Siya ke Raam books and stories free download online pdf in English

सिया के राम

सिया ओ सिया उठ जा बेटा स्कूल के लिए देरी हो जाएगी, ऐसे ही शांति बहन आवाज़ दे दे कर हर रोज़ सिया को उठाते, सिया भी उठने में बड़ी देर लगाती, सुबह जल्दी उठना उसे बिलकुल पसंद नहीं था, सिया शांति बहन की एक ही लाड़ली बेटी थी, छोटी थी तब ही उनके पति की हार्ट अटेक में मोत हो गयी थी, घर का बिज़नेस, सिया को बड़ा करना,घर, ये सब शांति बहन ने अकेले हाथों ही सम्भाला, हाँ पर इसमें रमिला बहन और मोहन भाई का बड़ा साथ रहा, वे उनके फ़ैमिलीफ़्रेंड थे.उनका बेटा निकुंज और सिया साथ ही पले बड़े, दोनो को एकदूसरे के बगेर नहीं चलता था, साथ खेलते, जगड़ते फिर वापस दोस्त बन जाते.

सिया फटाफट रेडी होकर आ गयी, लगभग भागते हुए ही बोली,

मोम...जय श्री कृष्ण में स्कूल जा रही हूँ.

किचन से दोड़ते हुए शांति बहन आयी और बोली.

अरे कहा भागी जा रही हो अपना टिफ़िन तो ले जाओ.. ज़रा जल्दी उठने में क्या जाता हे तेरा?? फिर भगदोड मचा देती हे..

सिया जल्दी अपना टिफ़िन बॉक्स लिया और जाने लगी.

शांति बहन- अच्छा सुन मेने निकूज के लिए भी सेंडविच रखी हे खिला देना उसे...

सिया- ठीक हे मोम...

एकदम फ़ुल स्पीड में सायकल चलाकर वो नुक्कड़ तक आ गयी वहाँ निकुंज पहले से उसकी राह देख रहा था बिना सायकल रोके सिया बोली चल रेस लगाते हे कोन पोहचेगा पहेले स्कूल?? निकुंज रेस में जुड़ गया,

निकुंज- इतनी देर क्यू लगाती हे आज फिर से देरी से उठी?? तेरी वजह से मुजे भी देर हो जाती हे.

सिया- कोन कहता हे तुजे मेरी राह देखा कर, चला ज़ाया कर ना अकेला.

निकुंज- तुजे पता हे में नहीं जाने वाला तेरे बिना फिर भी...

लड़ते जगड़ते दोनो स्कूल पोंचे, जल्दी से सायकल पार्क की और दोड़ने लगे क्लास की और, जब क्लास नज़दीक आया तो सिया ने निकुंज को हल्का सा धक्का दिया और पहेले ही पहोंच गयी, फिर निकुंज के सामने मुँह बनाकर चिडाने लगी क्यू आज भी हार गया ना??

सिया की बच्ची तूने धक्का दिया, चिटिंग की तूने...बाद में देख लूँगा तुजे.

स्कूल प्राथना में भी सिया निकुंज को इसारे से चिड़ाती रही, पहेला क्लास ही साइयन्स का था, यानी लीला मेम का, लीला मेम को देखते ही सिया के तो जेसे तोते ही उड़ गए... अरे बाप रे होम वर्क की बुक तो घर पर ही रह गयी, अब क्या करूँ?? लीला मेम तो जान ही ले लेगी बहुत सख़्त हे मेम, उसने लाचारी में निकुंज की और देखा, निकुंज सिया को देखते ही समज गया. उसने धीरे से अपनी होम बुक सिया की तरफ़ सरका दी, सिया कुछ सोच बोल पाती की मेम आ गयी पास में...

मेम- हाँ तो सिया अपना होमवर्क दिखाओ. सिया ने बिलकुल ना मन से निकुंज की बुक दिखादी. मेम ने जब निकुंज का होम वर्क माँगा तो निकुंज नहीं बता पाया फिर क्या?मेम ने उसे धूप में खड़े रहने की सजा दे दी.

सिया को अच्छा नहीं लगा पर क्या करे हर बार सिया कुछ ना कुछ उल्टा सीधा करती और हर बार निकुंज उसे बचाता, सिया अपने बचपने में ही रहती, और निकुंज से लड़ती जगड़ती रहती, ऐसे ही दोनो कब बड़े हो गए ये पता ही नहीं चला दोनो ने १२ तक पास करली. निकुंज ने इंजीनियरी में प्रवेश ले लिया अब वो अपनी मोसी के यहाँ पढ़ने जाने वाला था, निकुंज इस बात से थोड़ा दुखी था.बचपन से लेकर आजतक वो सिया के साथ रहा, पढ़ना,लिखना, खेलना या फिर कोई भी बात हो उसको बताना इन सबकी जेसे उसे आदत पड़ गयी थी, समज ही नहीं पा रहा था किस फ़ीलिंग से गुज़र रहा हे, वो चाहता था कि सिया कुछ बोले, उसके जाने से माना करे, या फिर उसके जाने से रूठ जाए.

