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कर्म पथ पर - 59

कर्म पथ पर
Chapter 59



माधुरी स्टेशन के बाहर निकल रही थी। पीछे से कुली उसका सामान लेकर चल रहा था। वह पहचान में ना आ सके इसलिए कल घर से ही अपना हुलिया बदल कर निकली थी। हमेशा की तरह साड़ी ना पहन कर उसने स्कर्ट ब्लाऊज़ पहन रखा था। शादी के बाद स्टीफन ने उसे खरीद कर दिया था। उसने एक दो बार पहना था। पर स्टीफन ने कहा था कि वह साड़ी में बहुत सुंदर लगती है। इसलिए वैसे ही रखा था।
सर पर स्कार्फ इस तरह से बांध रखा था कि चेहरा बहुत हद तक ढका हुआ था। आँखों पर काला चश्मा पहन रखा था। वह जल्दी से स्टेशन से निकल कर मिस्टर बार्न के घर जाना चाहती थी।
वह अपने विचारों में चली जा रही थी कि तभी सामने से आते एक व्यक्ति से टकरा गई। वह गिर पड़ी। टकराने वाले शख्स ने माफी मांगते हुए माधुरी को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया। उसकी शक्ल देखकर माधुरी के मुंह से निकला,
"जय भइया...."
जय कुछ क्षणों तक उसके चेहरे को देखता रहा। नए रूप में माधुरी को देखकर उसे अचरज हो रहा था। उसने पूँछा,
"तुम यहाँ कैसे ? स्टीफन कहाँ है ?"
माधुरी की आँखें भर आईं। उसने कहा,
"स्टीफन अब इस दुनिया में नहीं हैं।"
सुनकर जय को धक्का लगा। उसने पूँछा,
"कब हुआ यह ? कैसे ?"
"भइया यहाँ यह सब बताना कठिन है।"
जय भी विष्णु के एक रिश्तेदार को लेने स्टेशन आया था। वह इन दिनों विष्णु के काम से लखनऊ में था। विष्णु की तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए वह उनके रिश्तेदार को लेने आ गया था। उनकी गाड़ी आने का समय हो गया था। पर उसे माधुरी के बारे में सब जानना था।
माधुरी भी उसे सब कुछ बताना चाहती थी। उसने कहा,
"भइया शाम को मुझे पंजाब के लिए ट्रेन पकड़नी है। तब तक मैं यहीं स्टेशन के पास मिस्टर बार्न के घर रुकूँगी। आप मुझसे वहीं आकर मिलिए।"
माधुरी ने उसे मिस्टर बार्न के घर का पता बता दिया। जय ने कहा कि वह विष्णु के रिश्तेदार को पहुँचाकर दोपहर बाद आएगा।

नहा धोकर तैयार होने के बाद माधुरी मिस्टर बार्न के साथ नाश्ता कर रही थी। स्टीफन के बारे में जानकर उन्हें बहुत दुख पहुँचा था। वह माधुरी को सांत्वना देते हुए बोले,
"बहुत अच्छा आदमी था स्टीफन। हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था। उसकी इस तरह हत्या हो गई सुनकर बहुत बुरा लगा।"
माधुरी उदास हो गई।‌ उसे खुश करने के लिए मिस्टर बार्न बोले,
"पर अब जो बच्चा आएगा तुम उसके साथ सुख से रहना।"
माधुरी मुस्कुरा दी। मिस्टर बार्न ने कहा,
"शाम की ट्रेन से तुम अपने माता पिता के पास जा रही हो। अच्छा फैसला है। वह तुम्हारी अच्छी देखभाल कर सकेंगे।"
"जी तभी तो उनके पास जा रही हूँ।"
नाश्ता खत्म करके मिस्टर बार्न बोले,
"माफ करना माधुरी मुझे किसी आवश्यक काम से जाना है। पर तुम आराम से रहो। जो चाहिए शर्ली से कह देना। वो मेरी बेटी की तरह है। मेरी देखभाल करती है।"
माधुरी मिस्टर बार्न को जय के बारे में बताना चाहती थी। उसने कहा,
"कोई बात नहीं। आप इत्मिनान से जाइए। बस एक इजाज़त लेनी थी आपसे।"
"कैसी इजाज़त ? बोलो..."
