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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 38

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

38

"लेकिन मेरा ख्याल है, ज़रूर कोई हमें बुद्धू बना रहा है।" कहा मैंने,"क्योंकि मैंने कल रात ही पढ़ा था कि प्रिंस स्कॉटलैंड में हैं, शिकार के लिए!"

ऐडी अचानक मूरख नज़र आने लगे, "शायद यही बेहतर होगा कि मैं महल में फोन करके पता करूं!"

वे वापिस आये तो उनके चेहरे पर गूढ़ भाव थे। उन्होंने चेहरे पर कोई भी संवेदना लाये बगैर कहा,"ये सच है। वे अभी भी स्कॉटलैंड में ही हैं।"

उसी सुबह खबर आयी कि कीस्टोन कम्पनी में मेरे सहयोगी रोस्को ऑरबक्कल पर कत्ल का इल्ज़ाम लगाया गया है। ये अविश्वसनीय खबर थी। मैं रोस्को को जानता था। वे बहुत ही नेक, मिलनसार आदमी थे और वे इतने सज्जन थे कि कभी किसी मक्खी को भी नहीं मार सकते थे। जब प्रेस ने इस बारे में मेरा साक्षात्कार लिया तो मैंने यही राय जाहिर की थी। बाद में ऑरबक्कल को पूरी तरह से दोष मुक्त कर दिया गया था लेकिन इस मामले ने उनका कैरियर ही चौपट कर दिया: हालांकि उन्हें फिर से जनता में अपनी पुरानी जगह मिल गयी थी, इस दुखद प्रसंग ने उन पर अपना असर छोड़ा और वे एकाध बरस के भीतर ही गुज़र गये थे।

मुझे ऑसवाल्ड स्टॉल थियेटर के दफ्तर में दोपहर के वक्त वेल्स महोदय से मिलना था। हमें वहां पर उनकी एक कहानी पर आधारित बनी हुई फिल्म देखनी थी। जैसे ही हम निकट पहुंचे तो देखते क्या हैं कि वहां पर अपार भीड़ जुटी हुई है। जल्दी ही मुझे धकियाया गया, उछाला गया और एक लिफ्ट में एक तरह से धकेल दिया गया। और इस तरह से मैं एक छोटे-से दफ्तर में पहुंचा जहां पर और भी कई लोग थे।

मैं इस बात को ले कर हैरान-परेशान था कि हमारी पहली ही मुलाकात इस तरह के मुहूर्त में हो रही है। वेल्स एक डेस्क के पास शांत मुद्रा में बैठे हुए थे। दयालुता से भरी उनकी बैंजनी नीली आंखें चमक रही थीं। वे भी थोड़े परेशान लग रहे थे। इससे पहले कि हम हाथ ही मिला पाते, चारों तरफ से फ्लैशलाइटों और फोटाग्राफरों के हुजूम ने हमें घेर लिया। वेल्स झुके और फुसफुसाये,"आप और मैं बकरियां हैं!"

तब हमें प्रोजेक्शन रूम में ले जाया गया। फिल्म खत्म होने को थी कि तभी वेल्स मेरे कान में फुसफुसाये,"आपको कैसी लगी फिल्म?"

मैंने स्पष्ट उत्तर दिया कि फिल्म अच्छी नहीं थी। जब रौशनियां जल गयीं तो वेल्स तेजी से झुके,"नायक के बारे में तो दो भले शब्द कह दो!"

