Anu aur Manu Part-10 books and stories free download online pdf in Hindi

अणु और मनु - भाग-10

अक्षित तालियों के बीच मंच पर लगे माइक को ठीक करते हुए बोला “दोस्तों आपने काफी रोचक विषयों पर यहाँ आये प्रसिद्ध विचारकों से उनके विचार सुनें | मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप उन विचारों को आत्मसात कर अपने जीवन में और बेहतर कार्यक्षमता से कार्य कर पायेंगे | मैं आदरणीय कमिश्नर साहिब का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने ऐसे प्रसिद्ध विचारकों के बीच मुझे भी अपने विचार रखने का मौका दिया है | दोस्तों मैं आज आपको आपसे अवगत कराने और क़ानून व राजनीति के विशेषज्ञयों से कानून और सोच में बदलाव की माँग करने आया हूँ |

मैं मानता हूँ कि आप लोग हर समय तनावग्रस्त रहते हैं | सड़क के किनारे खड़े दो पुलिस वाले यदि आपस में बात या हँसी मज़ाक कर रहे हों तो वहाँ से गुजरने वाला हर नागरिक उन्हें बहुत हैरानी से देखता है | उनमें से कुछ तो यह देख कर सोचते हुए आगे बढ़ जाते हैं कि यह है हमारी पुलिस जो आपस में ही मस्त हैं | ऐसा सोचने या कहने वाले जब भी मुझे मिलते हैं तो मैं उन्हें हमेशा यही कहता हूँ कि इतनी तनावपूर्ण नौकरी के बावजूद यदि यह हँस रहे हैं तो जरूर यह दिल के अच्छे हैं | और कुछ यह देख कर हैरान होते हैं कि पुलिस वाले भी हँसते हैं और उनमें मैं भी शामिल.......”, हँसी और तालियो की करतल ध्वनि सुन अक्षित कुछ समय के लिए चुप कर जाता है |

करतल ध्वनि मध्यम होने पर अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “दोस्तों आज मुझे विश्वास हो गया कि हम गलत समझते हैं कि आप हँसते नहीं है | सच में मुझे आपको हँसता देख बहुत ही ख़ुशी का अनुभव हो रहा है | मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको हमेशा खुश रखे और आप सदा इसी तरह हँसते रहें | दोस्तों असली खुशहाली क्या है? असली ख़ुशहाली है जब कोई युद्ध न हो, कोई अपराध न हो, हमें न फौज़ और न ही पुलिस की जरूरत हो | आप जानते ही होंगे ऐसा न कभी हुआ और न ही कभी हो पाएगा | अपराध, युद्ध और सेना त्रेता युग में भी थी और द्वापर युग में भी, तो हमारा युग कैसे अछूता रह सकता है | हम त्रेता और द्वापर युग को कैसे अच्छा कहते हैं | उन युगों में भी वह सब था जो आज हो रहा है | तब भी ईश्वर ने अपने दूत भेजे थे और आज भी वह भेज रहा है | फर्क सिर्फ इतना है कि हम इस युग में अपने चरम पर हैं | हम पहले से कहीं ज्यादा भ्रमित हैं और दिन प्रति दिन और होते ही जा रहे हैं |