"आज स्टेशन पर मेरे पुराने जानने वाले मिस्टर जयदेव टंडन मिले थे। मैं उन्हें अपना भाई मानती हूँ। उस समय ठीक से बात नहीं हो पाई थी। मैंने उन्हें यहाँ का पता दे दिया था। शायद दोपहर में जय भइया आएं।"
"कोई बात नहीं। तुम अपने भाई का स्वागत करना। मैं भी तुम्हारे जाने से पहले आ जाऊँगा।"
मिस्टर बार्न अपने काम से चले गए। माधुरी बाहर गार्डन में आकर बैठ गई। अभी सर्दियों ने दस्तक ही दी थी। हवा चल रही थी। पर गार्डन में फैली गुनगुनी धूप में बैठना अच्छा लग रहा। कुछ देर धूप में बैठने के बाद माधुरी गार्डन में घूम कर वहाँ लगे पौधों को देखने लगी।
मिस्टर बार्न का घर बहुत सुंदर और बड़ा था। सामने की तरफ अलग अलग तरह के फूलों के पौधे थे। बैकयार्ड में आम, शहतूत, बेल और नींबू के पेड़ थे। माधुरी को उन पेड़ों के बीच बहुत अच्छा लग रहा था। तभी उसका ध्यान एक गिलहरी की तरफ गया। वह बार बार पेड़ से उतर कर नीचे आती। उसे टकटकी लगाकर देखती। फिर वापस पेड़ पर चढ़ जाती। ऐसा लग रहा था कि जैसे वो कोई खेल कर रही हो। माधुरी को उसका यह खेल बहुत पसंद आ रहा था।
गिलहरी पेड़ से उतर रही थी कि अचानक ही वापस भाग गई। माधुरी ने पीछे मुड़कर देखा। शर्ली थी। वह पूँछने आई थी कि लंच में क्या बनाए। माधुरी बताने जा रही थी कि तभी उसे एक बात सूझी। उसने कहा,
"शर्ली अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं तुम्हारे किचन में खाना बना लूँ।"
माधुरी का जवाब सुनकर शर्ली असमंजस में पड़ गई। माधुरी ने समझाया,
"दरअसल मेरे मुंह बोले भाई आने वाले हैं। मैं उनके लिए खाना बनाना चाहती हूँ।"
शर्ली क्या कहती। वह मान गई।
"जैसा आप चाहें। पर किसी भी तरह की मदद चाहिए तो मुझे बताइएगा।"
माधुरी शर्ली के साथ किचन में खाना बनाने चली गई।

जय को देखते ही माधुरी खुद पर काबू नहीं रख पाई। वह उसके सीने से लग कर रोने लगी। जय भी भावुक हो गया। वह माधुरी के सर पर हाथ फेरता रहा। कुछ देर बाद जब माधुरी का मन कुछ हल्का हुआ तो जय ने पूँछा,
"अब बताओ कि स्टीफन के साथ क्या हुआ ? जबसे उसकी मौत की खबर सुनी मुझे चैन नहीं है।"
माधुरी ने उसे उस रात की सारी घटना बताई। वह रोते हुए बोली,
"भइया कुछ ही देर में सब कुछ लुट गया। मैं स्टीफन को नहीं बचा पाई।"
जय ने उसे चुप कराते हुए कहा,
"मुझे तो शक है कि यह उस हैमिल्टन का किया हुआ है।"
"हाँ भइया... यकीनन उसका किया हुआ ही है। तभी मैं खतरा भांपते ही वहाँ से चली आई। वह पता ना कर सके इसलिए वहाँ किसी को नहीं बताया कि पंजाब जा रही हूँ। पहले लखनऊ आई। अब यहाँ से पंजाब जाऊँगी।"
"तुमने बहुत हिम्मत और होशियारी दिखाई माधुरी।"
माधुरी ने अपने पेट पर हाथ रखकर कहा,
"मुझे इसकी हिफाजत भी करनी थी।"
जय के चेहरे पर खुशी और आश्चर्य एक साथ झलके। माधुरी ने कहा,
"कुछ ही महीनों में आप मामा बन जाएंगे।"
जय खुशी से माधुरी का माथा चूम लिया। आशीर्वाद देते हुए बोला,
"भगवान करे इसे दुनिया की हर खुशी नसीब हो।"
जय ने अपनी जेब में हाथ डाल कर कुछ पैसे निकाले। उन्हें माधुरी के हाथ में देते हुए बोला,
"आने वाले बच्चे को उसके मामा की तरफ से भेंट है।"
माधुरी ने जय‌ की तरफ देखकर कहा,
"जब ये आएगा तब खुद ही देना भइया।"
जय ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"बहन मैंने अपनी राह चुन ली है। इस राह पर चलते हुए मैं कल कहाँ होऊँगा कह नहीं सकता। पता नहीं मैं इससे मिलकर इसे यह भेंट दे पाऊँगा या नहीं। इसलिए ये ज़िम्मेदारी मैं तुम्हें सौंप रहा हूँ।"
माधुरी ने पैसे रख लिए। वह बोली,
"मैं यह सोच कर पैसे रख रही हूँ कि जिस दिन आप इससे मिलेगे तब आपके हाथ से दिलवाऊँगी।"
"तुम्हें लगता है कि मैं इससे मिलूँगा ?"
