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संगम--भाग (१)

अरे,दीनू,
ये किसे ले आया अपने साथ?मास्टर किशनलाल ने अपने नौकर दीनू से पूछा।
मालिक,हैजे से पत्नि चल बसी,ये अकेली जान कैसे रहता गांव में, कोई रिश्तेदार भी तो ऐसा भरोसेमंद नहीं है, जिसके पास इसे छोड़ देता,मेरा एक छोटा भाई है लेकिन उसकी पत्नी की वजह से उसकी चलती नही है, ये इसे पढ़ने का बहुत शौक़ है और होशियार भी है, मैंने सोचा आपकी छत्रछाया में रहेगा तो और होशियार हो जाएगा पढ़ने में, किशनलाल जी का नौकर दीनू बोला।
मास्टर किशनलाल बोले,इधर आओ,क्या नाम है? तुम्हारा!!
जी, मालिक, श्रीधर,उस सोलह साल के बच्चे ने जवाब दिया।
बहुत अच्छी बात है,दीनू...
अगर तुम्हारा बेटा पढ़ना चाहता है, जो मुझसे बन पड़ेगा, मैं करूंगा, इसके लिए, मास्टर किशनलाल बोले।
आपकी बहुत बहुत कृपा,मालिक, आपका घर खुशियों से भरा रहें,आप सदा ऐसे ही मुस्कुराते रहे, दीनू बोला।
तभी मास्टर जी की मुस्कान को नजर लग गई, उनकी दूसरी पत्नी सियादुलारी की कर्कश आवाज सुनाई पड़ी___
पता नहीं,एक काम ठीक से नहीं कर सकती, कुछ काम-काज ठीक से नहीं सीखेंगी तो ससुराल वाले कहेंगे कि, हां कुछ नहीं सिखाया मां ने सौतेली मां जो ठहरी।
सियादुलारी जिस पर चिल्ला रही थी, वो थी उनकी बेटी___
मास्टर किशनलाल जी की पहली पत्नी सुमित्रा से हुई उनकी बीस साल की बड़ी बेटी प्रतिमा____
देखने में बहुत ही खूबसूरत,नीली आंखें,सुए जैसी नाक,गुलाब की तरह होंठ, लम्बे घने सुनहरे बाल, काम-काज में भी निपुण, कढ़ाई-बुनाई भी कर लेती है, खाना भी बहुत अच्छा बनाती है,घर के सारे काम करती है,पढ़ाई में भी होशियार थी लेकिन बारहवीं पढ़ने के बाद सौतेली मां ने घर के कामों के लिए उसकी पढ़ाई बंद करवा दी फिर भी सौतेली मां दिनभर उसके ऊपर कुड़-कुड़ करती रहती है।
तभी किशनलाल जी ने आवाज दी,अरी भाग्यवान!!
किसके ऊपर चिल्ला रही हो!! कभी कभी प्यार से भी बात कर लिया करो.......
अपनी फूटी किस्मत को कोस रही हूं जी, भगवान ने जाने कौन से जनम का बैर निकाला है,जो तुमसे ब्याह दी गई और लिखा ही क्या है मेरी फूटी किस्मत में सिवाय रोने के, सियादुलारी बोली।
तभी मास्टर जी ने प्रतिमा को आवाज दी__
प्रतिमा बेटी, यहां तो आना ....
आई, पिता जी, प्रतिमा ने कहा।
प्रतिमा बाहर आई तो श्रीधर उसे देखकर ही रह गया, इतनी सुन्दर लड़की उसने कभी गांव में नहीं देखी थी___
मास्टर किशनलाल बोले,देखो ये श्रीधर है, मेरा कोई पुराना कुर्ता और धोती पड़ा हो तो इसे दे देना,देखो इसके कपड़े कैसे फटे हुए हैं और अंदर से कुछ जलपान ले आ दीनू और श्रीधर के लिए, दोनों भूखे होंगे और हां अब थोड़ा ज्यादा खाना बना लिया करो अब श्रीधर भी यही रहेगा अपने बाबा के साथ।
प्रतिमा बोली, जी ,पिता जी__
प्रतिमा ने एक नजर श्रीधर की ओर देखा और अंदर चली गई, थोड़ी देर बाद, कुछ पूड़ी-कचौडी और सब्जी लेकर बाहर आई और बोली लीजिए दीनू काका!!
दोनों बाप-बेटे, सुबह के भूखे थे, दोनों ने मिलकर खाना खाया फिर दीनू बोला,अब हम अपनी नौकरों वाली झोपड़ी में जाते हैं और मैं गाय को देखता हूं, उसे दाना-पानी देकर, गोबर साफ किए देता हूं।
इतना कहकर दीनू और श्रीधर चले गए।

क्रमशः___

सरोज वर्मा___🥀