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कर्म पथ पर - 76



कर्म पथ पर
Chapter 76

कलेक्टर राम कृष्ण अय्यर ने गांव में नहर बनवाने का काम शुरू करा दिया था। इससे कई गांव वालों को रोजगार भी मिला था। गांव वाले खुश थे अब गर्मियों में उन्हें पानी की तकलीफ नहीं होगी। वह सब इसके लिए जय का आभार मानते थे।
जो भी हुआ था वह जय की कोशिशों का ही नतीजा था। इसलिए गांव में जय का मान बहुत बढ़ गया था। सब उसकी सारी बातें मानते थे। इसी कारण बृजकिशोर ने भी लता को उर्मिला के पास पढ़ने के लिए भेजना शुरू कर दिया था।
जय टीले पर बैठा था। वहाँ अभी भी वृंदा के होने का एहसास होता था। उसे लगता था कि वहाँ होने पर वृंदा उसे अपने आलिंगन में भर लेती है। वैसे ही जैसे अंतिम मुलाकात में उसने वृंदा को अपनी बाहों में भर लिया था। वह एहसास उसे बहुत सुकून देता था। आज भी उसे वृंदा के अपने पास होने का एहसास हो रहा था। उसे फिर लगा कि जैसे वृंदा उसके पास आकर बैठ गई है। उससे कह रही है,
"तो आखिर तुमने अपनी पहचान पा ही ली। इस कर्म पथ पर बहुत आगे निकल गए हो तुम।"
उसने अपनी कल्पना में बसी वृंदा को जवाब दिया,
"तुम्हारी वजह से हुआ है यह सब। वरना बिगड़ैल रईसजादा जयदेव टंडन बिना किसी मकसद के जीवन गुज़ार कर इस दुनिया से चला जाता। आज वह अपने उद्देश्य के लिए जी रहा है। तुम्हारे सपने को अपनी आँखों में संजो लिया है मैने।"
"फिर यह बदला लेने की ज़िद क्यों ?"
"यह तुम पूँछ रही हो। जिसकी उस दरिंदे ने बेरहमी से जान ले ली। उस दरिंदे को सज़ा देना मेरे लिए बहुत आवश्यक है। नहीं तो मैं भीतर ही भीतर खोखला हो जाऊँगा।"
इस बार वृंदा ने कोई जवाब नहीं दिया। कैसे देती ? वृंदा उसका अंतर्मन ही तो था। फिर अपने आप को कैसे झुठला देता।
शाम ढलने के बहुत देर बाद तक वह उसी टीले पर बैठा रहा। मन ही मन वह अपने काम को पूरा करने के लिए खुद को मजबूत कर रहा था।

रंजन पिछले कई दिनों से बड़ी सावधानी से हैमिल्टन की गतिविधियों पर नजर रख रहा था। उसे हैमिल्टन और लीना के बीच के रिश्ते के बारे में भी पता था। रंजन ने पता किया था कि हैमिल्टन ने अपने रुतबे का इस्तेमाल करके एक अंग्रेजी थिएटर कंपनी के मालिक रॉबर्ट विलियम पर दबाव डाल उसकी कंपनी की हीरोइन लीना को उसके कॉन्ट्रैक्ट से मुक्त करा दिया था।
उसे पता चला था कि हैमिल्टन कि चार मार्च को लीना के जन्मदिन की पार्टी अपने उसी बंगले पर देने वाला है जहाँ उसने वृंदा की हत्या की थी।
उसने अब तक जो भी जानकारियां एकत्र की थीं सब सिसेंदी गांव जाकर मदन और जय को बता दीं।

