कौल हैरानी से बोल उठता है “क्या हुआ अक्षित सर, कहाँ खो गए” |

अक्षित को गौरव के दोस्त मोहित का चेहरा दिखता है | उसे यह एहसास होता है कि जरूर मोहित भी कहीं न कहीं इसमें भागीदार है | लेकिन अगले ही पल रमेश कौल की आवाज सुन अक्षित सकपकाते हुए बोला “कुछ नहीं मैं कॉलेज के लड़कों के बारे में सोच रहा था कि आज के नवयुवक कैसे पैसे की चमक और ड्रग्स की लत के कारण बहक जाते हैं | खैर कुछ महीने यहाँ काम करने के बाद उन दोनों को यह यकीन दिलाया जाता है कि अब वह खुद धंधा करने के काबिल हो गये हैं | इसलिए अब उन्हें खुद ही पंजाब बॉर्डर से सप्लाई लानी होगी | सप्लाई लेने के बहाने उन्हें पंजाब भेजा जाता है | वह दिल्ली से लुधियाना गये और फिर कुछ दिन लुधियाना रहने के बाद गाड़ी में बैठ कर सात-आठ घंटे का सफर कर किसी वीरानी जगह गये जहाँ दूर-दूर तक सिर्फ खेत ही खेत थे | यहाँ से आगे जेल तक के सफर के बारे में उन्हें कुछ ख़ास याद नहीं है”, कह कर अक्षित रमेश कौल को देखते हुए बोला “आगे उन्हें जो कुछ भी टुटा-फूटा याद है | वह सब मैं रिकॉर्ड करवा दूंगा” |

रमेश कौल हैरान होते हुए बोला “यह क्या बात हुई | जब वह यहाँ तक अक्षर-अक्षर ठीक बता पा रहे हैं तो आगे क्यों नहीं ....” |

अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “ऐसा लगता है कि यहाँ से आगे की याद उनके दिमाग से हटा दी गई है | जैसे आप कंप्यूटर से डाटा डिलीट कर देते हैं वैसे ही इंसानी दिमाग से भी किया जा सकता है” |

रमेश कौल हैरान होते हुए बोला “कमाल है | मैं आज पहली बार ऐसा सुन रहा हूँ | चलिए अगर आपकी बात सही है तो अब रास्ता भी तो बताइए” |

अक्षित गंभीर भाव से बोला “जैसे कंप्यूटर एक्सपर्ट डिलीट डाटा को भी रिकवर कर लेते हैं वैसे ही हम भी कर सकते हैं लेकिन इस में समय लगता है” |

“सर समय कितना लगेगा और क्या उनको सब याद आ जाएगा” |

“जी बिलकुल | मैंने उन्हें जिस मुकाम तक पहुँचा दिया है वहाँ से आगे अगर आप लोग दिल से मेहनत करेंगे तो अवश्य ही कामयाबी मिल जाएगी” |

“मतलब ! हम मेहनत करेंगे | क्या आप हमारा साथ नहीं देंगे” |

“सर अब मेरी जरूरत नहीं है | आगे का काम आप लोग खुद कर सकते हैं” |

रमेश कौल हैरान होते हुए बोला “वह कैसे”?

“उन्होंने जो भी अभी तक बताया है वह तो मैंने आपको सुना ही दिया है | आगे की बातों को मैंने जब सिलसिलेवार पिरोया तो यह समझ में आया कि वह दोनों दिल्ली में जिस जगह रहे और जहाँ से उन्होंने ड्रग्स सप्लाई का काम किया वह मेरे हिसाब से जमुना पार स्पोर्टस काम्प्लेक्स के आसपास की कोई कोठी है | वह कभी-कभी ड्रग्स सप्लाई का काम करने वाले लड़कों के कॉलेज व अन्य जगह भी गये थे | उनसे बात कर मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ और साउथ कैंपस के दो-तीन कॉलेज में आये थे | और दिल्ली की अन्य जगह जैसे कनाट-प्लेस, ग्रेटर कैलाश और गुरुग्राम में भी गये थे” |