दरअसल, नायक जॉर्ज के आर्थर ही थे जो अकेले फिल्म की जान थे।

फिल्मों के प्रति वेल्स का नज़रिया अप्राकृतिक रूप से सहन करने वालों की तरह का था। "बुरी फिल्म नाम की कोई चीज नहीं होती।" कहा उन्होंने,"बात यही है कि उनकी गति शानदार होती है।"

उस अवसर पर एक दूसरे को जान पाने का मौका नहीं था लेकिन, बाद में उसी दिन मुझे उनका संदेश मिला।

डिनर के बारे में मत भूलना। अगर आपको ठीक लगे तो अपने आपको ओवरकोट में छुपाते हुए आ जाना। 7.30 बजे सरक कर आ जाना और हम शांति से खाना खा पायेंगे।

उस शाम रेबेका वेस्ट भी वहीं थी। बातचीत थोड़ी उखड़ी-उखड़ी चल रही थी। लेकिन आखिरकार हमने पिघलना शुरू किया। वेल्स रूस के बारे में बातें करने लगे। वे हाल ही में रूस हो कर आये थे।

"प्रगति धीमी है।" वे बोले,"आदर्शवादी फतवे जारी करना आसान होता है लेकिन उन्हें अमल में लाना मुश्किल होता है।"

"उपाय क्या है?" मैंने पूछा।

"शिक्षा"

मैंने उन्हें बताया कि मैं समाजवाद से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हूं और मैंने मज़ाक में कहा कि मैं ऐसी व्यवस्था का हामी नहीं हूं जहां पर जीवन जीने के लिए आदमी को काम करना ही पड़े। "सच कहूं तो मैं ऐसी व्यवस्था को पसंद करूंगा जहां आदमी को काम किये बिना भी जीने दिया जाये।"

वे हँसे,"तो भई, आपकी फिल्में क्या हैं?"

"वो तो कोई काम थोड़े ही है, वह तो बच्चों का खेल है।" मैंने मज़ाक में कहा।

उन्होंने पूछा कि यूरोप में छुट्टियों में मैं क्या करने वाला हूं। मैंने बताया कि पहले तो मैं पेरिस जाने की सोच रहा हूं और फिर सांडों के साथ लड़ाई, बुल फाइट देखने स्पेन जाने का मन है।

"मुझे बताया गया है कि तकनीक ड्रामाई और सुंदर होती है।"

"हां सो तो है, लेकिन घोड़ों के लिए ये सब बहुत क्रूरतापूर्ण है," कहा उन्होंने।

"लेकिन घोड़ों के लिए क्या भावुक होना?" मैंने इस मूर्खतापूर्ण जुमले के लिए मैंने अपना सिर पीट लिया होता!! ये मेरी दिलेरी थी। लेकिन मैं देख पाया कि वेल्स समझ गये थे। अलबत्ता, घर आते समय सारे समय मैं अपने-आपको इस बात के लिए कोसता रहा कि मैंने इतनी हल्की बात कैसे कह दी।

अगले दिन ऐडी नोब्लॉक के दोस्त, सर एडविन लुट्येंस, प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी होटल में मिलने आये। वे दिल्ली में नयी सरकारी इमारत के लिए नक्शों पर काम कर रहे थे और बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्च V के साथ अभी-अभी मुलाकात करके लौट रहे थे। वे अपने साथ एक छोटा-सा घुमंतू टायलेट ले कर गये थे; ये लगभग छ: इंच ऊंचा था और इसमें एक छोटी सी टंकी लगी हुई थी जिसमें शराब के गिलास जितना पानी आ जाता था। जिस वक्त जंजीर खींची जाती थी, उसका फ्लश नियमित टायलट की तरह चलता था। राजा और रानी दोनों ही इसे देख कर इतने आनंदित हुए और जंजीर का खींचना और फ्लश का चल पड़ना उन्हें इतना भाया कि लुट्येंस ने सुझाया कि इसके चारों तरफ एक गुड़िया घर बना दिया जाये। बाद में उन्होंने इस बात की व्यवस्था की कि कई ख्यातिनाम अंग्रेज़ कलाकारों ने प्रधान कक्षों के लिए मिनिएचर तस्वीरें पेंट कीं। प्रत्येक घरेलू वस्तु मिनिएचर में ही बनायी गयी थी। जब काम पूरा हो गया तो महारानी ने इस बात की अनुमति दी कि इन्हें जनता के प्रदर्शन के लिए रखा जाये और इस तरह से उन्होंने सहायतार्थ बड़ी राशियां जुटायीं।