मदन और जय अब आगे की योजना के बारे में चर्चा कर रहे थे। लीना के जन्मदिन में एक माह से भी कम का समय बचा था। उन दोनों को लग रहा था कि उस बंगले में ही हैमिल्टन की हत्या करना आसान होगा। उस बंगले के आसपास जंगल है। इसलिए वहाँ से हत्या करके भागना आसान होगा। लखनऊ में हैमिल्टन की सुरक्षा में सेंध लगा पाना मुश्किल होगा। इसलिए जब वह लीना के जन्मदिन की पार्टी के लिए वहाँ गया हो तब उसकी हत्या करने का सबसे अच्छा अवसर है।
मदन ने सुझाव दिया कि यदि पार्टी में उन्हें किसी तरह प्रवेश मिल जाए तो उनका काम बन सकता है। लेकिन जय इस समय किसी और ही चिंता में था। उसकी मनोदशा भांप कर मदन ने कहा,
"बात क्या है ? मैंने जो कहा तुमने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। क्या मेरा सोचना गलत है ?"
"तुमने एकदम सही बात कही है। पर मैं सोच रहा था कि हैमिल्टन की हत्या गला दबाकर तो नहीं की जा सकती है।"
"सही है...."
"तो हमको हत्या के लिए हथियार का इंतजाम करना होगा।"
मदन को उसकी बात सही लगी। वह बोला,
"उसकी हत्या के लिए हमें गन की आवश्यकता होगी।"
"बिल्कुल.... बल्कि यह बात हमें पहले सोचनी चाहिए थी। पर तब हम रंजन की सूचना का इंतजार करते बैठे रहे।"
जय की बात सुनने के बाद मदन ने इस बारे में दिमाग दौड़ाना शुरू कर दिया। उसके दिमाग में एक नाम आया। उसने जय से कहा,
"माना देर हो गई। पर अभी भी गन की व्यवस्था हो सकती है।"
"कैसे ?"
"वह तुम मुझ पर छोड़ दो। उसके लिए मुझे उन्नाव जाना पड़ेगा।"
"तुम फिर तुम जल्द से जल्द गन का इंतजाम करो। बाकी योजना मैं सोचता हूँ।"

