Dastak - 2 in Hindi Love Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | दस्तक - (भाग 2)

दस्तक - (भाग 2)

"हॉ।कहो।"
"धीरज,मैं तुम्हे चाहनेे- - - अपने प्यार का इजहार करते संंजना बोली,"मैं तुम्हें अपना बनाना चाहती हूू।तुमसे शादी करना चाहती हूं।"
"हमारे यहाँ शादी का फैसला माता पिताकरते है," संजना की इच्छा जानकर धीरज बोला,"मुझे शादी से इनकार नहीं लेकिन बिना उनकी मर्जी में शादी नही कर पाऊंगा।"
"मैं भी नही चाहती माता पिता के आशीर्वाद के बिना हम शादी करे।लेकिन उन्हें पता कैसे चलेगा?जब तक तुम उन्हें मेरे बारे मे नही बताओगे।"
"सही कह रही हो,"संजना की बात का समर्थन करते हुए बोला,"गांव जाऊंगा तब पिता से बात जरूर करूँगा।"
धीरज के उत्तर से सन्तुष्ठ होते हुए संजना बोली,"हमारी शादी में तो समय लगेगा तब तक हम एक काम कर सकते है।"
"क्या?"धीरज ने पूछा था।
"हम लिव इन रिलेशन में रह सकते है।"
"नही संजना।शहरों में जन्मे पले लड़के लडकिया ऐसा कर सकते है।लेकिन मे गांव का हूँ।मैं लिव इन र्रिलेशनशिप के बारे में सोच भी नही सकता।अगर गांव वालों को यह पता चल गया,तो वे क्या कहेंगे?मेरे पिता तो मुझे घर मे ही नही घुसने देंगे।"संजना की बात सुनकर धीरज बोला था।
"धीरज मेरा जन्म भी गांव मे ही हुआ है।मैं भी गांव की सभ्यता,संस्कृति मे पली हूँ।लेकिन अब तो मुम्बई में रहते है।जब हम दोस्त बन सकते है।साथ घूम सकते हैं।साथ खा पी सकते है।पिक्चर देख सकते है।,तो साथ रह क्यो नही सकते?"
संजना ने हर तरह से समझाने का प्रयास किया लेकिन धीरज बिना शादी उसके साथ रहने के लिए तैयार नही हुआ।उस दिन के बाद संजना ने भी इस विषय पर फिर उससे बात नही की।
धीरे धीरे दिन गुज़रने लगे।संजना कभी कभी धीरज से पूछ लेती,"गांव कब जा रहे हो।?"
धीरज जाता उससे पहले संजना को अपनी मां का पत्र मिल गया।माँ के बुलाने पर संजना गांव चली गई।धीरज उसे ट्रेन में बैठाने के लिए स्टेशन गया था।
धीरज की माँ बेटे के लिए परेशान रहती थी।कानपुर से गांव का कोई भी आदमी आता,तो वह बेटे के बारे मे पूछना नही भूलती थी।किसी आदमी के जरिये ही उसे पता चला था कि उसके बेटे की मुम्बई में नौकरी लग गई है।धीरज के गांव के एक लड़के की मुम्बई में नौकरी लग गई थी।वह मुम्बई जाने लगा तो धीरज की माँ ने उसे अपने बेटे के नाम चिट्ठी दी थी।
उस लड़के के पास धीरज किस कम्पनी मे काम करता है?कन्हा रहता है?उसका मोबाइल नंबर क्या है?कुछ नही था।
मुम्बई में आदमी भागम भाग में लगा है।उसके पास दूसरे के बारे में जानने की फुरसत नही है।इस महानगर मे केवल नाम के सहारे आदमी को ढूंढने का मतलब था।समुद्र में सुई ढूंढना।काम बेहद कठिन और मुश्किल था।लेकिन कई दिनों तक भागदौड़ और मेहनत के बाद उस लड़के ने आखिर धीरज को खोज ही लिया था।
वह धीरज को उसकी माँ की चिट्ठी दे गया था।उसकी मां अनपढ़ थी।उसने बेटी से चिट्टी में लिखवाया था।
बेटा धीरज,
हरिया कानपुर गया था।वंहा उसे किसी से पता चला कि तुम्हारी नौकरी मुम्बई में लग गई है।तुम तो ऐसे गए कि हम लोगो की सुध ही नही ली।तुम्हे उल्टा सीधा तुम्हारे बापू ने कहा था और घर से उल्टा सीधा बक कर निकाल दिया था।माँ बहनों ने तो कुछ नही कहा।तेरे बापू को दमा हो गया है।उससे मेहनत मजदूरी नही होती।तेरी बहनेभी जवान ही गई है।मैं अकेली काम पर जाऊ या तेरे बापू को सभालू।बेटियों को जमाने की बुरी नज़र से भी बचाना है।सुना है तू काफी पढ़ लिख गया है।तुझे तो प्रयाग या आसपास भी नौकरी मिक सकती है।मैं एक शादी में गई थी।तेरे लिए एक लड़की भी देखी है।तेरी बहनों ने तो उसे पसंद भी कर लिया है।बेटा माँ बाप का कहा बुरा नही मानते। मैं चाहती हूँ तू वापस घर लौट आए।
क्रमश

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