कुछ ही अरसे बाद मेरी सामाजिक गतिविधियों का ज्वार नीचे उतरने लगा। मैं साहित्यकारों से और गणमान्य व्यक्तियों से मिल चुका था और अपने बचपन की जगहों पर जा चुका था; अब मेरे लिए और कुछ नहीं रह गया था सिवाय इसके कि भीड़ से बचने के लिए टैक्सियों में घुसता और उनमें से निकलता रहूं; और अब चूंकि ऐडी नोब्लॉक ब्राइटन के लिए जा चुके थे, मैंने अचानक ही तय किया कि बोरिया-बिस्तर बांध लिया जाये और इस सबसे मुक्ति पायी जाये।

हम बिना किसी प्रचार के चले थे, ये मेरा ख्याल था, लेकिन कालाइस पर बहुत बड़ी भीड़ ने हमारा स्वागत किया। जैसे ही मैं जहाज के रास्ते से नीचे आया, वे चिल्लाये, "जुग जुग जीओ चार्लोट।" हमारी समुद्री यात्रा बहुत ही दुरूह रही थी और मेरा आधा तन तो चैनल में ही रह गया था; इसके बावजूद मैंने अपना कमज़ोर हाथ हिलाया और मुस्कुराया। मुझे धक्का दिया गया, खींचा गया और दबा कर ट्रेन के हवाले कर दिया गया। पेरिस पहुंचने पर बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने और पुलिस बंदोबस्त ने हमारा स्वागत किया। एक बार फिर उत्साहपूर्वक मुझे धकियाया गया, रगेदा गया और पुलिस की मदद से मुझे उठाया गया और एक टैक्सी में ठूंस दिया गया। ये सब बहुत मज़ेदार रहा और सच कहूं तो मुझे इस सबमें मज़ा आया। लेकिन ये सब उससे ज्यादा था जितने का मैं हकदार था। हालांकि जिस तरह से मेरी अगवानी की जा रही थी, इसकी उत्तेजना ने मुझे निचोड़ कर रख दिया था।

क्लेरिज होटल में हर दस मिनट बाद फोन लगातार घनघनाना शुरू कर देता। मिस ऐन मोर्गन का सचिव बात करना चाहता था। मैं जानता था कि ये फोन किसी न किसी अनुरोध को ले कर ही होगा, क्योंकि ऐन जे पी मोर्गन की पुत्री थीं। इसलिए हमने सचिव की तरफ तवज्जो देना छोड़ दिया लेकिन सचिव महाशय हमें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।

"क्या मैं मिस मोर्गन से मिलूंगा? वे मेरा ज्यादा वक्त नहीं लेंगी।"

मैंने हार मान ली और ये वादा किया कि मैं अपने होटल में दोपहर को पौने चार बजे मिलूंगा। लेकिन मिस मोर्गन को देर हो गयी इसलिए मैंने चार बजने से दस मिनट पहले जाने की तैयारियां शुरू कर दीं। जिस वक्त मैं लॉबी में से जा रहा था, होटल का प्रबंधक मेरे पास लपकता हुआ आया और परेशान हाल बोला,"मिस मोर्गन आपसे मिलने के लिए आ पहुंची हैं सर!"

