Jai Hind ki Sena - 17 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

जय हिन्द की सेना - 17 - अंतिम भाग

जय हिन्द की सेना

महेन्द्र भीष्म

सत्रह

आज प्रातः से ही ठाकुर रणवीर सिंह की कोठी में काफी चहल पहल थी। कोठी के बाहर लॉन में पण्डाल आदि कल शाम को ही लगा लिए गए थे।

किसी के पास बात करने का समय नहीं था, सभी किसी न किसी कार्य में व्यस्त थे। कोई भी कह सकता था कि आज यहाँ कोई समारोह सम्पन्न होने जा रहा है।

ठाकुर रणवीर सिंह आमंत्रित मेहमानों की सूची को अंतिम बार देखकर अपने मातहत से पूछ रहे थे कि कोई बुलाने को रह तो नहीं गया।

उमा—अटल का विवाह दिन में ही एक सादे समारोह में संपन्न होने जा रहा था।

बलवीर सबसे अधिक व्यस्त दिख रहा था। माली द्वारा लायी गयी फूलों की टोकरी में से फूल मालाओं को निकाल कर वह नौकरों को कुछ समझा रहा था कि तभी उसकी दृष्टि गेट से अंदर आती जीप पर पड़ी।

वह जीप की ओर बढ़ गया। जीप में हम्माद व तौसीफ़ लाये गये सामान के साथ लदे—फदे थे।

‘‘‘सारा सामान आ गया भैया।'' हम्माद ने जीप से बाहर आते हुए कहा।

‘‘बहुत अच्छा और तौसीफ यह तुम्हारे हाथ में कैसा पैकेट है?'' बलवीर ने पूछा।

‘‘ये... तो मेरे कैमरे की खुराक है।'' तौसीफ़ ने हाथ में लिए कैमरे की रील के पैकेट को सहलाते हुए कहा।

‘‘अच्छा, अच्छा'', बलवीर तौसीफ के मजाकिया उत्तर पर हँस पड़ा,

‘'रामू, दीनू जीप से सामान निकाल कर अंदर पहुँचाओ'' बलवीर ने तेज स्वर में दूर खड़े रामू व दीनू को पुकारते हुए कहा। तीनों पण्डाल को अंतिम रूप देने उस ओर चल दिए।

‘‘एक मिनट, मैं इनको अंदर रखकर आता हूँ।'' तौसीफ ने अपने हाथ में लिए पैकेट की ओर इशारा करते हुए कहा।

बलवीर ने सहमति में सिर हिला दिया।

ऊपर छत पर पहुँचते ही तौसीफ ठिठक कर रह गया।

अटल के उघारे बदन पर दो महिलायें हल्दी से उबटन कर रहीं थीं।

गौर वर्ण अटल के शरीर पर हल्दी की बत्तियाँ पीली ही निकल रहीं थीं, मैल की उसमें कहाँ गुंजाइश होती, फिर भी दूल्हेे के साथ यह क्रिया परम्परानुसार लगभग सभी जगह प्रचलित है।

तौसीफ कमरे में जाकर कैमरा ले आया और आैंधे मुँह छत पर पड़े अटल का एक फोटो ले लिया।

फ्लैश चमकने पर अटल को तौसीफ की उपस्थिति का आभास हुआ।

‘‘क्या करते हो?... फोटो ले ही ली।'' अटल बैठते हुए बोला।

‘‘जी हाँ हुजूर यह तो शुरुआत है, अभी तो ढेर सारी फोटो लेनी है' तौसीफ ने अटल के कान में आकर धीरे से कहा, ‘‘परन्तु इस तरह नंगे बदन फोटो अब नहीं लूँंगा।''

अटल ने तौसीफ़ की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा, ‘‘शरारत शुरू।''

‘‘तौसीफ़ बेटा नाश्ता कर लो और बलवीर हम्माद को भी नाश्ते के लिए बुला लो, नीचे बैठक में तुलसी ने नाश्ता लगा दिया है।'' शांति देवी ने छत पर आकर तौसीफ़ से कहा।

‘‘जी माँजी।'' तौसीफ़ शरारती मूड छोड़ गंभीर होकर आज्ञाकारी पुत्र

की तरह बोला और नीचे चला गया।

शांति देवी और उनकी बहू मोना ने कोठी के अंदर के सभी दायित्व अपने ऊपर ले लिए थे। मोना उमा को सजाने में कल रात्रि से ही व्यस्त थी।

