Jasoosi ka maza - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

जासूसी का मज़ा भाग 3


बैठक में से चौधरी जी की आवाज़ आई "सुनती हो ज़रा बाहर का चक्कर लगाकर आते है" ये कहकर जब चौधरी जी और आनंद घर के बाहर गए तो फटाफट किचन का काम निपटाकर चौधराइन जी हॉल में चली आई।


चैन की सांस लेकर बैठी ही थी कि क्या देखती है जहाँ चौधरी जी बैठे थे ठीक वही ,सोफे के पास जमीन पर विसिटिंग कार्ड रखा है ,उन्होंने कार्ड हाथ में लिया और पढने लगी “ दयाल डिटेक्टिव एजेंसी , सभी प्रकार के जासूसी काम किए जाते हैं ,पति/पत्नी की जासूसी ,बेकग्राउंड चेक ,corporate डिटेक्टिव ..और भी कुछ कुछ लिखा था उस कार्ड पर...

सीमा जी की आँखे चौड़ी हो गई मन ही मन सोचने लगी “एं ये कार्ड क्यों दिया होगा आनंद भाई साहब ने इन्हें ..उनके दिमाग के घोड़े तेज़ी से दौड़ने लगे ,अलग अलग ख्याल मन में आने लगे...ऑफिस में तो किसकी जासूसी करेंगे ये भला? सरकारी कर्मचारी के ऑफिस में जासूसी का क्या काम तो ये विचार तो बेकार गया । फिर बाल बच्चे हमारे अभी इत्ते बड़े हुए नहीं की शादी के लिए जासूसी करें , तो फिर बचा क्या मैं ? हें ! पर म्हारी क्यों जासूसी करने लगे ?“ म्हारे पे शक कर रे ये? हे नर्मदा मैया ! कैसे दिन दिखा रही हो ये म्हारी क्यों जासूसी करने लगे मने कौन सी चोरी कर ली इनसे? ,ऐसी कौन सी बात छुपा ली जो..जो ये म्हारी जासूसी करा रे हैं “....और दिमाग के घोड़ो ने जो दौड़ना शुरू किया तो दौड़ते ही चले गए ...

दिमाग पर ज़ोर देकर सोचने लगी “ये शक नोटबंदी ने पैदा किया इनके मन में उसी टाइम बुरे वक़्त के लिए बचाकर ,सालों से पैसा पैसा जोड़कर रखे हुए २ लाख रूपए इनके आगे रखकर कहा था मैंने “ये नोट बदलवा लो जी” तो नोट देखकर कैसे उछल गए थे अरे हाँ तब बोले भी तो थे “चौधराइन म्हारे से छुपकर इत्ते पैसे इकट्ठे कर लिए तूने ?” पर इन्हें क्या इत्ता भी भरोसा नहीं म्हारे पे मैं कौन सा वो पैसे बांधकर किसी के साथ भागने वाली थी ,अड़ी सदी (बुरे वक़्त ) में घर के ही काम आते...
और इन्हें ऐसा शक था तो बोल ही देते, ऐसे जासूसी करेंगे म्हारी अब.. ये सोचते ही उनका मन भर आया पुराने सारे अच्छे बुरे साथ के दिन याद आने लगे ..

सीमा जी की आँखों में नमी उतर आई साडी के पल्लू से आँखें पोंछते हुए सोचने लगी “हाई इत्ती भी शर्म नि आती इनको मेरी जासूसी करा रे मोहल्ले रिश्तेदारी में पता लग गया तो सब क्या सोचेंगे की मैं ऐसी वेसी लुगाई हूँ कितनी भद्द पिटेगी बजार में” (बाज़ार )
फिर मन ही मन पछताती हुई सोचने लगी “हाई ये जासूसी करेंगे तो मैं तो जो एक दो साड़ियाँ बिना इन्हें बताए घर खर्चे से बचाकर ले आती थी वो भी नि ले सकुंगी क्या अब? और शर्माइन को लेना, वर्माइन को लेना का बहाना बनाकर बजार चली जाती हूँ वो भी बंद करना पड़ेगा .बहाने से सहेलियों के साथ पिक्चर जाना भी बंद करना पड़ेगा ...

दुःख और गुस्से के मिले जुले भाव सीमा जी के चेहरे पर दिखने लगे सर पर हाथ रखकर दुखी होती सी वो बोली “हेई भगवन कई दिन दिखा रिया हो असो कई होए के “ ये सब सोच सोचकर ही सीमा जी का माथा फटने लगा और वो बाम लगाकर, सिर पर चुन्नी बांधे सोफे पर ही लेट गई ..

दोस्तों ये था कहानी का तीसरा भाग ...क्या होगा आगे क्या सीमा जी का दुःख कम होगा ? क्या रंग लाएगी ये कहानी आगे ...