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क्लीनचिट - 6

अंक - छठ्ठा/६

'शेखर, अदिती के देहलालित्य को शब्दों मे बयान करना शायद आसान होगा, लेकिन उस एहसास को जीने के लिए आलोक बनकर जनम लेना होगा। हमदोनो ने मुश्किल से ४ से ५ घंटे साथ में बिताए होंगे। उस समय दरमियान जो भी बातें हुई वो सामान्य ही थी। वो स्वभाव से बहुत बिंदास है, और उस दिन फिरकी लेकर मेरी बैंड बजाने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बातों बातों में हमदोनों कब एकदूसरे मेें इतना घुलमिल गए, उसका पता ही नहीं चला। लेकिन जब अलग होने का समय आया तब वो बहुत धीरगंभीर हो गई थी। अंतिम दस मिनिट में वो हुआ जो पिछले पांच घंटो में नहीं हुआ था। बातों बातों में हंसी के पीछे विशेष रूप से छुपाई हुई बातों का संदर्भ उसकी आंखों में दिखाई देने लगा। अब हमदोनों धीरगंभीर थे। लेकिन साफ़ साफ़ शब्दों मेें कहने के बजाय अदितिने शर्तों का सहारा लिया। उन शर्तों की गंभीरता की परिभाषा अदिति के जाने बाद मेरी समझ मेे आई।'

शेखर ने पूछा, 'क्या मतलब था उन शर्तों का?'

आखरी पांच से सात मिनिट की पलों में, हमारे संवाद के शब्दसूर के राग में दोनो एकाकार हो गए थे। लेकिन शायद लखनवी तहज़ीब अनुसार, 'पहले आप.. पहले आप' की अदायगी में मेरी गाड़ी(दुल्हन) छूट गईं। एकदूसरे के होठों तक आए हुए इकरार-ए-इश्क के शब्द हमारे जैसे ही जम गए थे। और उसके बाद साफ़ साफ़ खुले शब्दों मेें, बड़ी चतुराई से गर्भित भाषा में अनुवाद करके, शर्त आड़ में रखने का अदिति का आशय सिर्फ़ इतना था कि, वो जानना चाहती थी कि आग दोनो तरफ़ बराबर लगी है क्या? अदिति को ऐसा लगा था कि अगर उसका अनुमान सही हुआ तो आलोक उसे पाताल में से भी ढूंढ निकालेगा। और उसके उस अडिग विश्वास को अखंडित रखने के लिए आज में इस हालत में हूं।'

शेखर के पास आलोक को क्रॉस करने के लिए कई सवाल थे, लेकिन उसे लगा कि अभी ऐसी बात करने का सही समय नहीं है, इसलिए चुप रहना बेहतर समझा।

मन में दबी हुई बातों को बोलने के बाद अब आलोक आंशिक तौर पर बहुत रिलैक्स था। शेखर ५:१० का समय देखकर बोला,"चल, अब हम गोपाल से मिलने निकलते है।"

ठीक ६ बजे के आसपास दोनो गोपाल के साथ तय की हुई कॉफी शॉप में जाकर बैठे इतने में पांच मिनिट में गोपाल आया। शेखर ने तीन कॉफी का ऑर्डर दिया।
'गुड इवनिंग सर,' आलोक ने गोपाल से कहा। गोपाल ने जवाब देते हुए कहा, "हाय, आलोक, हाऊ आर यू नाऊ? आज क्यूं तुमने छुट्टी ली?"
आलोकने जवाब देते हुए कहा, "बस ऐसे ही सर।"
शेखर को पूछते हुए गोपाल बोला, "बोल शेखर क्या काम था? कुछ सीक्रेट है?"
शेखर ने जवाब दिया, "अरे नहीं यार, कुछ नहीं, वो उस दिन तुम्हारी ऑफिस में बॉस के कोई गेस्ट आने वाले थे, फिर नहीं आए उसके बारे में....'
याद करते हुए गोपाल 'बोला, आई थिंक अदिति..... हा अदिति मजुमदार शायद ऐसा ही कुछ नाम था उसका।'
तुरन्त ही आलोक उत्साह से भरकर बोला, 'हा.. हा.. वही अदिति।'
गोपाल ने आश्चर्य से पूछा, 'अरे यार आलोक उस दिन भी तुम कुछ ऐसे ही रिएक्ट कर रहे थे, आखिर ये मैटर क्या है?'

