Satyajit sen - 3 in Hindi Detective stories by Aastha Rawat books and stories PDF | सत्यजीत सेन (एक सत्यान्वेषक) - 3

सत्यजीत सेन (एक सत्यान्वेषक) - 3

सुबह का समय था सत्यजीत और अरूप जी दोनों नहा कर तैयार थे ।
सत्यजीत -चलो अरूप
अरूप -हां चलो मैं सोच रहा हूं आज कि मैं पूरी दिनचर्या ही लिख लूँ ।
सत्यजीत -हां ठीक है


फिर अरुप बाबू ने अपनी डायरी में लिखना शुरु कर दिया -
सुदर्शन बाबू की हत्या

सत्यजीत और मैं घर से निकले और सत्यजीत ने गाड़ी को रोका और हम दोनों हरिनाथ बाबू के घर पहुंचे दो मंजिला घर था बड़ा सा दिखने में भी बहुत सुंदर था मैंने दरवाजा खटखटाया तभी भीतर से किसी महिला की आवाज आई 'आ रही हूं '

कुछ देर बाद एक महिला ने दरवाजा खुला वह हरे रंग की साड़ी पहने हुए थी उम्र में तो शायद अधिक थी 49-50 ऐसे बिल्कुल मालूम नहीं हो रहा था। शायद वो हरिनाथ बाबू की पत्नी सुमित्रा है।

वह हमें आदर सहित पुलिस का आदमी समझ करअपनी बैठक में लाई । उन्होंने हमेंवहां बैठने को कहा और अंदर के कक्ष में चली गई लगभग 5 मिनट बाद अपने पति हरि नाथ के साथ बाहर आई ।


हरीनाथ सांवले रंग के मुख पर मूंछ थी।और बड़े गंभीर और गुस्सैल मिजाज के प्रतीत हो रहे थे । धोती कुर्ता पहने थे 54 -55 साल के मालूम हो रहे थे ।वह हमारे पास आकर बोले - नमस्कार .
आप लोग भी पुलिस के के आदमी है ?
सत्यजीत -नहीं हम पुलिस की आदमी तो नहीं और पुलिस के काम में उनका सहयोग कर रहे हैं ।

जो कहना है जल्दी करें मुझे बहुत काम है हरिनाथ चिढते हुए बोलेे।

ज्यादा कुछ नहीं परिवार जनों से कुछ सवाल करने है।सत्यजीत ने आग्रह करते हुए बोले।

हरिनाथ - जो कहना है जल्दी कहो मुझे बहुत काम है हरी नाथ बाबू एक क्रोध भाव के साथ बोले।

सत्यजीत -जी हरीनाथ बाबू जिस दिन आपके पिता की हत्या हुई उस दिन आप कहां थे ?

हरीनाथ -मैं कहां जाऊंगा ' अपने घर पर था ।

सत्यजीत -आप _उस बीच क्या अपने पिता सुदर्शन बाबू से मिले थे ?

हरीनाथ -मैं अपने पिता के साथ बात नहीं करता था मिलना तो दूर की बात पर और मेरी पत्नी और बेटा अक्सर वहां जाए करते हैं ।

सत्यजीत -अच्छा तो क्या आपकी पत्नी और बेटा गए थे ?
मुझे नहीं पता यह बात अगर आप उनसे पूछें तो ज्यादा बेहतर रहेगा हरिनाथ ने मुंह फेरते हुए हमें नजरअंदाज करते हुए कहा ।

फिर हरीनाथ की पत्नी सुमित्रा जी ने सत्यजीत के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा -मैं हादसे के 2 दिन पहले गई थी ।
सत्यजीत -आप वहां किस कारण से गई थी ?
सुमित्रा -जीवन पिताजी को उच्च रक्तचाप की समस्या के लिए उन्हें दवाइयां देने गई थी ।

सत्यजीत उस दिन क्या आपको सुदर्शन जी की स्थिति या फिर वहां कोई चीज में किसी प्रकार का बदलाव या कुछ अटपटा लगा था ।
सुमित्रा -जी नहीं सब कुछ सामान्य था ।
सत्यजीत ने हरीनाथ बाबू से प्रश्न किया
'आपके पुत्र कहां है ?
वह काम पर गया है हरीनाथ बाबू ने बड़े गुस्से में कहा
और फिर मुंह फेरते हुए बड़बड़ाने लगे पहले पुलिस वाले आकर परेशान करते हैं और अब यह ।और फिर अचानक उठकर अंदर चले गए ।
उनकी पत्नी ने उन्हें रोका पर उन्होंने अनसुना कर दिया


फिर सुमित्रा जी ने हमसे कहा -माफ कीजिए घर में हुए इतने बड़े हादसे के कारण और ऊपर से पुलिस वालों के बेवजह शक के कारण बहुत परेशान है ।
आपको जो प्रश्न करने हैं आप मुझसे कर सकते हैं अगर मैं कुछ जानती हूँ तो अवश्य बता दूंगी ।
सत्यजीत, क्षमा कीजयेगा अगर हमसे कोई भूल हुई हो तो।
सुमित्रा , अरे नहीं ये आप क्या कह रहे है।

सत्यजीत - आपका बेटा कहां काम करता है।
सुमित्रा मेरा बेटा सुधांशु हमारी पुश्तैनी ज्वैलरी की दुकान को संभालता है।
सत्यजीत- पुश्तैनी ?

