Grandma's Sewing Machine - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

दादी की सिलाई मशीन - 3

भाग 3

दादी की सिलाई मशीन

शादी के छः साल के अंदर कमला को तीन बच्चे हुए, दो बेटियों के बाद एक बेटा क्रमशः सिया, जानकी, और मोहन. कमला गाँव में रह कर बहुत खुश थी और कैलाश बाबू भी अपनी पत्नी से बहुत खुश थे. मोहन पढ़ने लिखने में काफी तेज था. कमला बोलती मिडिल के बाद इसे शहर के हाई स्कूल में पढ़ने भेजूंगी. पर नियति को यह मंजूर नहीं था. एक दिन कैलाश बाबू जब शाम को अपनी साइकिल से गाँव लौट रहे थे, रास्ते में उन पर जानलेवा हमला हुआ. कुछ नकाबपोश बदमाशों ने उनके सिर और पैर पर लाठी से प्रहार किया और वे बुरी तरह जख्मी हुए. कैलाश को शहर अस्पताल में भर्ती कराया गया. महीनों इलाज चला. कमला ने खेत बेच डाले, फिर भी न काम चला तो अपने वकील जेठ से कुछ उधार भी लिए. लाख कोशिशों के बावजूद कैलाश को बचाया न जा सका.

कैलाश की मौत के बाद कमला पर मानों विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा. कुछ दिनों तक तो उसके और बच्चों के खाने पीने का इंतजाम गोकुल और आस पड़ोस से हुआ. उसके बाद उसने खुद को समझाया कि सिर्फ रोने से तो तीनों बच्चों का पेट नहीं भरेगा. पति के निधन के बाद तीनों बच्चों की ज़िम्मेदारी अब अकेले कमला को उठानी थी. गाँव में नौकरी की कोई संभावना नहीं थी और जरूरतें उसके सामने मुंह बाए खड़ी थीं. उसे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि नयी जिंदगी की शुरुआत कहाँ से करे.

कैलाश के इलाज के दौरान गाँव की जमीन बिक गयी थी और फ़िलहाल गाँव में अब कोई सम्पत्ति बची नहीं थी. कमला ने सबसे प्यारी और कीमती चीज जो अभी तक बचा कर रखी थी वह थी उसकी सिलाई मशीन. उसने मन में निश्चय किया कि अब यही मशीन हमारी रोजी रोटी बनेगी. वह अपने तीनो बच्चों के साथ शहर आ गयी. शुरू के एक दो महीनों में उसके जेठ सुरेश ने उसकी कुछ मामूली मदद की थी. रहने के लिए एक कमरा मिला और दो जून की रोटी किसी तरह उसके बच्चों को मिल जाती, बस और कुछ नहीं.हालांकि यह सब भी सिर्फ समाज को दिखलाने के लिए था. हर खाने के साथ जेठानी ताने देती कि हमारा घर एक धर्मशाला बन गया है जहाँ मुफ्त का लंगर भी चलता है. हक़ीक़त तो यह थी कि कमला के पति का खून उसी के जेठ ने करवाया था. कैलाश की मौत का षड्यंत्र उसके जेठ ने ही रचा था, कमला इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ थी.

जेठानी और उसके बच्चे कमला के तीनों बच्चों को हेय दृष्टि से देखते थे. पर फ़िलहाल जेठ के यहाँ रहना कमला की मजबूरी थी. अपनी और ख़ास कर बच्चों की अवहेलना देख कर वह किसी दूसरे ठिकाने की तलाश कर रही थी. इसी उद्देश्य से एक दिन अपने कुछ बचे खुचे गहने ले कर वह एक सोनार की दुकान पर बेचने गयी. ये गहने उसे शादी में मिले थे. सोनार की दुकान पर उसकी मुलाकात उस जज से हुई जो कैलाश को बहुत मानते थे और कमला को भी जानते थे. उन्होंने कहा “ कमलाजी, आप यहाँ कैसे ? “

“ हां, कुछ दिनों से यहीं पर हूँ. “ कमला ने कहा और उसकी आँखें भर आयी थीं. जज साहब से कमला की स्थिति छिपी नहीं थी. फिर भी उनके पूछने पर कमला ने अपनी आपबीती सूनाई.

