Lahrata Chand - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

लहराता चाँद - 36

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

36

अवन्तिका को नींद नहीं आ रही थी। तकिए को सीने में लगाए खुले आँखों में सपना देख रही थी। अनन्या की जिद्द से संजय की शादी अंजली से हो जाती है। अंजली, पहले संजय के कमरे पर कब्जाकर लेती है फिर संजय पर। संजय अंजली के सामने अनन्या अवन्तिका से बात करने से हिचकिचाने लगता है। धीरे-धीरे अंजली किचन और घर को भी अपने बस में ले लेती है। फिर अंजली जो कहे वही घर में सब को मानना पड़ता है। अनन्या और अवन्तिका अपने कमरे तक सीमित रह जाते हैं और अंजली पूरे घर पर राज करती है। यही तो हुआ था बसन्ती के साथ, उसकी माँ के जाने के बाद उसके पापा ने दूसरी शादी कर ली। फिर क्या था बसन्ती अकेली हो गई और सौतेली माँ घर पर और उसके पिता पर भी हुकुम चलाने लगी। अवन्तिका जोर से 'नहीं' कह चिल्लाकर उठ बैठ गई। उसके चेहरे पर पसीना बेड लाइट की उजाले में चमकने लगा।

उसके चिल्लाने पर अनन्या चौंक कर उठ गई। अनन्या कमरे के लाइट को चालू कर अवन्तिका के लिए ग्लास भरकर पानी ले आती है और पानी पिलाते पूछती है, "अवि क्या हुआ तू क्यों चिल्लाई? ए सी कमरे में इतना पसीना क्यों छूट रही है?"

अवन्तिका पानी पीकर गिलास को अनन्या को देते हुए कहा, "नहीं दीदी, कु... कुछ नहीं बस यूँ ही कुछ डर...डरावना सपना था इ...सलिए।"

"अच्छा ठीक है सो जा। ज्यादा मत सोच, आँखें बंदकर सोने की कोशिश कर सपना नहीं आएगा।" कह कर उस पर चद्दर ओढ़ाकर सुलादी। समय रात के 1बज चुके थे।

***

दूसरे दिन सभी अपने-अपने काम में चले गये। अवन्तिका जाने से पहले संजय के कमरे में गई और ऑफिस जाने की जरूरी सभी सामान बैग, रुमाल स्टेथस्कोप निकालकर टेबल पर रखने लगी। संजय मुस्कुराते हुए पूछा, "आज सूरज किस तरफ आया है?"

"क्यों पापा क्या हुआ?"

"आज मेरी बेटी सुबह सुबह मेरे लिए इतना कुछ जो कर रही है, इसलिए पूछा। बोलो क्या बात है तुम तो वैसे देर उठती हो आज सूरज पश्चिम में कैसे?"

"ऐसा कुछ नहीं पापा, रात भर नींद नहीं आई तो जल्दी उठ गई और पता है मैंने क्या देखा?

क्या?

"आज ही मैने देखा है सुबह कितनी सुंदर होती है। चिड़ियों की मनमोहक चहक, नीले-नीले अम्बर पर के सूरज की लाल-पीली किरण, हल्की ठंडी हवा और पता है पापा कुछ दिन पहले जो गुलाब का पौधे खरीदे थे आज उसमें गुलाब का फूल आया है। और उस पर शबनम की बुँदे चमक रही थी। कितनी सुंदर दिख रही थी।

"हाँ बेटा सुबह बहुत खूबसूरत होती है बस हमें उसे महसूस करने की जरूरत है।"

"लेकिन रोज़ देखेंगे तो बोर भी हो जायेंगे ना?"

"उहूँ वह कैसे? मेरी प्यारी बेटी को मैं रोज़ देखता हूँ लेकिन हर बार पहले से भी प्यारी खूबसूरत सी परी लगती है।"

" हाँ, सच पापा, आप भी हमें हमेशा पहले से अच्छे लगते हो।" गले लिपट कर मुस्कुराई और कहा, "पापा, सब कुछ यहाँ रख दी है, और कुछ चाहिए तो बताइए ले आती हूँ।"

"मेरी बेटी बहुत होशियार हो गई है। मुझे जो कुछ चाहिए था सब कुछ तैयारकर रख दिया है। अब जाओ तुम भी तैयार हो जाओ ऑफिस के लिए तुम्हें ऑफिस में छोड़ कर जाऊँगा।" मुस्कुराते टेबल पर रखे चीजों को देखकर कहा।

- "पापा आज तक आप ने हमें सँभाला आज के बाद हमारी बारी है, आप को कब क्या चाहिए मैं तैयार करके दूँगी। पापा कपड़े भी निकाल कर पलँग पर रख दिए हैं।"

"अच्छा मेरी बेटी बड़ी हो गई।" अवन्तिका के माथे पर चूमते हुए कहा।

"जी आपको सँभालने के लिए मैं अकेली काफी हूँ, मेरे और दीदी के अलावा आप के पास कोई भी नहीं आएगा।"

"मतलब? आश्चर्य से पूछा संजय, "मेरे पास और कौन आ सकता है मेरी बेटियों के अलावा?"

