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तुम्हारे जाने के बाद

'बहु चाय पियोगी, सुबह से पूजा पाठ में व्यस्त हो, कही तबियत ना बिगड़ जाए' विमला ताई चाय का कप मेरे हाथों में थमाते हुए बोली.
मैं मौन उदास बिना कुछ बोले चाय ले कर अपने कमरे में आ गयी.
'निर्वि.. जय की आवाज़ सुन मैं चौंक कर उठ गयी.
'जय..तुम..तुम कब आये? मैंने अचकचाते हुए पूछा.
'निर्वि, मैं तो यही था..तुम्हारे पास, सदैव!
जय ने कहा
'झूठ ना बोलो..तुम मेरी आंखों के सामने गए, तब तुम्हें अपनी निर्वि की याद नही आयी, आज दो बरस बाद आ कर बोल रहे हो.. मैं यही था'.
मैंने गुस्सा दिखाते हुए कहा.
'निर्वि, तुम्हें यही एहसास दिलाने मुझे आना पड़ा, तुम्हें ये लगता है, मैं तुम्हें छोड़ कर चला गया, सत्य को अनदेखा करती हो, मैं भला तुमसे दूर कैसे हो सकता हूं, मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं' जय मेरे हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा.
'कहाँ हो जय??
'मैं हमारे आखिरी मुलाक़ात के वक्त को अब तक थामे बैठी हूं, तुम्हारी नज़रे आज भी मेरा पीछा करती है, मुझे इस बात का तनिक भी आभास नही था, उस दिन हमारी आख़री मुलाक़ात थी वरना मैं वहाँ से जाती ही नही, जय तुम तो चले गए, मेरी दुनिया वही रुक गयी, समय के साथ सब आगे बढ़ते गए, अपनी अपनी दुनिया में मस्त..मैं आज भी उस वक्त, उस पल में खड़ी हूं'
मैं रोते हुए बोली
'निर्वि..तुम्हारा दुःख मेरे ह्रदय को अपराधबोध से व्यथित करता है, तुम्हें आगे बढ़ना होगा, तुम ने लेखन छोड़ दिया, खुद को एक कमरे तक समेट लिया, तुम्हें क्या लगता है..तुम्हें ऐसे देख कर मुझे ख़ुशी होती है? तुम्हारे साथ मैं भी उसी पल में हूं निर्वि..तुम्हारे बिना मैंने कभी अपने जीवन की कल्पना भी नही की थी,पर कल्पना और यथार्थ में अंतर है..हम जो सोचते है जो चाहते है जरूरी नही की वो सब कुछ हमें मिल जाए, मुझे अब जाना होगा पर भरोसा रखो मैं तुम्हारे पास हूं, बस एक आख़री बात मान लो..तुम फ़िर लिखना शुरू करोगी, बाहर निकलोगी, लोगो से मिलोगी..तभी मुझे शांति मिलेगी और मैं मिलने आता रहूंगा' जय ने कहा.
मैं चेतनाशून्य हो कर जय की मज़बूत बाहों के घेरे में ख़ुद समा देना चाहती थी, लेकिन उसका मेरे बालों को सहलाना संभाल नही पाई..फुट फुट कर रोने लगी,इस लम्हें रखना चाहती थी हमेशा के लिए, लेकिन इसमें दुःख इतना ज़्यादा था की ज़िन्दगी में कोई उम्मीद ही नही बची थी, मेरा हाथ छुड़ाते हुए कमरे से बाहर की ओर जय के कदम बढ़ गए, मेरी साँस तेज़ होती जा रही थी.
'निर्वि..बेटी..निर्वि' विमला ताई की आवाज़ सुन कर तन्द्रा टूटी.
'ताई..जय था यही..देखिए ना बाहर ही होगा अभी'
'होश में आओ बेटी, वो सपना था..आज जय की पुण्यतिथि है, अभी तो पूजा किया तुमने, इस तरह तुम ख़ुद के साथ जय को भी दुःख पहुंचा रही हो, आगे बढ़ो मेरी बच्ची..जो बीत गया वो अतीत है सामने देखो भविष्य अब तुम्हारे हाथों में है' ताई ने कहा.
महिनों बाद कहानियों से मुँह मोड़ने वाली मैं अपनी लिखी कहानियों का पुलिंदा समेट रही थी..हा...तीन महीने बाद फ़िर कहानियां गढ़ने लगी, जय भी अब ख़ुशी खुशी मुझसे मिलते..मैं भी खुशियों का आवरण ओढ़े मुस्कराती रहती.
मेरी ज़िन्दगी की तरह झूठ में ही सही कहानियों का अंत सुखांत ही करती मैं नही चाहती फिर कोई और निर्वि की ज़िन्दगी जिए चाहे वो कहानियों के काल्पनिक किरदार ही क्यों ना हो, दुःख का अंत होना जरूरी था और वो हो रहा था।


लेखिका
अनामिका अनूप तिवारी