शेखर ने गोपाल को कहा," उसमे बात कुछ ऐसी है कि.. आलोक की एक दोस्त है, मुंबई में, उसका भी नाम अदिति मजुमदार है और उसको मजाक करने की बहुत आदत है। तो आलोक को लगा कि शायद अदिति और तुम दोनो ने मिलकर शायद आलोक के साथ मजाक करने का कोई प्लान बनाया हो। आलोक येे बात तुझे पूछने से डर रहा था तो मैं पूछ रहा हूं। और आज इसलिए पूछ रहा हूं कि आज आलोक ने अदिति को बैंगलुरू में देखा।" ऐसा सुनते ही गोपाल जोर से हंसने लगा। येे देखकर आलोक और शेखर एकदूसरे का मुंह ताकने लगे।
बादमे गोपाल बोला,"अब समझ में आया उस दिन तुम इतना अपसेट क्यूं थे। उस दिन जब तुम दो बजे के करीब घर चले गए, फिर शाम को बॉस का कॉल आया और बॉस ने मुझे अपने बंगले पर बुलाया। मैं वहां गया तो उसने मेरा इंट्रोडक्शन कराते हुए कहा कि ये है मिसेज अदिति मजुमदार। थोड़ी देर कुछ ऑफिस की मेटर पर बातचीत हुई। फिर मैं निकल गया। और उस मैडम को लेकर बॉस का ड्राईवर एयरपोर्ट ड्रॉप करने निकल गया।'

आलोक की ओर देखकर शेखर बोला, 'मिसेज?'

गोपाल को फिरसे हंसी आ गई, हंसते हंसते बोला, 'मुझे हंसी इसलिए आ रही है.. क्योंकि शेखर कह रहा है कि वो तुम्हारी दोस्त थी?'
आलोक ने पूछा, क्यूं सर, ऐसी क्या बात है?'
गोपाल ने कहा, 'वो इसलिए कि उस मैडम की उम्र कम से कम पचपन साल होगी।'

शेखर और आलोक दोनों के चेहरे देखकर गोपाल फिर से जोर जोर से हंसता रहा।
उसके बाद गोपाल को कोई काम था, तो वो चला गया।
गोपाल के जाने के बाद, आलोक को अपने बेफकुफी भरे प्रदर्शन पर गिल्ट फिल हुआ। शेखर को पता चल गया, लेकिन उसने किसी भी बात का उल्लेख करना टाल दिया।
बाद में शेखर बोला, 'अब दिमाग ठीक हुआ, देवदास?' और अब मै निकल रहा हूं, मेरे ऑफिस में आज बहुत सारा काम पेंडिंग पड़ा है। एण्ड कंट्रोल योरसेल्फ। एवरीथिंग विल बी ऑल राईट, ओ. के. बाय।'