सुमित्रा - जी मेन रोड़ पर हमारी पुश्तैनी की ज्वेलरी की दुकान है।
दुकान बहुत विख्यात है
बहुत बड़ा कारोबार है।
पिछले 5 सालों से पिताजी की तबीयत खराब रहने लगी थी इसीलिए उन्होंने मेरी ननंद करुणा के बेटे देवाशीष और सुधांशु को कार्यभार देने का सोचा पर देवाशीष तो अजीब मिजाज का है बहुत ही क्रोधी स्वभाव का
बोला मैं किसी के अधीन काम नहीं करूंगा मैं किसी के दी हुई चीज से जीवन व्यपन नहीं कर सकता।
ऐसा कोई कहता है भला फिर सारा काम मेरा सुधांशु ही संभालने लगा बहुत ही मेहनती है।


सत्यजीत, सुदर्शन बाबू ने दुकान सुधासु के नाम कर दी थी क्या?
सुमित्रा, नहीं बस दुकान संभालने का भार मेरे सुधांशु पर था।

ओ ,अच्छा सुदर्शन जी की कोई वसीयत थी क्या मतलब जायदाद का हकदार आपको पता है।
सुमित्रा, पता नहीं वैसे भी इनके घर छोड़ने के बाद हमने कभी पिताजी से जायदाद की बात नहीं की।

सत्यजीत, में सुधांशु से मिलना चाहता हूं । क्या आप उन्हे क्राइम सीन पर भेज सकती है ।
सुमित्रा, जी वो जरूर आएगा।

सत्यजीत , , सुमित्रा जी और वहां कौन कौन आता जाता था। आपको कोई जानकारी ।

सुमित्रा, वैसे ज्यादा तो कोई नहीं पर वकील बाबू ही वहां आया जाया करते थे।
सत्यजीत, वकील पर क्यों

जी वो वकील बाबू पिताजी के बहुत करीबी मित्र थे। अकेले है।
इसी लिए पिताजी से मिलने आ जाया करते थे।
शतरंज के बड़े शोकिन है। पिताजी और वो हर रविवार की शाम शतरंज की बाजी लगाया करते थे।
बहुत अच्छे व्यक्ति है।

सत्यजीत, हूं।

सुमित्रा, आप को उनसे बात जरूर करनी चाहिए।
वकील साहब हम से भी ज्यादा पिताजी को जानते थे।

सत्यजीत, जी जरूर।
कहां मिलेंगे वकील साहब

सत्यजीत, अच्छा जी हम चलते हैं।
सुमित्रा, जी अगर कुछ मालूम पड़े तो अवश्य बताए।
सुमित्रा ने दरवाजे से कहा।
हम दोनों रास्ते में थे।

मैने सत्यजीत का मस्तिष्क टटोलने के लिए उससे कहा -
सत्यजीत तुम्हे ये हरी नाथ कैसा लगा।
सुदर्शन बाबू तो कितने सज्जन और हंसमुख थे और बेटा जैसे जवलामुखी ।
जवालामुखी होना भी अच्छी बात है। जितना मन में हो सब उगल दो।
सत्यजीत ने व्यंग्य करते हुए कहा।

सत्यजीत वैसे हरिनाथ ही तो कहीं आरोपी तो नहीं
अरूप तुम किस आधार पर कह रहे हो।
सत्यजीत देखो पिता बेटे
की बनती नहीं थी और बुढढे ने दुकान भी बेटे ना सौंप कर पोते और नाती को सौपनी चाही तो कहीं सायद गुस्से में आकर हरिनाथ ने ही तो अरूप इतना बोलते हुए रुक गए ।
सत्यजीत नहीं नहीं मुझे तो ऐसा नहीं लगा क्यों की आरूप अगर हरीनाथ को अपने पिता का धन
दौलत चाहिए होती तो वो वर्षों पहले अपना हिस्सा छोड़ कर नहीं आता ।
वैसे भी हरिनाथ जैसे कड़क लोग जुबान के जितने कड़वे हो दिल के साफ़ होते है।
ना किसी का देना ना लेना।

अरूप , है बात तो सच है।
सत्यजीत अब हम कहां जाएंगे ।
सत्यजीत, सुदर्शन बाबू के घर चलते है। इंस्पेक्टर का फोन आया था। करुणा का पूरा परिवार और वहां उपस्थित हो गया है। पूछ ताछ के लिए सही समय है।


तभी एक टैक्सी आ गई मैने उसको रोका और रविन्द्र नगर के लिए रवाना हुए

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