Yadon ke Jharokhon Se - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

यादों के झरोखे से Part 1

यादों के झरोखे से Part 1


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मेरे जीवनसाथी की डायरी के कुछ पन्ने - मैट्रिक की परीक्षा और कलकत्ता यात्रा बना एडवेंचर


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शादी के बाद मैं ससुराल में कुछ ही दिन रह सकी थी . करीब एक महीना बाद मैं अपने पति प्रकाश के साथ बोकारो चली गयी , यहीं प्लांट में वे काम करते थे . मैं और प्रकाश कोशिश करते कि साल में एक बार कुछ दिनों के लिए अपने करीबी रिश्तेदारों से मिल लें . अक्सर दिवाली में हम एक सप्ताह के लिए निकला करते थे . करीब 20 साल के बाद मुझे ससुराल में ज्यादा दिनों तक रहने का मौका मिला . इस बीच हमारे सास और ससुर काल कवलित हो चुके थे . प्रकाश ने सोचा कि पुश्तैनी घर को रिपेयर कर रंग रोगन कर ठीक किया जाए आखिर रिटायरमेंट के बाद हमें यहीं रहना है . गर्मी की छुट्टियों में हम आये थे , हमारे दोनों बच्चे भी अब बड़े हो गए थे . प्रकाश करीब एक सप्ताह रुक कर घर के काम के लिए ठेकेदार ठीक कर चले गए . हमें यहाँ करीब एक महीने के अंदर काम खत्म कर लौटना था . वैसे घर के एक हिस्से में किराएदार रहता था . उस हिस्से का मेंटेनेंस वह खुद करता और किराये में एडजस्ट कर लेता था .


एक दिन सफाई करते समय सीलिंग के साथ बने लॉफ्ट से एक पुरानी संदूक मिली . उसमें मुझे प्रकाश की कुछ पुरानी किताबें और एक डायरी मिली . डायरी बहुत पुरानी थी , कुछ पन्ने सीलन से ख़राब हो चुके थे . उत्सुकतावश मैं डायरी के पन्ने पलटने लगी . उनमें मुझे कुछ दिलचस्प बातें दिखीं तो मैं पढ़ने लगी , प्रकाश के ही शब्दों में प्रस्तुत -


20 फ़रवरी 1961


अभी कुछ देर पहले मैं सिनेमा देख कर लौटा हूँ . बहुत दिनों से डायरी लिखने की सोच रहा था . आज से ही मैंने डायरी लिखना शुरू किया है . आज ही मेरी टेंथ बोर्ड की परीक्षा खत्म हुई है . आज आखिरी पेपर संस्कृत था . मैंने 50 मिनट में ही सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिया . मैं हॉल से निकलना चाहता था पर एक घंटे के पहले कॉपी सबमिट नहीं कर सकता था . मैंने अपने प्रश्नों के उत्तर को बार बार चेक किया , मेरी नजर में कोई गलती नहीं मिली . एक घंटा पूरा होने पर घंटी बजी . किसी तरह मैंने 10 मिनट और बिताये फिर अपनी कॉपी जमा की और ख़ुशी ख़ुशी हॉल से बाहर निकला .


मेरा एग्जाम सेंटर आर डी टाटा हाई स्कूल जमशेदपुर में पड़ा था जबकि मैं मिसेज के एम पी एम हाई स्कूल बिष्टुपुर में पढ़ता हूँ . आज मुझे सुबह से ही फिल्म देखने का मूड था . कुछ ही दिन पहले जमशेदपुर टॉकीज में राज कपूर की फिल्म “ जिस देश में गंगा बहती है “ लगी थी . मैं शेयर टैक्सी पकड़ हॉल पहुँचा . मैटिनी शो के टिकट मिल रहे थे . मैंने बारह आने में सेकंड क्लास का टिकट लिया और मैं अंदर जा बैठा .


