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कर्म पथ पर - 71



कर्म पथ पर
Chapter 71



नौकरों ने वृंदा की लाश को जंगल में ठिकाने लगा दिया था। हैमिल्टन अपनी हवेली पर वापस जा रहा था। लेकिन वह बहुत खींसिआया हुआ था। बात बात पर नौकरों पर भड़क रहा था। उन्हें गालियां दे रहा था। उसे यह बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी कि वृंदा उसके सामने अपनी जान के लिए गिड़गिड़ाई नहीं। अपने अंतिम समय तक वह टूटी नहीं। पूरी निर्भीकता के साथ उसका मुकाबला करती रही। उसे एहसास दिलाती नहीं कि वह जो चाहता है वह कभी नहीं होने देगी। खुद को हरा देने का सुख वह हैमिल्टन को नहीं देने देगी। उसने वैसा किया भी। यही बात हैमिल्टन को खाए जा रही थी।
वृंदा ने उसे दो दो बार हराया था। वह हैमिल्टन जिसके आगे बड़े से बड़े सूरमा भी ऊंची आवाज में बात करने से डरते थे। उसी हैमिल्टन के बारे में वृंदा ने बड़ी निडरता के साथ अपने अखबार में लिखा था। एक औरत होते हुए भी वह उसके सामने कभी नहीं झुकी। उसने मर जाना पसंद किया। लेकिन अपनी जान के लिए भीख नहीं मांगी।
कपड़े पहन कर जब आईने के सामने खड़ा हुआ तो अपनी फूटी हुई आँख को देखकर उसे अपनी पराजय का और अधिक एहसास हुआ। पिछली बार तो वृंदा ने केवल आँख ही फोड़ी थी। लेकिन इस बार तो उसके अहम को तार तार कर दिया था। उसने तैश में वृंंदा को मार तो दिया था। पर उसके मन की आग शांत नहीं हुई थी। यहाँ रहते हुए उसे अपनी पर आधे का और अधिक एहसास हो रहा था। इसलिए वह वापस अपनी हवेली जा रहा था।
चलने से पहले उसने अपने नौकरों को कुछ हिदायतें दीं। उसके बाद गाड़ी में बैठकर हवेली के लिए निकल गया।

