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कर्म पथ पर - 79





कर्म पथ पर
Chapter 79



भोला ने दरवाजा खोला और सामने जय को देखकर खुश होकर बोला,
"भइया आप.... आपको देखकर बड़ी खुशी हुई।"
भोला उसे श्यामलाल के कमरे में ले गया। श्यामलाल कोई किताब पढ़ रहे थे। जय ने आगे बढ़कर उनके पांव छुए। सामने जय को देखकर श्यामलाल ने उठकर उसे गले लगा लिया। मदन ने भी आगे बढ़कर उनके पांव छुए। श्यामलाल ने कहा,
"तुम लोग अचानक यहाँ कैसे आ गए ? तुम लोग तो देश के भ्रमण पर निकले थे।"
जय कुछ जवाब देता उससे पहले ही माधुरी ने कमरे में प्रवेश किया। जय को देखकर बोली,
"अभी भोला भैया ने बताया कि आप और मदन भैया आए हैं। मैं दौड़ी आ गई।"
माधुरी को वहाँ देखकर जय को आश्चर्य हुआ। उसके आश्चर्य को भांपते हुए श्यामलाल ने कहा,
"अभी दो दिन पहले ही आई है। अब यहीं रह कर आगे की पढ़ाई करेंगी।"
माधुरी जय के सीने से लिपट गई। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बोली,
"चाचा जी ने कहा था कि तुम और मदन भैया भारत भ्रमण पर गए हो। ना जाने कब लौट कर आओ। तुमसे मिलने की बहुत इच्छा हो रही थी। भगवान ने मेरी सुन ली।"
जय ने उसे शांत करके बैठाया। श्यामलाल ने फिर वही सवाल दोहराया,
"अब बताओ तुम दोनों अचानक यहाँ कैसे ?"
जय और मदन ने एक दूसरे की तरफ देखा। जय अब पूरी बात साफ साफ बता देना चाहता था। अपने पापा से कुछ भी नहीं छुपाना चाहता था। उसने सारी कहानी विस्तार से बता दी। वृंदा के ना रहने की खबर सुनकर माधुरी और श्यामलाल दोनों को ही दुख हुआ। पर जय ने हैमिल्टन की हत्या कर दी है यह जानकर दोनों ही घबरा गए। जय उनके मन की बात समझ गया। वह बोला,
"पापा तब तो मैं भारत भ्रमण पर नहीं जा पाया था। पर अब मैं और मदन इस देश को जानने के लिए जा रहे हैं। बस आपसे मिलकर विदा लेने आए थे।"
श्यामलाल ने कहा,
"तुमने जो किया है कानून की दृष्टि में अपराध है। पर मैं भी समझता हूँ कि हैमिल्टन के साथ ऐसा ही होना चाहिए था। पर बेटा इससे तुम्हारे ऊपर खतरा बढ़ गया है।"
"पापा मैं नहीं चाहता कि मैं पुलिस के हत्थे चढूंँ। क्योंकि मैं इस देश के लिए काम करना चाहता हूँ। इसलिए पूरा ख्याल रखूँगा कि अपनी हिफाज़त कर सकूँ। फिलहाल तो पुलिस को किसी बेअरे की तलाश है। मैं सीधे शक के दायरे में नहीं हूँ। फिर भी मैं पूरी सावधानी बरतूँगा। पर अगर उसके बाद भी पुलिस के हाथ चढ़ गया तो कोई मलाल नहीं होगा। अब बिना किसी डर के जो मुझे करना है वह करूँगा।"
माधुरी ने कहा,
"भैया मेरी प्रार्थना है कि ईश्वर तुम्हें सलामत रखे। तुम और मदन भैया अपना ख्याल रखना। इस देश और समाज को तुम जैसे लोगों की जरूरत है।"
"बिल्कुल खयाल रखूँगा। हम लोगों ने तय किया है कि आज रात की गाड़ी से पहले दिल्ली जाएंगे। उसके बाद वहाँ से आगे का सफर शुरू करेंगे।"
श्यामलाल ने सुझाव दिया कि वह दोनों दाढ़ी बना लें। घर से अंग्रेजी सूट पहनकर जाएं। अंग्रेजी वेशभूषा में पुलिस शक भी नहीं करेगी‌। यह आइडिया उन दोनों को बहुत पसंद आया।
