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क्या नाम दूँ ..! - 2

गातांक से आगे....

क्या नाम दूँ ..!

अजयश्री

द्वितीय अध्याय

सूरज आज भी अपने समय और जगह पर था, बस दिन बदल गया| पण्डित जटाशंकर मिश्र की टन-टन घंटी की अवाज के साथ बाबू टोला चिरगोड़ा में रोज सुबह की तरह “त्रयंबकम यजा महे... “महामृत्यंजय मन्त्र का जाप सुनाई दे रहा था |

पूजा ख़त्म करने बाद दलान में रखी चौकी पर बैठते हुए पं.जटाशंकर मिश्र ने आवाज लगाईं “परदेसिया ...!”

“जी मालिक आया “ कहते हुए आवाज सुनते ही सब काम छोड़कर उनका नौकर परदेसी दौड़ पड़ा|

पहले से रखे गुड़ को खाकर लोटे से पानी पीने के बाद पं.जटाशंकर मिश्र ने पूछा ...”कहाँ हैं तुम्हारे छोटे मालिक..?”

“उ अपने कमरे में हैं | बता रहे थे सांझ की टरेन है, दिल्ली जाना है| ”

“अभी भूत उतरा नहीं उनका; बड़का शहर जा रहे हैं | जाओ कहो उनसे बुला रहे हैं हम | ”

“जी’ कहते हुए चला गया परदेसिया बुलाने|

“काहें गला फाड़ रहे हैं !“ चौखट की आड़ से पंडिताइन बोली “अब लड़का नहीं रहा अपना आदर्श ;सयाना हो गया, उसका बिआह हो गया है ..बात-बात पर बोलना डॉटना ठीक नहीं है |

“काहें नहीं ठीक है.. सब काम अपने मन का करेगा!अरे जब हमने कह दिया कि शहर में जानें की कौनो जरूरत नहीं है, तो काहें नहीं मां लेता हमारी बात ?फिर यहाँ का काम-धाम, खेती-बारी कौंन देखेगा ? अब हमारी भी उम्र हो रही है, कहाँ-कहाँ दौड़-भाग करूंगा | ”

“बाबू जी मैंने आप से पहले भी कहा और आज फिर कहता हूँ ;मुझे नहीं करना आप का यह सब काम| आप को नहीं मालूम जिस कम्पनी में मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया है, वह देश के सबसे बड़े उधोगपति की कंपनी है... लोगों को मौका नहीं मिलता, मुझे मिला है तो मैं इसे गँवाना नहीं चाहता | ”

“इसका मतलब कि तू अपने बाप-दादा का पुश्तैनी काम-धंधा छोड़कर किसी बनिया की चाकरी करेगा, जो उसके बदले तुम्हारे हाथ पर हर महीना कुछ हजार रुपया डाल देगा ;अरे मूरख .इहाँ तू मालिक है, और उहाँ तू नौकर..समझा!”

“पर बाबू जी, का मिला आज तक आप को ई धंधा-पानी कर के !लोगों की दुश्मनी और बड़े भैया की मौत | ..नहीं बाबू जी नहीं ; नहीं हो सकेगा हमसे ई ठेका-पानी..”

“अरे का दोष था बड़के भैया का; यही न कि जिला कलेक्टर ऑफिस का ठेका उनके नाम हो गया था, पर नाहीं ठीक लगी ई बात बिरझन को ;घेर लिया उनको डवरपार में ही | जैसे नाव में बैठने के लिए रेता में उतरे, लाल हो गया था राप्ती का पानी | का हुआ ?आज तक जाँच हो रही है | चार में से तीन तो शक-सुबहा में छूट गए ; रहा एक, तो वो भी छूट ही जाएगा | नहीं छूटा तो लड़ते रहिए बीसों साल मुकदमा | पूरी जिन्दगी कट जायेगी..अम्मा कह दे बाबू जी से, मत रोकें हमके, जाए दें | ”

“अरे हम कहीं भाग थोड़े जात बानी ;घर हमार इहे हवे...तू ही बताव कैसे छोड़ देब...!”

“ठीक बा बाबू जा तू, परेशान मत होख...हम समझा देब तोहरे बाबू जी के| ”

पं. जटाशंकर मिश्र कुछ बोल न सके | खून के आँसू पी कर रह गये |

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“आदर्श हैव ए काँफी?..नेहा ने उसके सामने टेबल पर कॉफ़ी रखते हुए कहा |

“यस, वाय नॉट!” अपनी तंद्रा तोड़ते हुए आदर्श बोल पड़ा|

“कहाँ खो गये थे ?”

