I am in your heart? - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 13

अध्याय 13

कल्याणपुरा देवी का मंदिर। वहाँ एक छोटा टेंट डाला हुआ था। बहुत जरूरी लोगों को ही बुलाया गया था। बाबूलाल बढ़िया कपड़ों में वर दिखाई दे रहा था ।

बहुत महंगी बनारसी साड़ी पहने सिर पर फूलों से सजे वधू के वेष में बलि के बकरे जैसे गीता बैठी हुई थी। हवन कुंड में थोड़ा और घी डाल कर उसे मंत्रों के उच्चारण कर उसे जलाने पंडित जी मग्न थे।

रितिका आने वाले लोगों की आवभगत कर रही थी। राकेश एक नए शर्ट को पहने हुए मंदिर के एक तरफ कोने में खड़ा हुआ था।

मनाली और कमला रोते-रोते दोनों एक तरफ बैठी हुई थी।

द्रोपदी गीता की सहेली जैसे उसी के पास खड़ी हुई थी।

"ऐसे दूर बैठे तो कैसे ? साहब के पास चिपक के बैठना चाहिए..." गीता के कानों में फुसफुसाई।

किसी भी बात की परवाह किए बिना स्टेचू जैसे गीता बैठी थी।

उसका ह्रदय पत्थर बन गया था।

कान बहरे हो गए जैसे, आंखें अंधी हो गई उसके शरीर से प्राण चले गए हो ऐसे लकड़ी जैसे बैठी हुई थी।

हंसी भी नहीं।

रोना भी नहीं।

"बच्ची शर्मा रही है... आप ही पास बैठ जाइए साहब...."

द्रौपदी हंसते हुए बाबूलाल के पास आकर बोली।

मुहूर्त का समय नजदीक आ रहा था।

फेरे लगने में बस थोड़ी देर ही शेष था।

उसी समय... देवी के मंदिर के सामने एक पुलिस की जीप आकर खड़ी हुई।

उसमें से इंस्पेक्टर दामोदर उनके साथ दो और पुलिस वाले नीचे उतरे।

उनके साथ मोती, हनुमान और पप्पू तीनों आए थे।

पुलिस वालों के साथ यह क्यों आए हैं?

मोती को देखते ही रीतिका को गुस्सा आया । शादी में आए हुए लोग धड़ाधड़ उठ गए।

"कौन है रितिका ? तेज आवाज में पूछा।

"मैं हूं।"

साड़ी को अच्छी तरह से ओढ़कर सामने आई रितिका।

"गीता..." अपने भौंहों को ऊंचा किया इंस्पेक्टर ने ‌

"वही है..." बाबूलाल के पास में बैठी हुई गीता की ओर इशारा किया।

"उस लड़की की जबरदस्ती शादी हो रही है ?"

अपने मूछों को ताव दिया। अपने अंग वस्त्र रख कंधे पर डाला।

"इंस्पेक्टर साहब आपको क्या चाहिए...?"

"इस लड़की की जबरदस्ती शादी हो रही है ऐसा कंप्लेंट आया है..." इंस्पेक्टर दामोदर बोले।

"साहब किसी ने जानबूझकर ऐसा कंप्लेंट दिया है। हम सब ने पसंद करके ही लड़की की इनके साथ शादी करवा रहें हैं...." रितिका बोली।

"यह बात तुम्हारी लड़की को बोलने दो..."

"कंप्लेंट करने वाला कौन था ?" बाबूलाल ने पूछा।

"मैं ही हूं..." मोती सामने आया।

"यह सब क्या है ?" बाबूलाल ने द्रोपदी को देखा।

"इनका नाम मोती है। हमारी तरह आने वाले मिनी बस में यह ड्राइवर हैं। इनको इस लड़की से प्रेम है। इन्होंने परंपरा के अनुसार घर आकर लड़की को मांगा। इस महिला ने हमें गालियां देकर अभी शादी नहीं करूंगी ऐसा बोलकर हमें वापस भेज दिया | अब जबरदस्ती आपके साथ शादी करवा रहे हैं ऐसी कंप्लेंट आई है। उसके संबंध में ही मैं पूछताछ करने आया हूं। आप अमीर पैसे वाले हो सकते हैं। बड़े आदमी हो सकते हैं। उसके लिए एक छोटी लड़की को जबरदस्ती कर शादी करवाने की अनुमति नहीं हो सकती। हमें बीच में रोके बिना पूछताछ करने दीजिए..."