बातें करते हुए जय को अपने भांजे का ख्याल आया। उसने माधुरी से कहा,
"तुमने मुझे डेविड से नहीं मिलवाया।"
माधुरी जय और मदन को ऊपर अपने कमरे में ले गई। वहाँ पालने में डेविड सोया हुआ था। जय ने उसे अपने हाथों में उठा लिया। डेविड जाग गया। वह बड़े ध्यान से जय को देखने लगा। पहचाना हुआ चेहरा ना होने पर वह रोने लगा। माधुरी ने उसे अपनी गोद में लेते हुए कहा,
"रो क्यों रहे हो.... यह तुम्हारे जय मामा हैं और दूसरे मदन मामा।"
मदन ने कहा,
"कितना कोमल और सुंदर है।"
जय ने समर्थन करते हुए कहा,
"हाँ और जैसा माधुरी ने पत्र में लिखा था इसकी आंखें सचमुच स्टीफन की तरह हैं। सपनों से भरी भरी हुई। भगवान इसके सारे सपने पूरे करे। जब यह होश संभाले तो एक आजाद मुल्क का नागरिक हो।"
माधुरी ने कहा,
"ऐसा ही होगा भैया। वृंदा दीदी और उनके जैसे तमाम लोगों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। भैया तुमने जब से बताया है कि तुमने उस हैमिल्टन को उसके किए की सजा दे दी है। मेरे कलेजे को बहुत ठंडक पहुँची है। तुमने यह बहुत अच्छा काम किया।"
जय ने माधुरी के सर पर हाथ फेर कर कहा,
"तुम्हारे दिल की जलन समझता हूँ बहन। पर अब तुम यह सब ना सोच कर स्टीफन का सपना पूरा करने के बारे में सोचो। हम आजाद हो जाएंगे तो तुम्हारे जैसे पढ़े लिखे डॉक्टर्स पर इंजिनियर्स की जरूरत पड़ेगी।"
"भैया मैं स्टीफन का सपना जरूर पूरा करूँगी। चाचा जी ने मुझे पूरी मदद का भरोसा दिया है। अब मैं पीछे नहीं हटूँगी।"
डेविड ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। माधुरी उसे चुप कराने लगी।‌ जय और मदन भी डेविड को चुप कराने की कोशिश करने लगे। इससे डेविड और परेशान हो गया। माधुरी ने कहा,
"लगता है यह भूखा है।"
जय और मदन कमरे से बाहर चले गए। माधुरी डेविड को दूध पिलाने लगी।‌
दोपहर को खाना खाने के बाद मदन आराम करने लगा। माधुरी अपने कमरे में डेविड को सुला रही थी। जय कुछ वक्त अपने पापा के साथ बिताना चाहता था। वह अपने पापा के कमरे में चला गया।
श्यामलाल अपनी आराम कुर्सी पर बैठे थे। वह जय के बारे में ही सोच रहे थे। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि उनके बेटे में इतनी हिम्मत कहाँ से आई कि उसने हैमिल्टन को मार दिया। यह हिम्मत उसे वृंदा के प्यार ने ही दी होगी। तभी तो वह उस दुष्ट से वृंदा की हत्या का बदला ले पाया।
तभी उन्होंने महसूस किया कि जय उनके पैरों के पास आकर बैठ गया है। उन्होंने कहा,
"क्या बात है जय ? तुम आराम नहीं कर रहे बेटा।"
"पापा मुझे आराम की जरूरत नहीं है। वैसे भी अब तो अपने आप को कष्ट सहने के लायक बनाना होगा। पर मेरा मन कर रहा था कि कुछ समय आपके साथ बिताऊँ।"
जय ने अपना सर उनकी गोद में रख दिया। श्यामलाल ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा। जय ने कहा,
"पापा आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हैं ?"