उमा की हथेलियों पर मोना ने बंगाली संस्कृति की छाप मेंहदी रचकर छोड़ दी थी। जो भी उमा के मेंहदी रचे हाथ देखता मोना का गुणगान करने लगता।

‘‘आमि कि भेतारे आस्ते पारी?''.... बलवीर ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा जहाँ पहले से ही मोना, उमा के साथ थी।

बलवीर को आया देख मोना ने साड़ी का पल्लू अपने सिर पर रख लिया।

बलवीर के हाथ में नाश्ते की दो प्लेटें थीं।

‘‘नाश्ता कर लो फिर सजा लेना अपनी ननद को।'' बलवीर ने नाश्ते की प्लेटें टेबल पर रखते हुए कहा।

‘‘ननद क्यों भाभी'' मोना ने शरमायी हुई उमा की ठोड़ी अपने हाथ से

ऊपर की ओर करते हुए कहा।

‘‘अरे वाह मैं तो भूल ही गया था'' बलवीर ने घड़ी देखते हुये कहा,

‘‘अच्छा सुनो एक बजने में अभी दो घण्टे शेष हैं, जल्दी सजा लो अपनी भाभी को फिर मौका नहीं मिलेगा।'' अंतिम शब्द कहते—कहते बलवीर कमरे से बाहर निकल गया।

कोठी के बाहर बने पण्डाल में अटल व उमा दूल्हा—दुल्हन के कपड़ों में जँच रहे थे।

ऊँची चोटीधारी पंडितजी संस्कृत में श्लोक पढ़कर विवाह पूर्व की औपचारिकताएँ निपटा रहे थे।

सतना से जिलाधिकारी भी इस अनुकरणीय विवाह को प्रोत्साहन देने आ चुके थे। स्थानीय गणमान्य नागरिक व प्रशासन के अधिकारीगण लॉन में बिछी कुर्सियों पर विराज चुके थे।

ठाकुर रणवीर सिंह बलवीर के साथ आ रहे आमंत्रित मेहमानों का

स्वागत करने में व्यस्त थे।

हम्माद आ चुके मेहमानों को जलपान कराने की व्यवस्था में लगा था

और तौसीफ विवाह के महत्वपूर्ण पलों को अपने कैमरे में कैद करने में ।

सब कुछ यथावत चल रहा था।

लगभग—लगभग सभी मेहमान आ चुके थे। इक्का—दुक्का मेहमान अभी भी अपने वाहनों से आ रहे थे।

ठाकुर रणवीर सिंह बेचैनी से गेट की तरफ देखकर किसी विशेष मेहमान के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

वह कभी घड़ी को देखते कभी गेट पर आये मेहमान के स्वागत के बाद पुनः बेचैन हो उठते।

बलवीर ठाकुर रणवीर सिंह की बेचैनी को समझ नहीं पाया था।

जब काफी देर तक कोई मेहमान नहीं आया तब वह विवाह मण्डप के निकट आ गया जहाँ एक ओर मेज पर उसके स्वर्गीय मित्र भानु की फोटो फूलों की माला पहने रखी थी।

बलवीर ने दियों में पास रखे घी के डिब्बे से और घी डाला।

अंदर का पण्डाल लगभग पूरा का पूरा महिलाओं से भरा हुआ था।

उमा के पास मोना बैठी थी। बलवीर से आँखें चार होते ही मोना ने

शरमा कर सिर झुका लिया मानो वह स्वयं दुल्हन के रूप में हो।

भानु का स्मरण आते ही बलवीर ने कुछ क्षण के लिए अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं। वह अपने मित्र को दिए गये वचन को साकार रूप में होता देख रहा था।

तभी गेट पर उमड़े कोलाहल पर सभी की दृष्टि पड़ी। बलवीर ने भी गेट की ओर देखा। एक पल के लिए वह अचम्भित रह गया। उमा के बाबा ठाकुर माधो प्रताप सिंह अपने दल—बल के साथ गाड़ी से उतर रहे थे।

बलबीर ने कमर में लटक रहे रिवाल्वर पर हाथ रखते हुए पंडित जी से कहा, ‘जारी रहो' और गेट की ओर बढ़ गया।

वह विवाह में किसी भी अवरोध को रोकने में अपने आप को समर्थ

समझता था। भानु के बाबा का अचानक यहाँ आना विवाह मे खलल व

रुकावट डालने का आशय एकदम से बलवीर के दिमाग में आ गया। उसने

होलिस्टर का बटन खोल लिया था।

इसके पहले की रिवाल्वर उसके हाथ में आता उसने देखा कि भानु के बाबा अश्रुपूरित नेत्रों से ठाकुर रणवीर सिंह के गले मिल रहे हैं।

