Satyajit sen - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

सत्यजीत सेन (एक सत्यान्वेषक) - 5



घर के पास ही एक भोजनालय था जहां से रोटी सब्जी बंधवा कर मैं लॉज की घर की सीढ़ियां चढ़ने लगा।



रात का खाना बनाने की तो झंझट ही खत्म

वरना सत्यजीत की हाथों की फुल्की रोटियां खा कर तो पेट ही फूल गया है।



घर की दहलीज पर पहुंचकर जैसे ही दरवाज़ा खटखटाया

क्या देखता हूं इंस्पेक्टर साहब ने दरवाजा खोला



आइए आईए अरूप जी अंदर आइए।



आपका ही इंतजार था



सत्यजीत भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

मेरे अंदर घुसते ही इंस्पेक्टर बोला



अरे अरूप बाबू चाय पिलाएंगे

मन तो किया साफ ना बोल दूं पर सर हिलाते हुए में रसोई में चला गया।



एक कप मेरे लिए भी अरूप

वो क्या है ना तुम्हारे हाथों की चाय का स्वाद अलग ही होता है।

सत्यजीत हंसते हुए बोला



हां भई बना रहा हूं



चाय बनाते बनाते मेरा ध्यान दोनों की बातों



सत्यजीत बाबू पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी आ गई

जिसके अनुसार हत्यारे के पहले सुदर्शन बाबू को क्लोरोफॉर्म सूंघा कर बेहोश किया गया और उसके कुछ देर बाद बेहोशी की हालत में बेरहमी से सीने में खंजर डाल दिया गया।





ओह हो इतनी बेरहमी



इंस्पेक्टर साहब इतनी जांच पड़ताल के दौरान किसी का नाम आया

सुदर्शन बाबू की किसी से दुश्मनी मतभेद कुछ तो होगा।



नहीं सत्यजीत बाबू दुश्मन का तो पता नहीं पर हां एक दोस्त का पता जरूर चला है।

वकील बाबू वारदात के दिन पूरे दिन भर वकील बाबू वहीं थे।

बूढ़ा दिन भर शतरंज खेल रहा था।



कल मिल लेंगे उनसे भी







ये लीजिए गरमा गर्म चाय।



धन्यवाद अरूप बाबू



वाह अरूप बाबू चाय तो बड़ी शानदार बनी है।

बहुत खूब


धन्यवाद इंस्पेक्टर बाबू



अरूप तुम भी तो बैठो सत्यजीत ने मेरा हाथ खींच कर मुझे कुर्सी की तरफ घुमाया



तो सुनिए पलाश बाबू और अरूप तुम भी सुनो

अभी तक की कहानी का ढाँचा





एक बूढ़े व्यक्ति की हत्या हुई है

घर में केवल नौकर था वो भी उसके अनुसार शाम सात बजे की बस से गांव निकल गया

एक वृद्ध व्यक्ति और था वकील बाबू सो वो भी शाम को नौकर के मुताबिक छः बजे चले गए थे।

सवेरे बेटी आई थी

बेटा कहता है पिताजी कभी मिलता ही नहीं।

बहु केवल शनिवार को दवाईया देने जाती है
शिक्षक महोदय के अनुसार उनकी भी मुलाकात नही हुई नौकरी छीन लो गई हैं

और एक देवाशीष अत्यंत महा विनाशकारी बुद्धि

झगड़ालू ,नशेबाज , लौंडिया बाज , नजाने और क्या क्या ।



लगता है पछता रहे है सत्यजीत बाबू सोच रहे होंगे किस चिड़िया घर में फंस गया।

अरे ऐसे ही नहीं कहते पुलिस वालो का काम कठिन होता है। इंस्पेक्टर बाबू बोले
समय काफी हो गया है
मैं चलता हूं

अरे ऐसे कैसे खाना खाकर जाइए अरूप के हाथों का स्वादिष्ट भोजन। सत्यजीत बोला।


आप इतना ही जोर देते हैं तो ठीक है अरूप बाबू क्या खिला रहे आज विशेष

मैं सत्यजीत की तरफ घूर कर देखा
आप जो चाहें इंस्पेक्टर बाबू

अरे हां हां बताइए इंस्पेक्टर बाबू क्या खायेंगे
शाही पनीर, मछली, बताइए बताइए हमारे प्रिय मित्र अरूप बनायेगे

रहने दीजिए सत्यजीत बाबू किसी और दिन जरुर अरूप जी के हाथो का खाना खायेंगे अभी तो मैं निकलता हूं हमारी धर्मपत्नी ने भी घर पर खाना बनाया होगा।

ये सुनते ही मैं तेजी से बोला
आप इतना ही कह रहे हैं इंस्पेक्टर तो ठीक है
पर आज मना हो गया पर अगली बार कोई बहाना नहीं चलेगा।