"इंस्पेक्टर मेरी ताकत को जाने बिना आए हो।" बाबूलाल गुर्राये ।

"आप बहुत बड़े आदमी होंगे वह यहां काम नहीं आएगा। एक युवा लड़की की जिंदगी जरूरी है !"

इंस्पेक्टर दामोदर बिना घबराये, बिना डरे साफ बात की।

गीता को बुलाया।

"यहां आओ बेटी..."

गीता उठकर आई।

उसकी गर्दन झुकी हुई थी उसने सिर ऊंचा नहीं किया। मोती की तरफ मुड़ी भी नहीं। परंतु मोती उसे ही देख रहा था। नई बनारसी साड़ी सिर में फूल गले में बड़ी सी फूल की माला वधु के रूप में गीता बहुत ही सुंदर लग रही थी।

पंडित जी के हाथ में जो मंगलसूत्र था उसे देखकर मोती को लगा उनके हाथ से छीन कर मैं गीता के गले में डाल दूं? ऐसा भी उसे लगा।

"तुम्हारा नाम क्या है बेटी ?"

गीता से इंस्पेक्टर दामोदर ने पूछा।

"गीता..." थूक को निगली।

"आज तुम्हारी जबरदस्ती की शादी हो रही है क्या ?"

गीता को अब ही सब बात समझ में आई।

यह सब मोती का ही काम है। मेरी जबरदस्ती शादी हो रही है कहकर मोती पुलिस को बुलाकर लाया है। मेरी जिंदगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए ऐसा सोचकर मोती की उत्सुकता, उसकी जिंदगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए, उसके लिए दुख, उसका अपनत्व उसकी कोशिश उसके समझ में आ गई।

पर बोल न सकने के कारण चुपचाप खड़ी रही।

"बोलो बेटी.... मौसी ने तुम्हें धमका कर जबरदस्ती करके इस शादी के लिए राजी किया है क्या ? तुम एक बार हां बोलो बेटी। अभी मैं सबको अंदर डाल देता हूं...."

"कहीं वह सच बोल तो ना देगी ? कहीं मैं फंस ना जाऊं?" रितिका परेशान हुई।

नाक को पूछती हुई गीता के पास दौड़ कर आई।

"गीता... तुमने देखा यह अन्याय ? मैं तुम्हें धमकी दूंगी.... जबरदस्ती करूंगी, मैंने जबरदस्ती नहीं की तुम्हें शादी के लिए सहमत होने को नहीं बोला... झूठी शिकायत कर पुलिस को बुलाकर ले आया यह ड्राइवर....! सच को बता दो गीता। किसी ने मुझे नहीं धमकाया... किसी ने जोर जबरदस्ती नहीं की... तुम स्वयं ने अपनी इच्छा से शादी के लिए हामी भरी। बोल दे गीता। तेरे बोलने में ही अपने परिवार का मान मर्यादा सब कुछ निहित  है... तुमने उल्टा सीधा कुछ कह दिया तो.... मैं और तुम्हारी बहने जिंदा नहीं रहेंगी.... सही..."

"आप चुप रहिए... उस लड़की को बोलने दो..." रितिका को पुलिस वाले ने डांटा।

"गीता... बोलो गीता ! बिना डरे बोलो! तुम अभी जो फैसला करोगी वही तुम्हारे आगे के जीवन के लिए अच्छा होगा..." कंडक्टर हनुमान बोले।

"गीता तुम मुझे पसंद नहीं करती हो तो कोई बात नहीं... परंतु इस शादी को तो नहीं होना चाहिए... हिम्मत से बात करो... दया करके सच बोलो...."

