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एक परछाई

एक प्यारी सी बच्ची रिया जो पांचवी कक्षा की छात्रा थी। वह शहर के सबसे अच्छे स्कूल डी•पी•एस इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ती थी। स्कूल में उसका बहुत मन लगता था। वह अपनी सहेलियों के साथ खूब मस्ती करती थी। पढ़ने में भी वह बहुत अच्छी थी और हर साल कक्षा में अव्वल नंबर पर आती थी।
उसका स्कूल है ही इतना अच्छा था, शहर के बीचो बीच इतनी सुंदर जगह पर। हर तरफ जैसे रौनक ही रौनक दिखाई देती थी। छोटे-छोटे बच्चों की चहल-पहल, खेलना-कूदना हर समय से लगा रहता था जैसे के कई सारे पक्षीयों की आवाज़ें जन्नत का नजारा एक ही जगह पर बिखेर रहे हो। डी•पी•एस इंटरनेशनल स्कूल शहर में नंबर एक पर था , स्कूल की 2 बिल्डिंग ए बनी हुई थी। चारों तरफ इतनी हरियाली थी , रंग बिरंगे फूलों की महक हर तरफ बिखरी रहती थी। स्कूल के चारों तरफ़ खेल के मैदान बने हुए थे।
स्कूल की कई मंजिले थी। दो बिल्डिंगें साथ-साथ में बनी हुई थी। एक बिल्डिंग में कक्षा प्रथम से पांचवी तक की कक्षाएं थी। दूसरी तरफ कक्षा 6 से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं थे। इस साल रिया को एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग में जाना था इसलिए वह बहुत खुश थी और वह कक्षा छ: में पढ़ने जा रही थी। रिया बहुत खुश थी। उसका नतीजा घोषित हो चुका था, उसने पहले से भी अच्छे नंबरों से अपने इम्तिहान पास किए थे। अब वह छठी कक्षा में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी। जब वह दूसरी बिल्डिंग में जाना शुरु करती है तो थोड़े दिन तो वह बहुत खुश होती है।
वह अपनी सहेलियों के साथ खूब मस्ती करती थी। नई बिल्डिंग और नई स्थान को अच्छे से समझती है और घूम के देखती है। रिया की कक्षा का कमरा तीसरी मंजिल पर होता है, वह अपनी सहेली से बातें करती हुई हर रोज सीढ़ियों से निकलती है। अचानक ........ एक दिन उसकी नजर पांचवी मंजिल के एक अजीब से कमरे पर जाती है, वहां पर साथ में ही लाइब्रेरी बनी थी, उसके नीचे वाली बिल्डिंग में कंप्यूटर लैब बनी है। स्कूल के ज्यादातर बच्चे कंप्यूटर लैब तक ही जाते थे लाइब्रेरी तक कुछ सीमित कक्षाएं ही जाती थी। स्कूल की मुख्य अध्यापिका ने पांचवीं मंजिल पर कम से कम जाने को कहा था। रिया के मन में अजीब से सवाल थे।
अचानक रिया के मन में एक अजीब सी कशिश होने लगी, वह सोच रही थी कि वह कमरे में कुछ अजीब सा लग रहा है। वह सारे कक्मरों से अलग का दिखता है । वह सही से उस कमरे को देख नहीं पाई परंतु उसके मन में एक जिज्ञासा सी उत्पन्न हो गई थी, उसने अपने सहेली मोना से भी पूछा कि उसके मन में इसके बारे में क्या विचार है तो मोना ने कहा कि- "छोड़ यार! जो अध्यापक कह रहे हैं वह मान लेते हैं हमने क्या करना है ऊपर किसी कमरे में जाकर। हमारा वहां पर क्या काम है? हम इधर ही ठीक है ....... देखो हमारे स्कूल में हर चीज हमें मिल रही है। हम यहां सिर्फ पढ़ने आते हैं और पढ़ाई करके निकल जाते हैं और ज्यादा सोचने और समझने की हमें जरूरत नहीं है" मोना इतना कहते ही उसको खेल के मैदान में ले जाती है। वह कहती है "चलो हम कोई खेल खेलते हैं ताकि तेरा ध्यान उधर से निकल जाए"। वे दोनों खेलने लग जाती है पर रिया का ध्यान बार-बार उसी तरफ जाता है। वह सोच रही थी कि कुछ तो है जो मोना सुनना नहीं चाहती पर मैं ऐसे चुप नहीं बैठ सकती, मेरा ध्यान ऐसे क्यों भटक जाता है, ऐसे तो मैं पढ़ाई भी नहीं कर पाऊंगी। इतने सोच विचार करने के बाद रिया खेल का मैदान छोड़कर अपनी कक्षा में आ जाती है। रिया गुमसुम से रहने लगती है। जब भी वह सीढ़ियों के आसपास आती है उसका ध्यान कमरे की तरफ जाता है और वह अंदर से डगमगा जाती है, उसको कंपकपि सी महसूस होती है।
बेच आना चाहती है कि आखिर है क्या.....…...? इस तरह रिया की जिज्ञासा और बढ़ती जा रही थी। जैसे तैसे करके रिया घर चली जाती है, पर घर पर भी उसका ध्यान काम में नहीं लगता। रिया के मन में वह कमरा बार-बार आता है जहां पर उसको कभी तो लाल रंग के शीशे और कभी काले रंग की परछाइयां दिखाई देती है। रिया सोचती है कि क्यों ना अपने माता-पिता से इसके बारे में बात की जाए, फिर एकदम से वह गुमसुम सी हो जाती है। उसके मन में यह ख्याल भी आता है कि कहीं माता-पिता घबराकर उसका स्कूल ना छुड़वा दे। यह सोचकर फिर वह चुप कर जाती है , अगले दिन फिर वे स्कूल जाने की तैयारी करती है, मन में बहुत सारे सवाल लेकर......

