Ek bund ishq - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूँद इश्क - 5

एक बूँद इश्क

(5)

शंकर ने जल्दी से रीमा को खाट पर लिटाया और पानी का लोटा लेकर गणेश की तरफ दौड़ पड़ा। जाते-जाते काबेरी को बता गया- "इनका ख्याल रखना हम आते हैं अभी।"

"काबेरी शंकर की दूसरी पत्नी है। पहली पत्नी तो दुधमुँहे बच्चे को छोड़ कर चल बसी थी। तब से लेकर काबेरी ने ही उसको और अपने तीन बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया था। चारों बच्चों में कभी कोई भेदभाव नही बरता गया। बल्कि बिन माँ का संतोष पिछले पाँच बरसों से शहर में पढ़ाई कर रहा है।

कहने का तात्पर्य काबेरी बड़े दिल की भली औरत है। उसने आनन-फानन में ही रीमा को संभाल लिया। बैध को बुलाने की भी जरुरत नही है। प्रायः गाँवों के लोग जड़ी बूटियों के अच्छे जानकार होते हैं। काबेरी ने कोई जड़ी पीस कर रीमा के माथे पर लगाई है। वह रीमा के पास ही बैठी है।

गणेश और शंकर झोपड़े के बाहर बने चबूतरे पर बैठें हैं। गणेश ने शंकर को सारी घटना एक-एक कर सुना दी है। शंकर की भी यही राय है कि होश में आने पर रिजार्ट पहुँचा दिया जाये। उनका इस तरह बातें करना कोई बड़ी कहानी लगता है। उन दोनों ने ही अपने जीवन में कभी ऐसी घटना सुनी नही है सो किसी ठोस नतीजे पर पहुँचना संभव नही है। अभी कुछ ही देर पहले रीमा का चीख-चीख कर रोना ..बैजू को पुकारना.. और स्वयं को उसके साथ जोड़ना बड़ा ही अदभुद था। शंकर भी उन सभी बातों को ध्यान से सुन रहा है-

"कहीं यह भूत परेत का चक्कर तो नही है गणेश?"

"तूने शही कहा शंकर, हम भी वही शोच रहे हैं। मगर हम कर क्या शकते हैं शहरी लोग इन बातों को नही मानते हैं। वह तो बड़े डाक्टरों को ही दिखायेगें। पर जो भी हो मेमशाव जल्दी से ठीक हो जायें।

"गणेश को याद आया-" शंकर तेरा मोबाइल कहाँ है? जो संतोष ने तुझे शहर से लाकर दिया था।"

"ले ये रहा मोबाइल" उसने कुर्ते की जेब से मोबाइल निकाल कर गणेश को थमा दिया।

"लेकिन नम्बर कहाँ से आयेगा?"

उसने रिजार्ट का नम्बर देखने के लिये जेब से अपनी छोटी डायरी निकाली, जिसमें रिजार्ट का नम्बर लिखा हुआ था। चूंकि वह उस रिजार्ट का वेटर है तो बात चीत होते रहना स्वभाविक है। उसमें नम्बर देख कर शंकर ने रिजार्ट के रिसैप्शन पर फोन लगा दिया।

काबेरी बराबर उसे होश में लाने की कोशिश कर रही है। जरुरी जड़ी पीस कर लगा दी हैं। पानी के छीटें भी दिये हैं मगर वह अभी तक होश में नही आई है।

करीब एक बीस मिनट के बाद उसने आँखें खोल दीं। वह चारों तरफ देख रही है-

"मैं कहाँ हूँ? कौन लाया मुझे यहाँ?" उसने आँख खोलते ही पूछा है। वह बेहद कमजोर आवाज़ में बात कर रही है। उसके आँख खोलते ही काबेरी का चेहरा खिल गया। उसने उसके पास जाकर कहा- "घबराओ नही मेमशाव आप यहाँ सुरक्षित हो। गणेश भाई बाहर हैं।"

"ओह...गणेशश दादा, कहाँ हैं वो?"