दोस्तों आपने कभी सोचा कि हम इस युग में ज्यादा भ्रमित क्यों होते जा रहे हैं ? क्योंकि आज हम ने धर्म को मानवता से ज्यादा एहमियत दे दी है | हम धर्म के नाम पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं | हम अपने-अपने धर्म को मानवता से ज्यादा उच्च स्थान देने लगे हैं | हमने धर्म के नाम पर मंदिर बनाए उसमें अपने देवी-देवता स्थापित किये | धार्मिक ग्रन्थ रखे और उन्हें पूजने लगे | यह करते-करते कब हम और हमारी सोच पत्थर की तरह हो गई पता ही नहीं लगा | आज हम उस पत्थर के मंदिर या भगवान् या कागच के ग्रन्थ के लिए सैकड़ो का खून बहाने को तैयार हो जाते हैं | हमें अपने भगवान् का अपमान सहन नहीं होता है और उसका बदला लेने के लिए हम कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं | बस यहीं से आतंकवाद का जन्म होता है | त्रेता और द्वापर युग में भी कितने ही युद्ध हुए और आज भी हो रहे हैं | आप ही बताइए कि सूर्य का कोई अपमान कर सकता है | अगर कोई करता भी है तो सूर्य को क्या फर्क पड़ता है | क्या सूर्य उस को अपने प्रकाश से महरूम कर देता है | क्या सूर्य उससे बदला लेता है वह क्यों नहीं लेता कभी आपने सोचा ? वह इसलिए नहीं लेता क्योंकि सूर्य से बदला लेते हुए उसने जो भी गलत कर्म किये | उन गलत कर्मों या क्रियाओं की प्रतिक्रिया जब उसे मिलेगी वह अपने आप में ही बदला होगा| यह क्रिया और प्रतिक्रिया केवल विज्ञान का ही नियम नहीं है यह केवल प्रकृति का ही नियम नहीं है यह श्री कृष्ण का कर्मयोग भी नहीं है | ये तो स्वयं ईश्वर का बनाया इस पूरे ब्रह्माण्ड का सिद्धांत है | अब आप ही सोचिए हम क्यों उस सर्वशक्तिमान ईश्वर के अपमान का बदला लेने निकल पड़ते हैं | उस सर्वशक्तिमान का अपमान भला कोई कर ही कैसे सकता है |

ईश्वर सिर्फ हमारा नहीं सबका है | हमने उसे हर धर्म का अलग-अलग भगवान् बना कर बाँट दिया है | हमने ही अपने धर्म की वेशभूषा बनाई | हमने ही अपनी सोच के अनुसार अपने शरीर का साज श्रृंगार किया | आज हम ईश्वरीय ज्ञान से नहीं धार्मिक ज्ञान और धर्म के अनुसार किये शरीरिक श्रृंगार और वेशभूषा से पहचाने जाते हैं | आप कहेंगे कि ईश्वरीय और धार्मिक ज्ञान एक ही बात तो है | मैं कहता हूँ दोनों अलग-अलग हैं क्योंकि आपका धार्मिक ज्ञान यदि आपको हिंसा की ओर या धार्मिक कट्टर पन्थ की ओर लेकर जाता है तो वह ईश्वरीय ज्ञान नहीं है | ईश्वरीय ज्ञान मानवता से शुरू होता है और उसी पर खत्म होता है |

दोस्तों क्या आप जानते हैं कि ईश्वर का क्या धर्म है? क्या किसी ने ईश्वर के दर्शन किये हैं ? वह कैसा दिखता है और कौन से कपड़े पहनता है ? वह कौन सी बोली बोलता है ? क्या किसी को पता है ? नहीं, लेकिन फिर भी हम उसके नाम पर आतंक फैला रहे हैं | इंसान उसे इंसान की तरह देखता है | हर धर्म वाला उसे अपने धर्म के हिसाब से पहनावा पहने देखता है | जानवर उसे जानवर की तरह और प्रकृति उसे प्रकृति की तरह देखती है लेकिन फिर भी हम नहीं समझ रहे हैं…..:, अक्षित अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाता है कि हॉल करतल ध्वनि से गूंज उठता है |

करतल ध्वनि की आवाज धीरे-धीरे तेज होने लगती है | यह देख आक्षित कुछ समय के लिए चुप कर जाता है | फिर वह हाथ से इशारा कर सबको शांत होने को कहता है | धीरे-धीरे करतल ध्वनि शांत हो जाती है | अक्षित अपनी साँस और अपनी आवाज पर काबू पाते हुए धीमे स्वर से बोला “दोस्तों मैंने यह सब इसलिए बोला कि आज हम रोग, गरीबी से लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं | आज हम अपने आप और मानवता से लड़ रहे हैं | और ऐसा करते हुए हम एक बार फिर से धर्म युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं | और हमारे धर्म ग्रन्थ और इतिहास इसके गवाह हैं कि जब-जब भी धर्म की अधर्म से लड़ाई हुई तो चाहे धर्म की जीत हुई हो लेकिन उस भूमि ने बहुत कुछ नहीं सब कुछ खोया है | धर्म जीता जरूर है लेकिन जीत कर भी वह हारा है | इसलिए हमें हर कोशिश करनी चाहिए कि हम इस युद्ध की ओर न बढ़े |