रिया स्कूल में खुशी से प्रवेश करती है। सहेलियों के साथ जब वह सीढ़ियों पर जा रही थी, तो फिर उसका ध्यान ऊपर को जाता है वह क्या देखती है कि एक अजीब से लड़के की परछाई बार-बार उस लाल रंग के शीशे पर पढ़ रही थी, वह घबराकर डर के मारे जल्दी से सीढ़ियों पर भागने लगती है। रिया का चेहरा पीला पड़ गया था और उसकी आंखों में जैसे एक चमक सी आ रही थी...... वह पसीने से लथपथ थी। रिया का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था वह बुरी तरह से डर गई थी। स्कूल का समय खत्म होते ही रिया ऊपर वाले मंजिल पर जाने की सोचती है। सबके स्कूल से निकल जाने पर रिया धीरे-धीरे से ऊपर की मंजिल की तरफ कदम बढ़ाने लगती है , वह अपने मन में लगी जिज्ञासा को शांत करना चाहती थी , उसके मन में भय था कि कहीं वह डर के मारे ऐसे डरी डरी सी ही ना रह जाए। साथ में उसकी कोई सहेली भी उसकी बात पर विश्वास नहीं करती थी।
रिया सीढ़ियों से ऊपर की तरफ कदम रखती है तो उसे ऐसे ही महसूस हो रहा था जैसे सीढ़ियां उसके साथ ही चल रही हूं , वह अंदर से डरी और घबराई हुई थी फिर भी मैं पीछे नहीं हटना चाहती थी। वह अपना बैग नीचे ही छोड़ जाती है , जब मैं कमरे के निकट पहुंचती है तो उसको अजीब सी आवाजें सुनाई देती है , जैसे कोई जोर जोर से चिल्ला कर कह रहा हो " दरवाजा खोलो और उसको आजाद करो............ दरवाजा खोलो और उसको आजाद करो ........... रिया घबरा जाती है , वह डर कर सीढ़ियों की तरफ वापस आती है....

बचाओ...........
बचाओ..........
वह अध्यापिका के पास डरकर सिमट जाती है वह जानना चाहती है कि वह कौन है जो ऐसे चिल्ला रहा है। अध्यापिका और रिया को घूर कर देखती है वह कहती है कि" हम ने मना किया फिर भी तू उधर क्या करने गई तुझे पता नहीं कि यह कई साल पहले की कहानी है जब एक लड़का मुनीश यहां पर पढ़ाई करता था वह बहुत शरारती लड़का था अक्सर स्कूल से भाग जाता था उसके माता-पिता स्कूल वालों को ही शिकायत करते थे 1 दिन स्कूल की मुख्य अध्यापिका से आकर वह बहस करने लगा तू स्कूल की अध्यापिका ने उसको मारना डांटना सही नहीं समझा उसने दंड के तौर पर उसको एक कमरे में बंद कर दिया अध्यापिका को लगा शायद वह गलती मानेगा और आगे से कोई शरारत नहीं करेगा पर जब अध्यापिका ने तकरीबन 1 घंटे के बाद देखा तो वह लड़का हर तरफ खून से कमरे को पूरी तरह से लाल कर चुका था और उसकी लाश एक दीवार से चिपकी पड़ी थी समझ नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा क्या किया कि उसके प्राण निकल गए" तब रिया उस कमरे में फिर से जाने की सोचती है और ऊपर जाकर कमरे का दरवाजा धीरे से खोलती है और उस भटकती हुई आत्मा को आजाद कर देती है जिससे वह रिया पर खुश हो जाता है और एक परछाई मातर रिया के साथ हमेशा जुड़ी रहती है।


—रेनू जिंदल