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कर्म पथ पर- 49


कर्म पथ पर
Chapter 49




महेंद्र कुमार खुश था। उसने हैमिल्टन के बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया था। उसे पूरी उम्मीद थी कि हैमिल्टन उसकी इस कामयाबी पर उसकी पीठ थपथपाएगा। खुश होकर उसे मनचाहा ईनाम देगा।
घर से निकलते वक्त उसकी पत्नी ने टोका,
"आज सुबह सुबह कहाँ जा रहे हैं ?"
और कोई दिन होता तो वह टोके जाने पर चिढ़ जाता। पर आज उसका मूड बहुत अच्छा था। उसने कहा,
"बोलो लौटते समय बाजार से क्या लेकर आऊँ ?"
उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ। उसने तो डरते हुए इसलिए टोका था कि जान सके कि महेंद्र कब लौटेंगा। उसे तो लग रहा था कि महेंद्र गुस्से से उसे झिड़क देगा। पर अविश्वास से उसका मुंह खुला हुआ था।
"बुत बनी क्यों खड़ी हो ? बोलो.... संकोच मत करो आज।"
महेंद्र की पत्नी ने कहा,
"जो चाहिए ले आइएगा...'
"ठीक है...."
महेंद्र खुशी खुशी निकल गया।

वृंदा के ना मिलने से उसका गुस्सा माधुरी पर बढ़ता जा रहा था। वह वृंदा की तरह उसे भी सबक सिखाना चाहता था। पर उसका भी पता नहीं चल रहा था।
महेंद्र हैमिल्टन के विभाग में काम करता था। वह बहुत ही घाघ और चालाक था। औरतों को फंसा कर उनका इस्तेमाल करने में माहिर था। अपने इस हुनर का फायदा वह हैमिल्टन को भी पहुँचाता था। इसलिए वह हैमिल्टन का मुंह लगा था।
अपने गलत आचरण के कारण महेंद्र को नौकरी से निकाल दिया गया था। नौकरी छूटने के बाद हैमिल्टन ही उसका सहारा था। वह हैमिल्टन के बताए छोटे छोटे काम करता था। उसके बदले में वह उसे थोड़े बहुत पैसे दे देता था।
जब माधुरी का कोई पता नहीं चला तो हैमिल्टन ने महेंद्र को उसका पता लगाने का काम सौंपा था। उससे कहा था कि यदि वह इसमें सफल हो गया तो वह उसे ढेर सारी रकम देगा।
उसके कहने पर ही महेंद्र ने माधुरी और स्टीफन का पता लगाने का काम शुरू किया। उसने कानपुर के कर्नलगंज इलाके में जाकर पूँछताछ शुरू की। वह लोगों से कहता था कि एक बहुत ही भले अंग्रेज़ डॉक्टर स्टीफन हैं। वह‌ उन्हें तलाश कर रहा है। उसकी मेहनत रंग लाई। किसी ने उसे बताया कि वह डॉक्टर स्टीफन से इलाज करा चुका है। पर अब वो शहर छोड़कर कहीं चले गए हैं। पर जहाँ वह रहते थे महेंद्र उस जगह जाए। पड़ोसी शायद कुछ बता सकें।
महेंद्र ने पड़ोसियों से पूँछताछ की।‌ एक पड़ोसी ने बताया कि उनके घर रोज़ी नाम की एक हिंदुस्तानी ईसाई लड़की काम करती थी। ‌शायद उसे कुछ पता हो। उस पड़ोसी ‌ने बताया कि वह कुछ ही दूर पर रहती है।
महेंद्र ढूंढते हुए रोज़ी के घर पहुँचा। उसने रोज़ी से पूँछा कि डॉक्टर स्टीफन और उसकी पत्नी कहाँ चले गए हैं। रोज़ी ने यह कह कर मना कर दिया कि वह नहीं जानती है कि वो लोग कहाँ गए। पर महेंद्र भी सब सोंच कर आया था। उसने कहा,
"मेरा उनसे मिलना बहुत ज़रूरी है। मैं पहले लखनऊ में उनकी क्लीनिक में कंपाउंडर था। एक बहुत ज़रूरी सूचना है जो उन्हें देनी है। उनके भले के लिए बता दो।"
रोज़ी बहुत अधिक नहीं जानती थी। पर इतने दिनों काम करते हुए उसे इस बात का पता चला था कि डॉक्टर स्टीफन किसी परेशानी के चलते लखनऊ छोड़ कर आए थे। महेंद्र से लखनऊ की बात सुनकर उसे लगा कि अवश्य कोई ऐसी बात होगी जो डॉक्टर स्टीफन के हित की होगी। डॉक्टर स्टीफन और माधुरी ने सदैव उसके साथ अच्छा व्यवहार किया था। वह उनका भला चाहती थी। पर उसे ठीक से कुछ मालूम नहीं था। उसने कहा,
"मुझे सही से कुछ नहीं पता है। बस इतना मालूम है कि वो लोग बनारस में हैं। डॉक्टर स्टीफन किसी खैराती अस्पताल में काम करते हैं।"
महेंद्र के लिए इतनी सूचना पर्याप्त थी। वह बनारस चला गया। उसने उस अस्पताल का पता लगा लिया जहाँ स्टीफन काम करता था। उसने उसका पीछा किया। वह जिस घर में रहता था उसका पता कर लिया।

