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इच्छापूर्ति

एक शहर था जहां पर बहुत ही अमीर व्यक्ति रहता था जिसके पास खूब सारी गाड़ियां बंगले और कई फैक्ट्रिया थी हर तरह से वह धनवान था ना किसी चीज की कमी ना किसी चीज का घमंड था और वह हमेशा आम लोगों की तरह ही रहता था लेकिन उसके चेहरे पर कभी खुशी नहीं देखी गई थी वो हमेशा ही उदास रहता था लेकिन वह कभी किसी को यह बात बताता भी नहीं था कि वह किस बात से दुखी है

एक दिन जब एक मंदिर में गया तो वहां के एक संत ने उसे उदास मुंह देखा तो उसे बुला दिया और कुछ देर तक निहारते गए
फिर संत ने कहा तुम तो बहुत अमीर हो लेकिन तुम हमेशा उदास रहते हो इतना सुनते ही वो व्यक्ति अचंभित हो गया
और बोला कि यह सब बात आपको कैसे पता

संत ने जवाब दिया कि मुझे सब पता है
तुम्हारी शादी हुए भी कई साल हो गए लेकिन अभी तक तुम्हारी कोई संतान नहीं है

इतना सुनते ही वहां उनके पैरों में गिर गया
प्रभु मेरे इतना सारा धन दौलत है लेकिन इसे संभालने वाला मेरा वंशज कोई नहीं है इस दौलत का मैं क्या करूं किसे दूं अब आप ही कोई उपाय कोई उपाय बताओ गुरुवर

गुरुवर बोले तो इसके लिए तुम्हें एक काम करना पड़ेगा लेकिन यह काम तुम्हें हर रोज सुबह शाम को करना होगा
हां गुरुवर आप जो बोलोगे वह सब करूंगा
उपाय बताओ गुरुवर

तो सुनो तुम्हें कृष्ण पर्वत पर जाना हो गया वहा एक विशाल वटवृक्ष है जहां पर एक चबूतरा बना है वहां जाकर तुम्हें हर रोज सुबह और शाम को घर से खाना बनाकर लाना होगा और वहा वट वृक्ष की डाली पर एक पोटली मैं बांधकर वही लटका देना
इस कार्य को करने से तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान भी आएगी और तुम्हें एक संतान भी प्राप्त हो जाएगी

अब वह हर रोज यही काम कर रहा था सुबह शाम खुद जाकर वहां पर खाना रखता और घर लौट आता यह काम करते-करते उसे पूरे 5 साल हो चुके थे...

एक दिन उन्हें महाविद्यालय के समारोह में आमंत्रित किया गया जहां पर वह मुख्य अतिथि के रूप में गए हुए थे समारोह में जिन विद्यार्थियों ने क्लास में अच्छा नंबर हासिल किया था उनका सम्मान किया जा रहा था

लेकिन इस साल एक अचंभा हो गया था एक लड़का था जिसके हर विषय में उसने सत प्रतिशत अंक हासिल किए थे
जिसके के माता पिता भी नहीं थे और वह बहुत गरीब भी था

तो उसे भी आखिर में सम्मानित करने के लिए उसका नाम भी पुकारा गया और सम्मानित करने के बाद मुख्य अतिथि द्वारा पूछा गया कि तुमने यह सब कैसे किया तो


तो उसने बताया कि मेरे माता पिता का 5 वर्ष पहले ही स्वर्गवास हो गया था मेरे सगे संबंधियों ने और घर परिवार वालों ने मुझे घर से निकाल दिया गया था

7 दिनों से भूख के मारे मैं इधर उधर भटकता हुआ
श्री कृष्ण के मंदिर पहुंच गया वहां से मैं फिर कृष्णा पर्वत पर चला गया वहीं पर एक पेड़ पर अपना बसेरा बना दिया मैं हर रोज पड़ता और हर रोज भगवान श्री कृष्ण को हाथ जोड़कर विद्यालय की और बढ़ जाता
वहां के पुजारी मुझे हर रोज प्रसाद देते थे वही खाकर मैं अपना दिन गुजार लेता था


लेकिन एक दिन किसी ने एक वटवृक्ष पर खाने के लिए वहां एक डाली पर भोजन रखा था जिसे खाकर मैंने अपनी भूख मिटाई
अब तो हर रोज वहां पर कोई भगवान मेरे लिए हर रोज खाना रखकर जा रहा था मैंने उन्हें कभी देखा नहीं लेकिन आज मैं उनको ही अपना सब कुछ मानता हूं न जाने वह भगवान कहां है जिसने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया

और वह लड़का अपना पुरस्कार लेकर सीधा पंडित जी से आशीर्वाद लेने पहुंच गया पंडित जी ने कहा कि आज तुम यहीं रुको और भगवान की प्रार्थना करो सेवा करो उनको फूल अर्पण करो

शाम को एक बहुत ही बड़ी गाड़ी से पति-पत्नी बाहर उतरे और गुरु से मिले उन्होंने यह सारी बात उनको बता दी

तो गुरुवर ने कहा हां अब तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो गई है आज तुम्हें वह खुशी मिलेगी जो तुम्हें चाहिए थी और वह खुशी आज यहीं पर है जिसका तुम्हें सालों से इंतजार था वह अंदर श्री कृष्ण की सेवा में लगा हुआ है जाओ उनसे मिलो और सारी बात बता दो

जैसे ई उन्होंने उस लड़के को सारी बात बताई तो वह भी बहुत खुश हुआ और उनके चरण स्पर्श कर लिए

इसी प्रकार एक पति पत्नी को उसके संतान मिल गई और
लड़के को अपने भगवान जिन्हें वो सच्चे मन से चाहने लगा था

इस प्रकार दोनों के चेहरों पर जो कभी हंसी नहीं आती थी आज वह हंसी ख़ुशी केे आशु के रूप में आने लगी



इससे यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी भगवान अपने किसी कार्य में देरी कर सकता है लेकिन हर कार्य का फल हमें जरूर देता है इसलिए प्रतीक्षा करें और अपने फल की प्राप्ति के लिए काम को करते रहे और आगे बढ़े

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monty khandelwal