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दादी की सिलाई मशीन - 7 - अंतिम भाग

भाग 7 अंतिम

सास से पूरी कहानी सुनने के बाद रमा भी दादी के चरित्र से बहुत प्रभावित हुई और उसने कहा “ आपने सच कहा है माँ जी. यह कोई चीज या सिर्फ एक सिलाई मशीन ही नहीं है. यह एक अमूल्य धरोहर तो है ही साथ में हमलोगों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है जो मुश्किल दिनों का सामना करने का साहस प्रदान करेगा. “

रीता ने कहा “ इस मशीन की एक और विशेषता रही है. हम सभी भाई बहन सभी इसी मशीन के सिले कपड़े पहन कर बड़े हुए हैं. इतना ही नहीं हमारे बच्चों ने भी पहला नया कपड़ा छठ्ठी के दिन जो पहना है वह दादी का खुद का सिला और इसी मशीन पर सिला. अब तो तुम्हारे बच्चे को भी छठ्ठी के दिन इसी मशीन पर सिला कपड़ा मैं खुद सिल कर पहनाऊँगी. यह एक परंपरा बन गयी है. इसी लिए जब से सुना है कि तुम प्रेग्नेंट हो इस मशीन को ठीक करने के लिए और ज्यादा परेशान हूँ. खैर अब डीलर ने कहा है कि इसके पुर्जे मिल गए हैं. एक दो दिन में यह फिर चलने लगेगी. “

“ पर ऐसा कब तक चलेगा माँ जी. आजकल तो रेडीमेड में एक से एक नए फैशन के ड्रेस मिलते हैं. “

“ मैं भी तो बूढी हो गयी हूँ तो क्या मुझे निकाल फेंकोगी ? “

“ कैसी बातें कर रही हैं माँ जी ? छिः, ऐसा मैं नहीं सोच रही हूँ. पर इतना जरूर सोच रही हूँ कि यह परंपरा आखिर कब तक चलेगी ? इसके पुर्जे कब तक बाज़ार में मिलेंगे ? “

“ यह तो तुम लोगों पर निर्भर करता है. जब तक इसके पुर्जे मिलते रहेंगे ये मशीन दौड़ती रहेगी. मैं डीलर को बोल कर इसके कुछ और स्पेयर्स मंगवा देती हूँ. इस में और कुछ खास पुर्जे तो हैं ही नहीं. तुमने देखा है कल के समाचार में कोलकाता में विंटेज कार रैली हुई थी जिसमें 80 साल से भी ज्यादा कारें बखूबी दौड़ रहीं थीं. कार में तो हजारों पुर्जे होते हैं और इस सिलाई मशीन में अंगुली पर गिनने लायक चंद पुर्जे. “

समय पर रीता की बहू ने एक पुत्री को जन्म दिया. रीता ने अपने हाथों से दादी की उसी पुरानी मशीन पर अपनी पोती के लिए फ्रॉक सिला और पोती को छठ्ठी के दिन वही पहनाया गया. इतिहास ने एक बार फिर दोहराया और रीता और रमा ने अपनी परंपरा निभाई और उसे ज़िंदा रखा. रीता इसके बाद ज्यादा दिन ज़िंदा नहीं रही. रीता ने रमा को मरते वक़्त कहा था “ हो सके तो दादी वाली मशीन का ख्याल रखना. कम से कम बीच बीच में उसे झाड़ पोंछ कर तेल डाल देना और एक दो बार चला के देख लेना. “

“ माँ जी, आप निश्चिन्त रहें. मुझ से जितना बन पड़ेगा अपने परिवार की परंपरा निभाऊंगी. मैथिली की संतान को मैं इसी मशीन के सिले कपड़े पहनाऊँगी. “

रीता की बेटी मैथिली प्लस टू के बाद कोलकाता में फैशन टेक्नोलॉजी पढ़ रही थी. वह जब भी छुट्टियों में घर आती सिलाई मशीन पर एक दो नए डिज़ाइन के नमूने बनाती और उसे कोलकाता अपने इंस्टीच्यूट की प्रदर्शनी में पेश करती. पर यह मशीन काफी पुरानी हो चली थी और आजकल के डिज़ाइन वाले ड्रेस इस पर बनाना अब सम्भव नहीं था.

