Lahrata Chand - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

लहराता चाँद - 24

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

  • 24
  • साहिल ऑफिस पहुँचने ही वाला था, उसने देखा ऑफिस के गेट के सामने मीडिया के लोग भीड़ लगाये खड़े थे। उन्हें देखकर वह कुछ दूरी पर अपनी बाइक रोक दी। एक दरख़्त के पीछे खड़े होकर ऑफिस में फ़ोन लगाया। चौकीदार के फ़ोन उठाते ही साहिल ने पूछा, "काका ऑफिस के सामने भीड़ कैसी?"
  • चौकीदार ने बताया, "सर जी सुबह से मीडिया वाले भीड़ लगाये रखें है। आप सब का इंतज़ारकर रहे हैं।"
  • - क्या कह रहे है?"
  • - बार बार दुर्योधन सर्, अनन्या जी और आप के बारे में पूछ रहे हैं।"
  • - तो आपने क्या कहा?
  • - बस आते ही होंगे, ऐसा कहा। वे इंतज़ारकर रहे हैं।"

  • - ठीक, दुर्योधन सर् से बात की? क्या वे ऑफिस पहुँच चुके हैं?
  • - 10 मिनट में सर् पहुँचने वाले हैं।
  • - ठीक है, मैं देखता हूँ।" फ़ोन रखकर तुरंत ही साहिल ने अनन्या को फ़ोन लगाया - "अनन्या कहाँ हो तुम?"
  • - मैं घर पर ही हूँ। आज मैं ऑफिस नहीं आ सकती, सर को बता देना प्लीज।"
  • - "ओके! कोई बात नहीं तुम कुछ दिन छुट्टी लेकर आराम करो। हम यहाँ ऑफिस सँभाल लेंगे।" कहकर अनन्या कुछ और कहती उससे पहले फ़ोन काट दिया। एक पल के लिए अनन्या का थका हुआ चेहरा उसकी आँखों के सामने आ गया। इन दिनों उस पर जो बीत चुकी है उसे जानते हुए कुछ दिन इस माहौल से दूर रहकर आराम करना ही सही था। फ़ोन की घंटी बजने से साहिल अपनी सोच को विराम देकर फ़ोन उठाया, दुर्योधन का फ़ोन था।
  • - "साहिल तुम कहाँ हो?" उस तरफ से आवाज़ आई।
  • - "मैं ऑफिस के सामने ही हूँ। सर् ऑफिस के बाहर टीवी और मीडिया वालों ने भीड़ करके रखा है।"
  • - "हाँ मुझे अभी पता चला। एक काम करो तुम वहाँ पहुँच कर मीडिया वालों को सँभालने की कोशिश करो और उनसे शांति से बात करना। जितना हो सके विषय से दूर ही रहो।
  • - "अगर वाकए के बारे में कुछ पूछें तो क्या कहें, सर।
  • - "अभी कुछ बताने की जरूरत नहीं। मैं पहुँच रहा हूँ तब तक सँभाल लेना और अनन्या को दो तीन दिन आराम करने को कहना। सब ठंडा पड़ने के बाद वह ऑफिस आ सकती है।"
  • - "ठीक है सर्।"
  • जैसे ही साहिल गेट के पास पहुँचा रिपोर्टर्स उसके चारों ओर घिर गए और सवाल करने लगे। कुछ समय बाद दुर्योधन भी वहाँ आ पहुँचे। जितना संभव उतने ही कम शब्दों में अपना वक्तव्य देकर उन्हें वहाँ से वापस भेज दिये।
  • ####
  • एक घंटे में हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ में अनन्या की घर वापसी की गरमा-गरम न्यूज़ दिखने लगी। अनन्या ने tv पर न्यूज़ देखकर tv बंद करदी। साहिल ऑफिस का काम ख़त्मकर गौरव के साथ अनन्या के घर पहुँचा। अनन्या की घर वापसी की बधाई देने उस के घर कई पत्रकार दोस्त मौजूद थे। सभी को बिदाकर वह साहिल के पास आई। तीनों लॉन में झूले पर बैठे। साहिल को देखकर उसकी आँखें नम हो गई। कृतज्ञता के आँसू देख गौरव ने कहा, "अनन्या रो क्यों रही हो? अब तो घर आ गई हो फिर ये आँसू क्यों?"
  • - बस यूँ ही। आँख पोंछते हुए कहा। कई बार मौन शब्दों से ज्यादा प्रभावी होता है। उसकी आँखें बिना कहे बहुत कुछ कह गई।
