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कर्म पथ पर - 47



कर्म पथ पर
Chapter 47


कमला के मन में बार बार लता के भविष्य की चिंता घूम रही थी। लता उसकी पहली संतान थी। अपने बच्चों में उसे वह सबसे अधिक प्यारी थी।
जब उसे पता चला था कि लता का रिश्ता उससे उम्र में तीन गुना बड़े उत्तम से हो रहा है तो उसने इसका पुरजोर विरोध किया था। उत्तम की पहली पत्नी का देहांत हो चुका था। वह दो बच्चों का बाप था। उसे अपनी फूल सी बच्ची का ब्याह उत्तम से करना गवारा नहीं था।
लेकिन कमला के पति बृजकिशोर ने उसकी एक नहीं सुनी। बृजकिशोर का कहना था कि क्या फर्क पड़ता है कि वह विधुर है। खाते पीते घर का है। लता खुश रहेगी। उनकी माली हालत में इससे अच्छा वर लता के लिए नहीं मिलेगा।
लता की शादी हो गई। जब वह पगफेरे के लिए घर आई तो उसने अपनी ससुराल के रुतबे के बारे में जो बताया उसे सुनकर कमला के मन को कुछ हद तक शांति मिली। लता की ससुराल में पैसों की कोई कमी नहीं थी। पर बाद में अक्सर उत्तम के बीमार रहने की खबरें मिलने लगीं। इसलिए पगफेरे के बाद लता किसी भी तीज त्यौहार में मायके नहीं आ पाई।
दो साल पूरे होते होते उत्तम चल बसा। उसके भाइयों ने लता को मायके भिजवा दिया। तबसे वह यहीं थी।
कमला को अब चिंता सताती थी कि लता का क्या होगा ? जब तक वो और बृजकिशोर हैं तब तक तो जैसे तैसे निभा लेंगे। वो लोग ना रहे तो पता नहीं दोनों भाई कैसा व्यवहार करेंगे।
चंदर बड़ा था और समझदार भी। कमला अक्सर उसे समझाती थी कि सदा अपनी जिज्जी का खयाल रखना। कमला ने महसूस किया था कि चंदर अपनी बहन को प्यार करता है। उसका सम्मान करता है। पर डरती थी कि अपनी गृहस्थी होने के बाद भी वह लता से उतना प्यार करेगा या नहीं।
लता छुटपन से ही बड़ी होशियार थी। जो बताया जाता उसे तुरंत सीख लेती थी। उसने सिलाई कढ़ाई सीखी थी। अब कपड़े पर फूल काढ़ कर अपनी बेरंग ज़िंदगी में कुछ खुशियां भर लेती थी।
कमला वृंदा की बात पर विचार करने लगी। वह जानती थी कि छिप छिप कर चंदर लता को पाठशाला में सीखी बातें सिखाता है। जानते हुए भी उसने कुछ नहीं कहा था। उसे लगता था कि वैसे तो समाज की बंदिशें लता के जीवन में और कोई खुशियां आने नहीं देंगी। ऐसे में अगर कुछ करके उसे थोड़ी सी खुशी मिल जाती है तो उसे रोके क्यों।

पर वृंदा ने जो कहा था वह आसान नहीं था। भाई से चोरी छिपे पढ़ लेना अलग बात थी। पर पाठशाला भेज कर पढ़ाने का मतलब लोगों की नाराज़गी मोल लेना था। वह ऐसा नहीं कर सकती थी।
लता कमरे में बैठी तकिए के गिलाफ पर कढ़ाई कर रही थी। पर मन में बार बार यही आ रहा था कि पाठशाला वाली दीदी उसके घर क्यों आई थीं ? क्या अम्मा से कहने आई थीं कि उसे भी पाठशाला भेजें।‌
वह चंदर से कुछ पूँछ नहीं पाई थी। दीदी के जाते ही वह रसोई में अम्मा का हाथ बंटाने लगी। दोनों भाई खाकर पाठशाला चले गए थे। अब उसे उनके लौटने का इंतजार था।
उसका मन कर रहा था कि कल की तरह वह पाठशाला पहुँच जाए। कल तो दीदी ने कितने प्यार से बैठाया था। कितनी अच्छी कहानी सुनाई थी बापू की। विदेशी धरती पर जब उन्हें रेल के डिब्बे से उतार दिया गया तब उन्होंने अन्याय के खिलाफ कैसे लड़ाई लड़ी। अभी भी वो अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए लड़ रहे हैं।
पर कल तो अम्मा कमरे में आराम कर रही थी। वह मौका देखकर चुपचाप चली गई थी। पर आज अम्मा आंगन में बैठी जाने क्या कर रही थीं। वह जा नहीं सकती थी।
लता को अपनी अम्मा की पुकार सुनाई पड़ी। वह उनके पास जाकर खड़ी हो गई। कमला ने कहा,
"जरा तेल लाकर मेरे बालों में लगा दो। सर दर्द कर रहा है।"
लता कपूर मिला सरसों का तेल ले आई। अपनी अम्मा के सर की मालिश करने लगी। कुछ देर बाद कमला ने कहा,
"रहने दो...अब ठीक लग रहा है।"
तेल रखकर लता कंघी उठा लाई और अपनी अम्मा के बालों में कंघी कर उन्हें बांध दिया। कमला की तबीयत अब ठीक लग रही थी। लता ने हिम्मत करके पूँछा,
"अम्मा....वो पाठशाला वाली दीदी क्यों आई थी ?"
कमला ने उलटा उससे सवाल किया,
"तुम कल चोरी से पाठशाला गई थी ?"
लता चुप हो गई। उसे लगा कि क्या दीदी यही बताने आई थीं। पर कल तो कितने प्यार से बात कर रही थीं। खुद ही कह रही थीं कि यहाँ आया करो। फिर अम्मा से शिकायत क्यों की ?
"दीदी ने शिकायत की थी ?"
"नहीं... चंदर से पूँछा था हमने। हमें पता है कि तुम चोरी छिपे चंदर से पढ़ती हो। दीदी कह रही थी कि तुम्हें पाठशाला भेजें। पर बिटिया भाई से पढ़ने और पाठशाला जाने में फर्क है। तुम्हारे पिताजी को मालूम पड़ा तो नाराज़ होंगे। तुम घर में चंदर से ही पढ़ लेना।"
अपनी अम्मा की बात सुनकर लता उदास हो गई।

