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अपना सा एक अजनबी - ३

मैसेज तो मैंने सेंड कर दिया पर उसके बाद मेरी धड़कने तेज हो गई। इस बात की तो ख़ुशी थी की मेरा ये मैसेज उस बेचारी को थोड़ी तो ख़ुशी देगा जो ना जाने कब से दीपक के एक मैसेज का इंतजार कर रही थी। पर इस ख़ुशी के साथ साथ मन में एक डर भी था की कहीं मैंने कुछ गलत तो नहीं ना कर दिया क्युकी कुछ तो ज़रुर हुआ होगा इन दोनों के बीच तभी तो दीपक इसके मैसेज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। खैर अब जो भी हो अब तो कर दिया मैसेज अब देखा जायेगा जो भी होगा।

तभी फ़ोन की घंटी बजती है, संजना का ही मैसेज था। मैसेज खोलते ही मेरी बेचैनी एक पल में ग़ायब हो गई और मेरे चेहरे पे एक हलकी सी मुस्कान आ गई। मैसेज में उसने सिर्फ दो स्माइली भेजी थी और इससे साफ़ पता चल रहा था की उसे मेरे इस मैसेज से कितनी ख़ुशी मिली होगी और उसके चेहरे पे भी इस वक़्त ऐसी ही एक स्माइल होगी। तब तक फिर घंटी बजती है, संजना का एक और मैसेज था। “हाँ खा ली मैं खाना। ” और मुझे पता ही नहीं चला कब मैंने कब उसे एक और मैसेज कर दिया “सच बोल रही हो ना ?” फिर घंटी बजती है “हाहा ना झूट बोल रही। ” अजीब सी हालत थी मेरी एक तरफ उसकी फिक्र हो रही थी की वो खाना क्यों नहीं खाई दूसरे तरफ ये था की मुझे क्यों फिक्र हो रही उसकी मैं तो जनता भी नहीं उसको। अभी मैं सोच ही रहा था की तभी फिर से मैसेज आता है “मैं मज़ाक कर रही थी, मम्मी ने खिला दिया था खाना थोड़े देर पहले। अच्छा अब मैं तुम्हें कल मैसेज कर पाऊँगी क्युकी सब पास में ही हैं इस वक़्त। और हाँ.. थैंक यू। "

मैसेज पढ़ते पढ़ते मैं बिस्तर पे लेट गया था, आज अलग सी ख़ुशी हो रही थी। मुझे भी समझ नहीं आया मैं क्यो खुश हूँ, दोस्त तो वो दीपक की है मेरी नहीं, तो उसे यूँ खुश देख के मुझे क्यों ख़ुशी हो रही । यही सब सोचते हुए ना जाने कब मेरी आँख लग गई।

सुबह ८ बजे मैं नींद से जागा , वैसे तो मैं कभी सुबह उठ के फ़ोन नहीं देखता था पर आज सबसे पहले फ़ोन ही चेक किया। दीपक का फ़ोन। संजना का कोई मैसेज नहीं था वैसे तो मैं भी जनता था वो रात को क्यों ही मैसेज करेगी पर फिर भी मन कहा मानता है। मैं उठा फ्रेश हुआ चाय बनाई खुद के लिए और फिर चाय पि कर घर पे मम्मी से बात की और फिर बैठ के एक किताब पढ़ने लगा। मैं किताब तो पढ़ रहा था पर मेरा ध्यान संजना पे ही था की क्या वो हॉस्पिटल से घर आ गई होगी , अब उसकी तबियत कैसी होगी। क्या अभी भी वो उतनी ही खुश होगी जितनी कल रात को थी वो। मैं अपने मन में उठ रहे सवालो की नाव पे सवार होके किताब के पन्नो पे गोते लगा ही रहा था की तभी फ़ोन की घंटी बजती है मैं भाग कर दीपक का फ़ोन उठता हु पर उसपे तो कोई मैसेज नहीं था। पर घंटी अभी भी बज रही थी, फिर मुझे ध्यान आता है घंटी दीपक के फ़ोन नहीं मेरे फ़ोन की बज रही थी ।

धीरज - “कैसा है भाई तू? तू तो भूल ही गया अपने कॉलेज के दोस्तों को जबसे तेरी दिल्ली में जॉब लगी है। ”

सौरभ - “अरे तू कॉलेज की बात कर रहा है मैं तो कॉलेज और स्कूल दोनों में इसके साथ मुझे भी एक बार कॉल नहीं करता ये। ”

पवन - “अरे तुम दोनों साथ में कैसे ?“

धीरज - “अरे मैंने तुझे बताया था ना मेरा ट्रांसफर होने वाला है तो मेरा ट्रांसफर अम्बाला हुआ तो अभी सौरभ के यहाँ ही हूँ चंडीगढ़ में, कुछ दिन येही से अप डाउन करूँगा जब तक रहने की कोई अच्छी जगह ना मिल जाये। ”

पवन - “सही है यार मजे हैं तुम्हारे कितना टाइम हो गया ना हम सबको मिले। ”

सौरभ - “हाँ भाई लास्ट पेपर के बाद तो मिले ही नहीं हम सब। प्लान बना तू भी आने का। ”

पवन - “हाँ भाई बनता हु अब तो सब पास ही हैं मिलते हैं जल्दी ही. और बताओ तुम लोग शादी वादी कब कर रहे तुम लोग अब तो सब सेटल हो गए। ”

सौरभ - “भाई हमसे पहले तो तेरी होगी, हमारे ग्रुप का स्टड था तू तो। ”

धीरज - “क्या कह रहा सौरभ पवन को जितना मैं जनता हूँ इसकी तो लड़कियों से बात करने में भी फटती थी कॉलेज में”

सौरभ - “भाई मैं कॉलेज की नहीं स्कूल की बात कर रहा।”

धीरज - “पवन और स्टड वो भी स्कूल में मैं तो नहीं मान सकता।”

सौरभ - “भाई तू स्कूल में हमारे साथ होता तब पता चलता तुझे, स्कूल में बस तुम बता दो किस लड़की को पटना है, पवन भाई का ६ दिन लड़की इन् का फार्मूला था स्कूल में”

धीरज - “हाहा पर मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा ”

सौरभ - “तुझे पता है जैसे हम लोग ३ दोस्त थे कॉलेज में वैसे ही स्कूल में हम ३ लोग का ग्रुप था, मैं पवन और हमारा एक फ्रेंड था अमन। पवन ने तो अमन की भी गर्लफ्रेंड को पटा ..”

(सौरभ कहते कहते रुक जाता है )

धीरज - “अरे रुक क्यों गया, अमन की गर्लफ्रेंड को क्या ?”

पवन - “कुछ नहीं धीरज ये पागल है कुछ भी बोलता है . अच्छा चलो मैं फ़ोन रखता हूँ कुछ काम हैं अभी। ”

(पवन ये बोल के फ़ोन काट देता )