"ऐसा क्यों कह रहे हो ?"
"पापा मैं कभी आपकी उम्मीदों में खरा नहीं उतर पाया। जो आप चाहते थे वह नहीं बन सका।"
श्यामलाल ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा,
"भगवान जो करते हैं वह अच्छे के लिए ही करते हैं। तुम अगर मेरे हिसाब से चले होते तो कभी भी अपनी पहचान ना बना पाते। मैं पहले वृंदा से नफ़रत करता था। सोचता था कि उसके कारण मेरा बेटा भटक गया। पर अब मैं उसका ऋणी हूँ। उसके कारण ही तुम अपना पथ चुन सके। उसने तुम्हें ही नहीं मुझे भी सही राह दिखाई है।"
"पापा आपके मुंह से यह सुनकर मेरा मन हल्का हो गया। मेरे जाने के बाद आप क्या करेंगे ?"
"माधुरी को डॉक्टर बनाना है। इसके अलावा मेरे एक मुनीम का पोता है। उसके कॉलेज की पढ़ाई का खर्च उठाऊँगा। बस इसी तरह ज़रूरतमंदों की सहायता करूँगा।"
उसके बाद जय चुपचाप उनकी गोद में सर रखे बैठा रहा। श्यामलाल उसके बालों को सहलाते रहे।

मदन और जय जाने के लिए तैयार हो गए थे। श्यामलाल के सुझाव के अनुसार उन्होंने शेव करके सूट पहन रखा था। श्यामलाल ने उनसे सेकंड क्लास क्लास का टिकट लेने को कहा था। चलने से पहले जय अपने पापा के गले लग कर बोला,
"अब पता नहीं दोबारा जीवन में मुलाकात होती है या नहीं। पर मैं जहाँ भी रहूँगा इस देश और समाज की भलाई का ही काम करूँगा।"
श्यामलाल भावुक हो गए। वह बोले,
"यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे। इतनी शक्ति दे कि तुम अपना उद्देश्य पूरा कर सको‌।"
श्यामलाल ने मदन को भी आशीर्वाद दिया। उसे गले लगा कर बोले,
"सच्चा मित्र क्या होता है तुम उसकी मिसाल हो। ईश्वर तुम्हें भी सदा खुश रखे। इतनी ताकत दे कि अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से लड़ सको।"
श्यामलाल ने उन्हें कुछ पैसे देकर कहा,
"अभी कुछ दिन तुम्हें अपनी सुरक्षा का ख्याल रखना होगा। यह पैसे काम आ सकते हैं। रख लो।"
माधुरी ने रास्ते में खाने के लिए कुछ पूरियां बनाकर बांध दी थीं। उन्हें पकड़ाते हुए बोली,
"तुम दोनों एक दूसरे का खयाल रखना।"
जय ने कहा,
"तुमको पापा की ज़िम्मेदारी सौंप रहा हूँ। ध्यान रखना कि मेरे जाने के बाद मेरी याद करके दुखी ना हों।"
चलते समय जय ने डेविड का माथा चूम कर कहा,
"अपने माता पिता की तरह सच्चा और बहादुर बनना।"
उसके बाद सबसे विदा लेकर मदन और जय अपने कर्म पथ की लंबी यात्रा पर निकल गए।

माधुरी ने अपनी बाकी की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद उसने लखनऊ के किंग जॉर्ज कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया।
डेविड की देखभाल करने के लिए एक औरत को काम पर रख लिया।
श्यामलाल ने अपनी योजना के अनुसार अपनी संपत्ति का दूसरों की भलाई में प्रयोग करना शुरू कर दिया।