मैं मिस मोर्गन के पक्के इरादे और आश्वस्ति का मुरीद हो गया था। और फिर ऊपर से देरी! मैंने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया,"मुझे खेद है कि चार बजे मुझे किसी से मिलना है।"

"ओह, सचमुच!" कहा उन्होंने,"तो ठीक है, मैं आपके पांच मिनट से ज्यादा नहीं लूंगी।"

मैंने अपनी घड़ी देखी। चार बजने में पांच मिनट बाकी थे।

"क्या हम दो घड़ी के लिए बैठ कर बात कर सकते हैं!" उन्होंने कहा और जब लॉबी में बैठने के लिए जगह के लिए तलाश कर रहे थे, हमने बात करना शुरू कर दिया।

"मैं बरबाद हो चुके फ्रांस के पुनर्निर्माण के लिए निधियां जुटाने में मदद कर रही हूं और अगर हम ट्रोकारडो में आपकी फिल्म द किड का भव्य प्रदर्शन रखें और आप उसके साथ मंच पर आ सकें तो हम हज़ारों डॉलर जुटा सकते हैं।"

मैंने उन्हें बताया कि वे इस मौके पर फिल्म का प्रदर्शन तो कर सकती हैं लेकिन मैं उसके साथ उपस्थित नहीं रहूंगा।

"लेकिन आपकी मौजूदगी से हम कुछ हज़ार डॉलर अतिरिक्त जुटा पायेंगे!" उन्होंने ज़ोर दिया, "और मुझे विश्वास है कि आपका सम्मान किया जायेगा।"

मुझ पर जैसे शैतान हावी हो गया और मैंने सीधे उनकी तरफ देखा,"यकीन है आपको?"

मिस मोर्गन हँसी,"अब आदमी सरकार से सिफारिश ही तो कर सकता है।" वे बोलीं, "और मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी।"

मैंने घड़ी की तरफ देखा और अपना हाथ बढ़ा दिया,"मुझे बेहद अफसोस है कि मुझे जाना ही होगा। अलबत्ता, मैं अगले तीन दिन के लिए बर्लिन में होऊंगा और शायद आप मुझे बता देंगी।" और इस भेद भरे जुमले के साथ मैंने उनसे विदा ली। मैं जानता था कि ये मेरी ज्यादती थी और जिस वक्त मैं होटल से जा रहा था, मुझे अपनी इस हिमाकत पर अफसोस होता रहा।

सामाजिक ढांचे से आपका परिचय आम तौर पर अचानक ही किसी घटना के कारण होता है और वह आग से किसी चिन्गारी की तरह सामाजिक गतिविधियों का सिलसिला शुरू कर देता है और आप पाते हैं कि आप उसके "भीतर" हैं।

मुझे वेनेजुएला की दो लड़कियों की याद है - सीधी सादी लड़कियां। उन्होंने मुझे बताया था कि किस तरह से न्यू यार्क के सोसाइटी में उन्होंने अपनी पैठ बनायी थी। एक समुद्री जहाज पर उनकी मुलाकात रॉकफैलर्स में से एक से हुई थी जिसने उन्हें अपने दोस्तों के नाम परिचय की चिट्टी दे दी थी और यहीं से परिचयों का सिलसिला शुरू हुआ। बहुत बरसों के बाद उनमें से एक ने मुझे बताया था कि उनकी सफलता का राज़ ये रहा कि उन्होंने कभी भी शादीशुदा आदमियों पर लाइन नहीं मारी; और इसका नतीजा ये हुआ कि मेज़बान महिलाएं उन्हें पसंद करती थीं और उन्हें हर कहीं बुलाती थीं और उनके लिए यहां तक किया कि उनके लिए पति भी तलाशे।

जहां तक मेरा सवाल है, अंग्रेजी समाज में मेरा प्रवेश अचानक ही हुआ। मैं क्लेरिज होटल में स्नान कर रहा था। जॉर्जेस कारपेंटियर, जिनसे मैं न्यू यार्क में जैक डेम्प्से के साथ उनकी लड़ाई से पहले मिल चुका था, के आने के बारे में बताया गया और वे बाथरूम में चले आये। गर्मजोशी से मिल लेने के बाद वे मेरे कान में फुसफुसाये कि बैठक में उनका एक दोस्त बैठा हुआ है जिससे वे मुझे मिलवाना चाहते हैं। ये अंग्रेज शख्स अंग्रेजी समाज में बहुत खास जगह रखता है। ये सुन कर मैंने फटाफट बाथरोब डाला, और सर फिलिप सैसून से मिला। ये एक बहुत ही प्यारी दोस्ती की शुरुआत थी जो अगले तीस बरस तक चलती रही। उस शाम हमने सर फिलिप सैसून और उनकी बहन के साथ भोजन किया। वे उस वक्त लेडी रॉकसैवेज हुआ करती थीं। अगले ही दिन मैं बर्लिन के लिए रवाना हो गया।