“कुछ नहीं, बस घर की बातें याद आ गयी | ”कॉफ़ी सिप करते हुए बोला आदर्श |

“आज कुछ खींचे-खींचे लग रहे हो, क्या बात है..?तबीयत तो ठीक है..?”

“हाँ बिलकुल ठीक है | ”आदर्श ने अपने को सँभालते हुए कहा “और तुम बताओ आज इतनी जल्दी फ्री कैसे हो गयी ..?”

“क्यों मैं फ्री नहीं हो सकती..?”

“नहीं, ये पीक ऑवर होता है काम का..| ”

“हाँ ठीक कहा तुमने, , , एक्चुली बात ये है कि आज मानसी मैम ऑफिस नहीं आयी हैं| ”

“क्या...” आदर्श चौंक पड़ा|

“उनका फोन आया था, तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए आराम कर रही हैं| ”

“तुमें नहीं मालूम क्या ?” नेहा ने प्रश्न किया |

“हाँ मालूम है... वह घर के चक्कर में भूल गया| ”बात सँभालते हुए बोला आदर्श|

तभी ऑफिस का इमरजेंसी अलार्म बज उठा...| अफरा-तफरी मच गयी| कोई समझ नहीं पाया...| बिना सोचे-समझे सब सीढ़ियों की ओर भागे कि बस किसी तरह बिल्डिंग से बाहर हो जायें |

सड़क पर पहुँचकर आदर्श ने राहत की साँस ली |

“क्या हुआ आदर्श ?” नेहा ने पूछा

“तुमने महसूस किया भूकम्प आया है | ”

“हाँ लगता है भूकम्प ही आया है, मैं भी कहूँ मेरे पैर क्यों काँप रहे हैं | ”

“मैं तो समझ गया जब कॉफ़ी पी रहा था | मैंने जैसे ही सिप करके कप रखा टेबल पर, कप हिलने लगा | पहले सोचा ऐसे ही हिल गया होगा, पर तभी एलार्म बजा, मैं हंड्रेड परसेंट कन्फर्म हो गया| ”

“ओ माई गॉड, सारे लोग बाहर आ गए!” नेहा चिल्ला पड़ी |

थोड़ी देर बाद जब होशो-हवास ठिकाने आये तो आदर्श को मानसी का ख्याल आया | तुरन्त उसने मोबाइल से नंबर मिलाया| घंटी बजकर बंद हो गयी पर मानसी ने फोन नहीं उठाया | आदर्श की बेचैनी बढ़ती जा रही थी | उसने फिर फोन मिलाया| इस बार उधर से फोन रिसीव हुआ |

“ हैलो कैसी हो तुम ठीक हो न....कहाँ हो तुम...?एक साथ कई सवाल पूछ डाले आदर्श ने|

“आई एम् फाइन !अपनी चिता करो| क्यों क्या हुआ, बड़ी फ़िक्र हो गई तुम्हें...कल रात इतनी चिंता की होती तो मेरी ये हालत न होती | ”

“घर से बाहर निकालो...नीचे आ जाओ, अर्थक्वैक आया है | “ चीख पडा आदर्श|

“हा हा हा...” जोर से हंसते हुए मानसी ने कहा “अच्छा, मेरे बच्चे को बड़ी चिता है मेरी! अब तो मैं बिलकुल नहीं नीचे उतरूँगी| ”

“ मजाक छोड़..” मगर मानसी ने बात पूरी होने के पहले ही कॉल डिसकनेक्ट कर दी|

आदर्श कुछ समझता और कॉल बैक करता, उससे पहले ही मोबाइल रिंग कर रहा था | रिसीव करते ही बिना सोचे आदर्श बोल पडा “-फोन क्यूँ काट दिया..?”

“हमने कहाँ काटा ;बहुत देर के बाद तो अब मिला है | ”भारी-भरकम आवाज ने उधर से प्रश्न कर दिया|

“प्रणाम !”आदर्श को समझते देर न लगी कि उधर बाबूजी हैं |

“सदानन्द रहो, का हाल-चाल है ?”

“हुऑ सब ठीक तो है बाबू जी ?”

“नाहीं ! कुछ नाहीं ठीक है; अभी जो भूईडोल आया था, उसमें घर के पिछुवारे वाला हिस्सा भर-भरा के गिर गया | ”

“का..!! कौनों जान-माल का नुकसान तो नहीं हुआ..?”