"ठहरो मेमशाव, अभी बुलाती हूँ उन्हें"

रीमा को अभी नीचे नदी पर जो कुछ भी हुआ कुछ भी याद नही है। वह सब भूल गयी है। गणेश ने भी पिछली कोई बात नही की। अच्छा ही है वह सब भूल गयीं हैं। वह नही चाहता था कि फिर से स्तिथी बिगड़ जाये। वैसे भी रिजार्ट से गाड़ी आने ही वाली होगी। शायद उनके घर भी खबर हो गयी होगी। संभव है कि वहाँ से भी कोई-न-कोई आ ही रहा होगा। तब तक इनको अकेला छोड़ना मुनासिब नही होगा।

गणेश को देखते ही रीमा चहक उठी-

"गणेश दादा हम कहाँ हैं? हम तो कहीं घूमने निकले थे न?"

"हाँ मेमशाव, आपकी तबियत ठीक नही थी न इशलिये राश्ते शे ही वापस आ गये। आप चिन्ता न करो, ये अपना ही घर है हमारे दोश्त शंकर और उशकी पत्नी काबेरी का। काबेरी ने ही आपकी देखभाल की है मेमशाव, यह बहुत ही दयालु और भली औरत हैं।"

रीमा ने अनुग्रहित होकर काबेरी की तरफ देखा और थैंक्यू की जगह काबेरी का हाथ पकड़ कर उसका शुक्रिया अदा किया है-

"अगर आप न होती तो?? आप बहुत अच्छी हैं काकी" रीमा के समर्पित स्वर काबेरी को बहुत भले लग रहे हैं। उसने रीमा को गले से लगा लिया है और अपने झोपड़े में रूकने का न्योता भी दे डाला।

रीमा का बहुत मन है कि इन लोगों के साथ कुछ वक्त बिताये। मगर उनकी गरीबी देख कर वह सकुचा रही है। गरीबी से मतलब ये नही कि उसे वहाँ असुविधा होगी बल्कि ये सोच रही है कि वह लोग उसके खाने-पीने का बंदोबस्त कर पायेगे या नही? छोटे से झोपड़े में कहाँ कैसे सोयेगे परिवार के सब लोग बगैहरा..बगैहरा...।

"क्या सोच रही हैं मेमशाव? हम गरीब जरुर हैं मगर आपको कोई तकलीफ न होने देगें। " काबेरी ने उसके मन को भाँप कर कहा।

रीमा सकपका गयी। जैसे उसके मन के चोर को किसी ने पकड़ लिया हो , अपनी शहरी संकीर्ण सोच इन सीधे-साधे लोगों पर बिल्कुल फिट नही बैठती। इनके पास आर्थिक तंगी भले ही हो मगर दिल से बड़े ही अमीर हैं और दिल्ली में??? काश! मैंने भी यहीं जन्म लिया होता, ऐसे ही झोपड़े में...फिर मुझे भी इनकी तरह काम करना पड़ता..ऐसे ही मेहनत कर जीवन जीना पड़ता? बाप रे! कितना कठिन है यह सब, न..मैं नही कर सकती ...कुछ दिन गुजार देना, अहसास करना और फिर वापस लौट जाना ही सही है। पूरा जीवन इतनी तंगी में काटना वास्तव में कितना मुश्किल होगा।' उसने पूरे झोपड़े पर नज़र घुमाई।