जय ने मोटर हैमिल्टन के बंगले से कुछ दूर ऐसी जगह खड़ी कर दी जहाँ आसानी से वह दूसरों की नजर में ना आ सके। उसने मदन से कहा कि वह जाकर पता करे कि हैमिल्टन बंगले पर क्या गतिविधि है। हैमिल्टन बंगले में है या नहीं। कोशिश करे कि उसे वृंदा के बारे में कुछ पता चल जाए। जब मदन चलने लगा तो जय ने मोटर से उतर कर उसे गले लगाकर कहा,
"सावधान रहना भाई। अपने आप को किसी मुसीबत में मत डालना। मैं सिर्फ आधे घंटे तक राह देखूँगा। अगर तुम नहीं आए तो मैं समझ लूँगा कि तुम मुसीबत में हो। तुम्हारी मदद करने के लिए आ जाऊँगा। कोशिश करना कि आधे घंटे से अधिक समय ना लगाओ। वहाँ जैसा भी हो आ कर मुझे बताना।"
मदन ने आश्वासन दिया कि वह पूरी सावधानी बरतते हुए सही समय पर वृंदा के बारे में पता लगा कर आ जाएगा। जय फिक्र ना करे। मदन चला गया। मोटर में बैठा जय मन ही मन भगवान से मनाने लगा कि वृंदा के बारे में सही जानकारी पता चल जाए।
मदन जब बंगले के गेट के पास पहुँचा तो उसने हैमिल्टन की मोटर को बंगले से बाहर निकलते देखा। वह समझ गया कि हैमिल्टन यहाँ से जा चुका है। वह सोचने लगा कि वृंदा कहाँ होगी। हैमिल्टन उसे इसी बंगले में छोड़ गया होगा। या फिर अपने साथ ही ले गया होगा। सही बात पता करने के लिए वह गेट पर खड़े दरबान के पास पहुँचा। उसने उसे भी वही कहानी सुनाई जो हवेली के दरबान को सुनाई थी। वह बोला कि हैमिल्टन साहब ने इंटरव्यू देने के लिए उसके साहब कार्ल मर्फी को इस बंगले में बुलाया था। कार्ल एक अंग्रेजी मैगजीन के रिपोर्टर हैं। उनकी मैगजीन विलायत तक जाती है। मैंने अभी अभी तुम्हारे साहब की गाड़ी बंगले से बाहर निकलते हुए देखी है। उसने पूँछा कि हैमिल्टन साहब कहाँ गए हैं।
दरबान ने उसे बताया कि हैमिल्टन अपनी हवेली पर चला गया है। मदन ने निराशा का भाव दिखाते हुए कहा,
"मर्फी साहब को यहाँ बुलाकर तुम्हारे साहब हवेली पर चले गए। यह तो अच्छी बात नहीं है।"
दरबान ने कहा,
"हम क्या कह सकते हैं। साहब लोगों के मन की वही जाने।"
मदन ने कहा,
"इतनी दूर से आए हैं। सोचा था कि हैमिल्टन साहब से मुलाकात होगी। उनका इंटरव्यू लेंगे। पर वह तो बुलाकर चले गए। मर्फी साहब को प्यास लगी है। कम से कम उन्हें अंदर आकर पानी पी लेने दो।"
दरबान कुछ देर सोचने के बाद बोला,
"कहाँ है तुम्हारे साहब ? बुला लाओ।"
मदन ने कहा,
"मर्फी साहब पास ही अपनी मोटर में बैठे हैं। मैं अभी उन्हें लेकर आता हूँ।"
मदन भागकर जय के पास गया। उसे सारी बात बताई। उससे कहा कि वह मोटर लेकर बंगले में चले। अंदर जाकर नौकरों से बातचीत करेंगे। उनसे वृंदा का पता लगाने की कोशिश करेंगे। जय मान गया।
जब गाड़ी गेट पर पहुँची तो जय को कुर्ते पजामे में देखकर दरबान को शक हुआ। उसने पूँछा,
"तुम तो कह रहे थे कि यह कोई विलायती साहब है। कोई विलायती साहब कुर्ता पजामा पहनता है ?"
मदन ने उसे एक और कहानी सुनाई। ‌उसने कहा कि मर्फी साहब की माँ अंग्रेज़ थीं और पिता हिंदुस्तानी। लेकिन उन्होंने विलायती वेशभूषा अपना ली थी। वह ईसाई हो गए थे। लेकिन मर्फी साहब कभी कभी हिंदुस्तानियों की तरह कपड़े पहनते हैं। आज उन्होंने कुर्ता पजामा पहन रखा है। पर वो विलायती साहबों से किसी मामले में कम नहीं हैं।
जय सारी बात सुन रहा था। दरबान को यकीन दिलाने के लिए उसने ब्रिटिश एक्सेंट में अंग्रेजी बोलते हुए कुछ बातें कहीं। दरबान ने इससे पहले हैमिल्टन और उसके दूसरे अंग्रेज साथियों को इस तरह बोलते सुना था। उसे यकीन हो गया कि मदन सही कह रहा है। उसने मोटर के लिए गेट खोल दिया। जय मोटर लेकर बंगले के अंदर दाखिल हो गया।
दरबान ने भीतर बंगले में सूचना भिजवा दी कि हैमिल्टन साहब के मेहमान आए हैं। इन्हें चाय पानी पिलाया जाए। जय और मदन भीतर जाकर बैठ गए। कुछ देर बाद एक नौकर उनके लिए पानी लेकर आया। जय ने नौकर से पूँछा,
"इस बंगले में एक लड़की को लाया गया था। वह कहाँ है ?"
उसका सवाल सुनकर नौकर बोला,
"सच सच बताओ कौन हो तुम लोग ? यह पूछताछ क्यों कर रहे हो ? चुपचाप यहाँ से चले जाओ नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"
जय ने अपने कुर्ते की जेब से रिवाल्वर निकाल लिया। उसे नौकर की तरफ दान कर बोला,
"जो पूँछा है वह सच सच बताओ ? वृंदा कहाँ है ? नहीं तो गोली मार दूँगा।"
रिवॉल्वर देखकर नौकर डर गया। उसने डरते हुए कहा,
"उस लड़की को तो साहब ने गोली मार दी।"
नौकर की बात सुनकर जय को बहुत धक्का लगा। मदन ने उसे संभालते हुए पूँछा,
"गोली मार दी ? वृंदा अब कैसी है ?"
"वह तो मर गई। साहब के कहने पर हमने उसकी लाश जंगल में दफन कर दी।"
कुछ देर तक मदन और जय दोनों ही कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। फिर कुछ संभल कर जय ने कहा,
"कहाँ दफन की वृंदा की लाश ?"
नौकर ने बताया कि वह और उसका साथी कल रात ही लाश को जंगल में दफना कर आए थे। अंधेरे में उन्होंने कहाँ दफनाया उन्हें नहीं पता। इसलिए वह कुछ नहीं बता सकता।
जय बहुत ही दुखी हो गया था। उसके लिए यह बात सह पाना मुश्किल था कि वृंदा अब दुनिया में नहीं है। उसकी लाश को जंगल में कहीं दफना दिया गया है। अब वह अपनी वृंदा को कभी नहीं देख पाएगा।
बुरा तो मदन को भी बहुत लग रहा था। पर वह जानता था कि यहाँ बैठकर दुख मनाने से कोई फायदा नहीं। उन्हें अपने आप पर काबू करना होगा। यह जरूरी है कि पहले वह दोनों यहाँ से निकल जाएं। घर जाकर सोचें कि आगे क्या करना है। उसने जय को संभालने का प्रयास किया। उसे समझाते हुए बोला,
"खुद को संभालो। अभी इस तरह टूटने से काम नहीं चलेगा। वृंदा अब हमारे बीच नहीं है यह बात हमें स्वीकार करनी होगी।"
मदन ने नौकर से कहा,
"तुम लोगों को शर्म नहीं आई। उस हैवान ने एक लड़की को मार दिया। तुम लोग चुपचाप जाकर उसके पाप के सबूत जंगल में मिटा आए।"
नौकर ने कहा,
"क्या करें। हम तो हुकुम के गुलाम हैं। जो हमें करने के लिए कहा जाता है। बिना कुछ सवाल जवाब के कर देते हैं।"
मदन समझ रहा था कि नौकरों से कुछ कहने का कोई फायदा नहीं। उसने कहा,
"इतना तो कर सकते हो कि हैमिल्टन को इस बात की खबर ना लगने दो कि हम लोग यहाँ वृंदा के बारे में पूछताछ करने आए थे।"
वृंदा के साथ जो कुछ भी हुआ था उससे नौकर पहले ही दुखी था। जय की हालत देखकर उसे और भी बुरा लग रहा था। उसने आश्वासन दिया कि वह किसी से कुछ नहीं कहेगा।
जय को समझा बुझाकर मदन वहाँ से ले गया। रास्ते में उसने जय को समझाया कि अपने पिता से वह यह ना बताए कि वृंदा अब इस दुनिया में नहीं है। उनसे बस इतना कह दे कि उन लोगों को वृंदा के बारे में कुछ भी नहीं पता चला।