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मासूम की बद्दुआ अंतिम भाग

Part 2 अंतिम भाग - कहानी के अंतिम भाग में पढ़िए शिखा को क्यों लगा कि उसे मासूम की बद्दुआ लग गयी है ...

कहानी - मासूम की बद्दुआ

दो दिन बाद शिखा डॉक्टर से मिलने गयी . उसे चेक करने के बाद डॉक्टर ने कहा “ सब ठीक है . आपकी सी डी मैंने ही मंगवा लिया था यह सोच कर कि आप मेरे पास आएँगी ही . अभी देती हूँ , मेरी आलमारी में है . “ बोल कर आलमारी से सी डी निकाल कर डॉक्टर ने उसे दे दिया .


“ आपने इसे देखा है डॉक्टर ? “


“ नहीं , मुझे सी डी देखने की जरूरत नहीं थी . मैं तो पूरा दृश्य लाइव देख रही थी . “


सी डी ले कर वह अपने घर लौटी और लैपटॉप पर सी डी देखने लगी . जो कुछ उसने देखा उससे उसकी रूह काँप उठी . बच्चे के छोटे छोटे हाथ पैर निकल आये थे . डॉक्टर का औजार जब उन्हें पकड़ने की कोशिश करता वह हाथ पैर फेंकता या गर्भ में अलग किसी कोने में खिसक जाता जैसे कोई आदमी कत्ल होने समय छटपटाता है और बचने की कोशिश करता है . बाद में उसके टुकड़े कर युट्रस से निकाल दिया गया . इस दृश्य को देख कर उसकी आँखों से आंसू निकलने लगे .


इधर विक्रम चेन्नई चला गया था . कुछ महीनों बाद विक्रम ने अपनी कलीग विजयलक्ष्मी से शादी कर ली .


इस घटना के एक साल बाद शिखा की शादी एक सजातीय लड़के रमेश से हुई . तीन साल तक शिखा बच्चे के लिए तरसती रही . फिर एक दिन शिखा अपने पति के साथ उसी अस्पताल में डॉक्टर से मिली. डॉक्टर ने दोनों का टेस्ट कराया .रमेश को कोई प्रॉब्लम नहीं था . डॉक्टर ने शिखा को टेस्ट के बाद एकांत में बताया कि बार बार एबॉर्शन के चलते यूट्रस को इरिवरसिबल डैमेज हुआ है जिसके चलते आप माँ नहीं बन सकती हैं . शिखा ने डॉक्टर को पति को यह बात बताने से मना किया .

फिर बाहर आकर डॉक्टर ने दोनों से कहा “ आई ऍम डीपली सॉरी . शिखा कुछ मेडिकल रीजंस के कारण माँ नहीं बन सकती हैं . “


शिखा और रमेश दोनों के चेहरे पर उदासी छा गयी . उन्हें देख कर डॉ ने कहा “ इसमें इतने मायूस होने की कोई बात नहीं है , आजकल मेडिकल.साइंस में बच्चे के लिए और भी विकल्प हैं . किसी सैरोगेट मदर की मदद ले सकती हैं या फिर किसी बच्चे को गोद ले सकती हैं . “


शिखा को एबॉर्शन वाली सीडी याद आयी . वह सोचने लगी उस मासूम का क्या कसूर था ? उसे दुनिया में आने के पहले ही मार दिया मैंने . जरूर उसी की बद्दुआ लगी है मुझे . उस रात में शिखा ने सपना देखा - एक अजन्मी बच्ची उससे पूछ रही थी “ मम्मा , क्या मैं बेटी थी इसीलिए मुझे पैदा होने के पहले मार दिया ? मुझे बहुत तकलीफ हो रही है . देखो मेरे हाथ पैर काट दिए गए हैं . बहुत दर्द हो रहा है . “


शिखा सपने में जोर से चीख पड़ी “ मेरा बच्चा अब नहीं मिलेगा . “


रमेश बोला “ क्या हुआ , कोई बुरा सपना देखा है ? हौसला रखो . रोने से कुछ मिलने वाला नहीं है . डॉक्टर की दी हुई सलाह के अनुसार हमें बच्चे के बारे में जल्द फैसला लेना होगा . “


“ हाँ , मैंने भी सोच लिया है . पहले रिश्ते में ही सैरोगेट मदर ढूंढने की कोशिश करती हूँ . अगर कोई न मिली तो किराए की कोख लेनी होगी .