- "बस यूँ ही पापा, चलिए आप तैयार हो जाइए नाश्ता और चाय ले आती हूँ।" कहकर अवन्तिका नाश्ता लेने किचन में चली जाती है। संजय उसके जाने की ओर देख कर सोचने लगा कि 'आज क्या हो गया इसे?' अवन्तिका की रवैया समझने की कोशिश कर रहा था। वह कुछ चिड़चिड़ी असहज और अन्यमनस्क लग रही थी।

अवि को ऑफिस में छोड़कर संजय क्लिनिक की और बढ़ गए। अवि ऑफिस की ओर जा ही रही थी, अचानक एक आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ।

"हाय! आप कैसी हैं?" अचानक उस आदमी ने पूछा।

"आप कौन ? मैं आपको नहीं जानती।"

"आप उस दिन मेरे गाड़ी के नीचे आ गई थीं। आज आप को देखा तो सोचा पूछ लूँ कि आप कैसी हैं।"

- "मैं ठीक हूँ। " कहते वह आगे बढ़गई।

- "सुनिए मैडम।" पीछे से बुलाया

- "अब क्या है?" अवि खड़ी हो गई।

- "उस दिन ...." कहते-कहते अवि के सामने आ खड़ा हुआ राकेश।

- "देखिए मुझे काम से बाहर जाना है। आप से बात करते रहने के लिए मेरे पास वक्त नहीं आप जाइए।" कहकर आगे बढ़ गई।

- "मैडम आपका नाम तो बता कर जाइए।"

अवि उसकी ओर देखे बिना ही वहाँ से चली गई।

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अंजली अस्पताल से घर जाने से पहले संजय से मिलकर साहिल और अनन्या की रिश्ते के लिए बात करने को सोचकर उसके बंगले की तरफ चल पड़ी। कुछ समय पहले ऑफिस से आकर बैठी अनन्या ने अंजली को देख खुशी से उसका स्वागत किया।

- नमस्ते आँटी कैसी हैं आप?अनन्या ने स्वागत किया।

- बहुत बढ़िया अनु, आज बहुत खुश नजर आ रही हो। क्या कोई खास बात है?"

- खास, हाँ आप जो आई हैं।" कहकर उन्हें अंदर बुलाकर बिठाया।

- और बताओ अवन्तिका कैसी है?

- अवन्तिका और पापा दोनों ठीक हैं। आप सीधे ऑफिस से आ रही हैं शायद बैठिए पानी लेकर लाती हूँ कुछ देर में पापा भी आ जाएँगे।" रसोई में जाकर खाना बना रही सुजाता को चाय बनाने को कहकर वह ग्लास में पानी भरकर ले आई।

- अवन्तिका ऑफिस से लौट आई। अंजली को देखते ही बिना कुछ कहे वह अपने कमरे में चली गई। अनन्या अवि को चाय के लिए 2-3 बार बुलाने के बाद ही वह नीचे आई। तभी सुजाता तीनोँ कप में चाय ले आई। पीछे अनन्या बिस्कुट लाकर टेबल पर रखा। अंजली को देखकर अवन्तिका का चेहरा मलीन पड़ गई।

"अवन्तिका बहुत थकी हुई लग रही हो, चाय पीओ। अच्छा लगेगा।" अनन्या उसकी ओर एक कप बढ़ाया। अवन्तिका ने बाध्य होकर चाय ले ली। उसकी नज़र अनन्या की मुस्कान पर थी। उसे अंजली की उपस्थिति असहनीय लग रही थी और अनन्या की हँसी उपहास सी प्रतीत हो रही थी। वह कुछ कहे बिना चुपचाप चाय पीकर वहाँ से उठकर चली गई। अनन्या को अवन्तिका के रवैये से हताशा हुई।

अंजली ने कहा, "अवन्तिका परेशान लग रही है।"

"नहीं वह आज थक गई होगी।"

"अच्छा। अनन्या अब मैं चलती हूँ, देर हो रही है संजय जी से फिर कभी मिलूँगी।"

अनन्या अंजली को दरवाज़े तक छोड़ कर अंदर आई। उसने अवन्तिका के कमरे में जाकर देखा। कमरा बिखरा हुआ था। पलँग पर से तकिए सब इधर-उधर पड़े हुए थे। ऑफिस के बैग और फर्श आदि फर्श पर पड़े थे। जैसे कि उन्हें फेंक दिया गया था। अलमारी का दरवाजा खुला पड़ा था। अवन्तिका एक तकिए को गोद में लेकर सोच में डूबी हुई थी। अनन्या ने पहले कमरे को ठीक किया फिर उसके पास जा बैठी। अनन्या को देख अवन्तिका उठकर जाने ही वाली थी कि अनन्या ने उसे रोक लिया।

"अवन्तिका तुम्हें क्या हो गया। तुम ऐसे क्यों व्यवहार कर रही हो?