पलाश बाबू तो चले गए अब मुझे तो खाना मिलेगा ना अरूप
देखो सत्यजीत तुम तो अच्छा चक्रवूह रचते हो
पहले तो खुद इंस्पेक्टर से दोस्ती जमा ली वाह वाह पलाश बाबू..
फिर चाय पानी और खाना भी

अरे मज़ाक कर रहा था तुम तो गुस्सा हो गए बंधु

चलो गरमा गरम खाना खा लिया जाए
सुबह फिर से निकलना है तहकीकात पर।

थकान से चूर ऐसी स्थिति हो गई थी की कब नींद आई पता नहीं चला

अगली सुबह जब नींद खुली तो सत्यजीत खिड़की पर बैठा अखबार पढ़ रहा था।
मेरे उठते ही मेरे लिए उठ कर चाय का प्याला ले आया।

ये लीजिए अरूप बाबू चाय पीजिए।
क्या बात है सत्यजीत आज बड़े दिनों बाद अख़बार पढ़ रहे हो
कुछ विशेष छपा है क्या।

क्या विशेष अरूप आधे पन्नो में क्राइम और बाकी में विज्ञापन।

और तुम भी नहा कर तैयार हो जाओ आज वकील बाबू के यहां जाना है।

में नहा धोकर तैयार होकर बाहर निकला तो सत्यजीत बालकनी में खड़ा हालदार बाबू से बातें कर रहा था।
अपनी बालकनी में खड़े मुझे देखते ही बोले

वाह अरूप वाह अब तो तुम्हारी पुलिस वालो से भी मित्रता बढ़ गई हैं।
सत्यजीत ने बताया मुझे कैसे इंस्पेक्टर साहब तुम्हारे हाथों की चाय पीने घर तक आ गए थे।
और कैसे तुम पूरे मामले की हर एक सूचना पर कड़ी नजर रखे हो।
वाह बेटे मुझे तो गर्व होता है खुद पर की तुम दोनो मेरे यहां रहते हो।

धन्यवाद हालदार बाबू मिलते हैं फिर शाम को ठीक है।सत्यजीत बोला

घर पर ताला मारकर दोनो गली में पहुंचे
नीचे खड़ी टैक्सी को इंस्पेक्टर साहब का दिया हुआ पता पकड़ाया
और पन्द्रह मिनट में उसने हमें एक कोठी बाहर छोड़ दिया।
जिसके गेट पर बोर्ड लगा हुआ था
अधिवक्ता चरण दास चटर्जी

ये ही वकील बाबू का घर है
दो पुलिस वाले मुख्य दरवाजे पर कुर्सी पर बैठे धूप सेंक रहे थे।
हमें देखते ही एक बोला

कौन हो तुम

वकील बाबू से मिलने आए हैं पूछताछ करनी है मैं बोला

तुम पुलिस वाले हो क्या
नही पुलिस वाले नहीं हैं।
में अरूप हूं और ये सत्यजीत

अरे आप ही सत्यजीत बाबू है इंस्पेक्टर साहब ने बोला है आप आयेंगे

जाइए आप अंदर जाइए।
सत्यजीत का नाम लेते ही पुलिस वाले हमारे पीछे हो गए और वकील साहब के कमरे में हमें ले गए
वकील साहब के घर में केवल किताबें और पुरानी पड़ी बहुत चीजे थी पुरानी ग्लोब पुरानी ट्रॉफी पुरानी मूर्तियां
जैसे ही हम वकील साहब के कमरे में गए
वकील बाबू जो लेटे हुए थे खड़े होने लगे।

आइए सत्यजीत बाबू आइए लड़खड़ाती आवाज में वकील साहब बोले।

नमस्ते वकील साहब
नमस्ते नमस्ते सत्यजीत बाबू।
अरे ये लड़का तो देखा देखा लगता है अरे आप तो। हालदार बाबू के यहां रहते हैं न
वकील बाबू मुझे देखते हुए बोले

जी वकील साहब ये भी वही रहते हैं और में भी
आप बताए आप कैसे हैं अब

क्या बताऊं उस दिन सुदर्शन ने मुझे बहुत बार कहा रुक जाओ पर मेरा स्वस्थ कुछ ठीक नहीं था।
तो में घर आ गया।
उस दिन से बुखार से तपा हुआ हूं और हादसे की खबर सुनकर तो अब मन भी नहीं करता ठीक होने का।

छोड़िए ये सब आप पूछिए

वकील साहब आप तो सुदर्शन बाबू के मित्र थे
आप तो कुछ ना कुछ जरूर जानते होंगे
मित्र तो बचपन से थे।
सुदर्शन ने अपना कारोबार संभाला और में वकालत के लिए विदेश चला गया
फिर जब वापस आया तो सुदर्शन अपना घर बार बसा चुका था।
और मै अकेला ही रहा ये शादी ब्याह के बारे में कभी सोचा नहीं