फिल्म मुझे बहुत अच्छी लगी . वैसे बचपन से ही मुझे फिल्म और बंबई नगर में बहुत रूचि रही है . मैं चौथी कक्षा से सातवीं तक दो साल बड़े अपने भैया के साथ सिनेमा देखा करता था . मेरे बाबा को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी , उनका कहना था कि पढ़ाई पर कोई बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए . किस्मत से दोनों भाई अपने अपने क्लास में फर्स्ट आते थे . वैसे भैया को फिल्मों में कोई ख़ास रूचि नहीं है , वे मेरे कहने से जाते वरना मुझे अकेले जाने की अनुमति नहीं थी . बाद में आठवीं से मैं अकेले जाने लगा क्योंकि भैया ने मना कर दिया था , उन्हें बोर्ड की तैयारी करनी थी .


5 मार्च 1961


मैं कुछ दिनों से कलकत्ता जाने की जिद कर रहा था . कलकत्ता में इनकम टैक्स में मेरे बड़े बाबा अफसर हैं . बाबा ने कहा था पहले बोर्ड की परीक्षा होने दो .अब बाबा तैयार हो गए और उन्होंने अपने भैया को तार भेज कर मेरे आने की सूचना दे दी है . आज रविवार का दिन है बाबा मुझे टाटानगर स्टेशन पर कलकत्ता की ट्रेन में चढ़ाने जायेंगे .

मैं बहुत खुश हूँ , ट्रेन में बैठ चुका हूँ . किसी बड़े शहर को देखने का पहला मौका मिला है . कुछ वर्ष पहले अशोक कुमार और मधुबाला की फिल्म “ हावड़ा ब्रिज “ देखी थी , आज हावड़ा ब्रिज आँखों से देखने जा रहा हूँ . बाकी की बात कलकत्ता पहुँच कर लिखूँगा .


करीब छः घंटे बाद मैं हावड़ा स्टेशन पर था . इतनी ज्यादा भीड़ पहली बार देख रहा था . बड़े बाबा नजर नहीं आ रहे थे . मैं अपने ही डिब्बे के सामने उनका इंतजार कर रहा था . 15 मिनट हो गए बड़े बाबा नहीं मिले . मैं उनका इंतजार कर रहा था . अब एक एक घंटा से अपना बैग लिए खड़ा था पर बड़े बाबा नहीं आये .मेरा दिमाग चकरा रहा था . उनके घर का पता मेरे बाबा ने नहीं दिया था , बोले “ स्टेशन से बाहर हरगिज नहीं निकलना , भैया तुम्हें लेने आएंगे .”


आगे की बात रात में हावड़ा रेलवे पुलिस ठाने में बैठा लिख रहा हूँ -


मुझे दो घंटे से एक ही जगह खड़े देख कर एक बुजुर्ग कुली ने बंगला में कुछ पूछा था जिसे मैं नहीं समझ सका . फिर उसने पूछा “ बंगला जानी न ? “ मैंने सर हिलाया तब उसने पूछा “ हिंदी जानी .” मैंने सर हिला कर हाँ कहा था .

कुली ने पूछा “ तुम कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जाना है ? घर से भाग कर आया है ? “


मैंने नहीं कहा और अपनी बात बताई .वह बोला “तुम घबड़ाओ नहीं , मैं भी आरा का रहने वाला हूँ . तुम मेरे साथ थाना चलो .पुलिस तुम्हारे बाबा को ढूंढ कर उन्हें तुम्हारी जानकारी दे देगी . “


मैं डरते डरते उसके साथ स्टेशन से बाहर आया . सामने हावड़ा ब्रिज देखा पर मन में डर ज्यादा था ख़ुशी न के बराबर . कुली मुझे रेलवे पुलिस थाना ले कर आया .उसने इंस्पेक्टर को बंगला में मेरी कहानी सुनाई . फिर उसने मुझसे कहा “ अब तुम चिंता न करो .साहब तुम्हें बाबा से मिलवा देंगे .”