- ऐसे मतलब कैसे..?

- तुमने आँटी से बात क्यों नहीं की? मुझसे भी कटी-कटी रहती हो। और अब ये... सब क्या है?" बिखरे कमरे को इशारा करते कहा।

- वह यहाँ क्यों आई? उनका बार-बार यहाँ आना मुझे अच्छा नहीं लगता।"

"क्यों आई मतलब क्या? तुम्हें कल तक आँटी बहुत अच्छी लगती थी। आज अचानक तुमको क्या हुआ कि इस तरह की बातें कर रही हो?"

- कल तक बात अलग थी। अब उनके हमारे घर आने से मेरी व्यवहार में कमी दिख रही है आपको?

- अवि, ऐसी बात नहीं है।

- तो कैसी बात है? उनका हमारे घर आना मुझे पसंद नहीं। फिर कभी वह आये तो मैं ना जाने क्या कर बैठूँ।

- अवि ऐसे मत बोल। जब पापा की तबियत ठीक नहीं थी तभी उन्होंने ही सब कुछ सँभाला है। तुम हमेशा चाहती थी ना वह हमारे साथ रहे।

- वह हमारे साथ नहीं रहेगी। मुझे मंजूर नहीं है। जोर से चिल्लाकर बोली।

अनन्या ने उसकी गुस्से को पहली बार देखा था। अवन्तिका अंजली के नाम से इतना क्यों चिढ़ रही है? अनन्या अवि के व्यवहार से नाखुश थी। उसने अवि की ओर आश्चर्य से देखा मगर चुप रही। अवि से बात करने के लिए सही समय का इंतजार करना ठीक समझा।

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रविवार का दिन था। दुर्योधन जल्दी उठकर पार्क में जॉगिंग करने निकला था। उस दिन उसको संजय पार्क में व्यायाम करते मिल गया। दोनों के कुशल समाचार के बाद दुर्योधन ने पूछा, "अवन्तिका कैसी है?

"अवन्तिका ठीक है। सब कुछ साधरण चल रहा है।"

- दुर्योधन ने कहा, "अनन्या की शादी के बारे में क्यों नहीं सोच रहा। अब वह वयस्क हो गई। उसकी शादी तेरी जिम्मेदारी है।"

"तेरे नज़र में कोई है तो बता।

- "पहले अनन्या से बातकर, उसे पूछ कि उसकी नज़र में कोई है क्या? शादी कोई गुड्डा गुड़िया का खेल नहीं पहले अनन्या की मन की बात जानले कि वह शादी के लिए तैयार है की नहीं।

- "तुम ठीक कह रहे हो। मैं अनन्या से बात करता हूँ।"

- क्या तुम मेरे साथ जॉगिंग के लिए चल सकते हो?

- नहीं कुछ दिन तक मुझसे भागा नहीं जाएगा और डॉक्टर ने भी ताकीद किया है कि बचपना छोड़ कर अब बुढ़ापे में आ जाओ वरना दिल न जाने कब धोखा दे जाए। " हँस कर कहा।

- अपना ध्यान रखना फिर मिलते रहेंगे।" कहकर दुर्योधन आगे निकल गया। संजय महुआ को बुलाकर उसके संग धीरे चलने लगा।

संजय जब भी बाहर जाता है महुआ साथ में रहता है। महुआ उनके ही घर के बाहर सर्वेंट क्वार्टर में रहता था। संजय के बगीचा सँभालने के अलावा बाजार से सब्जी ले आना और उनके कुत्ते को समय पर खाना खिलाना और घुमाने ले जाता। कभी-कभार ऑफिस में खाना पहुँचा देता और टहलते समय संजय के साथ में रहता था। महिआ उस परिवार सदस्य जैसे घर की बहुत सारी जिम्मेदारी निभाता था।

एक दिन रास्ते पर उसे रमेश मिला। वह उसका पुराना साथी था। एक दिन जब महुआ संजय के लिए खाना ले जा रहा था उसने महिआ को रास्ते पर रोका।

"महुआ कैसा है तू?" पीछे से आवाज़ सुनकर मुड़कर देखा। सामने रमेश खड़ा था। महुआ घबरा गया कि कहीं उसे पुरानी बातें पता चल न जाए?" उसने इधर-उधर देखा। अगर रमेश को शक भी हो जाए कि महिआ पुलिस गवाह बन गया था और यह सब अनन्या की वजह से हुआ तो वह उसे और हो सके तो अनन्या को भी नहीं छोड़ेगा। लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई शिकन न रखते हुए उससे अच्छे से बात किया।

"बस ठीक हूँ। तू यहाँ कैसे?"