  • - यह सब एक बुरा सपना समझकर भूल जाओ अनन्या। अब तुम्हें दुगुने आत्मविश्वास के साथ काम पर लौटना होगा। यक़ीन रखो, तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
  • - साहिल तुम बैठकर बात करो। मैं अंकल से मिलकर आता हूँ।" कहकर गौरव वहाँ से चला गया।
  • देर तक साहिल और अनन्या चुप रहे। मौन बोल रहा था दोनों की आँखें बहुत कुछ कह रही थीं। साहिल धीरे से अनन्या के हाथ पर हाथ रखा और कहा - "अनु प्लीज सब भूलने की कोशिश करो। जल्दी सब कुछ ठीक हो जाएगा।"
  • अनन्या आँख पोंछकर मुस्कुराते कहा, "ये सब भूलना इतना आसान नहीं है, फिर भी कोशिश करुँगी। थैंक यू साहिल।"
  • - मुझे अभी इस वक्त थैंक यू की नहीं गरमागरम कॉफ़ी की जरूरत है, वह भी तुम्हारे हाथों की। गंभीर माहौल को साधारण करने की साहिल का एक छोटी सी कोशिश थी।
  • - ओह! जरूर। अंदर तो आओ। उठने का प्रयास कर रही थी, साहिल ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया। अनन्या के हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा, "थोड़ी देर बैठ जाओ अनु।"
  • 'पता है अनु जब तुम नहीं थी, मेरा पूरी दुनिया शून्य हो गई थी। मैं क्या कर रहा था मुझे नहीं पता। कब उठता कब जागता, बल्कि मेरा दिन और रात एक हो गए थे। तुम्हारे बगैर मैं खुद का वजूद सोच भी नहीं पाता था।'उसका मन बहुत कुछ कह रहा था लेकिन होंठ चुप थे।
  • "क्या देख रहे हो साहिल मेरा हाथ छोड़ो, कॉफ़ी नहीं चाहिए?" मुस्कुराते अनन्या बोली।
  • "अभी नहीं।" साहिल अनन्या के आँखों मे देखते हुए कहने लगा, "लगता है कई दिनों बाद तुम से मिल रहा हूँ। मुझे यह भी लगा था कि कहीँ तुम्हें खो न दूँ। अब तुम आ गई हो मुझे यक़ीन हो गया है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।" उसकी आँखों की नमी बहुत कुछ कह रही थी। अनन्या उसकी ओर देखती रह गई जैसे वह साहिल को पहली बार देख रही थी। उसके आँखों में प्यार की झलक दिख रही थी।
  • अनन्या धीरे अपने हाथों को साहिल के हाथों से आज़ाद कर मुस्कुराते "अभी कॉफ़ी बनाकर लाती हूँ।" वह उठकर अंदर चली गई। उसके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। दिल में कुछ एहसास जाग रहे थे, धड़कनों की आहट से उसे यूँ महसूस हो रहा था जैसे दिल में तूफान मचा हो। उसे छिपाने के लिए खुश होने का हावभाव दिखाने की कोशिश कर रही थी पर खुदको समझा नहीं पा रही थी। एक तरफ एक चैन की साँस ली जैसे कई दिन से ढूँढता हुआ गहना मिल गया हों। दूसरी ओर घबराहट और तेज़ धड़कन से मन में जैसे भूचाल मच रहा था। साहिल को समझ में नहीं आ रहा था कि अनन्या अचानक उदास क्यों हो गई।
  • सब के जाने के बाद अनन्या अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ी बाहर शून्य में देखने लगी। उसी शून्य में कहीं अपनी माँ को ढूँढ रही थी। चाँदनी अपना सफ़ेद आँचल फैलाकर पृथ्वी को ढँक रही थी। चाँद बादल के साथ आँखमिचौली खेल रहा था। खिड़की के बाहर स्विमिंग पूल के पानी में लहराते हुए उसकी शुभ्र चाँदनी अनन्या के चेहरे पर पड़ रही थीं। अनन्या के मन में लाखों तूफान उन लहरों की तरह उठ रहे थे। मन में उठती इन लहरों को थामना उसके बस में नहीं था। यौवन की आशाएँ ज्वालामुखी की भाँति दिल पर तहलका मचा रही थी। साहिल की आँखों की नमी न कहते हुए भी बहुत कुछ कह गई। उसके मन में उठते प्यार की लहरें क्या वह रोक पायेगी? न👍👍👍👍👍👍