बर्लिन में जनता की प्रतिक्रिया मज़ेदार थी। वहां पर मेरे व्यक्तित्व के अलावा मुझसे मेरा सब कुछ उतरवा लिया गया और हालत ये हो गयी कि एक नाइट क्लब में मुझे ढंग की मेज़ तक नसीब नहीं हुई। इसकी वजह ये थी कि वहां पर मेरी कोई भी फिल्म अब तक प्रदर्शित नहीं हुई थी। शुरुआत तब हुई जब एक अमेरिकी अधिकारी ने मुझे पहचाना और हैरान परेशान मालिक को उदासीनता के साथ बताया कि मैं कौन हूं और कम से कम हम अपरिचय के दायरे से बाहर आ पाये थे। होटल के प्रबंधन की उस प्रतिक्रिया देखना तो और भी मज़ेदार था जब हमारी मेज़ के आस पास उन लोगों की भीड़ लग गयी जिन्होंने मुझे पहचान लिया था। उनमें से एक जर्मन, जो इंगलैंड में कैद में रह चुका था, और वहां पर उसने मेरी दो तीन कॉमेडी फिल्में देख रखी थीं, अचानक चिल्लाया, "शार्ली ई ई ई!" और हक्के-बक्के खड़े ग्राहकों की तरफ मुड़ कर बोला,"आपको पता है ये कौन है? शार्ली ई ई ई!" तब जैसे उसे पागलपन का दौरा पड़ गया हो, उसने मुझे गले लगाया और मुझे चूमा। लेकिन उसके उस उत्साह से ज्यादा कुछ हंगामा नहीं हुआ। लेकिन तभी जर्मन फिल्म अदाकारा, पोला नेगरी, जो सबकी आंखों का तारा थी, ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनकी मेज पर आना पसंद करूंगा, तभी जा कर थोड़ी बहुत दिलचस्पी पैदा हो पायी थी।

मेरे पहुंचने के दिन ही मुझे एक रहस्यमय संदेश मिला। इसमें लिखा था:

प्यारे दोस्त चार्ली, पिछली बार जब हम डुडले फील्ड मालोने के यहां न्यू यार्क में पार्टी में मिले थे, उसके बाद बहुत कुछ घट चुका है। इस समय मैं अस्पताल में बहुत बीमार पड़ा हुआ हूं, इसलिए मेहरबानी करके आओ और मुझसे मिलो। मुझे बहुत बहुत खुशी होगी . ..।

लेखक ने अस्पताल का अपना पता दिया था और हस्ताक्ष किये थे: "जॉर्ज"

पहले तो मुझे याद ही नहीं आया कि ये शख्स है कौन!! तभी मुझे सूझा: हां, ये वही बुल्गारियाई जॉर्ज है जिसे अट्ठारह बरस के लिए दोबारा जेल में जाना था।