मैथिली ने कहा “ मेरे बाद शायद ही कोई इस मशीन को चला पायेगा. “

उसकी भाभी रमा ने कहा “ मैंने तो सासुजी को वचन दिया है कि इस परिवार की परम्परा के अनुसार तेरे बच्चे को पहला नया ड्रेस इसी मशीन पर सिल कर मैं दूंगी. कम से कम मेरे तक ये रस्म कायम रहेगी. आगे तुमलोगों को देखना है. “

पढ़ाई पूरी होने के बाद मैथिली की शादी हुई. वह गर्भवती हुई और समय पर उसने एक बेटे को जन्म दिया. रमा ने उसे परंपरा के अनुसार रमा ने उसके बच्चे के लिए कमला की मशीन पर सिले कपड़े पहनाये. रमा ने मैथिली से कहा “ मैंने माँ जी को दिया वचन निभाया, अब आगे तुम लोगों को देखना है. “

“ वाह भाभी, मैं तो शादी के बाद दूसरे घर की बहू हूँ. आप इस घर की बहू हैं, आप को तो यहाँ की परम्परा निभानी ही पड़ेगी. अब आगे आपकी बहू को देखना होगा. “

“ तुम्हारे दूसरे घर जाने से क्या होगा ? तुम्हारी माँ भी तो ब्याह कर दूसरे घर की बहू हो गयी थीं फिर भी उन्होंने तो यह रीति निभाई है. “

रमा का पति रमेश वहीँ खड़ा सब सुन रहा था, वह बोला “ भाई, अभी दिल्ली बहुत दूर है. चार जेनरेशन तक तो दादी की मशीन चली. अब वह भी थक गयी होगी, उसे रिटायर नहीं करने दोगी क्या ? “

“ यह कोई सरकारी नौकरी है क्या कि नियत उम्र पर रिटायर होना ही पड़ेगा जिसका अपना निजी बिजनेस होता है वह चाहे तो जिंदगी भर रिटायर नहीं करेगा. मैं तो अपने ससुराल चली जाऊँगी, आगे आपके बच्चों को फैसला करना है इस मशीन के बारे में “  मैथिली बोली

रीता के कहने पर रमेश ने छत पर एक कमरा बनवा दिया था. वैसे भी पुराना घर अब छोटा पड़ रहा था. ऊपर का कमरा रमेश और रमा के लिए बना था पर रीता ने कहा था कि बहू अभी नीचे ही रहेगी. प्रसव के बाद ही ऊपर शिफ्ट होगी.

दो साल बाद रमा और रमेश को एक पुत्र हुआ, रंजीत. रंजीत जब बड़ा हुआ और नौकरी करने लगा तब उसकी भी शादी हुई. जब रंजीत पैदा हुआ था उसी समय कमला की सिलाई मशीन शायद बहुत थक चुकी थी. उसकी दादी रमा ने किसी तरह उस पर एक ड्रेस रंजीत के लिए बनाया. मशीन के डीलर ने भी अब हाथ खड़ा कर दिया था और उसने कहा कि अब इसके पुर्जे नहीं मिल सकते हैं.

इस ड्रेस को पोते को पहनाते हुए रमा ने अपने बेटे और बहू से कहा “ अब लगता है दादी की सिलाई मशीन के रिटायरमेंट का दिन आ गया है. खैर, पांच पीढ़ियों तक इसने साथ दिया इतना बहुत है. फिर भी मैं तुमलोगों से कहूँगी कि इस मशीन को बराबर घर में रखना. इसे अपने परिवार की धरोहर समझना. इस मशीन को यहीं मेरे नीचे वाले कमरे में ही रहने देना. “

रीता ने अपने कमरे में अपने पूर्वजों की तस्वीरें लगा रखी थीं जिनमें उसके परदादा दीना बाबू, दादा कैलाश बाबू, पिता मोहन की भी थीं. मध्य में एक तस्वीर उसकी कमला दादी की थी. कुछ महीने बाद रीता भी चल बसी. कमला, उसके बेटे मोहन के बाद रीता को ही परिवार में सबसे ज्यादा मान सम्मान मिला था और क्यों न मिलता. वह उसकी हक़दार थी. उसने पुरानी परम्परा को कम से कम अगली दो पीढ़ियों तक जिन्दा रखा था. उसके बेटे रमेश ने दीवार पर रीता की भी तस्वीर लगवा दिया. यह रीता ही थी जिसने दादी की मशीन को वर्षों जिंदा रखा और उनकी चलायी परम्परा को भी कायम रखा था.

कमला की सिलाई मशीन आज भी उस परिवार में धरोहर की तरह संभाल कर रखी हुई है. हर वर्ष 17 सितम्बर को विश्वकर्मा पूजा के दिन परिवार का कोई न कोई सदस्य मशीन की पूजा करना नहीं भूलता है. मशीन पर बड़े बड़े अक्षरों में “ कमला दादी “ लिखा था हालांकि वह तो मरणोपरांत अब किसी की पर परदादी और पर परनानी थीं. इस अवसर पर वे पड़ोसियों और कुछ करीबी मित्रों को भी बुलाते. उन सब को कमला दादी की और उनकी मशीन की कहानी सुनाना नहीं भूलते.

समाप्त