Ankaha Ahsaas - 4 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | अनकहा अहसास - अध्याय - 4

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अनकहा अहसास - अध्याय - 4

अध्याय - 4

अच्छा ठीक है अब कब मिलोगी। शादी के मंडप में और क्या ? रमा बोली।
अरे यार ऐसी सजा मत दो कम से कम फोन पर तो बात कर सकती हो।
हाँ बिलकुल। पर जब तक सब कुछ तय नहीं हो जाता सिर्फ मैं फोन करूँगी।
दिन में एक बार ?
नहीं एक एक दिन के गैप में वरना तुम अपने काम पर ध्यान नहीं दोगे।
चलो ठीक है मैं जल्दी ही अपने पापा से बात करूँगा।
दोनों वहाँ से निकल गए।
अब अनुज का एक ही लक्ष्य था। अपने पापा को बिजनेस में हाथ बटाना और उनके बिजनेस को बढ़ाना। वो काफी तेजी से अपना काम सीख रहा था और अपने बिजनेस को बढ़ा रहा था। उसके पापा उससे खुश थे। एक दिन पापा का मूड देखकर उसने बात किया।
पापा आपसे बात करनी थी।
हाँ अनुज बोलो क्या बात है ?
पापा अब तो मैंने आपके काम में हाथ बटाना भी चालू कर दिया है।
हाँ वो तो मैं देख रहा हूँ अनुज तुम बहुत तेजी से काम सीख रहेहो और बिजनेस संभाल भी रहे हो कोई विशेष बात है क्या ?
जी पापा विशेष बात ही है।
तो बताओ ?
पापा मैं जब एम.एस.सी. कर रहा था तो मेरे साथ एक लड़की पढ़ती थी उसका नाम रमा है। मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है परंतु बहुत अच्छी है।
मै उसे पसंद करता हूँ पापा और उससे शादी करना चाहता हूँ।
ये तो अच्छी बात है बेटा कि तुमने अपना जीवन साथी चुन लिया है। मुझे क्या करना है बताओ ?
पापा आपको उनके घर बात करने जाना होगा।
क्या वो लोग तुम्हे जानतें हैं। अनुज ?
नहीं पापा सिर्फ रमा जानती है मुझे।
मतलब तुमको भी साथ चलना होगा। मैं चलूँगा पर बाहर कार में ही बैठा रहूँगा पापा।
आप जब फोन करोगे तभी अंदर आऊँगा।
अच्छा ठीक है कब चलना है बताओ ? मैं
मैं फोन पर बात करके पहले पता कर लेता हूँ कि वो लोग सभी घर पर कब रहेंगे । उसके बाद ही चलेंगे।
ठीक है बेटा। कहकर उसके पापा उठे और काम में निकल गए।
तभी अनुज का फोन बजा। ये रमा का ही फोन था।
हेलो रमा।
हाँ अनुज तुम कैंसे हो ?
मै बहुत बढ़िया हूँ रमा। बिजनेस मैंने संभाल लिया है और आज तो पापा से बातचीत भी हो गई।
क्या बात हुई।
बस यही कि वो तुम्हारे घर आकर तुम्हारा हाथ मांगेंगे।
ओह!! ये तो बहुत अच्छी बात है अनुज। अगर इसी तरह से मेरे माता पिता भी राजी हो गए तो सब कुछ अच्छा हो जाएगा।
हाँ रमा चिंता मत करो रिजेक्ट करने लायक जैसा कुछ भी नहीं है। मैं अच्छे परिवार से आता हूँ। अच्छा कमाता हूँ और देखने में भी ठीक ठाक हीं हूँ, हाँ ये बात अवश्य है कि तुम्हारे सामने एकदम फीका हूँ तुम तो बहुत ज्यादा खूबसूरत हो।
बस-बस रहने दो अब इतना उड़ाने की जरूरत नहीं है।
हो गया बस करो। कब आओगे ये बताओ।
वो मैं कैसे बताऊँगा ? तुम बताओ, कब तुम्हारे मम्मी पापा घर पर मिलेंगे ? अनुज ने पूछा
