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दस्तक - (भाग1)

अपनी सीट पर बैठते ही संजना की नज़र मेज पर रखे लिफाफे पर पड़ी थी।उसने लिफाफा हाथ मे लेकर उलट पलट कर देखा।उस पर उसका नाम तो था।लेकिन भेजने वाले का नही।
किसने भेजा है?क्यो भेजा है?क्या लिखा है, उसमे?यह जानने की उत्सुकता उसके मन मे बलवती हो उठी।वह लिफाफा खोलती उससे पहले कंपनी के हेड ऑफिस से फोन आ गया।उसने लिफाफा एक तरफ रखा और फोन उठा लिया।उसके बाद काम का सिलसिला शुरू हुआ,तो पता ही नही चला।कब लंच का समय हो गया।काम से राहत मिलने पर उसने धीरज की सीट की तरफ देखा था।
धीरज की सीट खाली देखकर उसे आश्चर्य हुआ।वह अभी तक नही आया था।वह रोज़ समय पर आ जाता था।संजना ने कभी उसे लेट आते हुए नही देखा था।इसलिए हैरान थी कि आज अभी तक क्यो नही आया?
संजना आज ही गांव से लौटी थी।धीरज को न देखकर उसने दूसरे साथियों से पूछा था।सबका एक ही जवाब था,"कल तो आया था।"
लेकिन आज क्यो नही आया इसका जवाब किसी के भी पास नही था।संजना बार बार सोच रही थी।आज क्यो नहीं आया? कंही बीमार तो नही पड़ गया?संजना ने कई बार मोबाइल से सम्पर्क करने का प्रयास किया।लेकिन उसका मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था।
संजना एक सप्ताह की छुट्टी के बाद आज ऑफिस आयी थी।इसलिए उसकी सीट पर काफी काम पेन्डिंग हो गया था।रोजमर्रा के काम भी आ रहे थे।उसके हाथ काम निपटाने में लगे थे,लेकिन दिमाग मे धीरज का ख्याल।
धीरज का जन्म गरीब ग्रामीण परिवार में हुआ था।उसके परिवार में माँ बहन के अलावा दो बहनें रेखा और नेहा थी।माँ बाप मजदूरी करते थे।गांव में हाई स्कूल था।धीरज ने यंहा से 10 वी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी।पिता चाहते थे,बेटा काम करके उनका हाथ बटाये।लेकिन धीरज आगे पढना चाहता था।माँ भी यही चाहती थी।ताकि अच्छी नौकरी मिक जाए।पिता के न चाहने पर भी धीरज आगे पढ़ने के लिए कानपुर चला गया।
धीरज अखबार बेचने के साथ एक कोरियर कंपनी में भी काम करने लगा।काम के साथ वह पढ़ाई भी करने लगा।उसकी मेहनत रंग लाई।दी साल बाद उसने बारहवीं की परीक्षा पास कर ली।वह गांव गया था।दो साल बाद बेटे की शक्ल देखते ही बाप भड़क गया।
"यंहा क्यो आया है?निकल जा यंहा से और अपनी मनहूस शक्ल कभी मुझे मत दिखाना।"
माँ रोकती रही,बहने रोती रही।लेकिन बाप ने किसी की नही सुनी।उसे घर से बाहर निकाल दिया।
धीरज वापस कानपुर लौट आया।वह काम और पढ़ाई करने लगा।उस दिन के बाद फिर वह गांव नही गया।हॉ गांव का कोई न कोई कानपुर आता रहता था।उससे उसे घर बाहर के समाचार मिल जाते थे।
समय गतिशील है।वह अपनी गति से चलता रहता हैं।सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए उसने एम बी ए कर लिया और उसकी नौकरी मुम्बई की एक कम्पनी मे लग गई।
मुम्बई आने पर धीरज, संजना के सम्पर्क मे आया था।संजना पहले से ही इस कंपनी में काम कर रही थी।साथ काम करते हुए उनमे दोस्ती हो गईं।दोस्त बनने के बाद उनका छुट्टी का दिन साथ गुज़रने लगा।
वे साथ घूमते,खाते पीते,पिक्चर देखते,खरीददारी करते।दोनो ने एक दूसरे को अपने परिवार के बारे में भी बताया था।लेकिन धीरज ने यह बात छिपा ली थी कि पिता ने उसे घर से निकाल दिया था।
समय गुज़रने के साथ संजना,धीरज को चाहने लगी।प्यार करने लगी।एक दिन जुहू पर वे समुद्र की ठंडी हवाओं का आनंद ले रहे थे।तब संजना बोली,"मैं तुम्हे अपने दिल की बात बताने चाहती हूँ।"

(क्रमश---)