चंदर घर आकर लता को वो सब पढ़ा देता था जो उस दिन पाठशाला में सीखा था। वह उसे वो बातें भी बताता था जो वृंदा उन लोगों को बताती थी। सब सुनकर लता का मन और अधिक ललचा जाता था। पर अपना मन मारने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
कमला महसूस कर रही थी कि लता पहले से भी अधिक गुमसुम होती जा रही थी। उसका कलेजा यह सोंच कर फट जाता था कि क्या उसकी बेटी को छोटी छोटी खुशियों का भी हक नहीं है।
सचमुच क्या विधवा हो जाने में उसका ही दोष था। क्या उत्तम का बीमार रहना भी उसकी ही गलती थी। उसके मन में यह सवाल उमड़ते रहते थे। औरों की तरह वह खुद भी कई बार अपनी बेटी को अभागिन कहती थी। पर वह जानती थी कि उत्तम की मृत्यु उसके दुर्भाग्य से नहीं जुड़ी थी। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी वह अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं कर सकती थी।
उसकी बेटी विधवा हो गई तो समाज ने उससे सुखी रहने का अधिकार भी छीन लिया। उसके लिए सब खुशियों से दूर रह कर घुट घुट कर जीना ही एकमात्र रास्ता छोड़ा था।
लता को दुखी देखकर कमला भी खुश नहीं रह पाती थी। पर अब उसने सोंचा था कि वह एक बार इस विषय में अपने पति से बात करेगी।
कोई बहुत बड़ी चाहत तो है नहीं उसकी। वह सिर्फ पाठशाला जाकर पढ़ना ही चाहती है।

शाम को बृजकिशोर जब खाना खाने बैठे तो अपनी मनपसंद कढ़ी खाकर बहुत खुश हुए। कमला ने उन्हें बताया कि यह कढ़ी लता ने बनाई है। यह जानकर उन्होंने लता को शाबाशी देते हुए कहा,
"इसी तरह से अपनी अम्मा से सारे काम सीख लो। इन सबमें मन लगाओगी तो समय अच्छा कटेगा।"
अपने पति को खुश देखकर कमला ने हिम्मत करके कहा,
"लता के बाबू....आपसे एक बात कहनी थी।"
बृजकिशोर ने अपनी पत्नी की तरफ देखा। उन्हें लगा कि घर गृहस्थी से संबंधित कोई बात होगी। उन्होंने कहा,
"कहो क्या बात है ?"
"इन दिनों लता कुछ अधिक ही गुमसुम रहती है।"
"अब क्या किया जा सकता है ? उसका नसीब तो नहीं बदल सकते हैं। जो पड़ा है उसे झेलना ही पड़ेगा। वो भी झेलेगी और हम भी।"
बृजकिशोर ने बात आगे बढ़ाने की गुंजाइश ही खत्म कर दी। फिर भी कमला ने हिम्मत करके आगे कहा,
"पढ़ने में मन लगता है उसका। चंदर सुंदर जो पाठशाला में सीख कर आते हैं उनसे सीख लेती है। उस दिन पाठशाला वाली दीदी आई थीं। कह रही थीं कि लता को भी उसके भाइयों के साथ पाठशाला भेजा करूँ।"
अपनी पत्नी की बात सुनते ही बृजकिशोर की त्योरियां चढ़ गईं। गुस्से में थाली खिसका दी।
"दिमाग ठिकाने रखो अपना। विधवा लड़की को पाठशाला भेजोगी। आज के बाद कभी यह बात की तो हमसे बुरा कोई भी नहीं होगा।"
अपने पति का गुस्सा देखकर कमला दहल गई।
आड़ में खड़ी लता सब सुन रही थी। अम्मा की बात सुनकर मन में एक उम्मीद जागी थी। पर अपने पिता के गुस्से को देखकर उसकी सारी उम्मीदें खत्म हो गईं।
वह सिसकने लगी।