इत्तफाक से जल्द ही शिखा को रिश्ते में सैरोगेट मदर मिल गयी . समय पर उसे बेटा हुआ . पति पत्नी दोनों अपने बेटे सनी से बहुत खुश थे . सनी जब छः साल का हुआ तब वह अक्सर बीमार रहता . शुरू में तो मामूली बुखार आदि का इलाज हुआ . कुछ दिन ठीक रहने के बाद बार बार बीमार पड़ता . अक्सर थकावट के साथ बुखार , सरदर्द , उल्टी होती . टेस्ट कराने पर उसे ब्लड कैंसर निकला . डॉक्टर ने उसके लिए जल्द से जल्द


अम्बिकल कॉर्ड ब्लड या बोन मैरो का इंतजाम करने की सलाह दी . डॉक्टर के अनुसार कॉर्ड ब्लड सेल मैच करने की संभावना बोन मैरो की तुलना में ज्यादा होती है . अस्पताल भी रजिस्टर्ड डोनर्स की तलाश कर रहा था

शिखा और रमेश के परिवार के डोनर्स से जो सैम्पल्स मिले वे मैच नहीं कर रहे थे . कुछ दिनों बाद चेन्नई के कॉर्ड ब्लड बैंक से मिले एक सैंपल से सभी उम्मीद लगाए थे . वहां के कॉर्ड बैंक से एक डोनर के कॉर्ड ब्लड मिला जो सौभाग्यवश सनी के मैच का था .


कॉर्ड ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद सनी की हालत सुधरने लगी . लगभग तीन महीने के बाद डॉक्टर ने कहा “ अब चिंता की कोई बात नहीं है . टेस्ट्स से सेल ग्रोथ के पॉजिटिव रिपोर्ट मिले हैं . मुंह , पेट , आंत , मसल्स और बाल सभी के सेल्स को पूरी तरह रिग्रो करने में कुछ और समय लग सकता है . आपको अस्पताल से जल्द ही छुट्टी मिल जाएगी . फॉलो अप के लिए फिलहाल तीन तीन महीने के बाद आना होगा .


अस्पताल से डिस्चार्ज के समय शिखा ने डॉक्टर से कहा “ मैं उस डोनर से मिलना चाहूंगी . “


“ मैं चेन्नई के उस अम्बिकल ब्लड बैंक का पता बता देता हूँ . डोनर के डिटेल्स आपको वहीँ मिलेंगे . आपको कॉर्ड ब्लड रजिस्ट्री से मदद लेने से आसानी से डोनर तक पहुँच सकने में सफलता मिलेगी . “ डॉक्टर बोला


शिखा अपने बेटे , पति और माता पिता पूरे परिवार के साथ चेन्नई गयी . वहां डोनर का नाम पता चला , वह एक औरत थी , विजयलक्ष्मी . सभी उस पते पर गए . विजयलक्ष्मी ने ही दरवाजा खोला . इतने लोगों को देख कर वह चौंक गयी . शिखा ने आने का कारण बताया और कहा “ आपको धन्यवाद के सिवा और क्या दे सकते हैं हमलोग . आपने मेरे बेटे को जीवन दान दिया है . हम आजीवन आपके ऋणी रहेंगे . “


विजयलक्ष्मी ने सब को बैठने के लिए कहा .


अंदर से आवाज आयी “ कौन आया है विजया ? “ बोलते हुए विक्रम आया


विक्रम को देख कर शिखा बोली “ विक्रम तुम यहाँ ? “

“ हां , बंगलुरु छोड़ने के बाद से मैं यहीं हूँ . विजया मेरी पत्नी है . उसी ने अपने बेटे का अम्बिकल ब्लड जमा कराया था . “


रमेश ने शिखा से पूछा “ तुम इन्हें जानती हो ? “


“ हाँ , विक्रम और मैं दोनों बंगलुरु में कुछ दिन काम करते थे . “ इसके आगे उसने कुछ नहीं बताया


तब तक विजया ट्रे में स्नैक्स , मिठाई आदि ले कर आई .


शिखा ने उससे पूछा “ विजयाजी , आप यहीं की रहने वाली हैं ? “


“ हाँ , मैं तमिल हूँ . मैं और विक्रम एक ही कम्पनी में काम करते हैं . “


रमेश पूछा “ आपलोगों का लव मैरेज है न ? “


“ यस ऑफ़ कोर्स . मैं तमिल ब्राह्मण हूँ . पहले मेरे पेरेंट् इस शादी के खिलाफ थे . पर जब मैंने कहा कि फिर मैं विक्रम से कोर्ट मैरेज कर लूंगी . तब उन्हें मानना पड़ा . “


शिखा के माता पिता विजया को देख रहे थे और शिखा ने जब उन्हें सवालिया नजरों से देखा तो उन्होंने नजरें झुका लीं . रमेश और विजया को छोड़ सभी बात की नजाकत समझ रहे थे .

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कहानी पूर्णतः काल्पनिक है