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क्या नाम दूँ ..! - 3

क्या नाम दूँ ..!

अजयश्री

तृतीय अध्याय

एक्सरे रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने किरन से पैर धीरे-धीरे हिलाने को कहा | किरन कराहते हुए दोनों पैर की उँगलियाँ हिलाने की कोशिश करने लगी, पर दाहिने पैर को दो चा-बार से ज्यादा नहीं हिला पायी | ””गुड बहुत बढ़िया | ”

आदर्श की तरफ पलटते हुए डॉक्टर ने कहा “आप...?”

“जी मैं इनका पति | “

डॉक्टर आदर्श को लेकर बाहर आ गये और बोले-“देखिए, बायाँ पैर तो बच गया | दाहिने पैर में घुटने के नीचे फ्रैक्चर है, प्लास्टर करना होगा और सबसे अहम् बात की कमर के ऊपर पेट में काफी चोट आयी है | रिपोर्ट बताती है की इनकी बच्चेदानी काफी डैमेज हो गई है...सही कहें तो बेकार हो गई है, शुक्र मनाइए, इतने बड़े एक्सीडेंट के बाद भी, सी इज लाइव | ”

“कल एक रेग्युलर चेकअप करा लो और पैर में प्लास्टर दे दो!” नर्स को निर्देश देने के बाद डॉक्टर चले गये |

आदर्श बस चुप-चाप सुनता रहा गया | कमरे में वापस जाने पर किरण से नजरें मिली तो एहसास हुआ कि उसकी आँखों में आँसू हैं| लब थिरकते रहे, आँखें पूछ रही थीं –‘कैसे हो तुम प्रियतम !’धड़कन कह रही थी –‘जब से तुम परदेसी हुए, स्मृतियाँ तुम्हें ही ढूंढ रही थी...अभी-अभी तो सफ़र शुरू हुआ था | ’

जैसे ही आदर्श ने किरन का हाथ थामा वो बिफर पड़ी “जाओ नहीं बोलती तुमसे;बड़े हरजाई हो!”दोनों एकदूसरे से लिपट गये |

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“परदेसीया रे ! परदेसिया !”

“का बात है, काहे सगरो दुआर कपारे पर उठवले बानी ?परदेसिया आज नाहीं आइल बा | ”पंडिताइन झुँझला के बोल पड़ी |

“कहाँ मर गइल ? काहे न आइल ?”पं. जटाशंकर चिल्ला पड़े| “ये हू सारे क चर्बी ढेर चढ़ी गइल बा’ |

“भुलैले क खर खइले बानी का...!जस-जस बुढ़ होत बानी राउर भुलैले क बीमारी बढ़त चल जात बा | अरे रउरही न कलिहा ओके छुट्टी दीहनी..!ओकरे नाती क मुड़न बा आज, नातिअउरे गइल होई | ”

“ओहो...ओहो...ई का हो गइल बा आदर्श क माई ;सचहूँ कुछ तबीयत ठीक नाहीं बुझाता | ”

“हम बुझत बानी राउर चिंता...इ चिंता देखत बानी, ले डूबी रउरा के | हम कहत बानी जउन चीज अपने बस में नाहीं बा ओकरा बारे में सोचला से का फ़ायदा | ”

“ठीक कहत हऊ; आदर्श अपने मेहरारू के दिल्ली ले गइले ; का जाने का हाल-चाल होई !”

“सब ठीक होई ;झुट्ठे परेसान रहेली | अरे घूमे-खाये खेले दीं लइकन क दिन हवे | “

“पर हमार वंश त नाहीं बड़ी न आदर्श क माई !”

“अइसे मन थोर करत बानी...ओकर जीनगी बची गइल का कम बा ! एगो बात बताई, जेकर सब कुछ ठीक रहते कोख नाहीं बहरेला( बच्चा नहीं होता है ) का उ सब मरी जाला ? अरे ढेर लइका (लड़का ) मिलीह | एगो अच्छा देख के लिखा-पढी क के गोद लिया जाई, अरे जेही के मान-जान होखें उहे आपन हो जाई| ”

“का कहत बाड़ू तू ! अब ई दिन आगइल बा की पं. जटाशंकर मिश्र के खानदान का वंश दूसरा क खून आगे बढ़ाई ?ना पंडिताइन ना! ई दिन देखला से पाहिले हम आपन प्राण त्याग देब, पर अपना कुल पर दाग ना लागे देब| ”और खुद को रोक न सके तो, टूट कर ईश्वर पर बिफर पड़े | ”हे भोलेनाथ, का हमरे जिनगी भर के तपस्या क इहे फल हवे..!”