मदन अगले दिन सुबह ही उन्नाव के लिए निकल गया। वहाँ उसकी जान पहचान का एक व्यक्ति था। उसका नाम राजेश था। उसने एक बार एक क्रांतिकारी को गन दिलवाई थी। मदन राजेश के पास ही मदद मांगने गया था।
मदन और राजेश शिव मंदिर के पास जमुना के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जमुना ही वह व्यक्ति थी जो उन्हें हथियार दिला सकती थी।
जमुना की कहानी भी बड़ी दिलचस्प थी। उसका विवाह एक खाते-पीते संभ्रांत परिवार में हुआ था। उसका पति मनीष जो कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गया। उनके साथ मिलकर उसने एक अंग्रेज अधिकारी को मारने का बीड़ा उठाया।
मनीष ने इससे पहले कभी हथियार नहीं चलाया था। जोश जोश में काम अपने जिम्मे ले तो लिया था पर उसे अंजाम नहीं दे पाया। वह उस अंग्रेज़ अधिकारी को मारता उससे पहले ही वह गोलियों का शिकार हो गया।
जवानी में ही जमुना विधवा हो गई। उसके सास ससुर और जेठ या देवर था नहीं। उसके पति के चाचा ने उसके हिस्से की संपत्ति हड़प ली। इतना ही नहीं उसे एक अंग्रेज़ चार्ल्स ब्राउन के हाथों बेंच दिया। चार्ल्स उस पर बहुत अत्याचार करता था। उसे भोग की वस्तु समझता था। उसके साथ मारपीट और दुर्व्यवहार करता था। जमुना यह सब चुपचाप सह रही थी। लेकिन चार्ल्स के अत्याचार दिन पर दिन बढ़ने लगे।
उसका मारना पीटना, गाली गलौज करना तो जमुना बर्दाश्त कर लेती थी। पर जब चार्ल्स अपने साथ अपने दोस्तों को भी मन बदलाव के लिए लाने लगा तो उसे यह बात सहन नहीं हुई। उसने विरोध जताया। इस पर चार्ल्स ने उसे बुरी तरह मारा और अपने दोस्तों के साथ उसके साथ जबरदस्ती की। जमुना यह बात बर्दाश्त नहीं कर पाई। वह भीतर ही भीतर सुलगने लगी। वह चार्ल्स से बदला लेने के लिए अवसर तलाशने लगी। एक रात अवसर देखकर उसने नशे में धुत पड़े चार्ल्स का सर हथौड़े से फोड़ दिया।
चार्ल्स की हत्या कर वह भाग निकली। इस बार उसकी उसकी मुलाकात मंगल सिंह से हो गई। वह उसे उन्नाव ले गया। मंगल सिंह उसे बहुत सम्मान के साथ रखता था। पर वह एक अपराधी था। गैर कानूनी तरीके से हथियार बेचने का काम करता था। अधिकांशतः वह अपने हथियार अपराधियों को ही देता था। लेकिन कभी कभी क्रांतिकारी भी उसकी मदद लेते थे। जैसे कि राजेश के मित्र ने ली थी।
मंगल की मृत्यु के बाद उसके कारोबार की जिम्मेदारी जमुना ने ले ली। जिसे भी हथियार की जरूरत होती वह उससे संपर्क करता था। राजेश को पता था कि वह प्रतिदिन शिव मंदिर में जल चढ़ाने आती है। राजेश और मदन इस बात का इंतजार कर रहे थे कि कब वह मंदिर से पूजा अर्चना कर लौटे और वह उससे बात कर सकें।
राजेश को जमुना मंदिर से निकल कर आती दिखाई पड़ी। उसने आगे बढ़ कर उसे रोका। जमुना नहीं कहा,
"क्या बात है ? इस तरह मेरा रास्ता क्यों रोका ?"
राजेश ने मदन की तरफ इशारा कर कहा,
"इन्हें तुमसे कुछ काम है ?"
जमुना ने ऊपर से नीचे तक मदन को देखा‌। फिर बोली,
"मुझसे क्या काम है ?"
मदन खुद आगे आया। उसने कहा,
"मुझे एक गन चाहिए।"
जमुना ने मुस्कुराकर कर कहा,
"किसे मारना चाहते हो ?"
मदन ने रुखाई से जवाब दिया,
"इससे तुम्हें क्या ? तुम बस यह बताओ कि मेरा काम हो पाएगा कि नहीं।"
जमुना ने कहा,
"गलत जगह पर आए हो। मैं एक औरत हूँ। मुझे तमंचे बंदूक से क्या काम। मैं इस बारे में कोई मदद नहीं कर सकती।"
अपनी बात कहकर जमुना आगे बढ़ गई। मदन ने प्रश्न भरी नजर से राजेश की तरफ देखा। वह भी कुछ समझ नहीं पा रहा था कि जमुना ऐसा क्यों कह रही है। वह अच्छी तरह जानता था कि जमुना हथियार बेचने का काम करती है।
जमुना कुछ आगे निकल गई थी। राजेश भाग कर उसके पास गया। उसे रोककर बोला,
"तुमने कुछ महीनों पहले ही मेरे एक दोस्त को पिस्तौल दिलवाई थी। मेरे इस दोस्त को भी बहुत जरूरत है। अब तुम ऐसी बात क्यों कर रही हो ?"
जमुना ने इधर उधर देखा। फिर बोली,
"हर काम और हर बात की एक जगह होती है। इस तरह के कामों की बात सड़क चलते नहीं होती। अगर मैंने तुम्हारे दोस्त को तमंचा दिलाया होगा तो तुम मेरा घर जानते होगे। फिर इस तरह सड़क पर बात क्यों कर रहे हो।"
जमुना फिर अपने रास्ते पर चल दी। राजेश उसकी बात का मतलब समझ गया। उसने मदन से कहा कि हमें उसके घर चलना होगा।
राजेश मदन को लेकर जमुना के घर गया। मदन ने जमुना को बताया कि उसे ऐसी गन चाहिए जिसे चलाने में बहुत दिक्कत ना हो। जिसे चलानी है उसने पहले कभी गन नहीं चलाई। साथ में कुछ कारतूस भी देने होंगे।
जमुना ने उससे कहा कि वह इंतजाम कर देगी। कुछ समय लगेगा। मदन ने कहा कि उनके पास बहुत कम समय बचा है। जितनी जल्दी हो सके उसे गन दिला दे। जमुना ने उससे कहा कि कम से कम दिन लगेंगे। वह उसके बाद आए। साथ में पैसे भी ले आए।
मदन ने आकर सारी बात जय को बताई। उसने कहा कि उसके पास कुछ पैसे जमा हैं। वह उसने विष्णु के पास जमा करा रखे हैं। वह लखनऊ जाकर पैसे ले आएगा।