आज हर इंसान समाज से, देश से और कानून से परेशान है | असल में वह हर चीज और हर बात से परेशान है | कुछ है तो परेशान है और यदि नहीं है तो परेशान है | क्यों है यह सब क्योंकि वह यह जानते हुए भी अनजान है कि असल में वह अपने आप से परेशान है | इसी परेशानी को दूर करने और अपने आप को सकून देने के लिए जब जिसको जहाँ मौका मिलता है वह अपराध करने निकल पड़ता है | चाहे वह अपराध कानून की नजर में अपराध है या नहीं है | यह बचपन से शुरू हो जाता है जैसे झूठ बोलना, अपने को सही साबित करना, ईर्ष्या द्वेष की भावना रखना, लोभ-मोह, बिना बात के दूसरे पर रुआब झाड़ना आदि-आदि | यही बातें शुरू-शुरू में हम नजरअंदाज करते हैं जो बड़े होते-होते तक कई बार घर कर जाती हैं | कुछ इन पर काबू पा लेते हैं या हिम्मत नहीं कर पाते हैं लेकिन कुछ आगे बढ़ जाते हैं | जो आगे बढ़ जाते हैं उनकी अपराध-जगत की यात्रा शुरू हो जाती है | छोटे-छोटे अपराध कई बार बड़े-बड़े अपराध का रूप ले-लेते हैं | फिर हम परेशान होते हैं कि आज अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं | असल में हम इन छोटी-छोटी गलतियों को बचपन में ही रोक दें तो यह अपराध या बड़े अपराध का रूप ही न लें |

आतंकवाद भी एक ऐसा ही अपराध है | उसके शुरू होने का कारण धार्मिक कट्टरपन जरूर है लेकिन शुरुआत एक आम अपराध की तरह ही होता है | आपने देखा-सुना होगा कि कई बार आतंकी ने पहले कोई अपराध नहीं किया होता है | लेकिन फिर भी वह भटका हुआ जरूर होता है | उसकी भटकन का ही अपराध-जगत के लोग फायदा उठाते हैं | कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने आप से परेशान होते हैं या फिर वह इस समाज या दूसरे धर्म से परेशान या सताये हुए होते हैं | इनमें एक बात सामान्य होती है और वह है कि भटकता वही है जिसके पास भटकने का कोई न कोई कारण होता है |

आज हमारी शिक्षा प्रणाली के पास हर तरह की शिक्षा देने के लिए किताबें या विषय हैं और उन्हीं पर आधारित परीक्षा भी होती है | क्या कोई किताब या विषय या परीक्षा है जोकि हमें इंसान कैसे बना जाए या फिर हमारा आचरण कैसा हो सिखाती हो | इसके लिए हमारी शिक्षा प्रणाली में सिर्फ कहानियां या फिर धार्मिक ग्रन्थों से ली गई कहानियां ही होती है | आज लगभग हर विषय पर व्यवहारिक परीक्षा होती है लेकिन व्यवहारिक आचरण या मानवता पर कोई व्यवहारिक परीक्षा क्यों नहीं होती | क्योंकि यह सब हमने धर्म, समाज और परिवार पर छोड़ दिया है | अब वह बच्चा किस धर्म, समाज और परिवार में पला-बड़ा होता है | उस माहौल या परिस्थिति पर निर्भर करता है | ऐसे में आप समाज या लोगों से जो चाहते हैं क्या वह कभी मिल सकता है | न मिला है और न कभी मिल सकता है |

आज हर देश हर राज्य की जेलें अपराधियों से भरी हुई हैं और न सिर्फ भरी हुई हैं बल्कि अपनी कैपेसिटी से दुगुनी भरी हैं | हम ऐसे समय में पहुँच चुके हैं जहाँ न सिर्फ हम अपराध से बल्कि अपराधियों को इस समाज से अलग रखने के लिए भी परेशान होने लगे हैं | आपने कभी सोचा है कि आखिर हमें अपराधियों को समाज से अलग रखने की आवश्यकता क्यों है और यह परम्परा कब और क्यों शुरू हुई|