यहाँ एक ट्रक मालिक के पास नौकरी करता हूँ। तू क्या कर रहा है?

"मैं... मैं कुछ नहीं बस नौकरी के लिए इधर-उधर भटक रहा हूँ।" आस-पास नज़र झुकाकर कहा।

- अगर ऐसी बात है तो मैं ट्रक मालिक के पास तुझे नौकरी दिला सकता हूँ।"

- नहीं, मुझे नहीं चाहिए नौकरी। तुम्हारा बापू कैसा है? महुआ ने पूछा।

"उसी दिन पुलिस के मुठभेड़ में मारा गया। मैं सब छोड़कर यहाँ आ गया हूँ। वह कौन है जो हमारा पता पुलिस तक पहुँचाया। वह मिल जाए तो उसे नहीं छोडूँगा।"

- पुलिस ने खुद ही ढूँढा होगा। कहते हैं कानून का हाथ बहुत लंबा होता है। वे कभी भी कहीं से भी ढूँढ निकाल लेते हैं। पुलिस के कुत्ते और पुलिस सूँघ-सूँघ कर कहीं भी पहुँच जाते हैं। नहीं तो ऐसा कौन है जो हमारा पता पहुँचा सकता है। खैर अब तो हमें सँभल जाना चाहिए। चलो अब मैं चलता हूँ। कहकर महुआ जाने लगा।

रमेश ने उसे रोककर पूछा, "ये खाना किसके लिए है? कहाँ रहता है तू?"

- "मैं... मैं कहा ना पेट भरने के लिए छोटा-मोटा कामकर लेता हूँ। कभी डब्बा पहुँचा देता हूँ तो कभी कुछ, मुझे डब्बा देने जाना है।" कहकर बड़े-बड़े कदम से वहाँ से चला गया।

उसके मन में घबराहट घर कर गई। अगर रमेश को पता चल गया कि उसी ने अनन्या बेबी की मदद की थी तो वह उसे कुछ भी कर सकता है। इतना ही नहीं अनन्या बेबी के परिवार को भी नुकसान पहुँचा सकता है। मेरा अब यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं। मेरी वजह से अनु बेबी भी पकड़ी जा सकती है। एक अच्छी बात है कि वह बेबी को जानता नहीं। मुझे तुरन्त ही यहाँ से जाना होगा।' सोचते हुए शीघ्र संजय के क्लीनक में पहुँचा। संजय महुआ के लिए इंतज़ार कर रहा था। महिआ संजय को खाने का डब्बा देकर सिर झुकाए खड़े रहा। संजय उसको वहीं खड़े हुए देखकर पूछा, "महिआ कुछ बात करनी है?"

- नहीं... हाँ।"

- नहीं.. हाँ .. क्या है? ठीक से बोल। पैसे कुछ चाहिए?

- नहीं पैसे नहीं चाहिए, मुझे मेरा गाँव जाना है।

- गाँव में तेरा कौन है? तू कहता था तेरा कोई नहीं है।"

- है ना मेरे बाबूजी है, अभी अभी पता चला कि मेरा बापू जिंदा है। गाँव में है मुझे उनके पास जाना है।"

- अच्छा ठीक है कुछ दिन घूम फिर के आजा। लेकिन कब तक वापस आएगा बताकर जाना।" ज्यादा सवाल न करते वह अपनी जेब से 1000₹ निकालकर देते हुए कहा।

- पता नहीं साब जी, बापू आने दिया तो आऊँगा नहीं तो वहीं खेती बाड़ी सँभाल लूँगा। बहुत दिनों बाद माँ बापू से मिल रहा हूँ कुछ समय उन्हीं के साथ बिताऊँगा।" कहकर संजय के खाकर छोड़े हुए खाली डब्बों को समेटने लगा।

संजय सोच कर कहा, "अच्छा फिर ये पैसे रख ले, तुम्हें आगे काम आएगा। और कभी भी कोई भी जरूरत पड़े मुझे कहना। और जाते समय पता देकर जाना।" कहकर कुछ और रुपये उसके जेब में ठूँस दिए।

"मैं वहाँ जाकर फ़ोन करूँगा साब। चलता हूँ।" वह संजय से बिदा लेकर लंबे-लंबे कदमों से वहाँ से चला गया।