उसने कहा “ मुझे सर छुपाने के लिए एक छोटा सा घर चाहिए. एक कमरे से मैं काम चला लूंगी, ज्यादा बड़े मकान का किराया देने की हैसियत भी नहीं है मेरी. किसी खाली मकान के बारे में आपको पता हो तो कृपया बताएँगे . “

जज साहब कुछ पल सोच कर बोले “ मेरा आउट हाउस खाली है. पर वह आपके लायक नहीं है. “

“ मुझे सर छुपाने के लिए एक कमरे की झोंपड़ी मिल जाए, वही बहुत है. कम से कम इज्जत के साथ रूखा सूखा खा कर रह लेंगे . “

“ उस आउट हॉउस में एक कमरा है और उससे सटा एक बरामदा. आउट हाउस के पीछे में गुसलखाना और शौचालय है. वहीँ पर एक हैंडपम्प है. अलग से कोई किचन नहीं है. वैसे बरामदा में किचन बना सकती हैं आप. मगर अभी उसमें बिजली नहीं है. कुछ महीनों के अंदर मैं बिजली लगवा दूंगा. आप चाहें तो चल कर देख लें.

“ गाँव में बिना बिजली के रहने की आदत है मुझे. आपने जितना बताया वह मेरी जरूरतों से ज्यादा ही है, मुझे देखने की जरूरत नहीं है. पर किराया कितना देना होगा मुझे ? “

“ किराए की बात कर मुझे शर्मिंदा न करें. कैलाश से मैं केस के बारे में सलाह मशवरा लिया करता था. वैसे कचहरी में उसके जिरह से बहुत कुछ बातें स्पष्ट होती थीं फिर भी कभी कभी मैं अनौपचारिक रूप से उसे बुलाता और विस्तार से चर्चा कर उसकी सलाह लेता था. इसलिए अपनी जानकारी में मैंने कोई गलत फैसला नहीं किया है. “

“ वह तो ठीक है, फिर भी कुछ किराया तो देना ही चाहिए मुझे. “

“ मैंने कहा न, मुझे किराया नहीं चाहिए. हाँ हमलोग छुट्टियों में बाहर जाते रहते हैं, उस दौरान मेरे घर की देख भाल करना आपका काम होगा, बस इसे ही मैं किराया समझ लूँगा. एक बात और कहनी थी, मैं नहीं जानता कि इसके बारे में आपको कोई जानकारी है भी या नहीं. “

“ हाँ, कहें. “

“ भाभी, आपको शायद पता नहीं हो. मैं भी पुख्ता तौर पर नहीं जानता हूँ, पर सुनने में आया है कि कैलाश बाबू पर हमला आपके जेठ सुरेश ने ही कराया था. एक केस में दोनों आमने सामने थे, आपके जेठ सुरेश के जीतने की उम्मीद थी. कैलाश बाबू ने उनके झूठे गवाहों से ऐसी जिरह की कि उनके पसीने छूटने लगे और उनकी जीती हुई बाजी पलट गयी. मुजरिम को तीन साल की कठोर कारावास हुई. इस हार से वे बौखला गए थे. कहा जाता है कि उन्होंने ऐलान किया था कि इस कैलाश के बच्चे को मैं कैलाश पर्वत पहुंचा कर दम लूँगा . व्यक्तिगत तौर पर मुझे भी उसी पर शक है. “

“ मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है. और होने से भी मैं क्या कर सकती हूँ ? “

“ मुझे तो उस पर शक है, आप चाहें तो पुलिस में रिपोर्ट कर सकती हैं. पुलिस पता लगा कर दोषी को ढूंढ निकाल सकती है. “

“ मेरे पास न कोई गवाह है न वकील. और सच यह है कि वकील और गवाह हों, फिर भी अब मुझमें मुकदमा लड़ने की हिम्मत नहीं है. मेरे सर पर काफी जिम्मेवारियां पहले से ही हैं.किसी तरह दो वक़्त की रोटी और बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम भगवान् कर दे तो अपना सौभाग्य समझूंगी. “