मोती ने बहुत अनुनय-विनय किया। गीता से बहुत जिद करने लगा ।

उसकी तड़प का पता लगा उसका प्रेम भी समझ में आया उसके आंसू भी समझ में आया उसकी परेशानी भी समझ में आई।

"बोलो बेटी...." इंस्पेक्टर दामोदर फिर से बोले।

गीता ने अपने मौसी और बहनों को देखा। ‘फिर मैं और तुम्हारी बहन जिंदा नहीं बचेगी’ रितिका के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।

"इंस्पेक्टर सर... यह शादी मेरी इच्छा अनुसार ही हो रही है.... मुझे किसी ने धमकाया या जबरदस्ती नहीं थी..." साफ शब्दों में बोल दिया।

मोती स्तंभित रह गया।

"गीता.. कृपा करके... सच बोलो... तुम अपने आप को धोखा मत दो..." फटी आवाज में मोती चिल्लाया।

"यह कौन है तुम जानती हो ?" मोती को दिखाया इंस्पेक्टर ने।

"मालूम है... हमारे गांव के लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस के ड्राइवर हैं।"

"तुम दोनों एक दूसरे को प्रेम करते हो ?"

"उन्होंने मुझसे प्रेम किया होगा। परंतु मैंने उन्हें कभी नहीं चाहा। मुझे मेरे कुटुम्ब का गौरव, मेरी मौसी और मेरी बहनों की खुशी ही जरूरी  है।"

कृपा करके यहां से चले जाइए।"

आंखों में लबालब आंसू के साथ दोनों हाथों को उसने जोड़ा।

मोती बहुत ही शर्मिंदा हुआ।

उसके आंखों के आगे अंधेरा छा गया।

बड़े आराम से रितिका ने दीर्घ श्वास छोड़ा। उसका डर गायब हो गया उसके चेहरे में चमक आ गई। उसने व्यंग्य से घूर कर मोती को देखा।

"मोती... सुन लिया ? उस लड़की ने अपने मुंह से कहा... अब हम कुछ नहीं कर सकते... हमारे समय को तुम खराब मत करो। चलो चलते हैं"

कहते हुए अपने जीप की तरह इंस्पेक्टर चले।

"तुमने अपने आप को अपमानित कर लिया मोती... चलो चलते हैं... उसके हाथ को पकड़ा कंडक्टर हनुमान ने।

"भैया..."

मोती बोल नहीं पाया।

"अब हम आ रहे यहां खड़े रहने में मर्यादा नहीं है।"

मोती को खींचकर हनुमान बाहर लेकर आया। "जा रहे हैं क्या? शादी खत्म होने के बाद.. खाना खाकर जाइएगा?" भाग कर आकर रितिका ने नीचता से बोली।

मोती ने कोई जवाब नहीं दिया।

बिना मुड़कर देखें अपनी बाइक रखी हुई जगह पर चलने लगा।

"भैया मैं गाड़ी चलाता हूं.. आप जिस मनोदशा में हैं उस पर गाड़ी चला नहीं सकते.." पप्पू ने किक मारकर गाड़ी स्टार्ट की।

पुलिस की जीप, उनकी बाइक दोनों मंदिर से बाहर निकल गए।

"मुहूर्त के समय खत्म होने के पहले ही फेरे शुरू कर दो।" द्रोपदी ने पंडित जी से कहा।

बाबूलाल और गीता दोनों फिर से हवन कुंड के सामने बैठे। पंडित जी मंत्रों का उच्चारण करने लगे।

फेरे शुरू हुए। बाबूलाल से चला नहीं जा रहा था। अचानक उसका हृदय जोर-जोर से धड़कने लगा। बाएं कंधे में जोर का दर्द हुआ। तेज पसीने से वह भीग गया।

"छाती में दर्द... छाती में दर्द..."

फेरे नहीं हुए। ना ही मंगलसूत्र पहनाया गया। सिंदूर का रस्म भी पूरा नहीं हुआ। बाबूलाल गिर गए। एक क्षण में ही सब कुछ खत्म हो गया। वे गीता के ऊपर ही गिर गए।

लोगों ने उनके मुंह पर पानी के छींटे मारे । परंतु बाबूलाल नहीं उठे। उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

"अरे... अरे... हमें धोखा दे गए..." जोर से चिल्ला कर द्रोपति रोने लगी।

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