उस दिन एकदम करीब से कार में जाते हुए देखने के बाद धीरे धीरे आलोक का पूरा रूटीन डिस्टर्ब होने लगा। रोज देर रात तक नींद न आना, उसके बाद नियमितरूप से देर रात को हेडेक की हार्इ डोज की पेन किलर लेने की लत लग गई। रेगुलर सुबह ६ बजे उठकर जिम जानेवाले आलोक की अब सुबह ९ बजे तक आंखें नहीं खुलती थी। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के टाईम टेबल सब अनियमित हो गए। अकारण ऑफिस से भी दो दिन की छुट्टी ले ली।
इस बात का शेखर को पता चलने पर उसने अच्छे शब्दों मेें डांट भी लगाई। और उसके फैमिली डॉक्टर के पास चेक अप के लिए ले गया। सभी रिपोर्ट्स एकदम नॉर्मल आए। डॉक्टर ने एक तीन दिन के कोर्स का मेडिसिंस प्रेस्क्रिप्शन लिख दिया। और हेडैक की हार्इ डोज की पेन किलर लेने के लिए बिलकुल मना कर दिया। दो दिन बीत गए। कल ऑफिस जाना था। फिर से आज दिमाग घूमने लगा। रात को बेडरूम मेें सोते सोते आलोक बहुत देर तक अदिति के किस्से में हमेशा खुद से दो कदम पीछे चल रही नियति पर अफसोस करता रहा। उस दिन एकदम करीब से अदिति चली गई और फिर एक बार मूर्खो की तरह वो सिर्फ़ देखता ही रह गया। अदिति कितने समय से यहां होगी? कहा होगी? क्यूं होगी? क्यूं मेरे साथ संपर्क नहीं कर रही है? क्या मजबूरी होगी? अविरत अदिति के खयालो मे डूबता गया, बहुत देर तक इधर से उधर करवटें बदलता रहा लेकिन आंखें मूंद नहीं पाया।

समय देखा रात के २:४५, किचन मेें गया। कॉफी बनाई। मग लेकर बाल्कनी में आया। गरम कॉफी के मग में से उठते धूएं के साथ साथ आलोक भी बंधता चला गया खयालों के भाप में। पिछले एक महीने के दौरान एक तरफ़ सनातन सत्य जैसी हकीकत औैर दूसरी तरफ़। उसकी एकदम नई जॉब, इन दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आलोक ने बहुत जद्दोजहद कर ली। अब अदिति आलोक की परछाईं बन गई थी। किसी भी छोटी सी आहट में भी उसे अदिति के आने का आभास होता। पदचिह्नों से ज्यादा प्रश्नचिन्हों बढ़ते गए। हररोज नई घुटन नसनस घुट रही थी फिर भी दिमाग के किसी भी कोने में अदिति के लिए शंका-कुशंका का एक भी अंकुर नहीं फूटा। धीरे धीरे आलोक की मानसिक परिस्थिति अब उस स्तर पर पहुंच गई थी कि अदिति नजरों के सामने से चली गई उस घटना के बाद अब अदिति का कोई भी आभासी संकेत आलोक के लिए असह्य साबित होने के कगार पर थी। औैर इसके बाद की किसी भी घटना का परिणाम अकल्पनीय न हो वही एक आश्चर्यजनक होगा।

धीरे धीरे सिर भारी होने लगा। गुजरात की अग्रणी और प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी का एक महीने पहले का टॉप रैंकर आज ऐसी हालत में? काफ़ी देर तक फूल लेंथ मिरर में अपने आप को देखकर अवलोकन करता रहा। येे वही आलोक है, जिसके लिए अपनी जिन्दगी का कोई भी मुश्किल चरण में कठिन से कठिन पड़कार को भी पराजित करने के लिए एकमात्र उसका भरपूर आत्मविश्वास ही काफ़ी था। और आज येे वही आलोक है जो एक छोटी सी आहट से ही आहत हो जाता है। कठिन विपरीत परिस्थिति में भी आलोक ने अपने संयम को स्थिर रखा था। हमेशा एकलव्य जैसी एकाग्रता का आग्रही आलोक को याद नहीं था कि कभी असफलता का सामना किया हो। अथग परिश्रम और निष्ठा से साकार किए हुए उसके मन मुताबिक महल को ध्वस्त होते मूक दर्शक बनकर देख रहा था। मानसिक संग्राम में हमेशा चल रहे सकारात्मक और नकारात्मक विचारों के धमासान युद्ध में वो धीरे धीरे मानसिक तौर पर खतम हो रहा था। बहुत देर बाद मानसिक पीड़ा से छुटकारा मिला उसके बाद वो बेड पर गिर गया तब समय था सुबह के ५ बजे का।