पर इस तरफ़ सिया को कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता था, वो कुछ भी नहीं सोचती थी. ऊपर से निकुंज को बोलती की क्या बात हे?? निकुंज बड़ा नसीबवाला हे बड़े शहेर में जाएगा, नए फ़्रेंड्ज़ बनाएगा, और वो कोलेज वाली लाइफ़ जिएगा, और हमें देख वही छोटे से शहेर में उन्ही दोस्तों के साथ रहेंगे.

निकुंज- तो क्या तुजे बिलकुल फ़र्क़ नहीं पड़ता? तुजे मेरी याद ज़रा भी नहीं आएगी??

सिया - ना बिलकुल नहीं.. चिड़ाते हुए वो भाग गयी.

पर कुछ था दबा दबा सा निकुंज के मन में पर समज नहीं पा रहा था.. अगली सुबह ही वो मोसी के घर जाने के लिए निकल पड़ा. सिया आयी थी उसे छोड़ने के लिए, निकुंज ने देखा वो ज़रा भी उदास नहीं थी.

६ महीने बीत गए निकुंज को गए, पर सिया की याद कम नहीं हो पायी, लगभग हर बात वो लैटर के ज़रिए सिया को बताता, उसके ५ लैटर के जवाब में सिया सिर्फ़ एक ही लैटर लिखती वो भी सिर्फ़ दो लाइन, अच्छी हूँ तू अपना ध्यान रख, निकुंज समज नहीं पा रहा था के इतने सालो की दोस्ती सिर्फ़ दो लाइन में केसे आ सकती हे क्या सिया मुजे ज़रा भी नहीं याद नहीं करती होंगी??? और वो उदास हो जाता.

इधर सिया ने अपने ही शहेर की कोलेज में दाख़िला ले लिया था,कोलेज में आते ही सिया को जेसे अपनी ख़ूबसूरती का अहेसास होने लगा, नए फ़्रेंड्ज़, नए माहोल में जेसे रंग गयी, स्वाति उसकी नयी फ़्रेंड बनी थी, दोनो कोलेज में साथ ही रहा करती.

स्वाति- तू आ रही हे ना न्यू कमर्स पार्टी में??

सिया- मोम से पूछना पड़ेगा??

स्वाति- ओह अभी भी मोम की गुड़िया बनी हुई हे ? बड़ी होजा..

सिया - ठीक हे चल मिलती हूँ शाम को..

स्वाति - ये हुई ना बात..

निकुंज के चले जाने के बाद सिया को कही जाना हो , जेसे किसिकी बर्थडे पार्टी या फ़ंक्शन तो बहुत ही कम मंज़ूरी मिलती थी सिया को. जो सिया को बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, इसी बात पर वो हर बार मोम से दलील करती रहती, फिर बड़े बड़े आँशु निकालती,यही हथियार था किसी भी चीज़ की मंज़ूरी लेंने का सिया के पास, और शांति बहन उसे ना मन से ही सही जाने देती...

अपना नया पिंक वाला सूट,पहने अपने बाल खुले छोड़कर, हल्का सा चहेरे पर मेकअप करके जब वो जाने लगी तो शांति बहन उसे थोड़ी चिंता थोड़े डर से उसे देखती ही रह गयी.

शांति बहन - बेटा बहुत देर मत करना, आ जाना जल्दी, और किसिसे ज़्यादा घुलनेमिलने की ज़रूरत नहीं, ज़माना बहुत ख़राब हे, सम्भालना,

सिया- हाँ मोम, आप चिंता मत करो स्वाति मुजे छोड़ देगी और आप वही घिसी पिटी बात मत सुरु करो अब में बड़ी हो गयी हूँ हर बात पर मत टोका करो..

शांति बहन- मन में ही....बड़ी हो गयी हे यही तो हे चिंता मेरी..

सिया अपनी ही मस्ती में डूबी जा रही थी बार बार उसकी नज़र एक खूबसूरत लड़के का पीछा कर रही थी और उस लड़के की नज़र सिया को ढूँढ रही लुका छुपी का खेल स्वाति पहचान गयी.

स्वाति- किसे नज़रें मिला रही हे, वो जो सामने ब्लू टी- शर्ट में हे उसको???