"बिल्कुल.... देखिए ना आज अचानक सुबह हम स्टेशन पर मिल गए। मैं और स्टीफन अक्सर आपके बारे में बात करते थे। स्टीफन ने मुझे बताया था कि आपने अपना घर छोड़ दिया है। पर आप कहाँ हैं हमें नहीं पता था। भइया बताइए ना कि आजकल आप कहाँ है ?"
जय ने माधुरी को सारी बात बताई। कैसे उसने अपना घर छोड़ा, विष्णु के यहाँ नौकरी की, अब वह वृंदा के साथ मिलकर समाज निर्माण का कार्य कर रहा है।
सब सुनकर माधुरी ने कहा,
"मैं अपने बच्चे को बताऊँगी कि कैसे उसके मामा ने देश और समाज की सेवा के लिए घर का सुख और आराम छोड़ दिया।‌ मैं उसे ‌आपके जैसा बनने की प्रेरणा दूँगी।"
जय माधुरी को देखकर सोंच रहा था। कितनी बहादुर लड़की है ? इतनी छोटी सी उम्र में उसने कितना कुछ झेला है। फिर भी अपने अच्छे भविष्य के बारे में सोंच रही है। वह बोला,
"जिसकी माँ इतनी बहादुर हो उस बच्चे को किसी और से प्रेरणा लेने की क्या आवश्यकता है ?"
माधुरी ने कहा,
"मेरी बहादुरी की वजह स्टीफन हैं। उनके प्यार ने ही मेरे अंदर यह ताकत पैदा की है।"
"अब क्या करोगी ?"
"भइया पहले तो इसे सुरक्षित दुनिया में लाना है। फिर स्टीफन का सपना पूरा करना है। वो चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूँ।"
"ईश्वर तुम्हारे उद्देश्य को पूरा करने में तुम्हारी सहायता करें।"
शर्ली ने आकर पूँछा,
"खाना लगा दूँ।"
माधुरी ने हाँ कर दी। जय यह जानकर बड़ा खुश हुआ कि खाना माधुरी ने बनाया है। खाना खाते हुए दोनों भाई बहन आने वाले जीवन के बारे में बातें करते रहे। जाते हुए जय ने कहा कि अभी वह किसी काम से जा रहा है। माधुरी तैयार रहे वह उसे ट्रेन में बैठाने के लिए आएगा।
माधुरी ने सुबह की तरह ही स्कर्ट ब्लाऊज़ पहन रखा था। ट्रेन के चलने वाली थी। उसका सामान डिब्बे में रखवा कर जय ने माधुरी को ट्रेन में चढ़ा दिया। विदा लेते हुए वह बोला,
"अपना खयाल रखना। संभल कर जाना।"
"आप चिंता ना करिए भइया।"
"मैंने तुम्हें विष्णु जी का पता लिखकर दिया है। बच्चे के आने पर उस पते पर चिट्ठी भेजना। मैं इंतज़ार करूँगा।"
ट्रेन ने सींटी दी। धीरे धीरे प्लेटफार्म से निकलने लगी। माधुरी हाथ हिलाकर विदा ले रही थी। जय मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि माधुरी सुरक्षित रहे।