पत्र की भाषा से ही साफ़ जाहिर हो रहा था कि मामला दिल को छूने वाला ही होगा इसलिए मैंने सोचा कि अपने साथ पांच सौ डॉलर लेता चलूं। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब अस्पताल में मुझे एक बहुत बड़े से कमरे में ले जाया गया जिसमें एक डेस्क रखी थी और उस पर दो टेलिफोन रखे हुए थे। वहां पर दो अच्छे-खासे कपड़े पहने दो सिविल अधिकारियों ने मेरा स्वागत किया जिनके बारे में बाद में मुझे पता चला कि वे जॉर्ज के सचिव थे। उनमें से एक मुझे साथ वाले कमरे में लिवा ले गया जहां पर जॉर्ज बिस्तर पर लेटा था। "मेरे दोस्त!" वह भावुक हो कर मेरा स्वागत करते हुए बोला, "तुम आये, ये देख कर मुझे कितनी खुशी हो रही है। मैं डुडले की पार्टी में तुम्हारी सहानुभूति और मेहरबानी कभी भी भूल नहीं सकता!" उसने तब अपने सचिव को यंत्र चालित तरीके से आदेश दिया और हम दोनों को अकेला छोड़ दिया गया। चूंकि उसने अमेरिका से चले जाने के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, तो मुझे यही ठीक लगा कि इस बारे में उससे बात न करना ही उचित रहेगा; इसके अलावा, वह न्यू यार्क के अपने दोस्तों के बारे में जानने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक था। मैं हैरान था। मुझे परिस्थिति का सिर पैर समझ में नहीं आ रहा था। ये सब किसी किताब के कई अध्याय एक साथ पलट लेने जैसा लग रहा था। रहस्य से पर्दा उठने की घड़ी तब आयी जब उसने बताया कि आजकल वह बोल्शेविक सरकार के लिए खरीद करने वाला एजेंट है और इस समय वह बर्लिन में रेलवे इंजिन और इस्पात के पुल खरीदने के लिए आया हुआ है।

मैं वापिस लौटा तो मेरे पांच सौ डॉलर मेरी जेब में सुरक्षित थे।

बर्लिन हताश करने वाला शहर था। वहां पर अभी भी हार वाला माहौल पसरा हुआ था और लगभग हर गली के कोने पर भीख मांगते लूले लंगड़े सैनिक युद्ध के बाद की त्रासद कहानी कह रहे थे। अब मुझे मिस मोर्गन के सचिव से तार मिलने शुरू हो गये जिनमें चिंता झलकती लगती क्योंकि पेस ने पहले से ही शो के समय ट्रोकाडेरो में मेरे उपस्थित होने की घोषणा प्रसारित करनी शुरू कर दी थी। मैंने वापसी तार भेजा कि मैंने मौजूद रहने का कोई वादा नहीं किया है और कि फ्रांसीसी जनता का विश्वास बनाये रखने के लिए मुझे उन्हें सच से अवगत कराना ही पड़ेगा।

आखिरकार एक तार आया: पूरा आश्वासन मिला कि अगर आप मौजूद रहते हैं तो आपको सम्मानित (डेकोरेट) किया जायेगा, लेकिन इसे पीछे कोशिशों और संकटों की लम्बी कड़ी रही है- ऐन मोर्गन। इसलिए बर्लिन में तीन दिन बिता कर मैं पेरिस वापिस आ गया।

ट्रोकाडेरो में प्रीमियर की रात मैं बॉक्स में सिसिल सोरेल, ऐन मोर्गन, और कई अन्य लोगों के साथ था। सिसिल मेरे कान में कोई गहरा भेद खोलने के लिए मेरे नज़दीक आये,"आज की रात आपका सम्मान किया जा रहा है।"

"कितनी शानदार बात है, नहीं क्या?" मैंने विनम्रता से कहा।

इंटरवल तक कोई वाहियात डॉक्यूमेंटरी चलती रही, चलती रही। तब तक मैं बीच बीच में काफी ऊब झेल चुका था कि तभी बत्तियां जल गयीं और दो अधिकारी आये और मेरी अगवानी करके मंत्री महोदय के बॉक्स तक ले गये। कई पत्रकार भी हमारे साथ लग लिये। एक काइंया अमेरिकी संवाददाता लगातार मेरी गर्दन के पीछे से फुसफुसाता रहा,"आपको लीजन ऑफ ऑनर मिल रहा है, दोस्त।" जिस वक्त मंत्री अपना भाषण दे रहे थे, मेरे इस दोस्त ने मेरे कान में लगातार फुसफुसाना जारी रखा,"इन लोगों ने आपको डबल क्रॉस किया है, दोस्त। ये गलत रंग है। इस रंग के रिबन से तो वे अपने स्कूल के टीचरों का सम्मान करते हैं। इस सम्मान को पा लेने से आप कोई तोप नहीं हो जायेंगे। आप लाल रंग से अपना सम्मान करने के लिए कहिये। मेरी मानो दोस्त।"