“अरे का करत हई..? केहू देखी त का कही; काल तक शेर खान गरजे वाला आज सियारे खान फेकरत बा | ”

“हम बरबाद हो गइली आदर्श क माई ! नाती पोता क सब सपना चूर हो गइल...वंशहीन हो गइली | ”

“चुप रही| धीरज धरी, सब ठीक हो जाई | रउरही ने कहीले ‘अन्हरिया केतनो गहीर होखे सूरज क किरन परते भाग जाई | ’ हमारा आदर्श क दुल्हिन उहे किरण है; जहीया चमकिहे सब अन्हरिया छटी जाई | चली, चलि के कुछ खा-पी ली | ”

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दरवाजा खोलते ही सामने मानसी को आदर्श दिखाई पडा | आदर्श को देखते ही चिल्ला पड़ी –“आखिर लौट ही आये, मैं जानती थी तुम वहां टिक नहीं पाओगे ;जिसने दिल्ली को जी लिया वो गाँव में नहीं रह पायेगा | ”बोलते हुए मानसी व्यंगात्मक लहजे में हँसी|

तभी उसकी नज़र आदर्श के पीछे खडी स्त्री पर पड़ी, जो असहज भाव से मानसी को देख रही थी | मानसी कुछ बोलती, उससे पहले ही आदर्श बोल पडा –“मेरी पत्नी किरन !”

मानसी तो बस शाक्ड रह गयी, पर खुद को सँभालते हुए बोली-“अच्छा-अच्छा तुम्हारी पत्नी..हाँ हाँ आओ | आओ किरन, बाहर क्यों खड़ीं हो | ”

आदर्श सामान लेकर अन्दर कमरे की ओर बढ़ गया तो किरन भी पीछे चल दी, पर मानसी उसे अपने कमरे में ले गयी | ”तुम यहाँ आराम से बैठो, मैं तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ ;क्या लोगी चाय कॉफ़ी, कोल्डड्रिंक?”

“नहीं-नहीं आप परेशान मत होइए “ किरन बोली |

“इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं हैं ;मैं एक अच्छी चाय बनाकर लाती हूँ | बोलकर मानसी किचेन की तरफ चली गयी |

किरन ने सामने कमरे से आदर्श को इशारे से बुलाया | पास बैठते आदर्श ने कह –“परेशान मत हो; वह जो कर रही है उसे करने दो| ”तबतक मानसी चाय ले कर आ गयी |

“यह रही गरमा-गरम चाय !और बताओ किरन तुम्हारी जर्नी कैसी रही ?”

“सब ठीक ही रही| “ किरन बोली

“और तुम्हारी तबियत !”

“तबियत भी ठीक है, दवाई चल रही है | “

“आई नो मैं समझ सकती हूँ | यह तुम्हारा ध्यान रखता है कि नहीं ?” आदर्श की तरफ खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए किरन ने पूछा | ”वैसे थोड़ा लापरवाह इंसान है” मानसी खुद बोल पड़ी |

“नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैं ;बहुत ध्यान रखते हैं हमारा” पर अपनी शर्माने वाली हँसी नहीं छिपा पायी किरन|

“अरे वाह ! क्या बात है !’ चुटकी लेते हुए मानसी ने कहा |

‘अच्छा मुझे भी ऑफिस के लिए निकलना है तैयार होती हूँ, तुम लोग भी फ्रेश हो लो| ”

“तुम आज ऑफिस आ रहे हो ना ?”मानसी ने आदर्श से प्रश्न किया |

“नहीं, आज नहीं, कल से आऊँगा;हाँ एक बात और बतानी है आपको; मैंने इस कॉलोनी के दूसरी बिल्डिंग में एक छोटा सा फ़्लैट किराये पर ले लिया है, कल वहाँ शिफ्ट करना है | ”

“लेकिन क्या जरूरत थी ?” मानसी बोलना चाहती थी पर बोल न सकी| दिल बैठता हुआ महसूस हुआ | झूठी हँसी हँसते हुए कहा-“अब क्यों रहोगे हमारे घर में ;तुम्हारी पत्नी जो साथ में है ...आखिर प्राइवेसी जो चाहिए| ”