आज पुलिस, थाना, अदालत या वकील और यहाँ तक समाज या कानून, अपराध होने के इन्तेजार में हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं | जैसे ट्रेफिक पुलिस के कर्मी कोने में छुपे खड़े रहते हैं कि कोई ट्रेफिक कानून तोड़े तो हम उसे धर दबोचें | वह चालान काटने और अपराधी को पकड़ने में व्यस्त रहते हैं | जबकि ट्रैफिक पुलिस के कर्मियों को शिक्षित करने के लिए होना चाहिए | समाज में अपराध न हो इसके लिए पुलिस, थाना, कानून और अदालत के ज्यादात्तर कर्मी होने चाहिए | और हो क्या रहा है? आज यह सब सिर्फ सजा देने का काम कर रहे हैं | शिक्षा प्रणाली में विषय भी नहीं है और परीक्षा भी नहीं है | पुलिस और अदालत शिक्षा दे नहीं रहे तो फिर सुधार होगा कैसे |

आज हम सब कुछ सरकार कानून और पुलिस से चाह रहे हैं | समाज और धर्म सिर्फ तमाशा देख रहा है | कोई भी अपना व्यक्तिगत फर्ज नहीं समझता है | और कोई यदि भूले-भटके ऐसा करता भी है तो उसका मजाक ही बनाया जाता है | तो कुल मिला कर यह नतीजा निकलता है कि सरकार, कानून और पुलिस का कोई दोष नहीं है | हमारी मानसिकता ही अपराधिक हो गई है और इसे समाज और समाज के लोग ही सुधार सकते हैं | सरकार या कानून या पुलिस ज्यादा कुछ नहीं कर सकती | कोई भी अपराधी जन्म से नहीं होता उसे यह समाज, धर्म और परिस्थिति ही बनने पर मजबूर करती है | और जब वह अपराधी बन जाता है तब भी उसे सुधारा नहीं जाता बल्कि उसे दूसरे अपराधियों के साथ समाज से अलग जेल में ठूस दिया जाता है | फिर उम्मीद यह की जाती है कि वह जब जेल से छूटेगा तो सभ्य नागरिक बन कर निकलेगा”, कह कर अक्षित हँसते हुए बोला “दोस्तों है न कमाल का यह समाज इसका यह कानून और सोच.....”, अक्षित इससे आगे कुछ और बोल पाता पूरा हॉल करतल ध्वनि से गूंज उठता है|

अक्षित हाथ से शांत होने का इशारा करता है लेकिन सुगबुगाहट बढ़ती देख अक्षित फिर से लोगों को शांत होने का इशारा करते हुए बोलता है “दोस्तों यह मुश्किल न सिर्फ़ हमारी है बल्कि पूरा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है | क्योंकि हमारे देश की जनसंख्या ज्यादा है इसीलिए हमारी मुश्किल बड़ी है | लेकिन हर बार हमारा देश और हमारी सभ्यता किसी भी विपरीत परिस्थिति से न सिर्फ़ खुद उभरा है बल्कि पूरे विश्व को शान्ति और अध्यात्म का संदेश दिया है | अगर यह नहीं हुआ तो हम एक ऐसे अंधे युद्ध या क्रान्ति की ओर अग्रसर हो जाएंगे जिसमें पूरे विश्व की सत्तर से अस्सी प्रतिशत जनसंख्या का विनाश हो जाएगा | और अगर यह भी नहीं हुआ तो फिर प्रकृति यानी ईश्वर को यह करने पर मजबूर होना होगा | और यह विनाश बहुत ज्यादा दूर नहीं है |

दोस्तों हमें जल्द ही कुछ कदम उठाने होंगे | हमें देश धर्म संस्कृति से उपर उठ कर मानवता को बढ़ावा देना होगा | हमें अपनी मानसिकता में परिवर्तन करना होगा | हमें देश के कानून व्यवस्था में भी अमूल-चूल परिवर्तन करना होगा | आइए हम सब मिल कर इस का हल खोजें और फिर से विश्व में इस देश का नाम रोशन करें | धन्यवाद”, कह कर अक्षित अपनी जिव्हा को विराम देता है और पूरा हॉल करतल ध्वनी से गूंज उठता है | अक्षित हाथ जोड़े जैसे ही मंच से नीचे उतरता है | हॉल में करतल ध्वनि के बीच एक स्वर भी गूंजने लगता है “हम होंगे कामयाब | हम होंगे कामयाब एक दिन | मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास | हम होंगे कामयाब एक दिन......” |

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