बलवीर किंकर्तव्यविमूढ़ की तरह कुछ पल ज्यों का त्यों अपने स्थान पर खड़ा रहा।

ठाकुर रणवीर सिंह की आँखों में अब बेचैनी नहीं थी। उन्हें जिस मेहमान की प्रतीक्षा थी वह आ चुका था।

उमा की माँ, चाचियाँ, भाभियाँ एवं भतीजी चुन्नी—मुन्नी महिलाओं की ओर चली गयी।

‘‘बलवीर बेटे!'‘ ठाकुर माधो प्रताप सिंह के मुँह से अपना नाम सुनकर बलवीर होश में आया।

ठाकुर रणवीर सिंह ने मुस्कराते हुए बलवीर को ठाकुर साहब से मिलने का संकेत किया।

‘‘बब्बाजू'' बलवीर ने भरे गले से ठाकुर साहब के चरण स्पर्श किए।

‘‘कटु वचन के लिए मुझे माफ कर देना बलवीर'' कहते ठाकुर साहब ने बलवीर को गले से लगा लिया।

‘‘तूने मेरी आँखें खोल दीं बेटे!'' ठाकुर साहब कहे जा रहे थे। कुछ क्षण ऐसे ही बीत गये।

ठाकुर रणवीर सिंह ने जिलाधिकारी व अन्य उच्च अधिकारियों एवं गणमान्य नागरिकों से ठाकुर माधो प्रताप सिंह का परिचय करवाया।

मण्डप के नीचे वधू बनी बैठी उमा घूँघट से सभी कुछ ध्यान से देख रही थी।

उसके अंदर प्रारम्भ में उठी आशंका अब आनंद में बदल चुकी थी।

एक बार फिर सभी कुछ पूर्व की तरह यथावत चलने लगा था।

रात्रि का अंधकार पूरी तरह छा जाये इसके पहले लगभग सभी कार्य सम्पन्न हो चुके थे, मेहमान सामूहिक भोज में सम्मिलित होने के बाद नव दंपति को

अपने साथ लाये उपहार सौंप कर वापस जा चुके थे।

कोठी के प्रांगण में विद्युत प्रकाश जगमगा रहा था, कोठी के प्रमुख सदस्य इस समय शारदा माता के मंदिर नव दंपति के साथ गये हुए थे।

उमा का कन्यादान उमा के सास—ससुर ने किया था। विवाह में उपस्थित समाचार पत्रों के छायाकारों ने विवाह के समय का फोटो अपने समाचार पत्रों में छापने के लिए खींचे थे।

पत्रकारों ने अपने अखबारों के लिए विवाह सम्पन्न हो जाने के बाद क्रमशः नव दंपति, ठाकुर रणवीर सिंह एवं ठाकुर माधो प्रताप सिंह से प्रश्न पूछे जिनका ठीक—ठीक जवाब सभी ने दिया।

जिलाधिकारी ने अपने कोष से इस आदर्श विवाह के लिए दस हजार

रुपये का चेक नव दंपति को प्रदान किया और कहा कि उन्होंने इस तरह का अनूठा आदर्श प्रस्तुत कर समाज के समक्ष अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। जिलाधिकारी ने अपने वक्तव्य में ठाकुर रणवीर सिंह, ठाकुर माधो प्रताप सिंह एवं अटल की मुक्त—कंठ से प्रशंसा की।

शारदा माता के मंदिर से सभी लोग वापस कोठी में रात्रि दस बजे आ गये। दिन भर की थकान लिए पुरुष देर रात तक बैठक में बैठे बतियाते रहे। चारों ओर से घिरा बलवीर अपनी प्रशंसा में बांधे जा रहे पुल के घेरे से झुका जा रहा था।

इसी बीच तुलसी ने आकर बलवीर से कहा कि उसे अंदर छोटी मालकिन बुला रही हैं।

बलवीर बैठक से बाहर जाना चाहता था, सो तुलसी के बुलाने पर वह तुरंत उठ खड़ा हुआ।

बैठक से निकलते ही उमा बलवीर के सामने आ गयी।

'‘भैया.....'' उमा ने बलवीर को रोकते हुए कहा।

‘‘हाँ.... उमा तुम! कहो.... क्या बात है?.....'' बलवीर ने उमा को देखकर असमंजस में पूछा।