संडे को आ जाओ। संडे को ज्यादातर हम लोग घर पर ही रहतें हैं। और मैं थोड़ा उनको हिंट भी कर दूँगी कि आप लोगों से मिलने के लिए कोई आने वाला है तो वो घर पर ही रहेंगे।
अच्छा ठीक है फिर संडे को सुबह 10 बजे मैं पापा को लेकर आता हूँ।
अच्छा ठीक है मैं इंतजार करूँगी।
रमा ने अपने माता पिता को बता दिया था कि रविवार को कुछ लोग पापा से मिलने आने वाले हैं परंतु ये नहीं बताया कि किसलिए आ रहे हैं। उसके पापा ने सामान्य बात समझकर ओके कहा।
और वो दिन आ ही गया जब अनुज और उसके पापा की कार रमा के घर के सामने रूकी उसके पापा उतरे और कालबेल बजाए।
जी आप कौन ? रमा के पापा ने दरवाजा खोलकर पूछा।
नमस्ते। वो रमा ने आपको बताया होगा कि मैं मिलने आने वाला हूँ।
ओ हाँ, प्लीज अंदर आईये।
धन्यवाद।
आईये प्लीज बैठिए। रमा ने बताया था कि कोई मिलने आने वाले हैं। बताईये।
जी मैं इसी शहर का रहने वाला हूँ बी. के. कंस्ट्रक्शन नाम की मेरी कंपनी है।
हाँ मैंने सुना है। रमा के पापा बोले। वो तो काफी बड़ी कंपनी है।
जी बस आप लोगो की दुआ से चल रहा है।
अच्छा अच्छा। तभी रमा भी वहां आ गई।
नमस्ते जी!! आपको शायद पता हो कि रमा और मेरा बेटा साथ में ही एम. एस. सी. किए हैं।
क्या नाम है उसका ?
जी, अनुज। मेरे बेटे का नाम अनुज है।
हाँ ये नाम तो कई बार मैंने रमा के मुँह से सुना है। रमा की माँ ने कहा।
जी। वही। अनुज और रमा एक साथ पढ़ते थे और अब तो अनुज ने मेरा बिजनेस भी संभाल लिया है।
तो ?
तो मैं आप लोगों से प्रार्थना करने आया हूँ कि मेरे बेटे के लिए यदि आप अपनी बेटी का हाथ देंगे तो बड़ी कृपा होगी।
जी!!! ओह। हमें तो ये उम्मीद ही नहीं थी कि ऐसा कुछ होने वाला है। मतलब ये बात रमा को पता थी। उन्होंने पहले रमा की ओर देखा फिर उसकी माँ की ओर देखा।
हाँ। अनुज और रमा एक दूसरे को पसंद करते हैं और मैं एक पिता होते हुए अपने बच्चों की खुशी का सम्मान करता हूँ। आपसे भी आग्रह है कि आप भी इनका समर्थन करके इनकी खुशियों का सम्मान करें।
रमा के पिता ने अपनी पत्नि की ओर देखा। वो थोड़ी कनफ्यूज्ड दिखाई दे रही थी।
बस दो मिनट का वक्त दीजिए। रमा तुम थोड़ा अदंर आओ।
अब रमा अकेले में अपने मम्मी पापा के सामने खड़ी थी रमा तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया पापा ने पूछा ?
मैं डर गई थी पापा, और चाहे जो भी हो मैं आप लोगों की मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं करूँगी।
आप लोग यदि सहमत नहीं होंगे तो आप जहाँ कहंगे कहेंगे वहाँ शादी कर लूँगी।
उसके पापा की आँखो में आसू आ गए।
मुझे तुम पर गर्व है बेटी। मुझे मालूम है कि तुम मेरा सिर कभी नीचा नहीं होने दोगी। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूँ बेटी। चलो बाहर मैं तुम्हारा रिश्ता तय कर देता हूँ।
रमा की आँखें भर आई वो अपने पापा से लिपट गई थैंक्यू पापा।
खुश रहो बेटा। यह कहकर वो लोग बाहर आ गए।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें - भूपेंद्र कुलदीप।