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इंतजार दूसरा - 1

दामोदर गर्दन झुकाये हुए मन ही मन मे कुछ सोचता हुआ चला जा रहा था।तभी उसे हंसने की आवाज सुनाई पड़ी।खनखनाती हंसी सुनकर उसे ऐसा लगा, मानो किसी ने सुराई नुमा गर्दन से सारी की सारी शराब एज ही बार मे उड़ेल दी हो।उन्मुक्त हंसी की आवाज कानो में पड़ते ही उसने गर्दन उठाकर देखा।उसे सामने से दो औरते आती हुई नजर आयी।दूर से देखते ही उन दो में से एक को दामोदर पहचान गया था।वह चन्द्रकान्ता चाची थी।
लेकिन उसके साथ वाली युवती कौन है? गांव की तो सभी औरतो को वह पहचानता था।चन्द्रकान्ता चाची के साथ युवती कौन है?वह उसे इस गांव की नज़र नहीं आ रही थी।
"तूूम दामोदर को याद कर रही थी।यह रहा दामोदर।"दामोदर पर नज़र पड़ते ही चन्द्रकान्ता अपने साथ वाली युवती से बोली।
" चाची नमस्ते," चन्द्रकान्ता की बात दामोदर ने सुन ली थी,"मुझे आज क्यो याद किया जा रहा है?"
"यह जब से आई है, तभी से तुमसे मिलने के लिए बेचैन है। मैं तुुम्हे बुलाने की सोच रही थी।लेकिन तुम खुद ही मिल गये,"चन्द्रकान्ता पास ख़डी यूूवती से बोलीी,"दामोदर मिल गया।अब जी भरकर इससे बात कर लेना।"
दामोदर ने चन्द्रकान्ता के पास खड़ी युवती को देखा था।लम्बा कद,साफ गोरा रंग,तीखे नेंन नक्श,शराबी आंखे और होठों पर थिरकती मुस्कान।दामोदर को लगा इस युवती को पहले कंही देखा है।लेकिन कन्हा ?दिमाग पर काफी जोर डालने पर भी उसे याद नही आ रहा था।
"मुझे पहचाना नही?इतनी जल्दी भूल गए,"दामोदर को सोच में डूबा देखकर वह बोली,"भूल तो जाओगे ही।हमे कौन याद रखता है।हम मनहूस जो ठहरे।"
सचमुच दामोदर उसे भूल गया था।लेकिन उसके बोलने के अंदाज़,हाव भाव और होठों पर हमेशा थिरकने वाली मुस्कान ने उसे सब कुछ याद दिला दिया।
"माया तुम?" किसी परिचित को अचानक लम्बे अंतराल के बाद पा लेने पर कितनी ख़ुशी होती है? इसका अंदाजा दामोदर के चेहरे को देखकर ही लगाया जा सकता था,"तुम कब आयी?"
"आज सुबह,"दामोदर के प्रश्न का उत्तर चन्द्रकान्ता ने दिया था,"जब से आई है, तुम्हारे नाम की रट लगा रखी है।"
"अच्छा?"दामोदर ने विस्फुरित नज़रो से माया को देखा था।
"दामोदर मिल गया।अब दिल की सारी इच्छाये पूरी कर लेना।"चन्द्रकान्ता की आंखों में शरारत के भाव थे।
"मौसी तुम बड़ी वो हो।"माया,चन्द्रकान्ता की बाते सुनकर शर्मा गई।
"माया तुम कैसी हो?"
"खुद ही देख लो।तुम्हारे सामने ही खड़ी हूँ।"
दामोदर और माया कई वर्ष बाद एक दूसरे से मिलकर इतने खुश हुए थे।अगर उस समय चन्द्रकान्ता मौजूद नही होती,तो शायद दोनो एक दूसरे को बाहों में भर लेते।
"क्या यही खड़े खड़े सारी बाते करने का इरादा है?",चन्द्रकान्ता बोली,"घर चलो वंहा आराम से बैठकर बातें करना।"
वे तीनों चन्द्रकान्ता के घर की तरफ चल पड़े।रास्ते मे दामोदर, माया से कुछ नही बोला।लेकिन उसके बारे में सोचता सोचता अतीत में भटक गया।
"दामोदर दिल्ली चल रहे हो"?एक दिन चन्द्रकान्ता उससे बोली थी।
"दिल्ली।क्या करने?"दामोदर ने पूछा था।
"छब्बीस जनवरी की परेड देखने के लिए।"चन्द्रकान्ता बोली थी।
दामोदर की भी काफी दिनों से गणतंत्र दिवस परेड देखने की इच्छा थी।इसलिए उसने चन्द्रकान्ता के प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया था।
और दामोदर,चन्द्रकान्ता के साथ दिल्ली जा पहुंचा।चन्द्रकान्ता की बड़ी बहन सुधा दिल्ली में रहती थी।वे दोनों उसके घर पहुँचे थे।सुधा की देवरानी की बहन चंदा अपनी बेटी माया के साथ परेड देखने दिल्ली आयी थी। वंही पर दामोदर की माया से मुलाकात हुई थी।
माया लम्बे कद,गोरे रंग और तीखे नेंन नक्श की आकर्षक युवती थी।माया से मिलने पर दामोदर को पता चला कि वह खुले विचारों की हंसमुख स्वभाव की युवती है।हंसते समय उसके गालो में पड़ने वाले गड्ढे उसकी सुंदरता में निखार ला देते थे।कुछ ही देर में माया, दामोदर से ऐसे घुल मली गई थी,मानो उससे वर्षो से परिचित हो।माया के शरीर पर सुहाग चिन्ह देखकर दामोदर ने पूछा था,"पति क्या करते हैं?"
(क्रमश शेष अगले अंक में)