‘‘भैया मेरे साथ आइये'' कहते हुए उमा अंदर की ओर चल दी।

बलवीर नहीं समझ सका कि आखिर क्या कारण है, जो उमा उसे इस तरह अपने साथ आने को कह रही है।

उमा बलवीर को पहले से सजाये गये कमरे में ले आई।

बलवीर उमा से कुछ कहता कि इससे पहले फूलों की मालाओं से आच्छादित पलंग पर सिमटी बैठी, मोना की ओर संकेत करते हुए उमा बोली,

‘‘भैया भाभी जी की माँग में सिन्दूर भरिए, मुझे सब कुछ मालूम है।'' कहते हुए उमा ने टेबिल पर रखी सिन्दूर की खुली डिब्बी बलवीर की ओर बढ़ायी।

बलवीर उमा की भावना को समझ कर मुस्कराया, उसकी आँखों में प्रेम के आँसू उमड़ आये।

उमा के सिर पर स्नेह से हाथ रखते हुए बलवीर ने सिंदूर की डिब्बी उमा से ले ली और पलंग पर बैठी मोना की ओर बलवीर उन्मुख हुआ।

सुहागिन मोना की सूनी माँग को बलवीर ने लाल सिंदूर से भर दिया।

फ्लैश की अचानक चमक के साथ तौसीफ ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।

‘‘सॉरी भैया गुस्ताखी माफ, इस अवसर का फोटो लेना फोटोग्राफर का पुनीत कर्तव्य है।'' तौसीफ कमरे से बाहर जाने लगा।

‘‘रुको'‘ बलवीर ने खड़े होते हुए चेहरे पर बनावटी गम्भीरता लाते हुए फौजी लहजे से कहा,‘‘अटेंशन''

तौसीफ भी सावधान की मुद्रा में तत्काल खड़ा हो गया।

‘‘फोटोग्राफर! अब तुम हमारी फोटो हमारी बीबी के साथ खींचो।''

बलवीर का अंदाज फौजी था।

तौसीफ़ ने आज्ञा का पालन किया।

फिर सभी हँस दिए।

तभी तौसीफ़ को कुछ संकेत करते हुए उमा कमरे से बाहर निकल गयी।

‘‘गुड नाइट'' कहते हुए तौसीफ भी कमरे से बाहर निकल गया।

.........और इसके पहले कि बलवीर कुछ समझ पाता तौसीफ ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। शायद ऐसा ही करने का संंकेत उमा ने उसे दिया था।

बलवीर ने असमंजस में मोना को देखा वह बलवीर की इस स्थिति पर खिलखिलाकर हँस पड़ी।

‘‘यह सब उमा की कारस्तानी है। उसने पहले से ही यह योजना बना रखी थी'' मोना ने असमंजस में पड़े बलवीर के लिए स्थिति स्पष्ट की।

‘‘.....परन्तु यह तो उमा और अटल के लिए सजाया गया है?'' बलवीर ने प्रश्नवाचक की तरह मोना की आँखों में झाँका।

‘‘उन दोनों के लिए ऊपरी मंजिल में ठीक इस कमरे के ऊपर वाले कमरे को सजाया गया है।'' मोना ने बलवीर के इस प्रश्न का भी समाधान किया।

‘‘समझा'' कहते—कहते बलवीर ने मोना को अपने आलिंगन में बाँध लिया और पलंग पर मोना को लिए गिर पड़़ा।

मोना ने पलंग के पास लटक रहे बेड स्विच को दबा दिया।

प्रातः दिन चढ़े सभी देर से सोकर उठ पाए कारण रात्रि देर तक सभी जागते रहे थे। तमस नदी में स्नान करने का प्रस्ताव ठाकुर रणवीर सिंह ने रखा जिसे सभी ने मान लिया।

तौसीफ़ ने एक बार प्रयास किया था कि वह किसी तरह अटल को जगा ले परन्तु उसे अटल के कमरे में जाने की किसी ने भी सलाह नहीं दी। वह सोचने लगा, ‘काश! अटल अविवाहित रहता।'

अटल और बलवीर बेसुध सोए पड़े रहे जबकि उमा ओर मोना जाग चुकीं थीं और बहुत देर पहले से ही अपने दैनिक कार्य में लग गई थीं।

आखिर मन मारकर तौसीफ व हम्माद दोनों को नदी में स्नान करने जाना पड़ा।

तमस नदी से माँ शारदा देवी का मंदिर स्पष्ट दिख रहा था। नदी में

भरपूर स्नान करने के बाद सभी दोपहर एक बजे तक वापस कोठी आ पायेे।

बैठक में ही अटल व बलवीर से तौसीफ़ व हम्माद की मुठभेड़ हो गयी।

‘‘देखा ! भाई लोग शतरंज खेल रहे हैं।'' तौसीफ़ ने भड़ास निकालते हुए कहा।

‘‘क्या करते .. हमें नदी में नहाने के लिए साथ क्यों नही ले गए?''