बुढ़ापे में तो दोनो अकेले ही हो गए थे
अकेले रहता था वो पर उसे बेटा बहु के साथ रहना सहज नहीं लगता था
कहता किसी की रोटी के लिए कब तक इंतजार कब तक करूंगा
पूरी जवानी काम को से दी
अब बुढ़ापा प्रेम से काटूंगा।
बेचारा
बात को बदलते हुए सत्यजीत कहने लगा
वकील बाबू आप उनकी वसीयत के बारे में जानते है।
हां में जानता हूं पर शायद वैसे तो अब वो ही जा चुका है राज़ क्या रहेगा
सुदर्शन की कोई एक नही कई वसीयत थी

पहली वसीयत में उसने अपने बेटा बेटी के बीच बराबर हिस्से किए थे।
पर जब हरिनाथ ने पिता को अकेला छोड़ दिया
तो
सुदर्शन ने दूसरी वसीयत बनाई जिसमे उसने दोनो पोतो और करुणा के के नाम और बहुत सा हिस्सा उस अनाथ लड़की के नाम भी कर दिया था।

पर नजाने उसे एक दिन क्या सूझी
अभी हाल ही में पिछले हफ्ते ।
कहने लगा
पूरा जीवन परिवार के धागे सुलझाते हुए इतना उलझ गया हूं की कोई भी धागा खींचो दवाब मुझ पर ही बनता है।
सोचता हूं अब इन सब से कट लिया जाए और अपना परलोक भी तो सुधारना है।
में उसकी बातों को कुछ समझा नहीं
पता नहीं क्या चल रहा था दिमाग में
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।

आ जाऊं अंदर
हां आइए
अरे शिक्षक बाबू आप
ये तो करुणा के पति विजय बाबू थे।
शिक्षक महोदय आप यहां
जी सत्यजीत बाबू चाचा जी से मिलने आया था
तभी पीछे से वकील साहब बोले अरे सत्यजीत बाबू जी आने दीजिए विजय मेरा भतीजा है दवाइयां लाया होगा।
ये लीजिए चाचा जी आपकी दवाईयां
आप समय से ले लीजिएगा
सत्यजीत बाबू अब इजाजत दीजिए
जी
विजय बाबू दवाईयो का पैकेट पकड़ा कर जल्दी में निकल गए।
वकील बाबू पैकेट से दवाईयां निकलते हुए कहने लगे
विजय है तो मेरा भतीजा मगर मुझे पिता समान मानता है
अध्यापन की तैयारी के लिए मेरे पास आया था तभी एक दिन सुदर्शन की नजर विजय पर पड़ी और उसने उसे अपना दामाद बनाने की ठान ली

वकील साहब ने दवाई खाई और लेट गए
वकील साहब आप क्या बोल रहे थे
मैं क्या बोलूं सत्यजीत बाबू घर के अंदर का तो मैं कुछ नहीं बता सकता
क्या आपके पास उनकी वसीयत की कोई प्रति है
नहीं मेरे पास तो कुछ नहीं है सुदर्शन हमेशा से अपनी वसीयत को गुप्त रखना चाहता था।
बोलते बोलते वकील बाबू की सांसे तेज चढ़ने लगी
मैंने बाहर खड़े डॉक्टर साहब को बुलाया।
डॉक्टर ने परीक्षण किया और हमें बाहर जाने का इशारा।
वकील बाबू के घर से बाहर निकलते ही

बाहर एक गाड़ी खड़ी थी पुलिस की गाड़ी
जिसके शीशे से एक हाथ ने हमें पास आने का इशारा किया

में और सत्यजीत गाड़ी के पास गए तो अंदर इंस्पेक्टर पलाश बाबू थे
उन्होंने हमें पीछे की सीट में बैठने को कहा
हम दोनो पीछे जा बैठे तभी पलाश बाबू कहने लगे
सत्यजीत बाबू हम गिरफ्तारी के लिए जा रहे है
सत्यजीत चौंक कर बोला किसकी गिरफ्तारी
सत्यजीत बाबू हरिनाथ के बेटे सुधांशु की आस पास के लोगो से पूछताछ करने पर पता चला है कि सुधांसु उस रात
बारह एक बजे के आस पास सुदर्शन बाबू की गली में घूम रहा था।
घूम रहा था कत्ल करने के बाद मैं बोला
छोड़ो अरूप इंस्पेक्टर साहब के साथ चल लेते हैं
अगर सुधांसु ही कातिल है तो जरूर पकड़ा जाएगा।





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