वहाँ बैठे दरोगा ने पूछा “ तुमि भाग के आया है ? “ उसने मेरी कहानी सुनी , फिर इनकम टैक्स ऑफिस फोन कर बड़े बाबा के बारे में पता करना चाहा . शायद दरबान ने फोन उठाया होगा . दरोगा ने मुझे कहा “ आज दफ्तर बंद है . तुम्हारे बाबा के बाड़ी का पता दरवान को मालूम नहीं है . कल दफ्तर खुलबे ताबे तुमार बाबा से जिगिस होबे . तुमि एई खाने थाको . “


मुझे भूख लगी थी . मैं बैग में से कुछ बिस्कुट निकाल कर खाता हूँ और वहीँ नल से पानी पीता हूँ . इतना खारा पानी मैंने आज तक नहीं पिया है . दरोगा मेरे चेहरे का भाव देख कर हँसा और बोला “ रात में लॉक अप वाले क़ैदी के लिए खाना आएगा उसी में से कुछ तुमि को भी देगा . “


क़ैदी वाला खाना खा कर थाने की बेंच पर लेट गया . बाहर इतना शोरगुल और टैक्सी के हॉर्न से वैसे भी नींद नहीं आ रही है . रात भर जागता ही रहा .

6 मार्च 1961


सुबह ठीक 10 बजे दरोगा ने इनकम टैक्स ऑफिस फोन कर बाबा से बात कर फोन का चोंगा मुझे दे दिया . बड़े बाबा का हेलो सुन कर मैं रोने लगा फिर मुझे चुप करा कर पहला सवाल पूछा “ क्या तुम विदआउट टिकट आये हो ? “ मेरे नहीं कहने पर दूसरा सवाल “ तब क्या हॉफ टिकट ले कर आया है? “ मेरे नहीं कहने पर तीसरा सवाल “ तब तुम थाने में क्यों हो? “


मैंने रोते हुए कहा “ पहले आप मुझे यहाँ से ले कर चलिए . “


“ अच्छा रो मत , आ रहा हूँ . मगर आने में एक घंटा लगेगा . “


एक घंटे बाद बड़े बाबा आते हैं , मैं उनके पैर छूने के लिए झुकता हूँ पर वे बीच में ही मुझे रोक कर गले लगाते हैं . उस समय भी मेरी आँखों में आंसू थे . वे उन्हें पोंछ कर बोले “ चल अपना बैग उठा , घर चलते हैं . “


मैं उनके साथ बालीगंज की ट्राम में बैठ गया , पहली बार ट्राम पर बैठा था . हमलोग खिड़की वाली सीट पर बैठे थे . रास्ते में मैंने पूछा “ आप स्टेशन क्यों नहीं आये थे . “


“ मैं कलकत्ता मेल से तुम्हें लेने गया था . एक घंटे से ज्यादा तक वेट किया था . ट्रेन को भी प्लेटफार्म से निकाल कर यार्ड भेज दिया तब भी तुम नहीं दिखे तब मैं लौट गया . “


“ पर मुझे तो दोपहर में कलकत्ता एक्सप्रेस से आना था . “


“ सब गड़बड़ तुम्हारे बाप ने किया है , मुझे गलत ट्रेन बताया था . “ बोल कर हँसने लगे


खैर अब मैं निश्चिन्त था , ट्राम हावड़ा ब्रिज क्रॉस कर रही थी . मैं खिड़की के बाहर के दृश्य देख कर खुश हो रहा था , नीचे हुगली नदी बह रही थी . एक घंटे बाद हम घर पहुँच गए . घर में बड़ी अम्मा और चचेरे भाई बहन मेरी कहानी सुन कर हँसने लगे और मज़ाक में चिढ़ाते “ भैया जेल की हवा खा कर आया है . “

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नोट - इस आलेख में शहरों के तत्कालीन पुराने नाम लिखे गए हैं - कोलकाता के लिए कलकत्ता , मुंबई के लिए बॉम्बे , चेन्नई के लिए मद्रास , बंगलुरु के लिए बैंगलोर , श्री लंका के लिए सिलोन .

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