Do balti pani - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

दो बाल्टी पानी - 27

उधर ठकुराइन अभी अपनी चोटी कटने के दुख से उबरी नही थीं कि पिंकी की चोटी कटने से और सदमे में आ गयीं, जब ये बात स्वीटी को पता लगी तो उसे बहुत खुशी हुई, आखिरकार उसे सुनील पसंद जो था |
“ अम्मा ......अम्मा......अरे वो पिंकिय़ा की भी चुडैल ने चोटी काट दी, कल रात में” स्वीटी ने थोडा हंसते हुये कहा |
“ हां ..हां....अभी पता चला, लेकिन तू काहे इत्ता उछल रही है, अरे उसी चुडैल ने तो हमारी चोटी......” इतना कहते ही ठकुराइन गला फाड के चिल्लाने लगीं |
“ अरे अम्मा काहे कान की ठेठी हिलाये हो, बाल फिर जम आयेंगे, पर ये सोचो कि वो चुडैल सब की चोटी काट काहे रही है, कहीं वो कोई बदला तो नाही ले रही” | स्वीटी ने शांत होकर कहा |
ठकुराइन ये सुनकर सोचने लगीं और बोलीं “ सही कह रही है तू...स्विटिया....लेकिन हम तो ये सोच रहें है कि अब अगला नंबर किसका है, अरे बिटिया अब तू घर से ना जाना, तू तो वैसे भी खा खा के......चोटी कट गई तो और .....” | ठकुराइन इतना कहकर चुप हो गयीं |
लेकिन स्वीटी ऐसे बेचैन हो गयी जैसे किसी ने प्यासे से पानी छीन लिया हो | वो ठकुराइन को मस्का लगाते हुये बोली ....
“ अरे अम्मा तुम हमारी चिंता ना करो, हम चुडैल का, चुडैल की अम्मा को भी......अब अईसा है तुम आराम करो, हम तुम्हारे लिये कुछ बना के लाते हैं, और वईसे भी पानी अभी दो दिनों तक आराम से चल जायेगा, तुम आराम से लेट जाओ” |
ये कहकर स्वीटी गुनगुनाते हुये कुछ खाने को बनाने लगी, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसकी मांगी मुराद पूरी हो गयी |
कुछ देर बाद स्वीटी मां के पास आकर बोली “ अच्छा अम्मा .....हम जा रहें हैं मन्दिर, परसाद चढाने.....जरा हमें इक्कीस रुपये दो” |
ठकुराइन ये सुनकर उठ कर बैठ गयीं और बोलीं “ का बिटिया ये परसाद काहे, कौन सी मनौती पूरी हो गयी तुम्हारी, और वो भी इक्कीस रुपये का परसाद” |
स्वीटी ने ठकुराईन को समझाने के लहजे मे कहा “ अरे अम्मा का इक्कीस रुपये तुमसे जादा जरूरी हैं का, जब तुम अपनी कटी चोटी देख के बेहोस हो गई तब हमारी तो जान ही सूख गई, हमे लगा कि अब हमारी अम्मा तो ......तभी मारे डर के हमने तुरंत सीतला माता का इक्कीस रुपये का परसाद माना और देखो माता रानी की किरपा से तुम होस मे भी आ गईं और ठीक भी हो” |
स्वीटी की ये बातें सुनकर ठकुराइन की आंखों मे आंसू आ गये, वो भी असली वाले |
ठकुराइन ने उठ कर अपना बक्सा खोला और उसमे से अपनी वो ज्वेलर्स की दुकान पे मिली छोटी सी पर्स मे से तीस रुपये निकाल कर स्वीटी को दिये और कहा “ ले बिटिया...जा इक्कीस का परसाद चढा देना और बाकी से चाट खा लेना, बडी सयानी हो गई है तू, हमारी बिटिया को किसी कि नजर ना लगे” |
पैसे लेकर स्वीटी ने अपनी चुन्नी को सिर पे ओढा और सीतला माता के मन्दिर के लिये निकल पडी लेकिन स्वीटी की का मुराद पूरी हुई है ये तो खाली स्वीटी को ही पता था |