“ एक बार कोशिश तो कीजिये. कोर्ट में मैं न्याय दिलवाने की कोशिश करूँगा. “

“ अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं बची है, मैं टूट चुकी हूँ. और अगर मैं आपकी अदालत में जीत भी जाती हूँ तो फिर आगे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक वे जायेंगे. उन्हें पैसे की कमी नहीं है और मैं तो कहीं की नहीं रह जाऊँगी. फिर बच्चों को भीख मांगने की नौबत आ जाएगी. आप बस सर छुपाने की जगह दे दें, भगवान् आपका भला करेगा. और सबसे बड़ी बात मेरा पति तो अब मुझे वापस नहीं मिलेगा. “

“ ठीक है, जैसी आपकी इच्छा. मैं तो चाहता था कि पापी को किये पाप की सजा मिले. वैसे आप जब चाहें मेरे यहाँ रहने आ सकती हैं . आज या अभी भी. “

अगले ही दिन कमला अपने बच्चों और सामान के साथ जज साहब के आउट हाउस में आ गयी. उसे बच्चों को पाल पोस और पढ़ा लिखा कर बड़ा करना था. वह अपनी सिलाई मशीन अपने साथ लायी थी. डूबते को तिनके का सहारा भी काफी लगता है. उसे पैजामा, पेटीकोट, ब्लाउज, जांघिया, कुर्ता और कमीज सिलना पहले से ही आता था . पहला आर्डर उसे जज साहब के घर से ही मिला था.

शुरू शुरू में उसे कम ही आर्डर मिलते थे. कमला जज साहब के घर के लिए कुछ कपड़े सिला करती. धीरे धीरे उसे और ऑर्डर मिलने लगे. उसे आर्डर दिलाने में जज साहब ने भी मदद किया था. वह जो भी काम करती मन लगा कर करती, उसका मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं था, वह लोगों का विश्वास जीतना चाहती थी. अच्छी सिलाई और समय पर डिलीवरी उसका मुख्य उद्देश्य था और इसी कारण काम खुद चल कर उसके पास आने लगा. उसका रेट भी वाजिब होता था, बाजार से दो पैसा कम भले मिले तो भी वह खुश थी. सिलाई से मिले पैसों के सहारे वह अपने बच्चों के पालन पोषण के लायक कमाने लगी थी.

मोहन अब हाई स्कूल में था. वह माँ को देर रात तक सिलाई करते देखता तो उसे तकलीफ होती थी और उसे स्वयं पर ग्लानि होती. वह स्वयं कुछ काम करना चाहता था, पर कमला ने उसे मना कर रखा था. वह उसे बी. ए. तक पढ़ाना चाहती थी. वह उसे अफसर बनाना चाहती थी. पर मोहन अपनी माँ को दिन रात मेहनत करते देखता और खास कर जब देर रात लालटेन की मद्धम रौशनी में कमला को कपड़े सिलते देखता तब रो पड़ता था. हालांकि जज साहब ने अपने कहे के अनुसार कमला के आउट हाउस में बिजली लगवा दिया था पर बिजली दिन भर में चार छः घंटे ही आती थी. मोहन ने मन ही मन फैसला किया कि मैट्रिक पास करने के बाद जो भी नौकरी मिलेगी उसे वह करेगा. इसके लिए उसने जज साहब से भी अनुरोध किया था.

मोहन ने मैट्रिक बोर्ड परीक्षा सेकंड डिवीजन से पास किया. उसे पता चला कि जिले के कुछ पोस्ट ऑफिस में क्लर्क की वैकेंसी है. पर बिना पैरवी के आजकल कुछ नहीं होता है. बिना माँ को बताये उसने जज साहब से इसके लिए अनुरोध किया.

हालांकि जज साहब उसके विचार से सहमत थे फिर भी वे बोले “ पर तुम्हारी माँ तो तुम्हें आगे भी पढ़ाना चाहती है , ऐसे में वह तुम्हें नौकरी करने की इजाजत देगी ? पटना पोस्ट मास्टर जेनरल के दफ्तर में मेरे कुछ सम्पर्क हैं. मान लो मैं तुम्हारी पैरवी करूँ और कमला तुम्हें ज्वाइन भी न करने दे तब सारी मेहनत बर्बाद जाएगी. “

“ मैं माँ को मनाने का पूरा प्रयास करूँगा. अंकल,अभी नौकरी की सख्त जरूरत है. अगर मौका मिला तो नौकरी में रह कर भी आगे प्राइवेट पढ़ कर बी ए कर लूंगा. “

क्रमशः

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