सच तो ये था कि मैं स्कूल टीचरों के वर्ग के साथ सम्मानित किये जाने से बहुत खुश था। प्रमाण पत्र में लिखा था: चार्ल्स चैप्लिन, नाटककार, कलाकार, ऑफिशियल द ल इलस्टेशन पब्लिक ।

मुझे ऐन मोर्गन की तरफ से आभार का बहुत ही खूबसूरत खत मिला और साथ में मिला - विला ट्रायनन, वर्सेलेस में खाना खाने का न्यौता। ऐन ने बताया कि वे मुझे वहीं पर मिलेंगी। ये कुछ खास हस्तियों का ही जमावड़ा था। प्रिंस जॉर्ज ऑफ ग्रीस, लेडी साराह विल्सन, द मार्कुस द टालेरेंड पेरीगोल्ड, कमांडर पॉल लुइस वैल्लर, इल्सा मैक्सवेल तथा अन्य। उस मौके पर जो कुछ भी हुआ या जो भी बातें हुईं, मुझे उनकी याद नहीं है क्योंकि मैं तो अपने आकर्षण को ही भुनाने में लगा हुआ था।
अगले दिन मेरे मित्र वाल्डो फ्रैंक जैकस कोपीउ के साथ मेरे होटल में आये। जैकस फ्रांसीसी थियेटर में नये आंदोलन के अगुआ थे। हम उस शाम एक साथ सर्कस देखने गये और हमने कुछ बेहद शानदार जोकर देखे। इसके बाद हमने लेटिन क्वार्टर में कोपीउ की मंडली के साथ खाना खाया।

अगले दिन मुझे लंदन में होना चाहिये था। वहां पर मुझे सर फिलिप सासून और लार्ड और लेडी रॉकसैवेज के साथ लंच लेना था और लॉयड जॉर्ज से मुलाकात करनी थी। लेकिन चैनल पर खूब अधिक धुंध होने के कारण जहाज को फ्रांसीसी तट पर ही उतरना पड़ा और इस तरह से हम तीन घंटे देर से पहुंच पाये।

सर फिलिप सासून के बारे में दो शब्द। वे युद्ध के समय लॉयड जॉर्ज के आधिकारिक सचिव रह चुके थे। वे लगभग मेरी ही उम्र के थे और बहुत ही शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे। वे देखने में सुदर्शन थे और आंखों को भा जाने वाले नज़र आते थे। वे संसद सदस्य थे और वहां ब्राइटन और होव का प्रतिनिधित्व करते थे। हालांकि वे इंगलैंड के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे, उन्हें खाली बैठे रहना पसंद नहीं था। वे कड़ी मेहनत करते थे और उन्होंने अपने लिए बहुत ही रोचक ज़िंदगी का रास्ता चुना था।

जब मैं उनसे पहली बार पेरिस में मिला तो मैंने उन्हें बताया था कि मैं थक चुका हूं और भीड़ भाड़ से दूर चले जाना चाहता हूं। इसके अलावा मैं बहुत नर्वस हो गया हूं और मैंने उनसे ये शिकायत तक कर डाली थी कि मेरे होटल के कमरे की दीवारों के रंग भी मेरी कोफ्त बढ़ा रहे हैं।

वे हँसे थे,"आपको कौन सा रंग पसंद है?"

"पीला और सुनहरी," मैंने मज़ाक में कहा।