सुबह बड़ी मुश्किल से आंख खुली तब समय देखा तो १०:३०। मनमे बोल उठा, ओह माय गॉड। सामान्य दिनों में ऐसा कभी नहीं हुआ था। सिर अभी भी भारी था। जैसे ही बेड पर से खड़ा होने गया तभी गोपाल कृष्णन का कॉल आते ही थोड़ा स्वस्थ होकर बोला,

'हेल्लो.. सर गुड मॉर्निंग।'
'गुड मॉर्निंग आलोक, कितने टाईम में आ रहे हों ऑफिस?' जी.. जी सर बस निकल ही रहा हूं सर,' गभराते गभराते आलोक ने जवाब दिया। 'आलोक मैंने कॉक इसलिए किया कि आज १२:३० बजे एक बहुत ही इंपॉर्टेंट मीटिंग है। औैर मोस्टली इनफॉरमेशन तुम्हारे पास है। अगर तुम जल्दी आ जाओ तो हम दोनो मीटिंग से पहले सब इश्यू पर एक बार फाइनल डिस्कसन कर लेंगे।'

'जी सर बस पहुंच ही रहा हूं...' इतना बोलते ही आलोक ने कॉल कट कर दिया। मन में बोला, ओह माय गॉड, इतनी बड़ी जवाबदारी से भरी मीटिंग मेरी जानकारी में होकर भी कैसे भूल गया? एक ओर सरदर्द, अधूरी नींद, महत्वपूर्ण मीटिंग की पूर्व तैयारी, समय का अभाव, कुछ भी सोचने के लिए एक मिनिट का भी टाईम नष्ट किए बिना फटाफट किसी भी तरह तैयार होकर जल्दी से ऑफिस पहुंचा।

गोपाल कृष्णन के साथ मीटिंग की चर्चा शुरू की। लेकिन गोपाल को लगा कि आलोक ने किसी भी टॉपिक के लिए किसी भी टॉपिक के लिए पूर्वतैयारी नहीं की है। औैर फ्रेश भी नहीं लग रहा है। निराश होकर थोड़े गुस्से के साथ एकदम से बॉलपेन फेकते हुए बोला,

'आलोक व्हाट इज धीस? तुम्हे कुछ अंदाज़ा है इस मीटिंग की इम्पोर्टेंस का? मै येे तुम्हारी बच्चो जैसी बेदरकारी जरा भी बरदाश्त नहीं कर सकता। इतनी इंपॉर्टेंट मीटिंग है और तुम... अब मैं बॉस को क्या जवाब दूंगा? यू केन इमेजिन? आज तुम्हारी येे लापरवाही से मेरी जॉब भी खतरे मेें आ सकती है। आलोक धीस इज माय फर्स्ट ऐंड लास्ट वार्निंग टु यू। नाऊ यू केन गो प्लीज़।'

आलोक के पांव तले से जमीन खिसक गई थी। खड़ा होना भी दूभर हो गया था। 'आई एम सो सॉरी सर। आई अपोलोजाइस।' इतने शब्द बड़ी मुश्किल से बोलकर आलोक केबीन से बाहर निकल गया।

आलोक की परिस्थिति, 'काटो तो खून नहीं' जैसी हो गई थी। पहले तो दिमाग में सिर्फ़ हथौड़े चलते थे, अब तो लग रहा था कि दिमाग की एक एक नसो में विस्फोट हो रहा है। आलोक ने अपने अब तक के कार्यकाल में इतने कठोर शब्द बोलने के लिए कभी किसीको एक भी मौका नहीं दिया था। ऐसी परिस्थिति की कल्पना उसने सपने में भी नहीं की थी इतना नर्वस, निःसहाय, लाचार, व्यथित एकसाथ आई हुई इतनी सारी अनुभूतियों का अनुभव वो जिन्दगी में पहली बार कर रहा था। आलोक को अब ऐसा भास होने लगा कि इतनी दयनीय परिस्थिति का सामना करने के लिए वो अब असमर्थ है। फिरभी आगे की परिस्थिति का सामना करने के लिए एक गहरी सांस लेकर हो सके उतने दृढ़ आत्मविश्वास से बड़े चक्रवात जैसे तूफानी विचारों को रोकने के लिए फीनिक्स पक्षी जैसी हिम्मत इकठ्ठी करने लगा।

