do jism ek jaan ki adhuri dastan... books and stories free download online pdf in Hindi

दो जिस्म एक जाँ की अधूरी दास्ताँ..

दो शक्श की अधूरी इश्क़ की दास्ताँ,

जान कर नहीं अंजान ही सही,
इश्क़ के सफ़र में गुल मिले सही,
काटो में फूलो की तरह महक ही सही,
चांदनी रातों में उजाले की धूप ही सही,
गहराई में ढूंढने मोती की चमक ही सही,
लब्जो से निकले अल्फ़ाज़ के कारनामे ही सही,
दिल की अंगड़ाई पर सौन्दर्य का प्रतीक ही सही,
बीन मांगे खुदा से मांगी इबादत ही सही,
सच्चाई से या जूठ पर मिलते रिश्ते ही सही,
दूरियों से मिले सफ़र के किनारे पर ही सही,
नजदीकी में दिल से जुड़े ख्वाब ही सही,
ख़यालो में बने स्वप्न को साकार ना ही सही,
उसकी कहीं बातो पर अनकहे जज्बात ही सही,
टूटकर भी इश्क़ का मशवरा जोड़कर रखा ही सही,
बातो बातो में लगे जख्म से राख होते ही सही,
उसके लगे शब्दों मायूस हो कर बात करने ही सही,
घर में लड़कर जघड़कर भी बाते करने ही सही,
अनकही कहानी के ताल्लुक रूह से बनी जहाँ से ही सही,


कोई लड़की या कोई लड़के पर नहीं,
दोनों साइड से हुआ जख्म पर मरहम,
और ये दास्ताँ में दोनों से मिला कसूर ,
दोनों दिल कहीं गुम है अभी भी इस जहाँ में।

कई दूरियां थी आसपास रहेने में भी,
उस शक्श से मिलने की वक्त की अहमियत थी,
कदम गुजरे बहुत बार गली में एक ख़ुश्बू की कमी थी,
आजकल की दुनिया में इश्क़ की पाबन्दियाँ थी,
यहाँ हवाओं से मिलती साँसों में मिलावट थी,
आसमा से जमी की दहलीज पर मुस्कान की नमी थी।

चलो आज एक और हादसा हो ही जाए,
बात हो गई देखे बिना उससे घुलमिल जाए,
उनके बोले लफ्ज़ नब्ज में लहू की तरह बसाया जाए,
कुछ कमियाँ हो तो सारे जमाने को भूल उसके
जूठे लिबाज़ में खुशी से पागल हुआ जाए,

हो गया एक कदम और गलत ,
उसके साथ बात का बढ़ावा कर,
सब कुछ न्योछावर कर दिया,
खुद के होने का आइने से ताल्लुक छीन लिया,
उसके सिवा दुनिया को नजरो से हटा दिया,
धरती पर अंबर का आंचल लहरा दिया,
सागर की गहराई को अपनी आंखो में समा लिया,
अब बस उसके अलावा मेने खूदसे वास्ता तोड दिया ,
उसकी खुशियाँ, हसी, गम, बरकत में सामिल किया,
खुदको ना जाने कोनसे रास्ते में दुनिया से निचोड़ लिया,

प्यार से एक एक कतरा मेने उसकी बाहों में गुज़ार दिया,
सामने ना होने से खुदको जला कर जान होने का वजूद छीन लिया,

नजरो से उतरे दिल में एक नन्ही दुनिया का ख्वाब बना ,
उसको पाने की उम्मीद में खुद में टूटकर जीने में क्या मजा लिया,
हर बार कसमें, वादें, मन्नतों से खुदा से बहाना ढूंढ़ लिया,
जन्नत देखने के लिए मेने क्या कुछ बर्दास्त नहीं किया,

अहसास का पल मेने अपनी रूह से किया,
छूती रही हर साँस उसकी इतना मदहोश किया,
आंखो में पले ख्वाब एक दूजे से कितना गहरा निभा लिया,
जब ठोकर लगे, उसको खुद के जिस्म में जख्म को अदा किया,
पास आई फिर भी उसकी बातो से बहुत सदमा लगा,
रों रों कर आहिस्ता रात को बंध कमरे उससे छुपा लिया,

बातो बातो में बढ़ी गलतफहमियां,
जान कर भी अंजान बन खुद को गिरा दिया,
उससे बात करने के लिए मेने बहुत प्रयास किया,
वो है कि मुझपे विश्वाश नाम के शब्द को भूल ही गया,
टूटा हुआ दिल उसका भी था पर बया नहीं कर सका,
मेरी भी गलती होगी इस बात पर रूह को हर वक़्त जलने दिया,

सोच सोच कर जा रहा है वक़्त, महीनों, सालो में,
ऐ खुदा तूने क्या मशहूर इश्क़ का जाल मेरे सीने को दिया,
पूरी दुनिया में लिखा नियति का लेख उसमे मेरा इश्क़ अधुर लिखा,
उस पन्ने से ज्यादा खुद को कोनसी यादों की जेल में भेज दिया,
में हर वक़्त के इंतेज़ार में उसी को खुद में खुद से अलग ना किया,
बर्बाद करने का इससे ज्यादा भी मेने खुद खुदा से लड़ लिया,

उसको भूल ने में कई शक्श पर भरोसा किया,
फिर भी ना जाने उसके इश्क़ का वास्ता दिल में ही रह गया,
शक्श सही हो कोई भी मेने उसको हर बार जूठा किया,
समय से पहले मेने मरने का वास्ता क्यू लिया?