सिया- नहीं तो में बस यूँही सब देख रही थी, पर वो हे कोन?? लोग उसके आगे पीछे क्यू मंडरा रहे हे??

स्वाति - वो सीनियर हे, कोलेज का दूसरा साल हे उसका, पार्टी उसने ही रखी हे.इस साल कोलेज इलेक्शन लड़ने वाला हे और ये पार्टी उसकी देंन हे.

बार बार एक दूसरे से नज़रें टकराते टकराते पीयूष आ ही गया पास, हाई हेलो से बातचीत आगे बढ़ी, अब सिया अपना पूरा टाइम उसके साथ बिताने लगी साल भर हो गया, उसके साथ गुमना, तस्वीरें खींचना ये सब होता रहा, पीयूष भी सिया पर खर्च करता रहा, आमिर बाप की ओलाद थी उसको तो जेसे सिया के रूप में एक खिलोना मिल गया था. पर अब फिर से कोलेज के न्यू एडमिशन सुरु हो गए थे अब पीयूष का मन कोई नया खिलोना पर आ गया और वो सिया को अनदेखा करने लगा. सिया उसके रास्ते का काँटा नज़र आ रही थी, फिर एकदिन उसने सबके सामने सिया को जलील किया, उसके लिखे लैटर कोलेज की दीवारों पर लगा देगा ये धमकियाँ देने लगा, सिया बिलकुल आवक सी रह गयी, डरने लगी, उसने कोलेज जाना ही बंध कर दिया पूरे दिन अपने रूम में पड़ी रहती, शान्ति बहन ने उसे पूछती तो ग़ुस्से से जवाब देती, मेरी मर्ज़ी नहीं जाना मुजे कोलेज. शान्ति बहन उसके दुःख और चिड़ चिड़ापन को पहेचान गयी, बोली.. कोई बात नहीं मुजे नहीं बताना तो शाम को निकुंज आ रहा हे उसे तो ज़रूर बताएगी ना कहकर चली गयी.

निकुंज घर जाने के लिए जेसे उतावला हो रहा था जो फ़ीलिंग अब तक समज में नहीं आ रही थी अब वो बिलकुल क्लीयर हो चुकी थी, उसे पता ही नहीं चला था कब वो सिया को प्यार करने लगा था, उसने तय कर लिया था जाते ही वो सिया को सबकूछ बताएगा, इसी ख़ुशी में कब घर का रास्ता कट गया वो भी नहीं पता चला पूरे रास्ते वो केसे सिया को बताएगा यही सोचता रहा.

शाम को जब निकुंज आया तो उसका व्यवहार और चिड़ चिड़ापन देख उल्जन में पड़ गया ज़रूर कुछ तो हुआ हे ये सोचकर अगले दिन वो कोलेज चला गया सिया की फ़्रेंड से मिलकर सारी बात जान ली, और बहुत ही ग़ुस्से से वो सीधे पीयूष के सामने जा पोचा. अच्छे से पिटायी कर उसके पास से वो सारे लैटर ले लिये. चेतावनी देकर छोड़ दिया.

ये सारी बात स्वाति ने सिया को फ़ोन के ज़रिए बता दी,थोड़े ही पल में एकदम ग़ुस्से में निकुंज आया उसने सारे लैटर सिया पर फेंक कर बोला ये लो सम्भालो, उलटी सीधी हरकतें करना अभी भी भूली नहीं और ज़ोर से दरवाज़ा पटक कर चला गया.अज़ीब सी बेचेनी सिया को होने लगी निकुंज का ग़ुस्सा, उसके चेहरे के भाव कुछ और ही बता रहे थे, निकुंज को देख आज सिया भी ना समजने वाली फ़ीलिंग से गुज़र रही थी, पूरी रात यही सोचने में निकाली क्या हे ?? फिर अचानक जेसे ऊछल पड़ी, जट से रेडी होकर नीचे आ गयी.

मोम क्या बनाया नास्ते में आपने??

सेंडविच जो निकुंज को भी बहुत पसंद हे, बेटी का अनोखा ख़ुशी वाला चहेरा देख शान्ति बहन को अच्छा लगा उन्होंने जल्द से सेंडविच पेक कर दी और बोली जा निकुंज को दे आ.

सिया लगभग दोड़ती हुई निकुंज से मिलने गयी, उसे देख निकुंज को और ग़ुस्सा आ गया.

सिया- अगर में इतना ही उल्टा सीधा करती हूँ तो गए ही क्यू थे मुजे छोड़के??

निकुंज- हाँ गया था, पर तुमने भी तो नहीं रोका.

सिया- तो अब रोकती हूँ, कभी अपनी सिया को छोड़के मत जाना. सिया के राम.