Wo koun thi - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

वो कौन थी️️️️️️️ - 1

ज़िन्दगी के सफ़र में चलते हुए कई बार ऐसे अनुभव होते हैं जिन्हें आप सारी उम्र नहीं भूल पाते हैं । मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ जब मैं छुट्टियों में अपने रिश्ते के मामा के घर गया था जो हम सब को बहुत स्नेह देते थे ।

ज्यादा नहीं बस एक पीढ़ी पहले तक ही ऐसा माहौल था कि कोई भी रिश्तेदार जो उच्च पद पर आसीन होता था वह अपने घर परिवार के बच्चों को तो रखकर पढ़ाता ही था पर साथ में जो भी दूर के रिश्तेदार भी होते थे उनके भी बच्चे उनके साथ रहकर पढ़ते थे ।

मेरे भी मामाजी थे जो न्यायाधीश थे । उन्होंने निर्णय लिया कि मैं उनके साथ ही रह कर आगे की पढ़ाई करू । उन्होंने मां से कहा कि राजेश्वरी," गांव में अच्छा स्कूल नहीं है मैं विनय को अपने पास रख कर पढ़ाऊंगा ।" पहले तो मां राजी नहीं हुई क्योंकि मैं चार भाई बहनों में सबसे छोटा था।

मां मेरे बगैर नहीं रह पाती थी, परन्तु मेरा भी मन देख और मैरे अच्छे भविष्य को ध्यान में रख कर मां ने अपना दिल कड़ा कर लिया । मामा जी को मुझे साथ ले जाने की इजाजत दे दी । मामा जी का साहबी रोब-दाब मेरे किशोर मन को बहुत भाता था ।

जब वो जाने लगे तो साथ में मुझे भी लेते गए । मामा जी ने वहां मेरा नामांकन एक अच्छे से स्कूल में करवा दिया । मामीजी भी बेहद सहृदय थी मुझे पुत्र वत मानती थी । उनके स्नेह युक्त व्यवहार से शीघ्र ही मै उनके परिवार में घुल मिल गया । मामा जी के तीन बेटियां थीं । हंसी, खुशी और सबसे छोटी मुस्कान । हंसी मुझसे बड़ी थी, खुशी मेरे हीं उम्र की

की थी और मुस्कान मुझसे छोटी थी ।

हम चारों हीं साथ साथ स्कूल जाते और फिर वापस आ कर सब साथ में खेलते । वहां गंगा नदी के तट पर बनी रीवर बैंक काॅलोनी में बना बंगला बेहद विशाल था । बंगले के चारों ओर बड़े बड़े वृक्ष लगे थे । नदी का किनारा और हरे भरे लहराते वृक्ष बेहद सुहावने लगते थे। आस पास जो भी बंगले बने थे वो भी काफी दूर दूर थे। पर वही लहराते वृक्ष अंधेरी रातों में डराने लगते थे ।

हमें उस बंगले में आए

कुछ ही दिन हुए थे । हम सभी ने साथ साथ रात का खाना खाने के बाद अपने अपने कमरे में सोने चले गये ।

अभी हमें सोए कुछ ही देर हुआ था कि जोर से धम्म की आवाज सुनाई दी और मैं चौंक कर बैठ गया। पुनः थोड़ी देर बाद ऐसी आवाज़ आई जैसे छत के इस कोने से उस कोने तक कोई दौड़ कर गया हो । मैंने सोचा कोई नौकर कुछ काम से छत पर गया होगा और ये उसी के पैर की आहट होगी । कुछ देर तक तो मैं जागता रहा । फिर सो गया ।

सुबह नाश्ते के टेबल पर मामा जी ने रसोई बनाने वाले महाराज जी से पूछा कल इतनी रात गए कौन छत पर गया

था । वो इतनी तेज तेज कदमों में चल रहा था मेरी नींद उचट गई । महाराज जी ने कहा साहब मैं तो नहीं गया था ।

तो फिर मामा जी ने कहा कि पता करो कौन था । महाराज जी ठीक है साहब मैं पता करता हूं । कह कर चले गए । उन्होंने सब से पूछा पर किसी ने नहीं बताया कि वो रात में छत पर गया था ।

उस दिन बात आई गई हो गई । सब के दिमाग से ये बात लगभग निकल गई थी । हम सब ने रात का खाना खाने के बाद अपने अपने कमरे में सोने चले  गये । अभी कुछ ही देर हुआ होगा कि फिर से पहले धम्म से कूदने की आवाज सुनाई दी और फिर दौड़ कर जाने की । मामा जी दिन भर कोर्ट में थके थे और तुरंत  ही सोने लेटे थे मगर उठकर कमरे से बाहर आ गए। और नौकरों से पूछने लगे कि छत पर कौन गया पर सभी ने इनकार कर दिया और कहा "साहब हम सब तो सो रहे थे ।" मामा जी ने नौकरों को कहा कि वे सब छत पर जाए और देख कर आए कौन है । वो लोग छत पर गए और देख कर आए। फिर बताया साहब छत पर तो कोई भी नहीं है । उसके बाद सब जाकर सो गए ।

अभी कुछ दिन हुए थे। हम सब की क्लास में टेस्ट  होना था जिस कारण खाने के पश्चात हम सब बैठ के पढ रहे थे।

फिर वही आवाज सुनाई दी । हम सब के साथ ही मामा जी भी उठकर बाहर आ गए । नौकरों से कुछ कहने के बजाय हम सब हाथ में डंडा लाठी लेकर किसी चोर के होने के शक में छत पर गए पर चारों ओर सन्न्नाटा पसरा था और दूर दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था । हम सब नीचे आए और फिर से पढ़ाई करने लगे ।

अब तो हर दूसरे तीसरे दिन ऐसे ही छत पर आवाज सुनाई देती परंतु जाने पर कुछ

भी दिखाई नहीं देता था । हम सभी बहुत परेशान हो जाते जब आवाज आती । कई बार तो रात में जब हम सब पढ़ रहे होते तो दो तीन बार भी आवाज सुनाई देती और हम डर जाते । अब हमने छत पर जाना बंद कर दिया । सर्दियां आ गई थी । कई बार हम सोते रहते और सन्नाटे को चीरते हुए जोर से धम्म की आवाज होती जो पदचापों के साथ धीरे धीरे समाप्त हो जाती । उसके बाद हम काफी देर तक सो नहीं पाते थे । भय और सिहरन हमारे दिल दिमाग पर हावी हो जाती ।