हर इश्क़ की दास्ताँ में कोई मोड़ आता है,
जो सोचा न हो ऐसा जुदाई का दौर आता है,
में सुनाऊँ इस गाने में ऐसी कहानी इश्क़ की,
गर हवाएँ सुने तो बिन मौसम भी बादल गरजता है।

मैंने सोचा न था प्यार इतना हँसता है,
जितना हँसता है उससे ज्यादा रुलाता है,
उसके होने से सावन हुआ करता है,
ना होने पर दर्द आँखों से बरसाता है।


एक नज़ारा, जिसके अल्फाज़ इन लबों से बयाँ कर दूँ,
ज़ुल्मी अनेक और एक मासूम की कहानी जाया न करदूँ।

तुझसे मिलना एक इतिफाक समझ लू,
तुझसे रूह जुड़ी है क्या मजाक समझ लू,

चल सुन मेरी रूह से जुड़े अल्फ़ाज,

बया ना कर सका जज्बा तूजसे बात करके भी,
हौसला बढ़ा तेरे एक कदम आगे बढ़ाने पर भी,
चीख सुनी नही जहाँ ने भूल कर नजदीक आने भी,
और अपनी हवस को पूरा करते है बदनाम करके इश्क़ को भी।

डरे, सहमे, कदम मजबूर हुए पीछे हटने को ,
जमाने के सामने कैसे कहूं इस बदनामी को,
वो वक़्त जहा मिले पहेली मरतबा को,
और जो ना सोचा वो देखने लगे ख़यालो को,
सच है इश्क़ सोच समझकर किया करो यारो,
यहाँ इश्क़ नही हवस के पुजारी आते है क़दम बढ़ाने को,

ठहर गया इश्क़ जैसे जहन में कुछ जज्बात मेरे अंदरुनी हिस्से में,
जब जाना कि मोहोब्बत के नाम पे जिस्मों को लूटा है जमाने में,

कयामत आ खड़ी है खुदा जिंदगी में,
ना कह सकी कुछ ना बता सकू उसके उदाश होने में,
मेरे हिस्से का सब कुछ तन्हा जिंदगी के मरतबा जीने में,
उसके हालात कहीं चुप थे मुजसे कुछ कहने और समझने में,

मेने सोचा चल एक वक़्त का लम्हा है उससे नजर चुराऊं कैसे,
मिल कर चर्च गया और माँगी दुआ मेने ए खुदा उसे बचाऊँ कैसे,

देख मुझे, जान में कितना करीब हूँ,
फिर भी तू कहीं बेखयाली में डूबी है,
में ने सबकुछ न्योछावर कर दिया है,
फिर भी तू क्यू ना जाने किसी सोच खोई है,

जन्नत का दौर दिलादूँ,
तेरी रूह में मेरी खुशबू महका दूँ,
तेरे हर नब्ज में लहू बन इश्क़ बतादूँ,
तेरी नियति के लेख में खुदा से खुशियां माँग लूँ।

फिर ना जाने क्यों दूर हो रही है,
मेरे सांसों में कहीं दम घुट रही है,
तू मेरी है फिर भी एक जलन सी हो रही है,
ना जाने कोई बेचैनी मुझे मूजसे दूर कर रही है,

तुमसे वास्ता रखने मोहोब्बत का,
तुमसे वस्ता किया दूरियां ए मौत का,
तू चला आ और मेरी एक दुआ कबूल कर,
तेरे जिस्म की रूह में बसे जख्म को मुझे अदा कर,

जला जा रहा हूँ में यहा तेरे इश्क़ में,
तुजसे जुड़े हुस्न-ए- दीवानगी में,
तुजसे दूर कैसे रहूँ आवरागी के हिस्से में,
तेरे इश्क़ का ताल्लुक मुझसे दूसरा होने में,
मेरा क्या कसूर दिल्लगी के नए पन्ने में,
कलम और स्याही की है कहीं भूल हम दो के रिश्ते में,

टूट रहा हूँ अब सोच सोच कर,
रात नहीं कटती अब तेरे साथ चल कर,
तू कहीं यूँ भटक ना जाना इश्क़ को जिंदा कर,
बस तू ही मेरा शहारा अब एक एक दौर जोड़ कर।

तू होता जुदा मिलने के वक़्त ,
जैसे जहां रूठ गया मुझसे एक वक़्त पर,
तुझ पर अाई तकलीफ़ हर दम,
मेरी रूह रो रही तुझे देख जलजल कर,

विश्वाश कैसे दिलाऊ तुझे इश्क़ ए रूह का,
तू हर वक़्त टूटा छूटे पल के आशियाने में,
मुझे मेरा दिखता हुआ कल तोड रही है इस जमाने में,
हालात बता रहे है तू मुजसे दूर ना सही दूर हो जाने में,
और यही एक दर्द ले बैठा गुमरहा हूं समाज के सामने में,


कदर , फीलिंग की बाते कहती रहती है,
क्या इसी लिए आज साथ हूँ तुम्हारे में?
में चांद को देखता रह कर बाते करता तेरे बारे में,
और चांद मुझे कहता सितारों को भूल जाने में,
तू बस चल रही कहानियों सी, जूझता रहा इस जमाने से मैं,
और लिखकर अपनी कहानियों का दस्तूर हर शक्श को इश्क़ समझाने में।

इस नफरत से भरी दुनियाँ में मैं तेरा हाथ अपनाऊंगा,
दिखाऊँगा जमाने को इश्क़ होता नही ख़ुद को मिटाने को,
तुम तो सहजादी हो इस जमाने की जहा नफ़रत को जुकाना है,
और उठाना है मोहोब्बत को, तुम पे इश्क़ लुटाने को।