“नाहीं हम तो दोगहा (बरामदा )में थे, तुम्हारी माई कोला (किचेन गार्डेन )में;छोटकी दुलहीन अपने कमरा में...जब तक हल्ला हुआ तब-तक सब तहस-नहस हो गवा | अभी चौखट के पासे थी तबै गिर पडा पिछला हिस्सा | सब टांग –टुंग के जल्दी-जल्दी शहर के अस्पताल ले आये हैं| ”

“डॉक्टर कह रहे हैं होश में है, खतरा का कोई बात नहीं है पर पेट में गहरी चोट आयी है | ”आदर्श के होश उड़ गये| बोल नहीं सका कुछ | ”हैलो! बेटा का हुआ ?तुम ठीक हो न ?बोल काहें नाहीं रहे हो ?”

“हाँ बाबू जी, यहाँ सब ठीक है | ”हिम्मत कर के आदर्श बोला “मैं आता हूँ | ”

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जल्दी-जल्दी सामान पैक करने के बाद आदर्श कमरे से निकलते हुए लिफ्ट तक पहुँचा ही होगा, तभी मानसी ने आवाज दी “क्या दिल्ली छोड़ने का इरादा कर लिया...?” एक पल को रुकने के बाद आदर्श ने कुछ कहना चाहा, पर न जाने क्या सोचकर आगे बढ़ गया |

वैसे तो मानसी उसे रोकना नहीं चाहती थी, पर उसका, बिना जवाब दी चले जाना उसे कुछ ठीक नहीं लगा | ’आखिर उसने मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दिया..? कल तक मेरे आगे-पीछे दुम हिलाने वाला, आज ऐसे अकड़कर चला गया..!’ आखिर मानसी की बेचैनी ने उसे नेहा को फोन करने पर मजबूर कर दिया | अनायास उँगलियाँ मोबाइल के की बोर्ड पर चलने लगीं|

“हैलो, यस मैम “

आवाज सुनते ही मानसी ने प्रश्न किया –“एवारीथिंग इज फाईन ?ऑफिस में सब ठीक है ?”

“यस मैम “

“अच्छा ज़रा आदर्श को देना फोन | ” मानसी ने अंजान बनाते हुए कहा |

“मैम वो तो यहाँ नहीं है | ”

“वहां नहीं है ? क्या मतलब ?”

“ मैम उसके घर से फोन आया था | दोपहर में जो भूकम्प आया था, उसमें उसके गाँव में पुराना घर का एक हिस्सा गिर गया, जिसके कारण उसके मिसेज को काफी चोट आयी है | घरवाले हाँस्पिटल ले कर गये हैं | ये सब सुनकर वो परेशान हो गया और लीव एप्लिकेशन देकर घर चला गया | ”

“ओ.के., परेशान ना हो, जबतक आदर्श नहीं आता, तुम उसका वर्क मैनेज करो | ”मानसी ने निर्देश देकर यह जताने की कोशिश की, कि वह कुछ नहीं जानती |

“यस मैम “और मोबाइल कट गया|

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“अम्मा, ई का हो गईल..बाबू जी कहत रहले सब ठीक बा, खतरा के कौनों बात नाहीं...इहाँ त बाते कुछ अउर बा | किरण त अधमरल (आधीमारी हुई }हालत में बेड पर पड़ल बाटे...| पेट से गोड़ ले सब कूचा गईल बा | ” आदर्श रोनी सूरत में अम्मा से लिपटकर कह रहा था |

“मत परेशान होख बाबू सब ठीक हो जाई| डॉक्टर साहब कहत रहली धीरे-धीरे सुधार होई, घबरइला से नाहीं कुछ होई| ” पं. जटाशंकर मिश्र सर पर हाथ रखते हुए बोल पड़े | ”हम तुम्हरे मन की पीड़ा समझत है बाबू | औघड़दानी भोले-भंडारी हम सब के लाज रखिहें| ”

तभी नर्स ने आकर डॉटते हुए कहा “चलिए बाहर, कितनी बार कहा आप लोगों से पेशेंट के कमरे में बात मत कीजिए; यहाँ भीड़ मत लगाइये, पर आप लोग मानते ही नहीं| मैंने कहा था न, एक आदमी यहाँ रुकेगा, बाकी सब बाहर निकालिए...डॉक्टर साहब के आने का समय हो गया है, पंडिताईन उस अधेड़ उम्र की नर्स को घूरते बड़बड़ाते बाहर चली गई| पंडित जी भी आदर्श को रुकने का इशारा कर के बाहर निकल गये |

.क्रमश:...

गातांक से आगे....