अब भविष्य में बिलकुल भी गलती नहीं होगी, ऐसा भरोसा आलोक ने गोपाल को दिया और मीटिंग में जितना हो सके उतना सहकार देने के लिए गोपाल को बिनती की। गोपाल अभी भी आलोक के बरताव और फर्ज के प्रति बेदारकारी से सख्त नाराज़ और गुस्सा तो था ही लेकिन धैर्य और अनुभव पर से गोपाल ने गुस्से और मीटिंग अहमियत को समझदारी से संभाल लिया।

मीटिंग खतम होने के बाद भी आलोक गोपाल से नज़रे नहीं मिला पा रहा था।
गोपाल को भी आलोक के आज के बिहेवियर के बारे में ज्यादा चर्चा करना ठीक नहीं लगा। आलोक को सिर्फ इतना बोला कि, 'मेरे सब मेल्स एक बार फिर ध्यान से पढ़ लेना,' ऐसा बोलकर गोपाल चला गया।

शाम के करीब पांच बजे के आसपास का समय होगा। तभी आलोक पर शेखर का कॉल आया,
हाय.. 'आलोक, कहा हो? ऑफिस में?'
'हा, यहां पर ही हूं।'
'कैसे हो?'
'ठीक हूं, बोल क्यूं याद किया?'
'तेरी आवाज़ पर से नहीं लग रहा कि तू ठीक है। क्या बात है? क्यूं ढीला ढाला लग रहा है? दबी हुई आवाज़ में क्यूं बोल रहा है? कॉफी नहीं पी है क्या?'
आलोक बोला, 'अरे कुछ नहीं, बस रात को थोड़ा देर से सोया था इसलिए आलस आ रहा है, औैर ऑफिस में भी काम औैर मीटिंग सब साथ में जमा हो गए, बाकी कुछ नहीं है, तू बोल।'

'अच्छा, ठीक है तू कह रहा है तो मान लेता हूं। अच्छा सुन, आज वीरेन्द्र अंकल की मेरेज एनिवर्सरी है। रात को ८ बजे स्मॉल गेट टु गेधरींग जैसा रखा है, मैं तुम्हें एड्रेस सेन्ड कर रहा हूं। तू समय से आ जाना।'
आलोक ने कहा, 'ठीक है। मैं आ जाऊंगा।' 'बाय।'
इतनी चर्चा तो वो बड़ी मुश्किल से कर पाया। शेखर का कॉल था इसलिए आलोक ने रिसीव किया था। अभी भी आलोक उतना स्वस्थ नहीं था कि पूरे होशोहवास में बात कर सके।
औैर शेखर के सामने तो पार्टी में नहीं आने का बोल भी नहीं सकता था।
प्यून को कॉफी लाने को बोला। अभी भी आलोक के कानों में गोपाल के कठोर शब्द अभी भी गूंज रहे थे। उसके आत्मसम्मान पर वज्राघात हुआ हाे एसी अनुभूति उसे पीड़ा दे रही थी। आलोक देसाई कभी अपने फ़र्ज़ के प्रति इतना बेदरकार हो सकता है?
आलोक को महसूस हो रहा था कि मुश्किल से घर पहुंचूंगा। आज ऐसी हालत में पार्टी में जाना बहुत मुश्किल था। और बिना हाजरी लगाए कोई छुटकारा नहीं था। कॉफी के साथ उसने अपने पास में रखी हुई हेडेक की हार्इ डोज की एक पैन किलर लेकर, १५ मिनिट्स के बाद दिमाग थोड़ा हल्का तो घर जाने के लिए निकला।

घर पहुंचकर आधा घंटा शावर के नीचे बैठा रहा। उसके बाद थोड़ा बहुत दिमाग के साथ विचार भी शांत हुए। बहुत अच्छा फील कर रहा था। लेकिन वो कमाल था हार्इ डोज के पेन किलर का।