राकेश कौल हैरान होते हुए बोला “आप कैसे इस नतीजे पर पहुँचे वे इन ठिकानों पर ही गये थे” |

“इन जगहों के बारे में उन्होंने ने ही बताया है | हाँ यह बात जरूर है कि वह अब इन जगहों के नाम तो नहीं बता पा रहे थे लेकिन जो भी ब्यौरा उन्होंने बताया | उसी से अंदाजा लगता है कि वह यही स्थान हो सकते हैं | मैंने जब उन्हें इन जगहों के नाम बताये तो वह पूरी तरह से कन्फर्म तो नहीं कर पाए लेकिन न भी नहीं कह पाए | जिस से लगभग यही अंदाजा होता है कि यह वही जगह हैं” |

“लेकिन यह आपका अंदाजा ही तो है” |

“जी नहीं | आप यह मानकर चलिए कि वह जगह ही हैं | क्योंकि जब मैंने उन्हें चेक करने के लिए और नाम बताये तो उन दोनों ने छूटते ही न बोल.....” |

अचानक राकेश कौल अपनी जगह से उठ कर खड़े हो गये और अपने सिर पर हाथ मारते हुए बीच में ही जोर से बोले “अरे! ओह! आप सही कह रहे हैं | वो अख्तर भी तो वहीं-कहीं स्पोर्टस काम्प्लेक्स के पास रहता था | अब समझ में आ रहा है | वह इनके साथ पूरी तरह से मिला हुआ था | जी अक्षित सर आप सही कह रहे हैं | वह जगहें यही होंगी” | अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “कौल साहिब बैठिये और इस अनसुलझी पहेली का हल भी सुन लीजिये | आप इन्हें अगर एक दो बार जमुना पार ले जाएंगे तो यह अवश्य ही जगह पहचान लेंगे | ऐसे ही दिल्ली की अन्य जगह या कॉलेज के लिए भी किया जा सकता है | हाँ एक बात और | एक बार भी ये लोग जगह पहचान गये तो धीरे-धीरे इनकी यादाश्त पूरी तरह से वापिस आ जाएगी” |

रमेश कौल एक लम्बी साँस लेते हुए बोले “जी अब बात कुछ समझ में आई”|

अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “इनकी द्वारा बताई गई जानकारी तो मैं पूरी की पूरी रिकॉर्ड करवा ही दूंगा | साथ ही इनके द्वारा बताये गये लड़कों की डिटेल ब्यौरा भी मैं रिकॉर्ड करवा दूंगा” | रमेश कौल मुस्कुराते हुए बोला “सर अब आपने राज खोला | अब तो लग रहा है कि शायद हम कामयाब हो जाएँ | सर.. अब यह भी बता दीजिये कि इतनी जानकारी आप कैसे निकाल पाए” | “मैंने जो कुछ भी जानकारी आपको दी है वह मैंने उन्हें हिप्नोटाइज कर ली है | असल में तो उन्हें कुछ भी याद नहीं है | लेकिन अब मैंने उन्हें यादाश्त के उस मुकाम पर पहुँचा दिया है जहाँ से धीरे-धीरे उन्हें सब कुछ याद आने लगेगा” |

“जी अवश्य | यह जानकारी तो हमारे लिए बहुत है | मैं आपका बहुत ही आभारी हूँ कि आपने अपना कीमती समय हमें दिया” |

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है | मैंने जो कुछ भी किया वह अपने लिए और इस देश के अमन चैन के लिए किया है” |

“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद | मैं चलता हूँ | आप कृपया कर यह सारी जानकारी रिकॉर्ड करवा दीजिए”, कह कर रमेश कौल अक्षित से हाथ मिला कर कमरे से बाहर चला जाता है | अक्षित वहाँ बैठे कर्मी को देख कर हँसते हुए बोला “आप लोग तैयार हैं शुरू करें” | “जी सर”, कह कर दोनों पुलिस कर्मी अक्षित के सामने आकर बैठ जाते हैं|

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