अटल ने दोनों मित्रों को आया देख प्रश्न किया।

‘‘क्यों नहीं ले गए?' ...... तौसीफ़ चिढ़ते हुए बोला, ‘जनाब पूरे एक घण्टे तक तुम्हारे जागने का इंतजार करता रहा हूँ..... पूछो हम्माद से।''

अटल व बलवीर ने तौसीफ के कथन की पुष्टि के लिए हम्माद की ओर देखा जो सहमति में सिर हिला रहा था।

‘‘अमां शादी क्या हुई .. दोस्तों से नाता ही खत्म.....''

‘‘भाइयों, झगड़ा शांत.. कल से अब गलती नहीं होगी...... क्यों अटल जी?'' बलवीर ने बीच में दखल देते हुए कहा।

‘‘जी........ जी हाँ'' अटल ने मुस्कराते हुए कहा।

‘‘अब हम दोनों भी विवाह जल्दी करेंगे'' तौसीफ सोफे पर पाँव पसार कर बैठ गया।

‘‘अभी तुम दोनों की इबादत कबूल नहीं हुई है। कुछ दिन अभी और पूजा—पाठ करो।'' अटल ने व्यंग्य कसा।

‘‘क्या कहा? .. हम्माद मियाँ दिखा तो दो निकाह के निमंत्रण कार्ड।'' तौसीफ़ ने हम्माद से कहा उसकी चमकती आँखों ने अटल व बलवीर को अचम्भे में डाल दिया। हम्माद ने अलमारी से सूटकेस निकाला और सूटकेस से दो कार्ड जो बड़े—बड़े दो लिफाफों में थे, निकाले ही थे कि अटल ने मारे खुशी के झपट लिए।

एक लिफाफा बलवीर को सौंपते हुए अटल ने अपने लिफाफे से कार्ड

बाहर निकाला, ‘‘रूख़्ासाना संग तौसीफ'' अटल बोल पड़ा

‘‘शमा संग हम्माद'' यह आवाज बलवीर की थी।

पूरा कार्ड पढ़ चुकने के बाद अटल और बलवीर अपने अपने स्थानों से

उठे और ....... तौसीफ व हम्माद को उठाते हुए एक स्वर में बोल पड़े... ‘हुर्रे' थोड़ी देर में ही पूरी कोठी में तौसीफ व हम्माद के विवाह की सूचना फैल गयी।

‘‘भाईजान, आप लोगों ने यह शुभ सूचना इतने दिन छिपाए रखी थी?''

मोना तौसीफ से शिकायत भरे लहजे में बोली।

‘‘ठीक कहती हो शुभ सूचना सुनाने का मौका ही कब दिया था जो सुनाते।'' तौसीफ मुस्कराते हुए बोला।

‘‘अच्छा चलो बच्चों भोजन कर लो फिर तुम लोगों को खुलना जाने की तैयारी भी करनी है।'' शांति देवी ने बैठक में आकर कहा।

अगले दिन प्रातः वे सब रेलवे स्टेशन आ गए।

हावड़ा मेल ठीक सात बजे मैहर आ जाती है।

बलवीर व अटल अपनी—अपनी धर्मपत्नियों के साथ तौसीफ व हम्माद के विवाह में सम्मिलित होने खुलना जा रहे हैं।

प्रियजन व परिवार के लगभग सभी सदस्य उन्हें छोड़ने आए थे।

रेलवे स्टेशन पर उन सबका एक ग्रुप फोटो हुआ।

गु्रप में भानु नहीं था, परन्तु सभी के मन—मस्तिष्क में भानु की मधुर स्मृतियाँ थीं।

विदाई की बेला पर ठाकुर माधो प्रताप सिंह ने एक छोटी—सी टोकरी बलवीर को थमायी और भरे गले से कहा,” बेटे! ये फूल और गाँव की मिट्‌टी भानु की समाधि पर चढ़ा देना।''

जय हिन्द..... जय! हिन्द की सेना !!