“ऐसी बात नहीं “ किरन, मानसी का हाथ पकड़ते हुए बोली -“ ये | बहुत तारीफ़ करते हैं आपकी;रास्ते भर आपकी ही चर्चा करते रहे| ”

“रियली आई कान्ट बिलीव! आदर्श ने मेरी तारीफ़ की! थैंक गॉड, मैंने तो कभी सोचा नहीं था कि मेरी कोई तारीफ़ करेगा !वो भी आदर्श !” मानसी बोली |

“नहीं-नहीं, आप वाकई बहुत अच्छी हैं!”आदर्श ने छुपी तोड़ी|

“इसी लिए हमें छोड़ कर जा रहे हो?”मानसी ने प्रश्न किया और आदर्श निरुत्तर रह गया बस उसके चेहरे पे कुछ भाव आये और चले गये, जिसे मानसी ने पढ़ लिया | अन्दर ही अन्दर उसका टूटा दिल रो रहा था, पर वो कैसे रोये, जिसे लोग एक सख्त महिला के रूप में जानते हैं;फिर उसकी पत्नी के सामने, किरन..! एक आह निकलकर रह गयी| मानसी ऑफिस जाने का बहाना कर के अपने कमरे में चली गयी और दरवाजा बंद करके सिसक पड़ी | आँसुओ का सैलाब निकल पड़ा, पर आवाज नहीं आयी |

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“ सुनिए ! अम्मा का फोन आया था, आज बहुत दिन बाद | ”

आदर्श को ऑफिस से लौटे आधा घंटा हो चुका था, और अब खाने की मेज पर बैठ कर दोनों डिनर ले रहे थे तो किरन ने कहा|

“क्या कह रही थी अम्मा ?”

“कुछ ख़ास नहीं !कह रही थी वहां सब ठीक है | और सीधे तो नहीं पूछा पर पूछना चाहती थी कि कुछ उम्मीद है कि नहीं ?बड़ा शहर है अच्छे डॉक्टर को दिखाया की नहीं ?”

“क्या कहा तुमने ?”

“क्या कहती ! आप भी मजाक कर रहे हैं | अगर मेरे बस में होता तो अब तक माँ बन जाती | ”बोल पड़ी किरन | एक बूँद आँखों से टपक गयी, जिसे आदर्श ने देख लिया | उसे अपने हथेली पर रोकना चाहता था पर जाने क्यों हाथ बढ़ाकर पीछे कर लिया | शायद उसकी नियति में बह जाना ही लिखा था |

“आप कुछ कीजिए, जो भी तकलीफ होगी मैं सह लूँगी| ”

“बात तकलीफ की नहीं है, पर कोई रास्ता भी तो हो; वरना दुनिया में कौन सी औरत होगी जो यह दर्द नहीं सहना चाहती | ”

“सच कहते हैं आप; वह बहुत अभागी होगी जो यह दर्द न पाये..उसका नारीत्व और मातृत्व दोनों अपूर्ण रह जाते है| ”

“तुम तो जानती हो तुम्हारी बच्चेदानी निकाली जा चुकी है!कोई कुछ भी कर ले तुम माँ नहीं बन सकती| ”

“हे मेरे ईश्वर! जाने कौन सा पाप किया था जो यह सब भुगत रही हूँ | ”

“इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है;क्यों खुद को कोसती हो जो होनी को मंजूर था वह हुआ | ”

“तो ठीक है, होनी को यह भी मंजूर करना पडेगा ;आप दूसरी शादी कर लीजिए, मैं अम्मा-बाबू जी का दुःख और नहीं देख सकती, उनके आँखों में पल रहे सपनों को कैसे मिटा दूं, जो हर पल उस खुशखबरी का इंतज़ार करते हैं कि तुम बाप कब बनोगे ;और करें भी क्यों न! आखिर तुम्हारे सिवा कौन है उनका जो उनके वंश को वंशज दे सके, बुढ़ापे में बचपन का सुख लौटा दे | तुम्हें कुछ करना होगा !”

“तुम भी क्या बकवास करती हो; मैं नहीं कर सकता दूसरी शादी..मैं सिर्फ और सिर्फ तुमसे प्यार करता हूँ | ”

क्रमश:...

गातांक से आगे....