८ बजे से पहले शेखर के सेंड किए हुए लोकेशन गोल्फ क्रॉस रोड स्थित एक मल्टी स्टोरेज मॉल पर आलोक पहुंच गया। सेवेन्थ फ्लोर पर फूड ज़ोन के एक रेस्टोरेंट में पार्टी का आयोजन किया गया था।
धीमी आवाज़ में म्यूजि़क सिस्टम पर रोमांटिक इंग्लिश गानो की धुन बज रही थी। शेखर की फैमिली और दोस्त सब मिलाकर करीब पचास लोग आमंत्रित थे।
शेखर ने सब के साथ आलोक का एक फैमिली मेम्बर के रूप में परिचय करवाया। वीरेन्द्र और उनकी वाइफ को आलोक ने गिफ्ट देकर शुभेच्छा भी दी। पार्टी में सब छोटे बड़े अपनी अपनी तरह से दोस्तों के साथ अवसर का आनन्द उठा रहे थे। आलोक, अपने औैर शेखर दोनो के कॉमन दोस्तो के साथ फ्लोर की रेलिंग के साथ लगाए हुए एक टेबल पर बैठा। आलोक ने पाईनेपल जूस पीना पसंद किया। अब आलोक रिलैक्स फिल कर रहा था। पूरे दिन में मम्मी, पापा के साथ भी बात नहीं हुई थी तो आराम से दोनो के साथ सब बातें की और वीरेन्द्र और उनकी पत्नी के साथ भी बात कराई।

सब डिनर लेकर धीरे धीरे जाने लगे। करीब १० बजे के बाद शेखर के सब फैमिली मेम्बर भी रवाना हो गए। शेखर ने आलोक से कहा, 'हम थोड़ी देर रुककर बाद में जायेंगे।' १०:३० बजे के बाद शेखर, आलोक और दूसरे दो अंगत मित्र टेबल पर बैठकर बातें करने लगे।
शेखर बोला, 'हा अब आराम से बातें करते है। बोल आलोक कैसा है तू?'
आलोक बोला, 'देख ले एकदम फीट हूं।
ऑफिस में आज जरा....'

तब अचानक से...

'अदितितितितितितितितिति............'

आलोक जोर से चिल्ला पड़ा।

थोड़ी देर तो किसीको कुछ भी समझ नहीं आया। सभी मॉल के सातवें माले पर थे। औैर सामने टॉप फ्लोर से ग्राउंड फ्लोर की ओर जाती हुई तीसरे माले तक पहुंची ग्लास की कैप्सूल लिफ्ट में आलोक अदिति को देखकर चीख उठा। आलोक ने लिफ्ट की ओर उंगली के इशारे से शेखर का ध्यान आकर्षित किया। औैर उसके साथ ही ग्राउंड फ्लोर पर जाने के लिए आलोक ने लिफ्ट की तरफ़ दौड़ लगाई। सभी जल्दी से आलोक के पीछे दौड़े। आलोक ने लिफ्ट की राह देखे बिना जल्दी से सीढि़यों से नीचे उतरना शुरू कर दिया। शेखर उसके पीछे पीछे, बाकी के दोस्त लिफ्ट में गए। आलोक और शेखर को बदहवासी में सीढ़ियां उतरते देख थोड़ी देर के लिए मॉल आई हुई पब्लिक भी हैरान होकर देखती ही रह गई। सिक्योरिटी स्टाफ भी हरकत में आ गया। ग्राउंड फ्लोर पर आकर सब को धक्का लगाते हुए सामने की ओर की लिफ्ट की तरफ़ दौड़े। पांच मिनट में ही मॉल के अन्दर चारो ओर अफरातफरी मचा दी।

'अदितितितितितितितिति....'
'अदितितितितितितितिति....'
'अदितितितितितितितिति....'

-आगे अगले अंक में


© विजय रावल
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