हैमिल्टन ने इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर से फोन पर बात की थी। पर अभी तक वृंदा के मामले में कोई सफलता नहीं मिली थी। इस बात से हैमिल्टन बहुत चिढ़ा हुआ था।
नौकर ने चाय बनाकर दी। एक घूंट पीते ही वह गुस्से पागल हो गया। प्याला फेंक कर नौकर को बुरा भला कहने लगा। तभी दूसरे नौकर ने आकर कहा कि महेंद्र मिलने आया है। हैमिल्टन ने उसे लेकर आने को कहा। महेंद्र बड़ी शान से उसके सामने जाकर बोला,
"ऐसी खबर लेकर आया हूँ कि आप खुश हो जाएंगे।"
हैमिल्टन पहले ही परेशान था। उसकी बात सुनकर चिढ़ गया।
"फ़ालतू की बात मत करो। जो है ठीक से बताओ।"
महेंद्र के उत्साह पर पानी फिर गया। पर उसे मालूम था कि खबर सुनकर हैमिल्टन खुश हो जाएगा। उसने हैमिल्टन को बता दिया कि स्टीफन और माधुरी का पता चल गया है।
हैमिल्टन खुश हो गया। उसने महेंद्र को पैसे देते हुए कहा,
"तुम काम के आदमी हो। ऐसे ही मेरे काम आते रहे तो मालामाल हो जाओगे।"
महेंद्र चला गया। हैमिल्टन आगे की योजना बनाने लगा।

माधुरी कालीदास का मेघदूतम पढ़ रही थी। अचानक ही आकाश काले बादलों से भर गया। लगता था जैसे बहुत ज़ोर से बारिश होगी।
"बिटिया छत से कपड़े ले आए हैं।"
कमरे के बाहर खड़ी वृद्धा रामरती ने माधुरी से कहा।
"अम्मा यहाँ बिस्तर पर रख दो। हम तहा लेंगे।"
रामरती कपड़े रखकर चली गई। माधुरी तीन महीने की गर्भवती थी। स्टीफन को उसकी देखभाल की चिंता थी। स्टीफन ने अपने साथी डॉक्टर से बात की। उसने रामरती को उनके घर रखवा दिया था। वह खूब मन लगाकर माधुरी की सेवा करती थी।
स्टीफन कुछ अन्य डॉक्टरों व नर्सों की टीम लेकर पास के गांव में गया हुआ था। वहाँ हैज़ा फैला हुआ था। अभी एक हफ्ता और वह वहीं रहने वाला था। माधुरी को उसकी फिक्र सता रही थी। उसने खिड़की से आसमान में घुमड़ते बादलों को देखकर मन ही मन कहा कि उसके प्रेम का संदेश उसके पति तक पहुँचा दें। उससे कहें कि वह उसके प्रेम के लिए तरस रही है। जल्दी से अपना काम निपटा कर वापस आ जाए।
अचानक ही तेज़ बारिश होने लगी। माधुरी बाहर बरामदे में आकर खड़ी हो गई। गिरती हुई पानी की बूंदें संगीत पैदा कर रही ‌थीं। वह बूँदों को अपनी हथेली में भरकर उछाल रही थी। ऐसा करते हुए बहुत आनंद आ रहा था। रामरती ने आकर कहा,
"बिटिया ऐसी हालत में ये सब ठीक नहीं। चलो अंदर चलकर बैठो। ठंड लग जाएगी।"
रामरती माँ की तरह उसकी देखभाल करती थी। इसलिए माधुरी उसे अम्मा कह कर बुलाती थी। वह उसकी कोई बात नहीं टालती थी। उसने हंसकर कहा,
"अम्मा तुम तो बच्ची की तरह मेरी देखभाल करती हो।"
"बच्ची ही तो हो तुम। अब अंदर चलो।"
माधुरी अंदर चली गई। रामरती ने उसे चाय लाकर दी। चाय पीते हुए वह स्टीफन को याद करने लगी।
उस रात अपने बीच की हर दूरी और संकोच को मिटा कर स्टीफन और माधुरी पति पत्नी के रूप में एक हो गए थे। पर स्टीफन के मन में उस अपरिचित आदमी को लेकर एक डर पैदा हो गया था।‌ वह समझ गया था कि हैमिल्टन उनकी जासूसी करवा रहा है।
वह परेशान रहने लगा था। माधुरी उसकी इस चिंता का कारण समझ नहीं पा रही थी। उसके पूँछने पर स्टीफन कह देता था कि हॉस्पिटल की कुछ समस्या है। हालांकि माधुरी को इससे संतुष्टि नहीं होती थी।
जब स्टीफन को पता चला कि माधुरी गर्भवती है तो उसकी चिंता और बढ़ गई। वह चाहता था कि उस जगह को छोड़ दे। पर जाएगा कहाँ ? करेगा क्या ? अब तो उस पर अपनी होने वाली संतान का भी दायित्व था।
अंधेरे में से रौशनी की किरण की तरह उसकी समस्या का हल निकल आया। जिस हॉस्पिटल में वो काम करता था उन्होंने उसे गोरखपुर चले जाने को कहा।
स्टीफन माधुरी को लेकर यहाँ आ गया।