एक तरफ यानि झोपड़े के दाईं तरफ के कोने को रसोई बनाया गया था जहाँ पर कुछ वर्तन, डिब्बे जिसमें से ज्यादातर खाली ही थे और गैस का चूल्हा और पानी का एक मटका रखा है। उसी के ठीक सामने की तरफ एक बड़ा सा लकड़ी का स्लैप पड़ा है जिसके ऊपर एक शीशा लगा है और उसके साथ ही इंगुर, कंघी, काजल जैसी कुछ चीजें रखी है। बाईं तरफ टीन के रंग-बिरंगें चार संदूक हैं जिनमें शायद उनके कपड़े, पैसे, कीमती सामान बगैहरा होगा। एक तरफ कपड़े डालने की डोरी बँधी है जिस पर रोज मर्रा के कपड़े लटके हैं। एक तरफ लकड़ी की छोटी सी मेज पर टेलीविजन रखा है जिस पर हाथ से काढ़ा हुआ कपड़ा ढका है। ऊपर टीन की छत है जिसमें एक पुराना पंखा झूल रहा है। वैसे यहाँ के मौसम को देखते हुये यह शायद ही चलता हो। बराबर में एक ऐसा ही कमरा और है उसमें शायद बच्चे सोते होगें या फिर बिस्तर बगैहरा जैसा सामान रखा होगा। दोनों कमरों के बीच एक परदा पड़ा है जिससे उधर का पूरा देख पाना संभव नही है।

पूरे झोपड़े में जगह भले ही कम हो मगर बड़ा ही करीने से सजाया गया है। एकदम साफ-सुथरा। झोपड़े के बाहर की तरफ दीवारों पर चूने और गेरु से कुछ आकृतियों को बड़े ही संजीदगी से उकेरा है । जिनमें बीच-बीच में फूल पत्तियाँ , कलश और स्वास्तिक चिन्हों को भी बनाया गया है। किसने बनाया होगा? जरूर काबेरी काकी ने ही बनाया होगा। आम तौर पर घर की देख भाल सजाने-सवाँरने की जिम्मेदारी औरतों की ही होती है। शहरों का चलन तो अब अलग हो चला है जहाँ पति-पत्नि आपसी सहमति से घर का इन्टीरियर करवाते हैं। परेश ने भी शादी से पहले ही उसको बैडरुम के डिजाइन सलैक्ट करने के लिये भेज दिये थे और उसी की पसंद से पूरा इंटीरियर हुआ है।

"वाह, कितनी सुन्दर व्यवस्था है? इतने कम पैसों में भी घर चलाया जा सकता है। रीमा उस घर को देख कर मंत्र मुग्ध है। वह अपनी तबियत कमजोरी सब भूल गयी है।

काबेरी रसोई में कुछ खाने को पका रही है। रीमा को जोर की भूख लग पड़ी है। आज सुबह को ब्रेकफास्ट भी ठीक से नही किया है ऊपर से कुछ कमजोरी भी है। खाने की सुगंध रीमा के नाक में घुसते ही उसकी भूख बढ़ कर चौगुना हो गयी-

"काकी आप क्या पका रही हो? मुझे बड़ी तेज भूख लगी है।"

काबेरी ने उसे गरमा गरम मसाला चाय देते हुये कहा- "लो मेमशाव जब तक चाय पियो पेट में शेका लगेगा। हम झटपट खाना तैयार कर रहे हैं।"

"काकी मुझे मेमशाव मत कहो, आपकी बेटी ही तो हूँ, देखो न कुदरत ने मुझे आपसे मिलवाया है तो कुछ तो मतलब होगा ही न?"

"हाँ बिटिया, उशके बगैर मर्जी के पत्ता भी नही हिलता और कुछ भी बेकार में नही होता...ये दोनों बाते हमेशा याद में रखना।"

"हाँ सही कहा काकी, पता नही ऊपर वाला क्या चाहता है? पर जो भी हो मैं बहुत खुश हूँ आपसे मिल कर" उसने खाट से उठते हुये कहा।

"चाय पी लो बिटिया पहले गरमा-गरम है और अभी लेटी रहो कमजोरी न गयी होगी?"

"हाँ काकी मुझे पहले हाथ मुँह धोना है।"

"रूको बिटिया, हम जरा गरम पानी किये देते हैं।" काबेरी काकी पूरे समर्पण, आत्मियता और प्रेम से लबालब हैं जो उनकी हर बात में बार-बार छलक रहा है।

क्रमशः