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प्रभु जी (व्यंग्य)


प्रभु जी .....

बहुत दिनों से देख रहे हैं कि आप कितने महान है । आपकी महानता के चर्चे दूर-दूर तक है । आप तो वो पारस है जो लोहे को भी छू ले तो सोना बना दे । आपकी महानता के कारण ही अनेंक लोग आपके आस-पास भिनभिनाते रहते है । कुछ लोग तो ऐसे है जो केवल और केवल आपके नाम के सहारे ही समाज में प्रतिष्ठित है । ऐसे लोगों की प्रतिष्ठा वास्तव में उनकी नहीं है ये तो प्रभु आप और आपका नाम है जो उन्हें प्रतिष्ठित बनाए हुए है । प्रभु आपकी प्रभुताई के चलते आपके चम्मच रूपी भक्त ऐसे ऐसे तीर मार सकते है जिनके विषय में सामान्य आदमी तो सोच भी नहीं सकता । वैसे हम भी जनता है और आप तो जानते ही है कि ये जनता है ये सब कुछ जानती है । हमसे आपके चम्मचों की लीलाऐं छुपी नहीं है । आपके कुछ चम्मच तो ऐसे भी है जो यदि आपके चम्मच न होते तो हमारे कस्बे के लोग उन्हें शहर के बाहर ही कर देते लेकिन प्रभु यह तो आपका ही प्रताप है कि वे चम्मच न केवल शहर में है अपितु सम्मान जनक अवस्था में भी पाए जाते है । आपके कुछ चम्मच अपनी चमचागिरी के दम पर बड़े ठेकेदार हो गए और पहले जो पंचर जोड़ते थे अब लाखों में खेल रहे है । प्रभु कुछ चम्मच आपकी राह पर निकल पड़े है और अब नेता बन गए है । हालाकि उनके नेता बनने में आपके आशीर्वाद की ही प्रमुख भूमिका है परन्तु आपको अपने ऐसे चम्मचों से सावधान तो रहना ही चाहिए ।


प्रभु आप इस काल में हमारे कस्बे के लिए अवतार है इसलिए आपके भक्तों की भी कोई कमी नहीं है। लोग है कि आपके इन भक्तों को ही चम्मच कहते है । वैसे तो आप भी जानते ही है कि कोई निस्वार्थ भाव से तो चम्मच बनना नहीं चाहता । चम्मच का काम ही होता है स्वयम् की स्वार्थपूर्ति । प्रभु मैंने देखा है कि आपके चम्मच अपने भगवान से भी पहले आपके पास आ कर आपके दर्शन प्राप्त करते है । आप भी आपके चम्मचों का बहुत ख्याल रखते है । आप उनके कामों के लिए कभी फोन करते है ,कभी पत्र लिखते है तो कभी स्वयम् सीधे जा कर अपनी लीला द्वारा काम करवा देते है । वैसे प्रभु आपके चमचे भी आपका पूरा खयाल रखते है । उनका काम हुआ नहीं कि वे आपके दरबार में उपस्थित हो कर आपका चढावा आपको समर्पित कर देते है । प्रभु और भक्त का यह सहसम्बन्ध केवल और केवल हमारे कस्बे में ही देखने को मिलता है ।


प्रभु आप आश्चर्यचकित न हों कि आज मै अचानक आपका स्तुति गान क्यों करने लगा ? प्रभु मैं ठहरा सामान्य सा आदमी फटेहाल और बेरोजगार । आप नहीं जानते प्रभु इस दुनियॉ में मुझ जैसे लोगों का जीना कितना कठिन है जो किसी का भी चम्मच न हो । मैने ऐसा जीवन जिया है प्रभु और मैं ऐसे जीवन की कठिनाईयों को अच्छी तरह जानता भी हुॅ । कोई अधिकारी तो क्या बाबू और चपरासी भी घास नहीं ड़ालता इसलिए किसी भी आफिस में उसके लिए छोटे से छोटा काम करवाना भी पहाड़ उठाने के समान होता है । ऐसे मनुष्य को पुलिस वाले भी सड़क पर थूकने के जुर्म में ही पकड़ लेते है जबकि आपके चम्मचों को सात खून माफ होते है । ये तो कुछ भी नहीं घर पर घरवाली भी उलाहनें देती कि तुम्हारी तो कोई पहुॅच ही नहीं है । प्रभु मै अपनी इस बेकार सी जिंदगी से तंग हो चुका हुॅ । अब बचे -खुचे दिन मान- सम्मान और कमाते-धमाते बिताना चाहता हुॅ । प्रभु आप मुझे अपनी शरण में ले लो । मै आपके सब अच्छे और बुरे काम करूॅगा । आप दिन को अगर रात कहेंगे तो मैं भी रात ही कहुॅगा । बस अब आप मुझे अपने चरणों में स्थान दे दो । बस प्रभु आप मुझे अपना चमचा बना लो ............प्रभु ................. ।




आलोक मिश्रा "मनमौजी"
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